देहरादून : 29 मई 1953 को एडमंड हिलेरी और तेनजिंग शेर्पा ने एवरेस्ट पर फतह हासिल की थी. दोनों पर्वतारोही दृढ़ता, साहस और मजबूत इच्छाशक्ति के प्रतीक बन गए थे. एवरेस्ट विजय के बाद भी एडमंड हिलेरी विभिन्न अभियानों में लगे रहे. इस दौरान उन्होंने हिमालय की 10 अन्य चोटियां भी फतह कीं. उत्तराखंड में गंगा से मिली हार ने हिलेरी के घमंड को चूर-चूर कर दिया था.
1977 में शुरू हुआ था 'सागर से आकाश' अभियान: आज से करीब 44 साल पहले 1977 में एडमंड हिलेरी 'सागर से आकाश' नामक अभियान पर निकले थे. हिलेरी का मकसद था कलकत्ता से बदरीनाथ तक गंगा की धारा के विपरीत जल प्रवाह पर विजय हासिल करना. इस दुस्साहसी अभियान में तीन जेट नौकाओं का बेड़ा था- गंगा, एयर इंडिया और कीवी. एडमंड हिलेरी की टीम में 18 लोग शामिल थे. इनमें उनका 22 साल का बेटा भी था. हिलेरी का ये अभियान उस समय चर्चा का विषय बना हुआ था. राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां बना हुआ था.
हिलेरी की इस यात्रा को करीब से देखनेवाले और कवर करने वाले डॉ. उमाशंकर थपलियाल 'समदर्शी' (अब दिवंगत) ने कई साल पहले वो आंखों देखा अनुभव बताया था. उन्होंने बताया था कि एडमंड हिलेरी कलकत्ता से पौड़ी गढ़वाल के श्रीनगर तक बिना किसी बाधा के पहुंच गए थे.
गंगा की लहरों को भी जीतना था एडमंड हिलेरी का लक्ष्य: एडमंड हिलेरी एवरेस्ट फतह करने वाले दुनिया के पहले व्यक्ति बनने के बाद गंगा की लहरों के विपरीत जल प्रवाह पर भी जीत हासिल करना चाहते थे.
डॉक्टर उमाशंकर थपलियाल तब आकाशवाणी के लिए एडमंड हिलेरी के अभियान को कवर कर रहे थे. उन्होंने बताया था कि- 'हिलेरी 26 सितंबर 1977 को श्रीनगर पहुंचे थे. एवरेस्ट विजेता को देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी थी. हिलेरी यहां कुछ देर रुके. लोगों से गर्मजोशी से मिले. उसी दिन अपनी जेट नाव पर सवार होकर बदरीनाथ के लिए निकल पड़े. उनकी नावें बहुत तेज गति से जा रही थीं.'
आत्मविश्वास से लवरेज थे एडमंड हिलेरी: एवरेस्ट विजेता एडमंड हिलेरी आत्मविश्वास से भरे थे. उनको पूरा विश्वास था कि अपने इस अभियान को भी वो जरूर सफलतापूर्वक संपन्न करेंगे. हालांकि श्रीनगर से कर्णप्रयाग तक गंगा की लहरों की चुनौतियां थोड़ा बढ़ीं. लेकिन उत्साह से लवरेज एडमंड हिलेरी उन पर विजय पाते तेजी से कर्णप्रयाग पहुंच गए.
नंदप्रयाग में गंगा से हार गया एवरेस्ट विजेता: गंगा सागर से सफलतापूर्वक कर्णप्रयाग तक पहुंचे एवरेस्ट विजेता एडमंड हिलेरी को शायद नंदप्रयाग में परास्त होना था. वो भी दुनिया की सबसे पवित्र नदी गंगा के हाथों. लेकिन हिलेरी को इसका अहसास भी नहीं था. कर्णप्रयाग से वो जोश-खरोश से अपने अभियान पर निकले. लेकिन नंदप्रयाग के पास खड़ी चट्टानों के कारण नदी का बहाव बहुत तेज था.
और गंगा से हार गए एडमंड हिलेरी: ये उनके अभियान का अब तक का सबसे मुश्किल पल था. हिलेरी ने बहुत कोशिश की. लेकिन एवरेस्ट फतह करने वाले इस जांबाज की गंगा के आगे एक न चली. एडमंड हिलेरी को हार माननी पड़ी. उनका सागर से हिमालय अभियान नंदप्रयाग के पास समाप्त हो गया. एडमंड हिलेरी ने माना कि गंगा मां को जीतना आसान नहीं है. उन्हें गंगा मां ने हरा दिया. तब ये दुनिया भर के अखबारों और रेडियो की सबसे बड़ी सुर्खी थी.
