कोलकाता: कुकिंग ऑयल की राष्ट्रीय उद्योग संस्था सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) ऑफ इंडिया ने इंडोनेशिया के साथ गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट (जी2जी) वार्ता शुरू करने का सुझाव दिया है. साथ ही कहा कि यदि वार्ता नहीं होती है तो भारत में इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. इंडोनेशिया पाम ऑयल उत्पादन में विश्व का सबसे बड़ा उत्पादक देश है. भारत में कुल आयात का लगभग 50 प्रतिशत इंडोनेशिया से ही आता है. हालांकि इंडोनेशिया ने अपने घरेलू बाजार में खाद्य तेल की कीमतों को कंट्रोल करने के लिए अगले आदेश तक पाम ऑयल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की जो कि 28 अप्रेल से प्रभावी होगा.
एसईए के महानिदेशक बी वी मेहता ने पीटीआई को बताया कि उन्होंने भारत सरकार को सुझाव दिया है कि हमारी सरकार कुकिंग ऑयल तेल निर्यात प्रतिबंध पर उच्चतम राजनयिक स्तर पर इंडोनेशिया के साथ बातचीत शुरू करे. इसका हमारे घरेलू बाजार में गंभीर असर होगा क्योंकि हमारे कुल पाम ऑयल का आधा आयात इंडोनेशिया से होता है और कोई भी देश इतनी सप्लाई नहीं कर सकता है. इसके लिए एसईए केंद्रीय खाद्य मंत्रालय के साथ संपर्क में है. हालांकि उन्हें इंडोनेशिया से प्रतिबंध की उम्मीद नहीं थी. आज (सोमवार) से ही घरेलू बाजार में कीमतों पर प्रभाव पड़ना शुरू हो जाएगा. खाद्य तेल उद्योग, इंडोनेशिया सरकार द्वारा लगाए गए निर्यात शुल्क से जुझ रहा था. क्योंकि वहां के घरेलू बाजार में कुकिंग ऑयल की कीमतों में लगभग 40-50 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो गई थी. उसको रोकने के लिए इंडोनेशिया सरकार ने 575 डॉलर प्रति टन निर्यात शुल्क लगाया था.
पाम ऑयल पर प्रतिबंध की खबर से मलेशिया में खाद्य तेल की कीमतों में तेजी आएगी जो कि हमारा प्रमुख विकल्प है. भारत में सालाना 22.5 मिलियन टन खाद्य तेल की खपत होती है जिसमें से 9-9.95 मिलियन टन की आपूर्ति घरेलू है और शेष आयात से पूरा किया जाता है. भारत द्वारा सालाना लगभग 3.5-4 मिलियन टन पाम तेल इंडोनेशिया से आयात करता है. एक खाद्य तेल रिफाइनर अधिकारी ने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण सूरजमुखी और सोयाबीन तेल पहले से ही दबाव में है क्योंकि आयात लगभग आधा हो गया है लेकिन तेल के अन्य उपायों को मैनेज किया गया था. लेकिन इंडोनेशियाई तेल प्रतिबंध का विनाशकारी प्रभाव होगा. जब तक कि जल्दी से हल नहीं किया जाता है.
पिछले भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण में तेल और वसा की बढ़ती कीमतों को दोषी ठहराया था और यह वित्तीय वर्ष 2021-22 में खाद्य और पेय श्रेणी में मुद्रास्फीति का एक प्रमुख कारण था. तेल और वसा ने देश में खाद्य और पेय पदार्थों की मुद्रास्फीति में लगभग 60 प्रतिशत का योगदान दिया था. थोक मूल्य सूचकांक या WPI आधारित मुद्रास्फीति मार्च 2022 में पहले से बढ़कर 14.55 प्रतिशत हो गई जबकि फरवरी 2022 में यह 13.11 प्रतिशत थी. खाद्य तेल जैसे पाम ऑयल FMCG और HoReCa (होटल, रेस्तरां और कैटरर्स) के लिए एक प्रमुख रॉ मैटेरियल है. इससे न केवल खाद्य पदार्थ बल्कि उपभोक्ता वस्तुएं जैसे साबुन, शैंपू आदि के दामों को भी प्रभावित करेगी.
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पीटीआई