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कुमाऊं में जीत ने BJP को सौंपी उत्तराखंड की सत्ता की चाबी

70 सीटों वाले उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा को कामयाबी मिली है. बीजेपी पूर्ण बहुमत की सरकार बनाएगी. भाजपा के खाते में 47 सीटें गई हैं. हालांकि, बीजेपी के सीएम कैंडिडेट पुष्कर सिंह धामी को मिली मात चौंकाने वाले नतीजे में एक रहा. धामी को मिली हार के बावजूद भाजपा का सत्ता पर काबिज रहना बड़ी कामयाबी माना जा रहा है.

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उत्तराखंड में बीजेपी की जीत, धामी को मिली मात
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Published : Mar 10, 2022, 10:26 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल की 29 में 18 सीटों पर बीजेपी ने जीत का परचम लहराया है. हालांकि बीजेपी के लिए ये दुखद रहा कि सीएम पुष्कर सिंह धामी खटीमा से हार गए हैं. कांग्रेस को 10 सीटें मिली हैं. उधर कांग्रेस प्रत्याशी और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी लालकुआं सीट से हार गए. 2017 में कुमाऊं में बीजेपी ने 23 सीटें जीती थी.

देहरादून: BJP ने उत्तराखंड में सत्ता में वापसी कर ली है. बीजेपी ने 70 में से सीटें जीतकर इस मिथक को तोड़ दिया कि उत्तराखंड में सरकारें रिपीट नहीं होती हैं. हालांकि बीजेपी को पिछली बार की 57 सीटों के मुकाबले इस बार सीटें मिली हैं, लेकिन उत्तराखंड में अगले पांच साल तक पार्टी फिर सरकार चलाएगी.

बीजेपी ने अल्मोड़ा जिले की 5 सीटें जीतीं
उत्तराखंड की सांस्कृतिक राजधानी अल्मोड़ा जिले की 5 सीटें बीजेपी ने जीत ली हैं. बीजेपी ने अल्मोड़ा जिले में कांग्रेस का लगभग सूपड़ा साफ कर दिया. अभी अल्मोड़ा सीट का रिजल्ट घोषित नहीं हुआ है. अल्मोड़ा जिले की जिन सीटों पर बीजेपी प्रत्याशी जीते उनके बारे में आपको बताते हैं.

द्वाराहाट से लेकर सल्ट तक बीजेपी जीती
अपने मंदिर समूहों के लिए विश्व प्रसिद्ध द्वाराहाट सीट पर बीजेपी के अनिल शाही ने कांग्रेस के मदन बिष्ट को शिकस्त दी. अल्मोड़ा के जिला मुख्यालय रानीखेत सीट पर बीजेपी के प्रमोद नैनवाल ने कांग्रेस के करन महरा को हरा दिया. सोमेश्वर सीट पर बीजेपी की तेज तर्रार नेता और कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य ने कांग्रेस के राजेंद्र बाराकोटी को परास्त किया.

सल्ट विधानसभा सीट पर बीजेपी के महेश जीना ने कांग्रेस के बाहुबली रणजीत रावत को शिकस्त दी. भगवान शिव के धाम से प्रसिद्ध जागेश्वर सीट पर बीजेपी प्रत्याशी मोहन सिंह मेहरा ने कांग्रेस के गोविंद सिंह कुंजवाल को परास्त कर दिया. कुंजवाल 2012 की कांग्रेस सरकार के दौरान विधानसभा अध्यक्ष रहे थे.

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बागेश्वर में भी बीजेपी का क्लीन स्वीप
अल्मोड़ा के पड़ोसी जिले भगवान बागनाथ की नगरी बागेश्वर में भी बीजेपी ने क्लीन स्वीप कर दिया. इस जिले में विधानसभा की दो सीट हैं. दोनों सीटें बीजेपी के खाते में गई हैं. जिले की कपकोट सीट पर बीजेपी के सुरेश गड़िया ने कांग्रेस के ललित मोहन फर्स्वाण को मात दी है. बागेश्वर सीट पर बीजेपी के चंदन राम दास ने कांग्रेस प्रत्याशी रंजीत दास को हराया.

चंपावत की सीटें बीजेपी-कांग्रेस ने बांटीं
चंपावत जिले की दो विधानसभा सीटें बीजेपी और कांग्रेस ने आपस में बांट ली हैं. जिले की लोहाघाट सीट पर कांग्रेस के खुशाल सिंह अधिकारी ने बीजेपी के पूरन सिंह फर्त्याल को हरा दिया है. वहीं चंपावत सीट पर बीजेपी के कैलाश गहतोड़ी ने कांग्रेस के हेमेश खर्कवाल को शिकस्त दी.

नैनीताल में भी बीजेपी का टैंपो हाई
नैनीताल जिले की छह विधानसभा सीटों में से पांच पर बीजेपी का परचम लहराया है. नैनीताल सीट से बीजेपी की प्रत्याशी सरिता आर्य ने कांग्रेस के संजीव आर्य को तगड़ी शिकस्त दी है. ये वही सरिता आर्य हैं जिन्हें कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया था. तब सरिता कांग्रेस की महिला प्रदेश अध्यक्ष थीं. जब यशपाल आर्य और उनके बेटे संजीव ने कांग्रेस में वापसी की और ये तय हो गया कि संजीव आर्य को कांग्रेस नैनीताल से टिकट देगी तो सरिता ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी ज्वाइन कर ली थी. बीजेपी ने भी लगे हाथ सरिता आर्य को नैनीताल सीट से टिकट दिया और आज सरिता आर्य ने बीजेपी के निर्णय को जीत के साथ सही ठहरा दिया है.

भीमताल से भाजपा प्रत्याशी राम सिंह कैड़ा ने कांग्रेस प्रत्याशी दान सिंह भंडारी को शिकस्त दी है. हल्द्वानी से कांग्रेस के सुमित हृदयेश ने भाजपा प्रत्याशी जोगेन्द्र रौतेला को हराया है. सुमित कांग्रेस की दिग्गज नेता रहीं इंदिरा हृदयेश के बेटे हैं. इंदिरा हृदियेश का 2021 में देहांत हो गया था. उनकी हल्द्वानी सीट से कांग्रेस ने उनके बेटे सुमित को उम्मीदवार बनाया था.

लालकुआं के बादशाह बने मोहन सिंह बिष्ट
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में नैनीताल जिले की लालकुआं सीट सबसे हॉट सीट बन गई थी. इस सीट से कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत चुनाव लड़ रहे थे. लालकुआं से भाजपा ने मोहन सिंह बिष्ट को प्रत्याशी बनाया था. हरीश रावत के राजनीतिक ग्लैमर के आगे उनकी ज्यादा चर्चा नहीं हो रही थी. लेकिन आज जब मतगणना शुरू हुई तो हरीश रावत शुरू से ही पीछे रहे. अंत में मोहन सिंह बिष्ट ने हरीश रावत को शिकस्त देकर उनके मुख्यमंत्री बनने के सपने को चकनाचूर कर दिया.

कालाढूंगी में कैबिनेट मंत्री बंशीधर जीते
कालाढूंगी से भाजपा प्रत्याशी बंशीधर भगत ने कांग्रेस के महेश शर्मा को हरा दिया. बंशीधर भगत उत्तराखंड बीजेपी के अध्यक्ष रह चुके हैं. अभी वो धामी सरकार में 5 विभागों के कैबिनेट मंत्री थे. रामनगर सीट से बीजेपी के दीवान सिंह बिष्ट ने कांग्रेस के महेंद्र पाल हरा दिया है. रामनगर वही सीट है जहां से पहले हरीश रावत चुनाव लड़ने वाले थे. रणजीत रावत से विवाद के बाद हरीश रावत को लालकुआं से टिकट दिया गया था. उधर रणजीत रावत को सल्ट भेज दिया गया था.

पिथौरागढ़ में 50-50
पिथौरागढ़ की चार विधानसभा सीटों में से बीजेपी और कांग्रेस ने 2-2 सीटें जीतकर मामला 50-50 रखा है. जिले की धारचूला सीट पर बीजेपी के धन सिंह धामी कांग्रेस के हरीश सिंह धामी से चुनाव हार गए. डीडीहाट सीट पर कैबिनेट मंत्री और बीजेपी के बिशन सिंह चुफाल ने कांग्रेस के प्रदीप पाल सिंह को हरा दिया. पिथौरागढ़ सीट पर कांग्रेस के मयूख महर ने बीजेपी की चंद्रा पंत को हरा दिया है. चंद्रा पंत दिवंगत प्रकाश पंत की पत्नी हैं. प्रकाश पंत के निधन के बाद बीजेपी ने चंद्रा पंत को उप चुनाव में उतारा था. तब चंद्रा ने जीत हासिल की थी. 2022 के चुनाव में चंद्रा पंत को हार मिली है. गंगोलीहाट सीट से बीजेपी के फकीर राम ने कांग्रेस के खजान चंद्र गुड्डू को हरा दिया है.

उधम सिंह नगर ने बचाई कांग्रेस की लाज
कुमाऊं मंडल के मैदानी जिले उधम सिंह नगर की 9 में से 5 सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की है. 4 सीटें बीजेपी के खाते में गई हैं. जसपुर सीट पर कांग्रेस के आदेश सिंह चौहान ने बीजेपी के शैलेंद्र मोहन सिंघल को हरा दिया. किच्छा सीट पर कांग्रेस के तिलकराज बेहड़ ने बीजेपी के राजेश शुक्ला को शिकस्त दी है. नानकमत्ता सीट पर कांग्रेस के गोपाल सिंह राणा ने बीजेपी के प्रेम सिंह राणा को हराया है.

सीएम धामी खटीमा से हारे
CM धामी को खटीमा सीट पर कांग्रेस के भुवन चंद्र कापड़ी ने हरा दिया. धामी पिछली दो बार से यहां से चुनाव जीतते आ रहे थे. इस बार तो वो मुख्यमंत्री के रूप में खटीमा से चुनाव मैदान में थे. इसके बावजूद धामी चुनाव हार गए. हालांकि धामी की हार के बावजूद बीजेपी ने बंपर मैंडेट हासिल किया है.

बाजपुर से यशपाल आर्य जीते
जिले की बाजपुर सीट से कांग्रेस के यशपाल आर्य जीत गए हैं. यशपाल आर्य ने बीजेपी के राजेश कुमार को शिकस्त दी है. यशपाल आर्य ठीक चुनाव से पहले बीजेपी सरकार का कैबिनेट पद ठुकराकर अपने बेटे संजीव आर्य के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए थे. हालांकि संजीव आर्य नैनीताल सीट से चुनाव हार गए हैं.

