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Shinde Vs Uddhav in SC : 'किसी भी पार्टी के भीतर मतभेद को आधार बनाकर सरकार को फ्लोर टेस्ट के लिए बुलाना उचित नहीं'

सुप्रीम कोर्ट ने शिवसेना मामले पर सुनवाई की. कोर्ट ने इस दौरान महाराष्ट्र के राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठाए. कोर्ट ने कहा कि किसी भी पार्टी के भीतर आंतरिक मतभेद है, तो इसको आधार बनाकर राज्यपाल विश्वास मत हासिल करने के लिए नहीं कह सकते हैं.

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Published : Mar 15, 2023, 1:58 PM IST

Updated : Mar 15, 2023, 7:51 PM IST

नई दिल्ली : शिंदे बनाम उद्धव मामले की सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई. इस दौरान मुख्य न्यायाधीश ने राज्यपाल की भूमिका को लेकर कुछ सवाल पूछे. उन्होंने कहा कि क्या किसी भी पार्टी के अंदरूनी मतभेद के बीच राज्यपाल को विश्वास मत बुलाना चाहिए था. कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल को यह कैसे पता हो सकता है कि आगे क्या होने वाला है.

सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि जब भी फ्लोर टेस्ट की बात आती है, तो उसका कोई आधार होता है. लेकिन उस समय गवर्नर के पास क्या आधार था. निश्चित तौर पर उन्होंने अगर सरकार को विश्वास मत हासिल करने के लिए कहा, तो कुछ न कुछ बात होगी. कोर्ट ने कहा कि हम इसके बारे में जरूर जानना चाहेंगे, कि वह बात क्या थी. कोर्ट ने कहा कि कांग्रेस और एनसीपी पूरी तरह से सरकार के साथ खड़ी थी. और जब राज्यपाल ने यह मान लिया कि विद्रोह या विरोध करने वाले विधायक या गुट ही असली शिवसेना है, तो सरकार को विश्वास मत हासिल करने की क्या जरूरत थी, आखिर सरकार तो उनकी ही थी. इसलिए इस पूरे मामले में हालात को जानना जरूरी है.

इस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल की भूमिका पर और भी सवाल उठाए. कोर्ट ने कहा कि किसी पार्टी के भीतर आंतरिक भेद हैं, क्या इसको आधार मानना उचित होगा, मुझे लग रहा है कि ऐसा नहीं है. कोर्ट ने कहा कि एक पार्टी के अंदर क्या कुछ हो रहा है, यह मामला तो पार्टी की अनुशासन समिति देखेगी. वह विचार करेगी. क्या करना है, क्या नहीं करना है. कितनी संख्या किसके साथ है, वो तय करेंगे. इन सारे मामलों में राज्यपाल कहां पर फिट बैठते हैं. उन्हें किसी भी पार्टी की आंतरिक डिसिप्लिन से क्या मतलब है.

कोर्ट ने कहा कि किसी भी पार्टी के विधायकों के बीच मतभेद हो सकते हैं, उनमें डेवलपमेंट फंड को लेकर अलग-अलग राय हो सकती है, कुछ विधायक चाहते होंगे कि उन्हें ज्यादा फंड मिले, या फिर कुछ ये भी कहते होंगे कि देखिए कुछ विधायक पार्टी के सिद्धान्त से ही अलग हो गए हैं. कोर्ट ने कहा कि ये सब ऐसे कारण हैं, जो बहुत ही सामान्य किस्म के हैं. लेकिन क्या बताइए कि इन आधार पर गवर्नर यह कह सकता है कि आप बहुमत साबित कीजिए. कोर्ट ने कहा, याद रखिए, यदि गवर्नर इस तरह का आदेश देते हैं, तो इसका सीधा अर्थ है कि वह सरकार गिर भी सकती है. यह कोई छोटा फैसला नहीं है. इस बेंच में जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिंहा शामिल हैं.

कोर्ट ने कहा कि एक प्रस्ताव जिसको लेकर बार-बार यह कहा जा रहा है कि 34 विधायकों ने अलग राय रखी, यानि वे असंतुष्ट थे, तो क्या आप यह मान लेंगे कि उनके साथ-साथ पार्टी के दूसरे सदस्य भी असंतुष्ट थे.

