चेन्नई : आगरा स्थित ताजमहल को प्यार की इमारत माना जाता है. कहते हैं बादशाह शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज की याद में ताजमहल बनवाया था. उन्हीं की तर्ज पर तमिलनाडु के एक पूर्व सैनिक ने अपनी स्वर्गवासी अर्धांगिनी की याद में प्रतिमा का निर्माण करवाया, लेकिन उन्होंने स्वर्गीय अर्धांगिनी की प्रतिमा के साथ ही स्वयं की प्रतिमा का भी निर्माण करवा दिया. जिसको देख हर कोई हैरान है.
पूर्व सैनिक एस. मदसामी तमिलनाडु के थूथुकुडी में रहते हैं, जो अपनी पत्नी मदसामी से बेहद प्यार करते थे. वल्लियामल की तबीयत ठीक नहीं रहती थी. बीमारी की वजह से वो एक दिन दुनिया छोड़ गईं, जिससे एस. मदसामी बुरी तरह टूट गए, लेकिन उन्होंने पत्नी की यादों को जिंदा रखने का फैसला किया. उन्होंने घर में ही एक हॉल बनवाया. लगभग आधी शताब्दी तक अपनी पत्नी के साथ रहने के बाद वहीं स्वयं और अपनी पत्नी की मूर्ति बनवाई.
मदसामी बताते हैं कि वह दसवीं पास करने के बाद सेना में शामिल हो गए. इसके बाद 1975 तक सेना में अपनी सेवा दी. बाद में वह केंद्रीय जल कारखाने में सुरक्षा अधिकारी के रूप में काम करने लगे. उसके बाद सन् 2000 में वह रिटायर्ड हो गए.
मदसामी और उनकी स्वर्गवासी पत्नी वल्लियामल के एक बेटा और दो बेटियां हैं. उनकी शादी को लगभग 48 वर्षो हो गए थे. वल्लियामल के जीवन का मूल उनके पति थे. अचानक वल्लियामल बहुत बीमार हो गईं और 25 जनवरी 2014 को उनका निधन हो गया.
कन्याकुमारी से बनवाई थी मूर्तियां
पत्नी से बेहद प्यार करने वाले मदसामी के लिए यह एक गहरे सदमें से कम नहीं था. जिसके बाद उन्होंने सात जन्मों का वादा याद कर अपनी पत्नी की मूर्ति बनवाने का फैसला किया. उसके बाद क्या था बिना किसी देरी के वह कन्याकुमारी के मयिलादुथुराई गए और पत्नी वल्लियामल की मूर्ति बनवाई. इसके बाद उन्होंने घर के सामने एक हॉल बनवाया और देवी देवताओं की मूर्ति के रूप में अपनी पत्नी की मूर्ति स्थापित कर दी और आज भी वह अपनी पत्नी की मूर्ति की रोजाना पूजा करते हैं.
मदसामी उस मूर्ति को देख रोजाना अपनी पत्नी के साथ बिताए पल को याद करते हैं वह बताते हैं कि जीवन के अंतिम क्षणों में भी उनकी पत्नी ने उनका हाथ थाम रखा था. यही नहीं उनकी पत्नी की प्रतिमा अकेली न लगे इसके लिए उन्होंने उसके अगले साल खुद की भी प्रतिमा बनवा कर उसी हॉल में अपनी पत्नी की मूर्ति के बगल में स्थापित करवा दी. मदसामी के प्रेम को देख कर समाज और परिवार वालों ने उनकी बहुत आलोचला की. बहुतों ने उन्हें पागल भी कहा, लेकिन इसके बाद भी उन्हें ऐसा करने में कोई संकोच नहीं किया.
अपनी पत्नी को यादों में जीवित रखने के लिए उन्होंने चार स्तंभ वाला एक हॉल का निर्माण कराया. इतना ही नहीं चार स्तंभों में उनके परिवार के चार सदस्य बच्चे और पत्नी का नाम अंकित है. वह हर शनिवार अपनी पत्नी की मृत्यु के दिन को शोक के दिन के रूप में देखते हैं और हफ्ते में एक दिन काले रंग के कपड़े धारण करते हैं. मदसामी अपनी पत्नी के जन्म और मरण के दिन जरूरत मंदों की सहायता करते हैं.
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मदसामी ने कभी भी अपना जीवन अपनी पत्नी के बिना कल्पना नहीं किया था. वह अपनी पत्नी की याद में उनकी तस्वीरों वाली अंगूठी और गले में पत्नी की तस्वीर वाली एक चेन पहनी हुई है, जो उन्हें हर पल उनकी याद दिलाती रहती है. मदसामी का अपनी पत्नी वल्लियामल के प्रति प्रेम जीवन में दीया और बाती के संगम को दर्शाता है.