काशीपुर से जीते त्रिलोक सिंह चीमा जीते
उधम सिंह नगर की हाई प्रोफाइल सीट काशीपुर पर चीमा परिवार का कब्जा बरकरार रहा. पिछली चार बार से हरभजन सिंह चीमा यहां से चुनाव जीतते आ रहे थे. इस बार उन्होंने अपने बेटे त्रिलोक को टिकट दिलाया. त्रिलोक ने पहले चुनाव में ही जीत का स्वाद चख लिया. चीमा ने कांग्रेस के नरेंद्र चंद्र सिंह को हराया.

शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे जीते
जिले की गदरपुर सीट से उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे जीत गए. अरविंद पांडे ने कांग्रेस के प्रेमानंद महाजन को शिकस्त दी. पांडे ने ये मिथक भी तोड़ा कि उत्तराखंड में कोई शिक्षा मंत्री अपने पद पर रहते हुए चुनाव नहीं जीत सकता है. रुद्रपुर सीट पर भी बीजेपी का कब्जा हुआ. यहां से बीजेपी के शिव अरोड़ा जीते हैं. अरोड़ा ने बीजेपी के बागी और निर्दलीय चुनाव लड़े राजकुमार ठुकराल को हराया.

सितारगंज से जीते सौरभ बहुगुणा
जिले की सितारगंज सीट से पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के बेटे सौरभ बहुगुणा ने भगवा झंडा लहराया है. सौरभ ने कांग्रेस के नवतेज पाल सिंह को शिकस्त दी है. इसके साथ ही सौरभ बहुगुणा ने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने की ओर कदम बढ़ाया है.

कुमाऊं में हुए ये उलटफेर
इस बार कुमाऊं ने बीजेपी को 18 सीटें जिताकर सत्ता के सिंहासन पर पहुंचाया तो यहां दो बड़े उलटफेर भी हुऐ हैं. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपनी खटीमा सीट से चुनाव हार गए. धामी का हार अप्रत्याशित थी. वो पिछली दो बार से खटीमा से चुनाव जीतते आ रहे थे. लेकिन खटीमा के मतदाताओं ने उन्हें जीत की हैट्रिक लगाने से रोक दिया. उनकी हार में किसान आंदोलन को कारण माना जा रहा है. उधम सिंह नगर जिले में 3.72 लाख मुस्लिम आबादी भी है. ऐसा अनुमान है कि ज्यादातर सिख और मुस्लिम वोटरों ने धामी को वोट नहीं दिया, इस कारण वो चुनाव हार गए.

हरीश रावत भी चारों खाने चित
काफी माथापच्ची के बाद हरीश रावत ने आखिरी समय में लालकुआं सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया. तब तक पार्टी संध्या डालाकोटी को टिकट दे चुकी थी. हरीश रावत लालकुआं आए तो संध्या का टिकट काट दिया गया. इससे नाराज होकर संध्या ने निर्दलीय चुनाव लड़ा. इसे हरीश रावत की हार का बड़ा कारण माना जा रहा है.

कुमाऊं में ऐसे मिली जीत
कुमाऊं में बीजेपी ने इस बार के चुनाव में पूरी ताकत झोंकी थी. पीएम मोदी की कुमाऊं के हल्द्वानी, अल्मोड़ा और रुद्रपुर में तीन बड़ी रैलियां हुई थीं. अल्मोड़ा में पीएम की रैली से बीजेपी ने अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़ और चंपावत के साथ नैनीताल जिले को कवर किया था. हल्द्वानी कुमाऊं का प्रवेश द्वार है. यहां पीएम मोदी की रैली ने उधम सिंह नगर, चंपावत और नैनीताल जिले के दूर-दराज के इलाकों पर असर डाला. रुद्रपुर में पीएम की रैली ने भी असर डाला. उधम सिंह नगर जिला सिख बहुल जनसंख्या वाला जिला है. यहां किसान आंदोलन का तगड़ा असर देखा जा रहा था. राजनीतिक पंडितों का ये मानना था कि उधमसिंह नगर जिले में बीजेपी को शायद ही सीटें मिलें. लेकिन बीजेपी यहां से चार सीटें लाने में सफल रही. हालांकि सीएम धामी की खटीमा सीट बीजेपी गंवा बैठी.

2017 के चुनाव में प्रदर्शन
वर्ष 2017 में हुए चुनाव में भाजपा ने सारे रिकॉर्ड नेस्तनाबूद कर दिए थे. प्रचंड बहुमत के साथ राज्य की 57 सीटें जीतकर उत्तराखंड में प्रचंड बहुमत की सरकार बनाई थी. इस दौरान मोदी लहर ने विपक्षियों की जड़ें हिला दी थी. 57 सीट लाने वाली भाजपा को कुमाऊं के लोगों का भी खूब आशीर्वाद मिला था. पिछले विधानसभा चुनाव की मोदी लहर में भाजपा कुमाऊं में 23 सीटें जीतकर लाई और कांग्रेस की झोली में केवल 5 सीटें ही गिरीं. एक सीट निर्दलीय भीमताल से राम सिंह खेड़ा जीत कर ले गए थे. वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत लाने वाली भाजपा का वोट परसेंट बढ़कर 46.51% हो गया तो वहीं 11 के आंकड़े पर सिमटी कांग्रेस का वोट परसेंट 33.49% हो गया.

2012 के चुनाव में प्रदर्शन
2012 के चुनाव में बीजेपी ने कुमाऊं मंडल में 15 सीटें जीती थी. उस समय कांग्रेस को 13 सीटों मिली थीं. कुमाऊं से 13 सीटें जीतकर भी कांग्रेस ने उत्तराखंड में अपनी सरकार बनाई थी. इससे पहले उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2007 में कुमाऊं में बीजेपी ने 16 सीटें जीती थी. कांग्रेस को सिर्फ 10 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था. तब बीजेपी की सरकार बनी थी. कांग्रेस की नारायण दत्त तिवारी सरकार को उत्तराखंड के मतदाताओं ने वापसी का मौका नहीं दिया था.

2002 का प्रदर्शन
2002 में उत्तराखंड में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए थे. बीजेपी को उम्मीद थी कि उसे राज्य बनाने का लाभ मिलेगा और जनता फिर उनकी सरकार बनाएगी. लेकिन बीजेपी चुनाव हार गई थी. तब कांग्रेस ने कुमाऊं से 15 सीटें जीती थी. बीजेपी को सिर्फ 7 सीटें मिली थीं. यूकेडी को तीन और बीएसपी को 2 सीटें मिली थीं. निर्दलीय भी दो सीट जीते थे.

गढ़वाल मंडल में सीटों का समीकरण देखें तो कुछ हद तक देहरादून और पूरा हरिद्वार जिला मैदानी है. इन दोनों जिलों में मिलाकर 21 विधानसभा सीटें हैं. बाकी 5 जिलों उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, टिहरी, चमोली और पौड़ी जिले में 20 विधानसभा सीटें हैं. इन सभी जिलों में ठाकुर और ब्राह्मण मतदाता ही हार-जीत के मुख्य समीकरण तय करते हैं. इस चुनाव में गढ़वाल मंडल में 391 प्रत्याशियों ने अपना भाग्य आजमाया. जिसमें से भाजपा ने 65% से ज्यादा ठाकुर और ब्राह्मण जाति के प्रत्याशी मैदान में उतरा था. वहीं, कांग्रेस ने भी करीब इतने ही प्रतिशत ठाकुर और ब्राह्मण जाति के नेताओं को प्रत्याशी बनाया था. लेकिन इस चुनाव में भी गढ़वाल मंडल में बीजेपी प्रत्याशियों ने कांग्रेस के प्रत्याशियों को पछाड़ा है.

वहीं, इस चुनाव में भी गढ़वाल मंडल को लेकर कांग्रेस और भाजपा की अपनी-अपनी प्राथमिकताएं रहीं थी. कांग्रेस ने हरीश रावत और दूसरे समीकरणों के चलते खुद को कुमाऊं में मजबूत माना और इसको लेकर कुमाऊं में ज्यादा मेहनत की. लेकिन हरीश रावत को लालकुआं विधानसभा के करारी शिकस्त मिली. वहीं, बीजेपी ने भी गढ़वाल में खुद को मजबूत मानते हुए कुमाऊं पर अधिक जोर दिया. हालांकि, सीएम धामी खटीमा विधानसभा से चुनाव हार गए.

उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में ही चारधाम (गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ) है. कांग्रेस ने अपने चुनावी एजेंडे में चारधाम का ही नारा दिया है और उन्होंने चारधाम चार काम के नाम से लोगों को प्रभावित करने की कोशिश की लेकिन बीजेपी हिंदुत्व की लाइन पर चलती रही, लिहाजा गढ़वाल मंडल में अपने इसी एजेंडे के तहत बीजेपी खुद को मजबूत मानती रही और गढ़वाल मंडल में इस बार 29 सीटों पर बीजेपी के प्रत्याशी जीते.

ओवरओल देखा जाए तो गढ़वाल मंडल में 2017 के चुनाव की तरह इस बार भी बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा रहा है. जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों के आधार पर बीजेपी बढ़त बनाने में कामयाब रही और गढ़वाल की 41 सीटों में से 29 सीटों पर बीजेपी प्रत्याशियों ने जीत हासिल की. जबकि, पिछले चुनाव में बीजेपी ने गढ़वाल मंडल से 34 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं, इस बार कांग्रेस ने गढ़वाल मंडल में 8 सीटें हासिल की है. जबकि, बसपा को दो और दो सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की है.

मुस्लिम और दलित आबादी का गठजोड़
उत्तराखंड में धार्मिक रूप से जनसंख्या का वर्गीकरण करें तो राज्य में 83% हिंदू, 14% मुस्लिम और 2.4% सिख आबादी है. गढ़वाल मंडल में 41 विधानसभा सीटों में करीब 12 विधानसभा सीटों में मुस्लिम और दलित गठजोड़ चुनाव जीतने के लिए बेहद अहम है. उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में करीब 15% मुस्लिम वोटर हैं. इसमें 8 विधानसभा सीटें हरिद्वार जिले की हैं. जबकि, 3 विधानसभा सीटें देहरादून जिले की हैं और एक विधानसभा सीट पौड़ी की है. हालांकि, मुस्लिम और दलित आबादी बाकी विधानसभा सीटों में भी है, लेकिन निर्णायक भूमिका में दोनों का गठजोड़ इन12 सीटों पर महत्वपूर्ण रहता है.