ये भी पढे़ं :Land for job scam: लालू यादव के परिवार को राहत, राबड़ी समेत सभी आरोपियों को मिली जमानत

नई दिल्ली : शिंदे बनाम उद्धव मामले की सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई. इस दौरान मुख्य न्यायाधीश ने राज्यपाल की भूमिका को लेकर कुछ सवाल पूछे. उन्होंने कहा कि क्या किसी भी पार्टी के अंदरूनी मतभेद के बीच राज्यपाल को विश्वास मत बुलाना चाहिए था. कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल को यह कैसे पता हो सकता है कि आगे क्या होने वाला है.

सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि जब भी फ्लोर टेस्ट की बात आती है, तो उसका कोई आधार होता है. लेकिन उस समय गवर्नर के पास क्या आधार था. निश्चित तौर पर उन्होंने अगर सरकार को विश्वास मत हासिल करने के लिए कहा, तो कुछ न कुछ बात होगी. कोर्ट ने कहा कि हम इसके बारे में जरूर जानना चाहेंगे, कि वह बात क्या थी. कोर्ट ने कहा कि कांग्रेस और एनसीपी पूरी तरह से सरकार के साथ खड़ी थी. और जब राज्यपाल ने यह मान लिया कि विद्रोह या विरोध करने वाले विधायक या गुट ही असली शिवसेना है, तो सरकार को विश्वास मत हासिल करने की क्या जरूरत थी, आखिर सरकार तो उनकी ही थी. इसलिए इस पूरे मामले में हालात को जानना जरूरी है.

इस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल की भूमिका पर और भी सवाल उठाए. कोर्ट ने कहा कि किसी पार्टी के भीतर आंतरिक भेद हैं, क्या इसको आधार मानना उचित होगा, मुझे लग रहा है कि ऐसा नहीं है. कोर्ट ने कहा कि एक पार्टी के अंदर क्या कुछ हो रहा है, यह मामला तो पार्टी की अनुशासन समिति देखेगी. वह विचार करेगी. क्या करना है, क्या नहीं करना है. कितनी संख्या किसके साथ है, वो तय करेंगे. इन सारे मामलों में राज्यपाल कहां पर फिट बैठते हैं. उन्हें किसी भी पार्टी की आंतरिक डिसिप्लिन से क्या मतलब है.

कोर्ट ने कहा कि किसी भी पार्टी के विधायकों के बीच मतभेद हो सकते हैं, उनमें डेवलपमेंट फंड को लेकर अलग-अलग राय हो सकती है, कुछ विधायक चाहते होंगे कि उन्हें ज्यादा फंड मिले, या फिर कुछ ये भी कहते होंगे कि देखिए कुछ विधायक पार्टी के सिद्धान्त से ही अलग हो गए हैं. कोर्ट ने कहा कि ये सब ऐसे कारण हैं, जो बहुत ही सामान्य किस्म के हैं. लेकिन क्या बताइए कि इन आधार पर गवर्नर यह कह सकता है कि आप बहुमत साबित कीजिए. कोर्ट ने कहा, याद रखिए, यदि गवर्नर इस तरह का आदेश देते हैं, तो इसका सीधा अर्थ है कि वह सरकार गिर भी सकती है. यह कोई छोटा फैसला नहीं है. इस बेंच में जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिंहा शामिल हैं.

कोर्ट ने कहा कि एक प्रस्ताव जिसको लेकर बार-बार यह कहा जा रहा है कि 34 विधायकों ने अलग राय रखी, यानि वे असंतुष्ट थे, तो क्या आप यह मान लेंगे कि उनके साथ-साथ पार्टी के दूसरे सदस्य भी असंतुष्ट थे.

ये भी पढे़ं :Land for job scam: लालू यादव के परिवार को राहत, राबड़ी समेत सभी आरोपियों को मिली जमानत

Last Updated : Mar 15, 2023, 7:51 PM IST
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