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कोरोना की वजह से उद्योग-धंधे प्रभावित, आर्थिक पैकेज समाधान नहीं

कोरोना महामारी की वजह से अर्थव्यवस्था फिर से प्रभावित होने लगी है. छोटे और मध्यम दर्जे के एक तिहाई उद्योग बंद होने की कगार पर पहुंच गए हैं. बेरोजगारी की दर पहले से ही बहुत अधिक है. ऐसे में इन उद्योगों का बंद होना शुभ संकेत नहीं हैं. इसका समाधान आर्थिक पैकेज और मुफ्त अनाज बांटना नहीं हो सकता है. जाहिर है, सरकार को रोजगार बढ़ाने के ठोस उपाय करने होंगे.

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मध्यम उद्योग
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Published : May 7, 2021, 6:06 PM IST

हैदराबाद : अब जबकि कोरोना के मामले हर दिन चार लाख से अधिक आ रहे हैं, अर्थव्यवस्था से जुड़े कई क्षेत्रों पर इसका प्रभाव देखने को मिल रहा है. व्यवसाय प्रभावित हो रहे हैं. नौकरियां जा रहीं हैं. धंधा चौपट हो रहा है. कमाई जाने से परिवार प्रभावित हो रहे हैं. अच्छी खासी नौकरी करने वाले लोग कम सैलरी पर दूसरे विकल्प तलाश रहे हैं.

कोरोना की दूसरी लहर के बीच सूक्ष्म, लघु और मध्यम दर्जे के उद्योगों को आत्मनिर्भर पैकेज से काफी उम्मीदें थीं. लेकिन सारी उम्मीदें धरी की धरी रह गईं. इस कैटेगरी में आने वाली एक तिहाई इकाइयां बंद होने की कगार पर आ गईं हैं. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनोमी की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी की दर 7.13 फीसदी और शहरी क्षेत्रों में 9.78 प्रतिशत है.

पांच करोड़ लोगों को रोजगार देने वाला खुदरा क्षेत्र भी अब अछूता नहीं रहा. दूसरी लहर आने के बाद अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने कुछ कदमों की घोषणा की. लेकिन आरबीआई ने मान लिया है कि दूसरी लहर से बिजनेस गतिविधियां बहुत अधिक प्रभावित नहीं होंगी. आरबीआई ने ऋण चुकाने की अवधि को बढ़ा दिया है. आरबीआई ने इस कदम को उद्योंगो के लिए वरदान माना है.

12 करोड़ लोगों को रोजगार देने वाले एमएसएमई के सामने कई चुनौतियां हैं. उन्हें फंड नहीं मिल रहा है. ऋण चुकाने का दबाव है. इन समस्याओं से निपटने के बाद ही वे अपने को बचा सकेंगे.

पिछले साल लॉकडाउन की वजह से असंगठित क्षेत्रों में लगी एक तिहाई श्रम शक्ति तबाह हो गई थी. बाद में उन्होंने जैसे-तैसे अपने को संभाला. लेकिन उनकी आमदनी घट गई. उनमें से अधिकांश आज भी भुखमरी जैसी समस्याओं का सामना करने को मजबूर हैं. ऐसे लोगों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. कपड़ा उद्योग और छोटे व्यवसाय धाराशायी हो रहे हैं.

केंद्रीय बजट में भी शहरी क्षेत्रों में रोजगार सुनिश्चित करने के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया, जबकि मध्य प्रदेश जैसे राज्य ने दो साल पहले शहरी रोजगार गारंटी स्कीम को लागू किया था.

अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी ने अपने अध्ययन में दावा किया है कि अगर शिक्षित युवाओं को वोकेशनल ट्रेनिंग दी जाए, तो पांच करोड़ लोगों को रोजगार मिल सकता है. इन्होंने सुझाव दिया है कि ट्रेनिंग हासिल करने वाले युवाओं को कम से कम 13 हजार का स्टाइपंड दिया जाना चाहिए. शहरी रोजगार गारंटी स्कीम को लागू करने से युवाओं को काफी फायदा पहुंचेगा और अंततः इससे देश को ही लाभ होगा. मूलभूत सुविधाओं की भी वृद्धि होगी.