वहीं, उत्तराखंड में 13 विधानसभा सीटें में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. जबकि 2 विधानसभा सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. इसमें 13 आरक्षित सीटों में 8 विधानसभा सीटें गढ़वाल मंडल में हैं. जबकि 1 अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट भी गढ़वाल मंडल में है. उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में 18% दलित वोटर हैं.

ऐसे में इस बार हरिद्वार जिले में बीजेपी को पांच सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है. जहां 2017 के चुनाव में बीजेपी ने हरिद्वार जिले में आठ सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं, इस बार बीजेपी को तीन सीटों पर ही संतुष्ट होना पड़ा है. इस चुनाव में बसपा की वापसी हुई है और दो सीटों पर बसपा प्रत्याशियों ने जीत हासिल की है. जबकि, एक सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत हासिल की है.

इस विधानसभा चुनाव में हरिद्वार जिले 11 विधानसभा सीटों में इस बार बीजेपी ने केवल तीन ही सीटों पर जीत हासिल की है. जबकि, पांच सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की है. वहीं, इस चुनाव में बसपा की वापसी हुई है और दो सीटों पर चुनाव जीतने में बसपा प्रत्याशी कामयाब हुए हैं. जबकि, एक सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत दर्ज कराई है.

यहां रुड़की विधानसभा सीट से जहां बीजेपी के सीटिंग विधायक प्रदीप बत्रा ने जीत हासिल की है. वहीं, हरिद्वार सीट से सीटिंग विधायक मदन कौशिक ने भी पांचवीं बार विधानसभा चुनाव जीता है. वहीं, रानीपुर बीएचईएल विधानसभा से भी सीटिंग विधायक आदेश चौहान जीत हासिल करने में कामयाब हुए हैं.

जबकि, हरिद्वार ग्रामीण सीट से कांग्रेस की अनुपमा रावत, ज्वालापुर से कांग्रेस के रवि भंडारी, झबरेड़ा से कांग्रेस के विरेंद्र कुमार जाटी, पिरान कलियर से सिंटिंग विधायक कांग्रेस फुरकान अहमद, भगवानपुर सीट से सीटिंग विधायक कांग्रेस ममता राकेश ने जीत हासिल की है. जबकि, लक्सर सीट से बसपा के शहजाद ने सीटिंग विधायक बीजेपी संजय गुप्ता को हराया है. वहीं, मंगलौर सीट से भी बसपा के सरवत करीम अंसारी ने जीत हासिल की है.

साथ ही इस बार खानपुर विधानसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी उमेश कुमार ने जीत हासिल की है. ऐसे में 2017 के चुनाव के मुकाबले बीजेपी ने हरिद्वार जिले में पांच सीटें अपने हाथों से गंवाई है. वहीं, पिछले चुनाव के मुकाबले हरिद्वार जिले में कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहा है. इस चुनाव में कांग्रेस पांच सीटों में जीत हासिल की है.

वहीं, देहरादून जिले में इस बार भी पिछले विधानसभा चुनाव की तरह बीजेपी का दबदबा बकरार रहा है. यहां 10 विधानसभा सीटों में से बीजेपी ने 9 सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की है. वहीं, विकासनगर सीट से मुन्ना सिंह चौहान, रायपुर सीट से उमेश शर्मा काऊ, राजपुर सीट से खजान दास, देहरादून कैंट से सविता कपूर, मसूरी सीट से गणेश जोशी, डोईवाला सीट से ब्रज भूषण गैरोला, ऋषिकेश सीट से प्रेमचंद अग्रवाल, धर्मपुर सीट से विनोद चमोली और सहसपुर सीट से सहदेव पुंडीर ने जीत हासिल की है. वहीं, इस चुनाव में भी हर बार की तरह चकराता विधानसभा सीट से कांग्रेस के प्रीतम सिंह ने जीत हासिल की है.

गढ़वाल के पहाड़ी जिलों में बीजेपी का दबदबा

वहीं, पौड़ी जिले की छह की छह विधानसभा सीटों में 2017 के चुनाव की तरह इस बार भी बीजेपी ने कांग्रेस को क्लीन स्वीप किया है. यहां श्रीनगर गढ़वाल से धन सिंह रावत, कोटद्वार रितु खंडूड़ी, यमकेश्वर से रेनू बिष्ट, पौड़ी से राजकुमार पोरी, चौबट्टाखाल से सतपाल महाराज और लैंसडाउन से दलीप सिंह रावत ने जीत दर्ज की है.

गढ़वाल मंडल के टिहरी जिले की छह विधानसभा सीटों में से बीजेपी ने पांच विधानसभा सीटों पर परचम लहाराया है. यहां देवप्रयाग विधानसभा से विनोदी कंडारी, घनसाली से शक्ति लाल शाह, नरेंद्रनगर से सुबोध उनियाल, टिहरी से किशोर उपाध्याय और धनौल्टी से प्रीतम सिंह पंवार ने जीत दर्ज की है. जबकि, प्रतापनगर में कांग्रेस के विक्रम सिंह नेगी ने सिटिंग विधायक विजय पंवार को हराकर इस सीट पर कब्जा किया है.

उत्तरकाशी जिले की तीन विधानसभा सीटों में से दो पर बीजेपी ने इस चुनाव में कब्जा किया है. पुरोला से दुर्गेश्वर लाल और गंगोत्री से सुरेश चौहान ने जीत हासिल की है. जबकि, यमुनोत्री से बीजेपी के सीटिंग विधायक केदार सिंह रावत को हराकर यहां कांग्रेस छोड़कर निर्दलीय चुनाव में उतरे संजय डोभाल ने जीत हासिल की है.

इस बार रुद्रप्रयाग जिले के अंतर्गत आने वाली दोनों विधानसभा सीटों पर बीजेपी प्रत्याशियों ने भगवा लहराया है. केदारनाथ विधानसभा सीट पर जहां बीजेपी की शैलारानी ने जीत हासिल कर सीटिंग विधायक मनोज रावत को हराया है. वहीं, रुद्रप्रयाग विधानसभा सीट से बीजेपी के सीटिंग विधायक भरत सिंह चौधरी ने यहां दोबारा जीत दर्ज की है.

चमोली जिले की तीन विधानसभा सीटों में दो विधानसभा सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की है. थराली से भोपाल राम टम्टा और कर्णप्रयाग से अनिल नौटियाल ने यहां से जीत दर्ज की है. वहीं, बदरीनाथ विधानसभा सीट इस बार कांग्रेस के खाते में गई है. कांग्रेस के राजेंद्र सिंह भंडारी ने यहां सीटिंग विधायक महेंद्र भट्ट को हराया है.

बहरहाल, इस बार उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे देखें जाएं तो 2017 के मुकाबले बीजेपी की परफॉर्मेंस हरिद्वार जिले में थोड़ा घटी है. वहीं, गढ़वाल मंडल की यमुनोत्री सीट भी इस बार बीजेपी को गंवानी पड़ी है. राहत की बात ये है कि केदारनाथ विधानसभा सीट को इस बार बीजेपी ने कांग्रेस से छीन लिया है. इस बार बीजेपी को गढ़वाल मंडल की 41 सीटों में से 29 सीटें मिली है.

कुला मिलाकर देखा जाए तो केदारनाथ विधानसभा में इस बार बीजेपी ने भगवा लहराकर एक बड़ा मैसेज दिया है. क्योंकि 2013 की आपदा के बाद केदारनाथ पुनर्निर्माण कार्य पीएम मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में से एक है और वह समय-समय पर केदारनाथ धाम के दर्शनों के लिए आते रहते हैं. लिहाजा, गढ़वाल मंडल की यह केदारनाथ विधानसभा सीट कांग्रेस से छीनना बीजेपी की हिंदुत्ववादी छवि को ओर निखारेगा.

धार्मिक समीकरण: केदारनाथ सीट पर फिर हुआ बीजेपी का कब्जा

गढ़वाल मंडल में स्थित चारधाम (केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री), ऋषिकेश और हरिद्वार विधानसभा सीटें प्रमुख हैं. ऐसे में इस चुनाव में बीजेपी ने केदारनाथ सीट पर कब्जा कर लिया है. 2017 के चुनावों में बीजेपी को केदारनाथ विधानसभा सीट से बड़ा झटका लगा था. वहीं, गंगोत्री, ऋषिकेश और हरिद्वार विधानसभा सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की है. जबकि, इस बार बीजेपी को बदरीनाथ विधानसभा सीट गंवानी पड़ी है.

देवभूमि उत्तराखंड धार्मिक पर्यटन के लिहाज से देश-दुनिया में महत्वपूर्ण स्थान रखती है. चार धाम के अलावा यहां कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं जहां हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. वहीं, प्रदेश की राजनीति में भी यह धार्मिक स्थलों वाली विधानसभा सीटें भी काफी मायने रखती हैं ताकि राजनीतिक दल अपने हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ा सकें. ऐसे में इन अधिकांश विधानसभा सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की है.

दरअसल, हर विधानसभा चुनाव में ध्रुवीकरण की राजनीति ही चरम पर रहती है. ऐसे में राजनीतिक दल हिंदुत्व के मुद्दे पर वोटरों की गोलबंदी में जुटे रहते हैं. यही कारण है कि साल 2014 के चुनाव में राम मंदिर और हिंदुत्व का एजेंडा सबसे बड़ा फैक्टर रहा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हिंदुत्व के नाम पर लड़े गए इस चुनाव में न केवल बीजेपी ने 2014 के आम चुनावों में केंद्र में सरकार बनाई बल्कि अन्य राज्यों पर भी इसका असर देखा गया. फिर चाहे उत्तर प्रदेश हो, हरियाणा हो या उत्तराखंड. ऐसे में इस विधानसभा चुनाव उत्तराखंड में बीजेपी ने अधिकांश धार्मिक सीटों पर जीत का परचम लहराया है.

इन चुनावों में बीजेपी सरकार ने केदारनाथ पुनर्निर्माण के कामों के साथ-साथ केदारनाथ में शंकराचार्य जी की मूर्ति की स्थापना को भी खूब भुनाने की कोशिश की है. हालांकि, कांग्रेस लगातार बीजेपी के इस दावें पर हमला बोलती रही है. पूर्व सीएम हरीश रावत लगातार कहते रहे हैं कि उनके कार्यकाल में ही केदारनाथ पुनर्निर्माण का काम शुरू हुआ था. बीजेपी मात्र यहां आकर अपने नाम के काले पत्थर लगा रही है. यही कारण है कि साल 2017 में केदारनाथ विधानसभा सीट की जनता ने बीजेपी नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार मनोज रावत को जिताया था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केदारनाथ का जिक्र न केवल केदारनाथ में आकर बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी जाकर भी कर चुके हैं. इन चुनावों में केदारनाथ सीट कितनी महत्वपूर्ण थी इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चुनाव प्रचार के लिए देश के गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जैसे तमाम बड़े नेता रुद्रप्रयाग और केदारघाटी में घूमते हुए दिखाई दिए थे. आपको बता दें कि केंद्र और राज्य सरकार की तरफ से केदारनाथ में अब तक 710 करोड़ रुपए के पुनर्निमाण कार्य पूरे हो रहे हैं. इतना ही नहीं, बीजेपी सरकार केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री तक जाने वाली ऑल वेदर रोड को भी चुनावों में खूब भुनाने का काम कर चुकी है.

