जयपुर. हर महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकट चतुर्थी या संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है. फाल्गुन मास का आगाज हो चुका है. फाल्गुन माह की संकटी चतुर्थी को द्विजप्रिय संकटी चतुर्थी भी कहा जाता है. इस बार संकष्टी चतुर्थी 20 फरवरी रविवार को है. हिन्दू पंचांग के अनुसार द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का व्रत 20 फरवरी 2022, रविवार को रखा जाएगा. चतुर्थी की शुरुआत 19 फरवरी को रात्रि 9 बजकर 56 मिनट से से होगी, जिसका समापन 20 फरवरी की रात्रि 9 बजकर 05 मिनट पर होगा. संकष्टी चतुर्थी के दिन चंद्रोदय रात्रि 9 बजकर 50 मिनट पर होगा.
इस दिन विधि-विधान से माता गौरी और भगवान गणेश की पूजा करने से सभी दुख दूर होकर सुख-समृद्धि प्राप्त होती है. इस दिन गणेश जी की पूजा, व्रत, कथा और आरती करके भोग लगाया जाता है. द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन पांच दूर्वा में 11 गांठें लगाकर और लाल धागे से बांधकर गणपति जी के पास रख दें. इसके बाद गणेश जी की पूजा करें. ऐसा करने से भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं और आपकी मनोकामना पूर्ण करते हैं. संकष्टी चतुर्थी का महत्व बताते हुए आचार्य श्रीराम गुर्जर ने बताया कि आध्यात्मिक दृष्टि से गणेश बुध और केतु ग्रह के कारण आ रही मुश्किलों को दूर करते हैं. जब कोई काम रुका हुआ हो, तो श्रीगणेश की पूजा करना लाभकारक माना जाता है.
फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का शास्त्रों में विशेष महत्व है. द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन पूरे विधि-विधान से गौरी गणेश का पूजन और व्रत किया जाता है. भगवान गणेश देवताओं में सर्वश्रेष्ठ हैं और सर्वप्रथम पूजनीय हैं. इसलिए द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन गणेशजी का उनकी माता गौरी के साथ पूरे विधि-विधान से पूजन किया जाता है.
इस तरह पूजा करने से मिलेगा गौरी-गणेश का आशीर्वाद
- चतुर्थी तिथि के दिन सुबह स्नान के बाद लाल रंग के कपड़े धारण करें और व्रत का संकल्प लें.
- मंदिर में दीपक जलाएं और पूरब या उत्तर दिशा की ओर करके पूजन करें.
- लकड़ी की चौकी पर आसन बिछाकर भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करें.
- गणेशजी के सामने धूप-दीप जलाएं. गौरी-गणेश की विधि-विधान से पूजा और इस दौरान ॐ गणेशाय नमः या ओम गं गणपतये नमः मंत्र का जाप करें.
- पूजन के बाद गणेश जी को मिठाई, मोदक या लड्डू का भोग लगाए.
- गणपति को चंदन और दूर्वा अर्पित करें. अंत में भगवान गणेश की आरती करें.
- संकष्टी चतुर्थी का व्रत शाम के समय चंद्रदर्शन के बाद ही खोला जाता है.
- चांद निकलने से पहले गणपति की पूजा करें और चंद्रमा को अर्घ्य दें. व्रत कथा कहें या सुनें.
- पूजन समाप्ति और चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही अन्न का दान करें.