ये भी पढ़ें : कोरोना महामारी- ले डूबी सरकार की अदूरदर्शिता

80 करोड़ लोगों को मुफ्त में पांच किलोग्राम अनाज की उपलब्धता करवाना ही पर्याप्त नहीं है. स्थिति तभी बेहतर हो सकती है, जब बेरोजगारी को नियंत्रित करने के लिए उचित कदम उठाए जाएं. रोजगार बढ़ाने के लिए पर्याप्त कदम उठाने की आवश्यकता है.

हैदराबाद : अब जबकि कोरोना के मामले हर दिन चार लाख से अधिक आ रहे हैं, अर्थव्यवस्था से जुड़े कई क्षेत्रों पर इसका प्रभाव देखने को मिल रहा है. व्यवसाय प्रभावित हो रहे हैं. नौकरियां जा रहीं हैं. धंधा चौपट हो रहा है. कमाई जाने से परिवार प्रभावित हो रहे हैं. अच्छी खासी नौकरी करने वाले लोग कम सैलरी पर दूसरे विकल्प तलाश रहे हैं.

कोरोना की दूसरी लहर के बीच सूक्ष्म, लघु और मध्यम दर्जे के उद्योगों को आत्मनिर्भर पैकेज से काफी उम्मीदें थीं. लेकिन सारी उम्मीदें धरी की धरी रह गईं. इस कैटेगरी में आने वाली एक तिहाई इकाइयां बंद होने की कगार पर आ गईं हैं. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनोमी की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी की दर 7.13 फीसदी और शहरी क्षेत्रों में 9.78 प्रतिशत है.

पांच करोड़ लोगों को रोजगार देने वाला खुदरा क्षेत्र भी अब अछूता नहीं रहा. दूसरी लहर आने के बाद अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने कुछ कदमों की घोषणा की. लेकिन आरबीआई ने मान लिया है कि दूसरी लहर से बिजनेस गतिविधियां बहुत अधिक प्रभावित नहीं होंगी. आरबीआई ने ऋण चुकाने की अवधि को बढ़ा दिया है. आरबीआई ने इस कदम को उद्योंगो के लिए वरदान माना है.

12 करोड़ लोगों को रोजगार देने वाले एमएसएमई के सामने कई चुनौतियां हैं. उन्हें फंड नहीं मिल रहा है. ऋण चुकाने का दबाव है. इन समस्याओं से निपटने के बाद ही वे अपने को बचा सकेंगे.

पिछले साल लॉकडाउन की वजह से असंगठित क्षेत्रों में लगी एक तिहाई श्रम शक्ति तबाह हो गई थी. बाद में उन्होंने जैसे-तैसे अपने को संभाला. लेकिन उनकी आमदनी घट गई. उनमें से अधिकांश आज भी भुखमरी जैसी समस्याओं का सामना करने को मजबूर हैं. ऐसे लोगों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. कपड़ा उद्योग और छोटे व्यवसाय धाराशायी हो रहे हैं.

केंद्रीय बजट में भी शहरी क्षेत्रों में रोजगार सुनिश्चित करने के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया, जबकि मध्य प्रदेश जैसे राज्य ने दो साल पहले शहरी रोजगार गारंटी स्कीम को लागू किया था.

अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी ने अपने अध्ययन में दावा किया है कि अगर शिक्षित युवाओं को वोकेशनल ट्रेनिंग दी जाए, तो पांच करोड़ लोगों को रोजगार मिल सकता है. इन्होंने सुझाव दिया है कि ट्रेनिंग हासिल करने वाले युवाओं को कम से कम 13 हजार का स्टाइपंड दिया जाना चाहिए. शहरी रोजगार गारंटी स्कीम को लागू करने से युवाओं को काफी फायदा पहुंचेगा और अंततः इससे देश को ही लाभ होगा. मूलभूत सुविधाओं की भी वृद्धि होगी.

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80 करोड़ लोगों को मुफ्त में पांच किलोग्राम अनाज की उपलब्धता करवाना ही पर्याप्त नहीं है. स्थिति तभी बेहतर हो सकती है, जब बेरोजगारी को नियंत्रित करने के लिए उचित कदम उठाए जाएं. रोजगार बढ़ाने के लिए पर्याप्त कदम उठाने की आवश्यकता है.

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