2. बदरीनाथ सीट से बीजेपी ने लहराया परचम: उत्तराखंड के इस विधानसभा चुनाव में बदरीनाथ विधानसभा सीट से बीजेपी प्रत्याशी और सीटिंग विधायक महेंद्र भट्ट को हार का सामना करना पड़ा है. यहां कांग्रेस के राजेंद्र भंडारी ने जीत हासिल की है. बदरीनाथ विधानसभा सीट का नाम भगवान बदरी के नाम पर पड़ा है. यहां भगवान बदरीनाथ का पौराणिक मंदिर है, जो चारधामों में से एक है. बदरीनाथ सीट पर बीते चार विधानसभा चुनावों में बारी बारी से कांग्रेस और बीजेपी का कब्जा रहा. लेकिन इस चुनाव में बीजेपी ने लगातार दूसरी बार इस सीट पर जीत हासिल की है.

2002 के चुनाव में यहां से कांग्रेस के अनुसूया प्रसाद मैखुरी ने जीत दर्ज की थी. तो 2007 के चुनाव में बीजेपी के केदार सिंह फोनिया यहां से चुनकर विधानसभा पहुंचे. वहीं, साल 2012 में कांग्रेस की राजेंद्र सिंह भंडारी ने इस सीट पर जीत दर्ज की. जबकि, 2017 के चुनाव में इस सीट पर बीजेपी के महेंद्र भट्ट ने अपना परचम लहराया और कांग्रेस के राजेंद्र सिंह भंडारी को इस सीट पर शिकस्त दी थी. वहीं, इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी राजेंद्र भंडारी ने सीटिंग विधायक और प्रत्याशी महेंद्र भट्ट को हराया है. ऐसे में इस बार बदरीनाथ सीट पर कांग्रेस ने कब्जा कर लिया है.

3. सरकार बनाने वाली गंगोत्री सीट पर भी बीजेपी की जीत: गंगोत्री उत्तराखंड के चार धामों में एक प्रमुख तीर्थ स्थल भी है. जो उत्तरकाशी जिले के अंतर्गत आता है. राज्य गठन के बाद से ही गंगोत्री विधानसभा सीट से एक मिथक जुड़ा है. इस सीट से जिस भी दल का प्रत्याशी चुनकर आता है, राज्य में उसी दल की सरकार बनती है. यह मिथक अभी तक बरकरार है और इस सीट पर बीजेपी के प्रत्याशी सुरेश चौहान ने जीत हासिल की है. साथ ही इस बार बीजेपी उत्तराखंड में लगातार दूसरी बार सरकार बनाने जा रही है. इस सीट के इतिहास की बात करें तो साल 2002 के चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस के विजय पाल सजवाण ने जीत हासिल की थी. वहीं, 2007 में बीजेपी के गोपाल सिंह रावत इस सीट से चुनकर विधानसभा पहुंचे थे. वहीं, 2012 के चुनाव में यहां से फिर कांग्रेस से विजयपाल सजवाण ने जीत हासिल की और गोपाल सिंह रावत को हराया.

जबकि, 2017 के चुनाव में एक बार फिर बीजेपी के गोपाल सिंह रावत ने इस सीट पर परचम लहराया और विजयपाल सिंह सजवाण को शिकस्त दी. पिछले चुनाव में यहां मत प्रतिशत 67.53 रहा था. वहीं, गोपाल सिंह रावत के निधन के बाद इस बार बीजेपी ने इस सीट से सुरेश चौहान पर दांव खेला और उनके खिलाफ कांग्रेस के फिर विजयपाल सजवाण मैदान में थे. वहीं, आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार कर्नल अजय कोठियाल भी इस बार गंगोत्री सीट से ही चुनाव लड़ रहे थे. ऐसे में गंगोत्री की जनता से इस बार सभी प्रत्याशियों को दरकिनार कर बीजेपी के सुरेश चौहान को अपने वोटों से नवाजा है.

4. यमुनोत्री सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी संजय डोभाल विजयी: इस बार यमुनोत्री विधानसभा सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी संजय डोभाल ने जीत हासिल की है. साल 2017 में डोभाल इसी सीट से कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़े थे और बीजेपी के सीटिंग विधायक केदार सिंह रावत से बेहद कम मार्जिन से हारे थे. ऐसे में इस बार कांग्रेस से टिकट ना मिलने वह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े और जीत हासिल की.

यमुनोत्री विधानसभा सीट की बात करें तो साल 2002 के चुनाव में यहां से उत्तराखंड के क्षेत्रीय दल यूकेडी के प्रत्याशी प्रीतम सिंह पंवार ने जीत हासिल की थी. वहीं, साल 2007 के चुनाव में यहां से कांग्रेस के प्रत्याशी केदार सिंह रावत विधानसभा पहुंचे. वहीं, साल 2012 में इस सीट पर दोबारा यूकेडी के प्रत्याशी प्रीतम सिंह पंवार ने जीत हासिल की. साल 2017 के चुनाव में केदार सिंह रावत ने बीजेपी के टिकट से इस सीट पर जीत हासिल और कांग्रेस प्रत्याशी संजय डोभाल को हराया था. वहीं, इस चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में संजय डोभाल विजयी रहे.

5. हरिद्वार विधानसभा से फिर 'अजेय' मदन कौशिक: इस विधानसभा चुनाव में भी मदन कौशिक ने इतिहास दोहराया है और हरिद्वार विधानसभा सीट से प्रचंड वोटों से जीत हासिल की है. धर्म नगरी हरिद्वार के नाम से पहचान रखने वाली हरिद्वार विधानसभा में बीजेपी का कब्जा बरकरार है. इसका मुख्य कारण है हरिद्वार में सबसे अधिक हिंदू वोटरों का होना है. मदन कौशिक जो अभी बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष हैं वो लगातार साल 2002, 2007, 2012, 2017 और 2022 के चुनाव में यहां जीतते आ रहे हैं. इस चुनाव में कौशिक ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी सतपाल ब्रह्मचारी को एक बड़े मार्जिन से हराया है.

बीजेपी के लिए यह सीट कितनी महत्वपूर्ण है इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा हों या गृह मंत्री अमित शाह दोनों ने ही हरिद्वार की सड़कों पर घूम-घूमकर वोट मांगें थे, क्योंकि बीजेपी जानती है कि हरिद्वार विधानसभा सीट से हिंदुत्व और धर्म का अच्छा संदेश पूरे देशभर में जा सकता है. यही कारण है कि इन चुनावों में योगी आदित्यनाथ को भी हरिद्वार लाने की पूरी कोशिश की गई लेकिन समय कम होने के चलते उन्हें नहीं लाया जा सका.

हरिद्वार में हर 12 साल में महाकुंभ और हर 6 साल में अर्धकुंभ लगता है. इसके साथ ही आए दिन होने वाले तमाम मेलों के लिए भी राज्य सरकार और केंद्र सरकार हजारों करोड़ रुपए बीच-बीच में जारी करती रहती है. केंद्र सरकार ने इस बार भी महाकुंभ के लिए 300 करोड़ रुपए का बजट जारी किया था. जिसको बाद में कुंभ की अवधि कम होने की वजह से कम कर दिया गया था. लिहाजा, हरिद्वार सीट पर भी बीजेपी अपनी पूरी नजर और ताकत बनाए रखती है.

6. योग कैपिटल में बीजेपी ने हासिल की जीत: ऋषिकेश विधानसभा सीट से एक बार फिर बीजेपी प्रत्याशी प्रेमचंद अग्रवाल ने जीत हासिल की है. राज्य गठन के बाद पहले आम चुनाव यानि साल 2002 के चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी शूरवीर सिंह सजवाण ने यहां से जीत हासिल की थी. जिसके बाद 2007, 2012, 2017 और इस चुनाव में यहां से लगातार बीजेपी के प्रेमचंद अग्रवाल जीतते आ रहे हैं.

योग कैपिटल के रूप में देश दुनिया में ऋषिकेश शहर अपनी विशेष पहचान रखता है. धार्मिक पर्यटन के लिहाज से भी यह शहर काफी महत्वपूर्ण है. ऋषिकेश वो शहर है जहां पर गंगा का पहली बार मैदानी इलाके में प्रवेश होता है. साधु संतों की नगरी ऋषिकेश उत्तराखंड की राजनीति में बहुत महत्व रखती है. ऋषिकेश उत्तराखंड का एकमात्र ऐसा धार्मिक स्थल और विधानसभा सीट है जो तीन जिलों (हरिद्वार, पौड़ी और टिहरी गढ़वाल जिले) से लगती है. ऐसे में यहां होने वाला विकास सीधे-सीधे इन तीन जिलों को भी प्रभावित करता है.

ऋषिकेश सीट पर अपनी मजबूत दावेदारी और अपनी धमक दिखाने के लिए बीजेपी लगातार ऋषिकेश एम्स और हरिद्वार-ऋषिकेश राष्ट्रीय राजमार्ग का चौड़ीकरण जनता के बीच में रखती रही है. ऋषिकेश में एम्स स्थापित करने का श्रेय बीजेपी केंद्र की अटल बिहारी सरकार को देती रही है. पीएम मोदी अपने भाषणों में तीर्थनगरी में एक वर्ल्ड क्लास हेल्थ सेंटर बनाने की बात कहते आए हैं. यही एक वजह भी रही कि 2022 चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री मोदी खुद ऋषिकेश एम्स पहुंचे थे और यहीं से देशभर के 35 ऑक्सीजन प्लांट का शुभारंभ किया था. लिहाजा, इस सीट से प्रेमचंद अग्रवाल को ऋषिकेश की जनता ने दोबारा विधानसभा भेजा है.

कुल मिलाकर देखा जाए तो इन 6 प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में यमुनोत्री और बदरीनाथ सीट को छोड़ दिया जाए तो बाकी 4 सीटों पर इस चुनाव में बीजेपी ने कब्जा कर लिया है. खास बात यह है कि पिछले विधानसभा चुनाव में केदारनाथ सीट न जीतने का बीजेपी को मलाल रहा था लेकिन यहां से बीजेपी प्रत्याशी शैला रानी रावत ने यहां से जीत हासिल की है. बाबा केदार का धाम हिंदुओं की आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है. ऐसे में इन चुनावों में बीजेपी ने इस सीट पर जीत हासिल की है. हालांकि, बदरीनाथ सीट इस बार बीजेपी को गंवानी पड़ी है.

