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राज्य सरकारों के सत्ता में बने रहने के लिए चुनावी विज्ञापन महत्वपूर्ण : रिपोर्ट - चुनावी विज्ञापन महत्वपूर्ण

कुछ समय पहले पांच राज्यों में चुनाव हुए थे, जिसके परिणाम भी आ चुके हैं. चुनावी परिणामों को लेकर अब एसबीआई ने शुक्रवार को एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें कहा गया है कि राज्य सरकार को सत्ता में बनाए रखने में चुनावी वर्ष के दौरान प्रचार और विज्ञापन पर किए जाने वाले खर्च का महत्वपूर्ण प्रभाव होता है.

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राज्य सरकारों के सत्ता में बने रहने के लिए चुनावी विज्ञापन महत्वपूर्ण: एसबीआई रिपोर्ट
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Published : May 15, 2021, 10:05 AM IST

मुंबई : राज्य सरकारों को सत्ता में बनाए रखने में चुनावी वर्ष के दौरान प्रचार और विज्ञापन पर किए जाने वाले खर्च का महत्वपूर्ण प्रभाव होता है. एसबीआई के अर्थशास्त्रियों की शुक्रवार को जारी एक रिपोर्ट में यह बात कही गयी है.

एसबीआई अर्थशास्त्रियों की इस रिपोर्ट में पिछले पांच वर्षों में 23 राज्यों के चुनावों के विश्लेषण के आधार पर कहा गया है कि जिन राज्यों में चुनावी साल में प्रचार पर सरकारी खर्च कम था, उनमें ज्यादातर सरकारें चुनाव हार गईं.

इसमें कहा गया है कि हालांकि इन चुनावों में मतदान करने के लिए निकलने वाले मतदाताओं की संख्या, महिला मतदाता, जाति-आधारित मतदान, वर्तमान नेतृत्व, सत्ता-विरोधी लहर आदि जैसे अन्य कारक थे, लेकिन दस राज्यों में एक आम बात यह निकलती है कि जहां एक पुरानी पार्टी सत्ता बनाए रखने में सक्षम हुई, उसकी वजह चुनावी विज्ञापनों या विज्ञापन पर सार्वजनिक खर्च का बढ़ना था.

पढ़ेंः राज्यपाल धनखड़ आज नंदीग्राम के हिंसा प्रभावित क्षेत्रों का करेंगे दौरा

जिन राज्यों के चुनाव परिणाम हाल ही में सामने आए, उनमें केरल और पश्चिम बंगाल ने चुनावी वर्ष में सूचना और प्रचार पर पूंजीगत व्यय (Capital expenditure) में क्रमशः 47 प्रतिशत और 8 प्रतिशत की वृद्धि दिखाई, जिसके कारण पिनाराई विजयन और ममता बनर्जी सत्ता में बनी रहीं. रिपोर्ट में इस बात उल्लेख किया गया है.

दूसरी ओर, तमिलनाडु में, राज्य सरकार द्वारा चुनावी वर्ष के विज्ञापन में मामूली दो प्रतिशत की वृद्धि के बाद सरकार में बदलाव देखा गया.

मुंबई : राज्य सरकारों को सत्ता में बनाए रखने में चुनावी वर्ष के दौरान प्रचार और विज्ञापन पर किए जाने वाले खर्च का महत्वपूर्ण प्रभाव होता है. एसबीआई के अर्थशास्त्रियों की शुक्रवार को जारी एक रिपोर्ट में यह बात कही गयी है.

एसबीआई अर्थशास्त्रियों की इस रिपोर्ट में पिछले पांच वर्षों में 23 राज्यों के चुनावों के विश्लेषण के आधार पर कहा गया है कि जिन राज्यों में चुनावी साल में प्रचार पर सरकारी खर्च कम था, उनमें ज्यादातर सरकारें चुनाव हार गईं.

इसमें कहा गया है कि हालांकि इन चुनावों में मतदान करने के लिए निकलने वाले मतदाताओं की संख्या, महिला मतदाता, जाति-आधारित मतदान, वर्तमान नेतृत्व, सत्ता-विरोधी लहर आदि जैसे अन्य कारक थे, लेकिन दस राज्यों में एक आम बात यह निकलती है कि जहां एक पुरानी पार्टी सत्ता बनाए रखने में सक्षम हुई, उसकी वजह चुनावी विज्ञापनों या विज्ञापन पर सार्वजनिक खर्च का बढ़ना था.

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जिन राज्यों के चुनाव परिणाम हाल ही में सामने आए, उनमें केरल और पश्चिम बंगाल ने चुनावी वर्ष में सूचना और प्रचार पर पूंजीगत व्यय (Capital expenditure) में क्रमशः 47 प्रतिशत और 8 प्रतिशत की वृद्धि दिखाई, जिसके कारण पिनाराई विजयन और ममता बनर्जी सत्ता में बनी रहीं. रिपोर्ट में इस बात उल्लेख किया गया है.

दूसरी ओर, तमिलनाडु में, राज्य सरकार द्वारा चुनावी वर्ष के विज्ञापन में मामूली दो प्रतिशत की वृद्धि के बाद सरकार में बदलाव देखा गया.

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