स्थानीय लोगों ने पहले ही हिलेरी की हार की भविष्यवाणी की थी: डॉ. उमाशंकर थपलिया ने बताया था कि जब हिलेरी कर्णप्रयाग से आगे का अभियान शुरू करने वाले थे तो सड़क के किनारे और खेतों पर उन्हें देखने के लिए भारी भीड़ जमा थी. इस दौरान खेत की मुंडेर पर बैठे दो बुजुर्गों की बातें डॉ. उमाशंकर थपलियाल के कानों में पड़ी थीं. डॉ. साहब खेत में चढ़कर उनके पास पहुंच गए. दरअसल दोनों बुजुर्ग हिलेरी के अभियान को नंदप्रयाग के पास समाप्त होने की भविष्यवाणी बड़े कॉन्फिडेंस से कर रहे थे. डॉक्टर उमाशंकर थपलियाल ने उनसे इसका कारण पूछा तो उन दोनों बुजुर्गों ने वहां अपने मछली मारने के अनुभव को बताते हुए वहां की भौगोलिक स्थिति बता दी. बुजुर्गों ने बताया कि उस जगह पर खड़ी चट्टान है. इस कारण एडमंड हिलेरी की बोट उसे पार नहीं कर पाएंगी. चट्टान के कारण वहां पर नदी का बहाव भी बहुत तीव्र था.
डॉ. उमाशंकर थपलियाल ने आकाशवाणी पर ये खबर ब्रेक कर दी कि- 'नंदप्रयाग के पास एवरेस्ट विजेता एडमंड हिलेरी का अभियान थम सकता है.' ये सुनकर हिलेरी आग बबूला हो गए. उन्होंने डॉ. उमाशंकर थपलियाल से पूछा कि वो अभियान से पहले ऐसा कैसे कह सकते हैं. डॉ. थपलियाल ने शांत भाव से उत्तेजित हिलेरी को बताया कि वो इस इलाके की भौगोलिक स्थित से भली-भांति परिचित हैं. इस आधार पर उन्होंने ये खबर ब्रेक की है.
जब एडमंड हिलेरी नंदप्रयाग के पास पहुंचे तो वाकई वो बाधा इतनी मुश्किल बनी कि उन्हें हार मानकर अपना अभियान वहीं खत्म करना पड़ा. हिलेरी ने तब गंगा की शक्ति को माना कि उसे हराना मुश्किल है.
हिलेरी के अभियान का प्रतीक पार्क है: नंदप्रयाग में हिलेरी के इस अभियान का प्रतीक एक पार्क है. पार्क का नाम हिलेरी स्पॉट है. ये पार्क याद दिलाता है कि दुनिया के असंख्य पर्वतों को जीतने वाल एक पर्वतारोही कैसे यहां गंगा से हारा था.
हिलेरी को जिंदगी भर रही हार की कसक: गंगा से हार जाने की ये कसक एडमंड हिलेरी के मन में आजीवन रही. जब वे 10 साल बाद दोबारा उत्तरकाशी के नेहरू पर्वतारोहण संस्थान में आए तो उन्होंने विजिटर बुक में लिखा, 'मनुष्य प्रकृति से कभी नहीं जीत सकता हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए.'
कॉर्बेट पार्क को मिली थी हिलेरी की एक बोट: लहरों को चीरते हुए एडमंड हिलेरी इलाहाबाद, वाराणसी, हरिद्वार, ऋषिकेश, श्रीनगर और कर्णप्रयाग से नंदप्रयाग पहुंचे थे. नंदप्रयाग से मोटरबोट आगे नहीं बढ़ पाई. गंगा के तेज प्रवाह के आगे एडमंड हिलेरी ने हार मान ली. उन्हें अपना अभियान यहीं रोकना पड़ा था. अभियान की समाप्ति पर 1977 में हिलेरी ने अपनी तीनों बोट भारत सरकार को दे दी थीं. भारत सरकार ने इनमें से एक मोटरबोट एक मई 1979 को कॉर्बेट नेशनल पार्क को दे दी.