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देहरादून: उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल की 29 में 18 सीटों पर बीजेपी ने जीत का परचम लहराया है. हालांकि बीजेपी के लिए ये दुखद रहा कि सीएम पुष्कर सिंह धामी खटीमा से हार गए हैं. कांग्रेस को 10 सीटें मिली हैं. उधर कांग्रेस प्रत्याशी और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी लालकुआं सीट से हार गए. 2017 में कुमाऊं में बीजेपी ने 23 सीटें जीती थी.

देहरादून: BJP ने उत्तराखंड में सत्ता में वापसी कर ली है. बीजेपी ने 70 में से सीटें जीतकर इस मिथक को तोड़ दिया कि उत्तराखंड में सरकारें रिपीट नहीं होती हैं. हालांकि बीजेपी को पिछली बार की 57 सीटों के मुकाबले इस बार सीटें मिली हैं, लेकिन उत्तराखंड में अगले पांच साल तक पार्टी फिर सरकार चलाएगी.

बीजेपी ने अल्मोड़ा जिले की 5 सीटें जीतीं
उत्तराखंड की सांस्कृतिक राजधानी अल्मोड़ा जिले की 5 सीटें बीजेपी ने जीत ली हैं. बीजेपी ने अल्मोड़ा जिले में कांग्रेस का लगभग सूपड़ा साफ कर दिया. अभी अल्मोड़ा सीट का रिजल्ट घोषित नहीं हुआ है. अल्मोड़ा जिले की जिन सीटों पर बीजेपी प्रत्याशी जीते उनके बारे में आपको बताते हैं.

द्वाराहाट से लेकर सल्ट तक बीजेपी जीती
अपने मंदिर समूहों के लिए विश्व प्रसिद्ध द्वाराहाट सीट पर बीजेपी के अनिल शाही ने कांग्रेस के मदन बिष्ट को शिकस्त दी. अल्मोड़ा के जिला मुख्यालय रानीखेत सीट पर बीजेपी के प्रमोद नैनवाल ने कांग्रेस के करन महरा को हरा दिया. सोमेश्वर सीट पर बीजेपी की तेज तर्रार नेता और कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य ने कांग्रेस के राजेंद्र बाराकोटी को परास्त किया.

सल्ट विधानसभा सीट पर बीजेपी के महेश जीना ने कांग्रेस के बाहुबली रणजीत रावत को शिकस्त दी. भगवान शिव के धाम से प्रसिद्ध जागेश्वर सीट पर बीजेपी प्रत्याशी मोहन सिंह मेहरा ने कांग्रेस के गोविंद सिंह कुंजवाल को परास्त कर दिया. कुंजवाल 2012 की कांग्रेस सरकार के दौरान विधानसभा अध्यक्ष रहे थे.

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बागेश्वर में भी बीजेपी का क्लीन स्वीप
अल्मोड़ा के पड़ोसी जिले भगवान बागनाथ की नगरी बागेश्वर में भी बीजेपी ने क्लीन स्वीप कर दिया. इस जिले में विधानसभा की दो सीट हैं. दोनों सीटें बीजेपी के खाते में गई हैं. जिले की कपकोट सीट पर बीजेपी के सुरेश गड़िया ने कांग्रेस के ललित मोहन फर्स्वाण को मात दी है. बागेश्वर सीट पर बीजेपी के चंदन राम दास ने कांग्रेस प्रत्याशी रंजीत दास को हराया.

चंपावत की सीटें बीजेपी-कांग्रेस ने बांटीं
चंपावत जिले की दो विधानसभा सीटें बीजेपी और कांग्रेस ने आपस में बांट ली हैं. जिले की लोहाघाट सीट पर कांग्रेस के खुशाल सिंह अधिकारी ने बीजेपी के पूरन सिंह फर्त्याल को हरा दिया है. वहीं चंपावत सीट पर बीजेपी के कैलाश गहतोड़ी ने कांग्रेस के हेमेश खर्कवाल को शिकस्त दी.

नैनीताल में भी बीजेपी का टैंपो हाई
नैनीताल जिले की छह विधानसभा सीटों में से पांच पर बीजेपी का परचम लहराया है. नैनीताल सीट से बीजेपी की प्रत्याशी सरिता आर्य ने कांग्रेस के संजीव आर्य को तगड़ी शिकस्त दी है. ये वही सरिता आर्य हैं जिन्हें कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया था. तब सरिता कांग्रेस की महिला प्रदेश अध्यक्ष थीं. जब यशपाल आर्य और उनके बेटे संजीव ने कांग्रेस में वापसी की और ये तय हो गया कि संजीव आर्य को कांग्रेस नैनीताल से टिकट देगी तो सरिता ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी ज्वाइन कर ली थी. बीजेपी ने भी लगे हाथ सरिता आर्य को नैनीताल सीट से टिकट दिया और आज सरिता आर्य ने बीजेपी के निर्णय को जीत के साथ सही ठहरा दिया है.

भीमताल से भाजपा प्रत्याशी राम सिंह कैड़ा ने कांग्रेस प्रत्याशी दान सिंह भंडारी को शिकस्त दी है. हल्द्वानी से कांग्रेस के सुमित हृदयेश ने भाजपा प्रत्याशी जोगेन्द्र रौतेला को हराया है. सुमित कांग्रेस की दिग्गज नेता रहीं इंदिरा हृदयेश के बेटे हैं. इंदिरा हृदियेश का 2021 में देहांत हो गया था. उनकी हल्द्वानी सीट से कांग्रेस ने उनके बेटे सुमित को उम्मीदवार बनाया था.

लालकुआं के बादशाह बने मोहन सिंह बिष्ट
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में नैनीताल जिले की लालकुआं सीट सबसे हॉट सीट बन गई थी. इस सीट से कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत चुनाव लड़ रहे थे. लालकुआं से भाजपा ने मोहन सिंह बिष्ट को प्रत्याशी बनाया था. हरीश रावत के राजनीतिक ग्लैमर के आगे उनकी ज्यादा चर्चा नहीं हो रही थी. लेकिन आज जब मतगणना शुरू हुई तो हरीश रावत शुरू से ही पीछे रहे. अंत में मोहन सिंह बिष्ट ने हरीश रावत को शिकस्त देकर उनके मुख्यमंत्री बनने के सपने को चकनाचूर कर दिया.

कालाढूंगी में कैबिनेट मंत्री बंशीधर जीते
कालाढूंगी से भाजपा प्रत्याशी बंशीधर भगत ने कांग्रेस के महेश शर्मा को हरा दिया. बंशीधर भगत उत्तराखंड बीजेपी के अध्यक्ष रह चुके हैं. अभी वो धामी सरकार में 5 विभागों के कैबिनेट मंत्री थे. रामनगर सीट से बीजेपी के दीवान सिंह बिष्ट ने कांग्रेस के महेंद्र पाल हरा दिया है. रामनगर वही सीट है जहां से पहले हरीश रावत चुनाव लड़ने वाले थे. रणजीत रावत से विवाद के बाद हरीश रावत को लालकुआं से टिकट दिया गया था. उधर रणजीत रावत को सल्ट भेज दिया गया था.

पिथौरागढ़ में 50-50
पिथौरागढ़ की चार विधानसभा सीटों में से बीजेपी और कांग्रेस ने 2-2 सीटें जीतकर मामला 50-50 रखा है. जिले की धारचूला सीट पर बीजेपी के धन सिंह धामी कांग्रेस के हरीश सिंह धामी से चुनाव हार गए. डीडीहाट सीट पर कैबिनेट मंत्री और बीजेपी के बिशन सिंह चुफाल ने कांग्रेस के प्रदीप पाल सिंह को हरा दिया. पिथौरागढ़ सीट पर कांग्रेस के मयूख महर ने बीजेपी की चंद्रा पंत को हरा दिया है. चंद्रा पंत दिवंगत प्रकाश पंत की पत्नी हैं. प्रकाश पंत के निधन के बाद बीजेपी ने चंद्रा पंत को उप चुनाव में उतारा था. तब चंद्रा ने जीत हासिल की थी. 2022 के चुनाव में चंद्रा पंत को हार मिली है. गंगोलीहाट सीट से बीजेपी के फकीर राम ने कांग्रेस के खजान चंद्र गुड्डू को हरा दिया है.

उधम सिंह नगर ने बचाई कांग्रेस की लाज
कुमाऊं मंडल के मैदानी जिले उधम सिंह नगर की 9 में से 5 सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की है. 4 सीटें बीजेपी के खाते में गई हैं. जसपुर सीट पर कांग्रेस के आदेश सिंह चौहान ने बीजेपी के शैलेंद्र मोहन सिंघल को हरा दिया. किच्छा सीट पर कांग्रेस के तिलकराज बेहड़ ने बीजेपी के राजेश शुक्ला को शिकस्त दी है. नानकमत्ता सीट पर कांग्रेस के गोपाल सिंह राणा ने बीजेपी के प्रेम सिंह राणा को हराया है.

सीएम धामी खटीमा से हारे
CM धामी को खटीमा सीट पर कांग्रेस के भुवन चंद्र कापड़ी ने हरा दिया. धामी पिछली दो बार से यहां से चुनाव जीतते आ रहे थे. इस बार तो वो मुख्यमंत्री के रूप में खटीमा से चुनाव मैदान में थे. इसके बावजूद धामी चुनाव हार गए. हालांकि धामी की हार के बावजूद बीजेपी ने बंपर मैंडेट हासिल किया है.

बाजपुर से यशपाल आर्य जीते
जिले की बाजपुर सीट से कांग्रेस के यशपाल आर्य जीत गए हैं. यशपाल आर्य ने बीजेपी के राजेश कुमार को शिकस्त दी है. यशपाल आर्य ठीक चुनाव से पहले बीजेपी सरकार का कैबिनेट पद ठुकराकर अपने बेटे संजीव आर्य के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए थे. हालांकि संजीव आर्य नैनीताल सीट से चुनाव हार गए हैं.

काशीपुर से जीते त्रिलोक सिंह चीमा जीते
उधम सिंह नगर की हाई प्रोफाइल सीट काशीपुर पर चीमा परिवार का कब्जा बरकरार रहा. पिछली चार बार से हरभजन सिंह चीमा यहां से चुनाव जीतते आ रहे थे. इस बार उन्होंने अपने बेटे त्रिलोक को टिकट दिलाया. त्रिलोक ने पहले चुनाव में ही जीत का स्वाद चख लिया. चीमा ने कांग्रेस के नरेंद्र चंद्र सिंह को हराया.

शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे जीते
जिले की गदरपुर सीट से उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे जीत गए. अरविंद पांडे ने कांग्रेस के प्रेमानंद महाजन को शिकस्त दी. पांडे ने ये मिथक भी तोड़ा कि उत्तराखंड में कोई शिक्षा मंत्री अपने पद पर रहते हुए चुनाव नहीं जीत सकता है. रुद्रपुर सीट पर भी बीजेपी का कब्जा हुआ. यहां से बीजेपी के शिव अरोड़ा जीते हैं. अरोड़ा ने बीजेपी के बागी और निर्दलीय चुनाव लड़े राजकुमार ठुकराल को हराया.

सितारगंज से जीते सौरभ बहुगुणा
जिले की सितारगंज सीट से पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के बेटे सौरभ बहुगुणा ने भगवा झंडा लहराया है. सौरभ ने कांग्रेस के नवतेज पाल सिंह को शिकस्त दी है. इसके साथ ही सौरभ बहुगुणा ने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने की ओर कदम बढ़ाया है.

कुमाऊं में हुए ये उलटफेर
इस बार कुमाऊं ने बीजेपी को 18 सीटें जिताकर सत्ता के सिंहासन पर पहुंचाया तो यहां दो बड़े उलटफेर भी हुऐ हैं. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपनी खटीमा सीट से चुनाव हार गए. धामी का हार अप्रत्याशित थी. वो पिछली दो बार से खटीमा से चुनाव जीतते आ रहे थे. लेकिन खटीमा के मतदाताओं ने उन्हें जीत की हैट्रिक लगाने से रोक दिया. उनकी हार में किसान आंदोलन को कारण माना जा रहा है. उधम सिंह नगर जिले में 3.72 लाख मुस्लिम आबादी भी है. ऐसा अनुमान है कि ज्यादातर सिख और मुस्लिम वोटरों ने धामी को वोट नहीं दिया, इस कारण वो चुनाव हार गए.

हरीश रावत भी चारों खाने चित
काफी माथापच्ची के बाद हरीश रावत ने आखिरी समय में लालकुआं सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया. तब तक पार्टी संध्या डालाकोटी को टिकट दे चुकी थी. हरीश रावत लालकुआं आए तो संध्या का टिकट काट दिया गया. इससे नाराज होकर संध्या ने निर्दलीय चुनाव लड़ा. इसे हरीश रावत की हार का बड़ा कारण माना जा रहा है.

कुमाऊं में ऐसे मिली जीत
कुमाऊं में बीजेपी ने इस बार के चुनाव में पूरी ताकत झोंकी थी. पीएम मोदी की कुमाऊं के हल्द्वानी, अल्मोड़ा और रुद्रपुर में तीन बड़ी रैलियां हुई थीं. अल्मोड़ा में पीएम की रैली से बीजेपी ने अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़ और चंपावत के साथ नैनीताल जिले को कवर किया था. हल्द्वानी कुमाऊं का प्रवेश द्वार है. यहां पीएम मोदी की रैली ने उधम सिंह नगर, चंपावत और नैनीताल जिले के दूर-दराज के इलाकों पर असर डाला. रुद्रपुर में पीएम की रैली ने भी असर डाला. उधम सिंह नगर जिला सिख बहुल जनसंख्या वाला जिला है. यहां किसान आंदोलन का तगड़ा असर देखा जा रहा था. राजनीतिक पंडितों का ये मानना था कि उधमसिंह नगर जिले में बीजेपी को शायद ही सीटें मिलें. लेकिन बीजेपी यहां से चार सीटें लाने में सफल रही. हालांकि सीएम धामी की खटीमा सीट बीजेपी गंवा बैठी.

2017 के चुनाव में प्रदर्शन
वर्ष 2017 में हुए चुनाव में भाजपा ने सारे रिकॉर्ड नेस्तनाबूद कर दिए थे. प्रचंड बहुमत के साथ राज्य की 57 सीटें जीतकर उत्तराखंड में प्रचंड बहुमत की सरकार बनाई थी. इस दौरान मोदी लहर ने विपक्षियों की जड़ें हिला दी थी. 57 सीट लाने वाली भाजपा को कुमाऊं के लोगों का भी खूब आशीर्वाद मिला था. पिछले विधानसभा चुनाव की मोदी लहर में भाजपा कुमाऊं में 23 सीटें जीतकर लाई और कांग्रेस की झोली में केवल 5 सीटें ही गिरीं. एक सीट निर्दलीय भीमताल से राम सिंह खेड़ा जीत कर ले गए थे. वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत लाने वाली भाजपा का वोट परसेंट बढ़कर 46.51% हो गया तो वहीं 11 के आंकड़े पर सिमटी कांग्रेस का वोट परसेंट 33.49% हो गया.

2012 के चुनाव में प्रदर्शन
2012 के चुनाव में बीजेपी ने कुमाऊं मंडल में 15 सीटें जीती थी. उस समय कांग्रेस को 13 सीटों मिली थीं. कुमाऊं से 13 सीटें जीतकर भी कांग्रेस ने उत्तराखंड में अपनी सरकार बनाई थी. इससे पहले उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2007 में कुमाऊं में बीजेपी ने 16 सीटें जीती थी. कांग्रेस को सिर्फ 10 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था. तब बीजेपी की सरकार बनी थी. कांग्रेस की नारायण दत्त तिवारी सरकार को उत्तराखंड के मतदाताओं ने वापसी का मौका नहीं दिया था.

2002 का प्रदर्शन
2002 में उत्तराखंड में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए थे. बीजेपी को उम्मीद थी कि उसे राज्य बनाने का लाभ मिलेगा और जनता फिर उनकी सरकार बनाएगी. लेकिन बीजेपी चुनाव हार गई थी. तब कांग्रेस ने कुमाऊं से 15 सीटें जीती थी. बीजेपी को सिर्फ 7 सीटें मिली थीं. यूकेडी को तीन और बीएसपी को 2 सीटें मिली थीं. निर्दलीय भी दो सीट जीते थे.

गढ़वाल मंडल में सीटों का समीकरण देखें तो कुछ हद तक देहरादून और पूरा हरिद्वार जिला मैदानी है. इन दोनों जिलों में मिलाकर 21 विधानसभा सीटें हैं. बाकी 5 जिलों उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, टिहरी, चमोली और पौड़ी जिले में 20 विधानसभा सीटें हैं. इन सभी जिलों में ठाकुर और ब्राह्मण मतदाता ही हार-जीत के मुख्य समीकरण तय करते हैं. इस चुनाव में गढ़वाल मंडल में 391 प्रत्याशियों ने अपना भाग्य आजमाया. जिसमें से भाजपा ने 65% से ज्यादा ठाकुर और ब्राह्मण जाति के प्रत्याशी मैदान में उतरा था. वहीं, कांग्रेस ने भी करीब इतने ही प्रतिशत ठाकुर और ब्राह्मण जाति के नेताओं को प्रत्याशी बनाया था. लेकिन इस चुनाव में भी गढ़वाल मंडल में बीजेपी प्रत्याशियों ने कांग्रेस के प्रत्याशियों को पछाड़ा है.

वहीं, इस चुनाव में भी गढ़वाल मंडल को लेकर कांग्रेस और भाजपा की अपनी-अपनी प्राथमिकताएं रहीं थी. कांग्रेस ने हरीश रावत और दूसरे समीकरणों के चलते खुद को कुमाऊं में मजबूत माना और इसको लेकर कुमाऊं में ज्यादा मेहनत की. लेकिन हरीश रावत को लालकुआं विधानसभा के करारी शिकस्त मिली. वहीं, बीजेपी ने भी गढ़वाल में खुद को मजबूत मानते हुए कुमाऊं पर अधिक जोर दिया. हालांकि, सीएम धामी खटीमा विधानसभा से चुनाव हार गए.

उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में ही चारधाम (गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ) है. कांग्रेस ने अपने चुनावी एजेंडे में चारधाम का ही नारा दिया है और उन्होंने चारधाम चार काम के नाम से लोगों को प्रभावित करने की कोशिश की लेकिन बीजेपी हिंदुत्व की लाइन पर चलती रही, लिहाजा गढ़वाल मंडल में अपने इसी एजेंडे के तहत बीजेपी खुद को मजबूत मानती रही और गढ़वाल मंडल में इस बार 29 सीटों पर बीजेपी के प्रत्याशी जीते.

ओवरओल देखा जाए तो गढ़वाल मंडल में 2017 के चुनाव की तरह इस बार भी बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा रहा है. जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों के आधार पर बीजेपी बढ़त बनाने में कामयाब रही और गढ़वाल की 41 सीटों में से 29 सीटों पर बीजेपी प्रत्याशियों ने जीत हासिल की. जबकि, पिछले चुनाव में बीजेपी ने गढ़वाल मंडल से 34 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं, इस बार कांग्रेस ने गढ़वाल मंडल में 8 सीटें हासिल की है. जबकि, बसपा को दो और दो सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की है.

मुस्लिम और दलित आबादी का गठजोड़
उत्तराखंड में धार्मिक रूप से जनसंख्या का वर्गीकरण करें तो राज्य में 83% हिंदू, 14% मुस्लिम और 2.4% सिख आबादी है. गढ़वाल मंडल में 41 विधानसभा सीटों में करीब 12 विधानसभा सीटों में मुस्लिम और दलित गठजोड़ चुनाव जीतने के लिए बेहद अहम है. उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में करीब 15% मुस्लिम वोटर हैं. इसमें 8 विधानसभा सीटें हरिद्वार जिले की हैं. जबकि, 3 विधानसभा सीटें देहरादून जिले की हैं और एक विधानसभा सीट पौड़ी की है. हालांकि, मुस्लिम और दलित आबादी बाकी विधानसभा सीटों में भी है, लेकिन निर्णायक भूमिका में दोनों का गठजोड़ इन12 सीटों पर महत्वपूर्ण रहता है.

वहीं, उत्तराखंड में 13 विधानसभा सीटें में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. जबकि 2 विधानसभा सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. इसमें 13 आरक्षित सीटों में 8 विधानसभा सीटें गढ़वाल मंडल में हैं. जबकि 1 अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट भी गढ़वाल मंडल में है. उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में 18% दलित वोटर हैं.

ऐसे में इस बार हरिद्वार जिले में बीजेपी को पांच सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है. जहां 2017 के चुनाव में बीजेपी ने हरिद्वार जिले में आठ सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं, इस बार बीजेपी को तीन सीटों पर ही संतुष्ट होना पड़ा है. इस चुनाव में बसपा की वापसी हुई है और दो सीटों पर बसपा प्रत्याशियों ने जीत हासिल की है. जबकि, एक सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत हासिल की है.

इस विधानसभा चुनाव में हरिद्वार जिले 11 विधानसभा सीटों में इस बार बीजेपी ने केवल तीन ही सीटों पर जीत हासिल की है. जबकि, पांच सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की है. वहीं, इस चुनाव में बसपा की वापसी हुई है और दो सीटों पर चुनाव जीतने में बसपा प्रत्याशी कामयाब हुए हैं. जबकि, एक सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत दर्ज कराई है.

यहां रुड़की विधानसभा सीट से जहां बीजेपी के सीटिंग विधायक प्रदीप बत्रा ने जीत हासिल की है. वहीं, हरिद्वार सीट से सीटिंग विधायक मदन कौशिक ने भी पांचवीं बार विधानसभा चुनाव जीता है. वहीं, रानीपुर बीएचईएल विधानसभा से भी सीटिंग विधायक आदेश चौहान जीत हासिल करने में कामयाब हुए हैं.

जबकि, हरिद्वार ग्रामीण सीट से कांग्रेस की अनुपमा रावत, ज्वालापुर से कांग्रेस के रवि भंडारी, झबरेड़ा से कांग्रेस के विरेंद्र कुमार जाटी, पिरान कलियर से सिंटिंग विधायक कांग्रेस फुरकान अहमद, भगवानपुर सीट से सीटिंग विधायक कांग्रेस ममता राकेश ने जीत हासिल की है. जबकि, लक्सर सीट से बसपा के शहजाद ने सीटिंग विधायक बीजेपी संजय गुप्ता को हराया है. वहीं, मंगलौर सीट से भी बसपा के सरवत करीम अंसारी ने जीत हासिल की है.

साथ ही इस बार खानपुर विधानसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी उमेश कुमार ने जीत हासिल की है. ऐसे में 2017 के चुनाव के मुकाबले बीजेपी ने हरिद्वार जिले में पांच सीटें अपने हाथों से गंवाई है. वहीं, पिछले चुनाव के मुकाबले हरिद्वार जिले में कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहा है. इस चुनाव में कांग्रेस पांच सीटों में जीत हासिल की है.

वहीं, देहरादून जिले में इस बार भी पिछले विधानसभा चुनाव की तरह बीजेपी का दबदबा बकरार रहा है. यहां 10 विधानसभा सीटों में से बीजेपी ने 9 सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की है. वहीं, विकासनगर सीट से मुन्ना सिंह चौहान, रायपुर सीट से उमेश शर्मा काऊ, राजपुर सीट से खजान दास, देहरादून कैंट से सविता कपूर, मसूरी सीट से गणेश जोशी, डोईवाला सीट से ब्रज भूषण गैरोला, ऋषिकेश सीट से प्रेमचंद अग्रवाल, धर्मपुर सीट से विनोद चमोली और सहसपुर सीट से सहदेव पुंडीर ने जीत हासिल की है. वहीं, इस चुनाव में भी हर बार की तरह चकराता विधानसभा सीट से कांग्रेस के प्रीतम सिंह ने जीत हासिल की है.

गढ़वाल के पहाड़ी जिलों में बीजेपी का दबदबा

वहीं, पौड़ी जिले की छह की छह विधानसभा सीटों में 2017 के चुनाव की तरह इस बार भी बीजेपी ने कांग्रेस को क्लीन स्वीप किया है. यहां श्रीनगर गढ़वाल से धन सिंह रावत, कोटद्वार रितु खंडूड़ी, यमकेश्वर से रेनू बिष्ट, पौड़ी से राजकुमार पोरी, चौबट्टाखाल से सतपाल महाराज और लैंसडाउन से दलीप सिंह रावत ने जीत दर्ज की है.

गढ़वाल मंडल के टिहरी जिले की छह विधानसभा सीटों में से बीजेपी ने पांच विधानसभा सीटों पर परचम लहाराया है. यहां देवप्रयाग विधानसभा से विनोदी कंडारी, घनसाली से शक्ति लाल शाह, नरेंद्रनगर से सुबोध उनियाल, टिहरी से किशोर उपाध्याय और धनौल्टी से प्रीतम सिंह पंवार ने जीत दर्ज की है. जबकि, प्रतापनगर में कांग्रेस के विक्रम सिंह नेगी ने सिटिंग विधायक विजय पंवार को हराकर इस सीट पर कब्जा किया है.

उत्तरकाशी जिले की तीन विधानसभा सीटों में से दो पर बीजेपी ने इस चुनाव में कब्जा किया है. पुरोला से दुर्गेश्वर लाल और गंगोत्री से सुरेश चौहान ने जीत हासिल की है. जबकि, यमुनोत्री से बीजेपी के सीटिंग विधायक केदार सिंह रावत को हराकर यहां कांग्रेस छोड़कर निर्दलीय चुनाव में उतरे संजय डोभाल ने जीत हासिल की है.

इस बार रुद्रप्रयाग जिले के अंतर्गत आने वाली दोनों विधानसभा सीटों पर बीजेपी प्रत्याशियों ने भगवा लहराया है. केदारनाथ विधानसभा सीट पर जहां बीजेपी की शैलारानी ने जीत हासिल कर सीटिंग विधायक मनोज रावत को हराया है. वहीं, रुद्रप्रयाग विधानसभा सीट से बीजेपी के सीटिंग विधायक भरत सिंह चौधरी ने यहां दोबारा जीत दर्ज की है.

चमोली जिले की तीन विधानसभा सीटों में दो विधानसभा सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की है. थराली से भोपाल राम टम्टा और कर्णप्रयाग से अनिल नौटियाल ने यहां से जीत दर्ज की है. वहीं, बदरीनाथ विधानसभा सीट इस बार कांग्रेस के खाते में गई है. कांग्रेस के राजेंद्र सिंह भंडारी ने यहां सीटिंग विधायक महेंद्र भट्ट को हराया है.

बहरहाल, इस बार उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे देखें जाएं तो 2017 के मुकाबले बीजेपी की परफॉर्मेंस हरिद्वार जिले में थोड़ा घटी है. वहीं, गढ़वाल मंडल की यमुनोत्री सीट भी इस बार बीजेपी को गंवानी पड़ी है. राहत की बात ये है कि केदारनाथ विधानसभा सीट को इस बार बीजेपी ने कांग्रेस से छीन लिया है. इस बार बीजेपी को गढ़वाल मंडल की 41 सीटों में से 29 सीटें मिली है.

कुला मिलाकर देखा जाए तो केदारनाथ विधानसभा में इस बार बीजेपी ने भगवा लहराकर एक बड़ा मैसेज दिया है. क्योंकि 2013 की आपदा के बाद केदारनाथ पुनर्निर्माण कार्य पीएम मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में से एक है और वह समय-समय पर केदारनाथ धाम के दर्शनों के लिए आते रहते हैं. लिहाजा, गढ़वाल मंडल की यह केदारनाथ विधानसभा सीट कांग्रेस से छीनना बीजेपी की हिंदुत्ववादी छवि को ओर निखारेगा.

धार्मिक समीकरण: केदारनाथ सीट पर फिर हुआ बीजेपी का कब्जा

गढ़वाल मंडल में स्थित चारधाम (केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री), ऋषिकेश और हरिद्वार विधानसभा सीटें प्रमुख हैं. ऐसे में इस चुनाव में बीजेपी ने केदारनाथ सीट पर कब्जा कर लिया है. 2017 के चुनावों में बीजेपी को केदारनाथ विधानसभा सीट से बड़ा झटका लगा था. वहीं, गंगोत्री, ऋषिकेश और हरिद्वार विधानसभा सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की है. जबकि, इस बार बीजेपी को बदरीनाथ विधानसभा सीट गंवानी पड़ी है.

देवभूमि उत्तराखंड धार्मिक पर्यटन के लिहाज से देश-दुनिया में महत्वपूर्ण स्थान रखती है. चार धाम के अलावा यहां कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं जहां हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. वहीं, प्रदेश की राजनीति में भी यह धार्मिक स्थलों वाली विधानसभा सीटें भी काफी मायने रखती हैं ताकि राजनीतिक दल अपने हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ा सकें. ऐसे में इन अधिकांश विधानसभा सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की है.

दरअसल, हर विधानसभा चुनाव में ध्रुवीकरण की राजनीति ही चरम पर रहती है. ऐसे में राजनीतिक दल हिंदुत्व के मुद्दे पर वोटरों की गोलबंदी में जुटे रहते हैं. यही कारण है कि साल 2014 के चुनाव में राम मंदिर और हिंदुत्व का एजेंडा सबसे बड़ा फैक्टर रहा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हिंदुत्व के नाम पर लड़े गए इस चुनाव में न केवल बीजेपी ने 2014 के आम चुनावों में केंद्र में सरकार बनाई बल्कि अन्य राज्यों पर भी इसका असर देखा गया. फिर चाहे उत्तर प्रदेश हो, हरियाणा हो या उत्तराखंड. ऐसे में इस विधानसभा चुनाव उत्तराखंड में बीजेपी ने अधिकांश धार्मिक सीटों पर जीत का परचम लहराया है.

इन चुनावों में बीजेपी सरकार ने केदारनाथ पुनर्निर्माण के कामों के साथ-साथ केदारनाथ में शंकराचार्य जी की मूर्ति की स्थापना को भी खूब भुनाने की कोशिश की है. हालांकि, कांग्रेस लगातार बीजेपी के इस दावें पर हमला बोलती रही है. पूर्व सीएम हरीश रावत लगातार कहते रहे हैं कि उनके कार्यकाल में ही केदारनाथ पुनर्निर्माण का काम शुरू हुआ था. बीजेपी मात्र यहां आकर अपने नाम के काले पत्थर लगा रही है. यही कारण है कि साल 2017 में केदारनाथ विधानसभा सीट की जनता ने बीजेपी नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार मनोज रावत को जिताया था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केदारनाथ का जिक्र न केवल केदारनाथ में आकर बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी जाकर भी कर चुके हैं. इन चुनावों में केदारनाथ सीट कितनी महत्वपूर्ण थी इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चुनाव प्रचार के लिए देश के गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जैसे तमाम बड़े नेता रुद्रप्रयाग और केदारघाटी में घूमते हुए दिखाई दिए थे. आपको बता दें कि केंद्र और राज्य सरकार की तरफ से केदारनाथ में अब तक 710 करोड़ रुपए के पुनर्निमाण कार्य पूरे हो रहे हैं. इतना ही नहीं, बीजेपी सरकार केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री तक जाने वाली ऑल वेदर रोड को भी चुनावों में खूब भुनाने का काम कर चुकी है.

2. बदरीनाथ सीट से बीजेपी ने लहराया परचम: उत्तराखंड के इस विधानसभा चुनाव में बदरीनाथ विधानसभा सीट से बीजेपी प्रत्याशी और सीटिंग विधायक महेंद्र भट्ट को हार का सामना करना पड़ा है. यहां कांग्रेस के राजेंद्र भंडारी ने जीत हासिल की है. बदरीनाथ विधानसभा सीट का नाम भगवान बदरी के नाम पर पड़ा है. यहां भगवान बदरीनाथ का पौराणिक मंदिर है, जो चारधामों में से एक है. बदरीनाथ सीट पर बीते चार विधानसभा चुनावों में बारी बारी से कांग्रेस और बीजेपी का कब्जा रहा. लेकिन इस चुनाव में बीजेपी ने लगातार दूसरी बार इस सीट पर जीत हासिल की है.

2002 के चुनाव में यहां से कांग्रेस के अनुसूया प्रसाद मैखुरी ने जीत दर्ज की थी. तो 2007 के चुनाव में बीजेपी के केदार सिंह फोनिया यहां से चुनकर विधानसभा पहुंचे. वहीं, साल 2012 में कांग्रेस की राजेंद्र सिंह भंडारी ने इस सीट पर जीत दर्ज की. जबकि, 2017 के चुनाव में इस सीट पर बीजेपी के महेंद्र भट्ट ने अपना परचम लहराया और कांग्रेस के राजेंद्र सिंह भंडारी को इस सीट पर शिकस्त दी थी. वहीं, इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी राजेंद्र भंडारी ने सीटिंग विधायक और प्रत्याशी महेंद्र भट्ट को हराया है. ऐसे में इस बार बदरीनाथ सीट पर कांग्रेस ने कब्जा कर लिया है.

3. सरकार बनाने वाली गंगोत्री सीट पर भी बीजेपी की जीत: गंगोत्री उत्तराखंड के चार धामों में एक प्रमुख तीर्थ स्थल भी है. जो उत्तरकाशी जिले के अंतर्गत आता है. राज्य गठन के बाद से ही गंगोत्री विधानसभा सीट से एक मिथक जुड़ा है. इस सीट से जिस भी दल का प्रत्याशी चुनकर आता है, राज्य में उसी दल की सरकार बनती है. यह मिथक अभी तक बरकरार है और इस सीट पर बीजेपी के प्रत्याशी सुरेश चौहान ने जीत हासिल की है. साथ ही इस बार बीजेपी उत्तराखंड में लगातार दूसरी बार सरकार बनाने जा रही है. इस सीट के इतिहास की बात करें तो साल 2002 के चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस के विजय पाल सजवाण ने जीत हासिल की थी. वहीं, 2007 में बीजेपी के गोपाल सिंह रावत इस सीट से चुनकर विधानसभा पहुंचे थे. वहीं, 2012 के चुनाव में यहां से फिर कांग्रेस से विजयपाल सजवाण ने जीत हासिल की और गोपाल सिंह रावत को हराया.

जबकि, 2017 के चुनाव में एक बार फिर बीजेपी के गोपाल सिंह रावत ने इस सीट पर परचम लहराया और विजयपाल सिंह सजवाण को शिकस्त दी. पिछले चुनाव में यहां मत प्रतिशत 67.53 रहा था. वहीं, गोपाल सिंह रावत के निधन के बाद इस बार बीजेपी ने इस सीट से सुरेश चौहान पर दांव खेला और उनके खिलाफ कांग्रेस के फिर विजयपाल सजवाण मैदान में थे. वहीं, आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार कर्नल अजय कोठियाल भी इस बार गंगोत्री सीट से ही चुनाव लड़ रहे थे. ऐसे में गंगोत्री की जनता से इस बार सभी प्रत्याशियों को दरकिनार कर बीजेपी के सुरेश चौहान को अपने वोटों से नवाजा है.

4. यमुनोत्री सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी संजय डोभाल विजयी: इस बार यमुनोत्री विधानसभा सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी संजय डोभाल ने जीत हासिल की है. साल 2017 में डोभाल इसी सीट से कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़े थे और बीजेपी के सीटिंग विधायक केदार सिंह रावत से बेहद कम मार्जिन से हारे थे. ऐसे में इस बार कांग्रेस से टिकट ना मिलने वह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े और जीत हासिल की.

यमुनोत्री विधानसभा सीट की बात करें तो साल 2002 के चुनाव में यहां से उत्तराखंड के क्षेत्रीय दल यूकेडी के प्रत्याशी प्रीतम सिंह पंवार ने जीत हासिल की थी. वहीं, साल 2007 के चुनाव में यहां से कांग्रेस के प्रत्याशी केदार सिंह रावत विधानसभा पहुंचे. वहीं, साल 2012 में इस सीट पर दोबारा यूकेडी के प्रत्याशी प्रीतम सिंह पंवार ने जीत हासिल की. साल 2017 के चुनाव में केदार सिंह रावत ने बीजेपी के टिकट से इस सीट पर जीत हासिल और कांग्रेस प्रत्याशी संजय डोभाल को हराया था. वहीं, इस चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में संजय डोभाल विजयी रहे.

5. हरिद्वार विधानसभा से फिर 'अजेय' मदन कौशिक: इस विधानसभा चुनाव में भी मदन कौशिक ने इतिहास दोहराया है और हरिद्वार विधानसभा सीट से प्रचंड वोटों से जीत हासिल की है. धर्म नगरी हरिद्वार के नाम से पहचान रखने वाली हरिद्वार विधानसभा में बीजेपी का कब्जा बरकरार है. इसका मुख्य कारण है हरिद्वार में सबसे अधिक हिंदू वोटरों का होना है. मदन कौशिक जो अभी बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष हैं वो लगातार साल 2002, 2007, 2012, 2017 और 2022 के चुनाव में यहां जीतते आ रहे हैं. इस चुनाव में कौशिक ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी सतपाल ब्रह्मचारी को एक बड़े मार्जिन से हराया है.

बीजेपी के लिए यह सीट कितनी महत्वपूर्ण है इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा हों या गृह मंत्री अमित शाह दोनों ने ही हरिद्वार की सड़कों पर घूम-घूमकर वोट मांगें थे, क्योंकि बीजेपी जानती है कि हरिद्वार विधानसभा सीट से हिंदुत्व और धर्म का अच्छा संदेश पूरे देशभर में जा सकता है. यही कारण है कि इन चुनावों में योगी आदित्यनाथ को भी हरिद्वार लाने की पूरी कोशिश की गई लेकिन समय कम होने के चलते उन्हें नहीं लाया जा सका.

हरिद्वार में हर 12 साल में महाकुंभ और हर 6 साल में अर्धकुंभ लगता है. इसके साथ ही आए दिन होने वाले तमाम मेलों के लिए भी राज्य सरकार और केंद्र सरकार हजारों करोड़ रुपए बीच-बीच में जारी करती रहती है. केंद्र सरकार ने इस बार भी महाकुंभ के लिए 300 करोड़ रुपए का बजट जारी किया था. जिसको बाद में कुंभ की अवधि कम होने की वजह से कम कर दिया गया था. लिहाजा, हरिद्वार सीट पर भी बीजेपी अपनी पूरी नजर और ताकत बनाए रखती है.

6. योग कैपिटल में बीजेपी ने हासिल की जीत: ऋषिकेश विधानसभा सीट से एक बार फिर बीजेपी प्रत्याशी प्रेमचंद अग्रवाल ने जीत हासिल की है. राज्य गठन के बाद पहले आम चुनाव यानि साल 2002 के चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी शूरवीर सिंह सजवाण ने यहां से जीत हासिल की थी. जिसके बाद 2007, 2012, 2017 और इस चुनाव में यहां से लगातार बीजेपी के प्रेमचंद अग्रवाल जीतते आ रहे हैं.

योग कैपिटल के रूप में देश दुनिया में ऋषिकेश शहर अपनी विशेष पहचान रखता है. धार्मिक पर्यटन के लिहाज से भी यह शहर काफी महत्वपूर्ण है. ऋषिकेश वो शहर है जहां पर गंगा का पहली बार मैदानी इलाके में प्रवेश होता है. साधु संतों की नगरी ऋषिकेश उत्तराखंड की राजनीति में बहुत महत्व रखती है. ऋषिकेश उत्तराखंड का एकमात्र ऐसा धार्मिक स्थल और विधानसभा सीट है जो तीन जिलों (हरिद्वार, पौड़ी और टिहरी गढ़वाल जिले) से लगती है. ऐसे में यहां होने वाला विकास सीधे-सीधे इन तीन जिलों को भी प्रभावित करता है.

ऋषिकेश सीट पर अपनी मजबूत दावेदारी और अपनी धमक दिखाने के लिए बीजेपी लगातार ऋषिकेश एम्स और हरिद्वार-ऋषिकेश राष्ट्रीय राजमार्ग का चौड़ीकरण जनता के बीच में रखती रही है. ऋषिकेश में एम्स स्थापित करने का श्रेय बीजेपी केंद्र की अटल बिहारी सरकार को देती रही है. पीएम मोदी अपने भाषणों में तीर्थनगरी में एक वर्ल्ड क्लास हेल्थ सेंटर बनाने की बात कहते आए हैं. यही एक वजह भी रही कि 2022 चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री मोदी खुद ऋषिकेश एम्स पहुंचे थे और यहीं से देशभर के 35 ऑक्सीजन प्लांट का शुभारंभ किया था. लिहाजा, इस सीट से प्रेमचंद अग्रवाल को ऋषिकेश की जनता ने दोबारा विधानसभा भेजा है.

कुल मिलाकर देखा जाए तो इन 6 प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में यमुनोत्री और बदरीनाथ सीट को छोड़ दिया जाए तो बाकी 4 सीटों पर इस चुनाव में बीजेपी ने कब्जा कर लिया है. खास बात यह है कि पिछले विधानसभा चुनाव में केदारनाथ सीट न जीतने का बीजेपी को मलाल रहा था लेकिन यहां से बीजेपी प्रत्याशी शैला रानी रावत ने यहां से जीत हासिल की है. बाबा केदार का धाम हिंदुओं की आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है. ऐसे में इन चुनावों में बीजेपी ने इस सीट पर जीत हासिल की है. हालांकि, बदरीनाथ सीट इस बार बीजेपी को गंवानी पड़ी है.

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