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इसलिए श्रीगणेश को प्रिय है दूर्वा, बिना इसके पूर्ण नहीं होती है गणेश चतुर्थी पूजा - श्री गणेश की पूजा में दूर्वा का महत्व

गणेश चतुर्थी पूजा के लिए तमाम तरह की तैयारियां की जा रही हैं. इसमें सबसे जरुरी सामान है दूर्वा. इसके अभाव में आपकी पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती है. क्या आप जानते हैं कि आखिर भगवान गणेश को यह इतनी प्रिय क्यों है. अगर नहीं जानते हैं तो जरुर पढ़ें यह खबर

Durva Importance In Lord Ganesh Chaturthi Puja
श्रीगणेश की गणेश चतुर्थी पूजा
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Published : Aug 27, 2022, 1:39 PM IST

नई दिल्ली : सनातन हिन्दू धर्म में देव पूजा में दूर्वा अर्थात् दूब को कुछ जगहों पर सामान्य घास के तौर पर जानते हैं, लेकिन हमारे हिन्दू धर्म में इसको अत्यन्त पवित्र और धर्मोपयोगी वनस्पति माना गया है. देवी दुर्गा को छोड़कर पूजा में प्राय: सभी देवताओं को दूर्वा चढ़ाई जाती है. आपको ज्ञात होगा कि जिस प्रकार शिव पूजन में बेल पत्र अति आवश्यक माना जाता है, उसी प्रकार श्री गणेश की पूजा में दूर्वा (Durva Importance In Lord Ganesh Chaturthi ) अत्यंत आवश्यक पूजन सामग्री है. भगवान गणेश की कोई भी पूजा (Ganesh Chaturthi Puja 2022) बगैर दूर्वा के पूरी ही नहीं मानी जाती है.

कहा जाता है कि दूर्वा दूः+अवम्‌, इन दो शब्दों से बना है. 'दूः' यानी दूरस्थ व 'अवम्‌' यानी वह जो पास लाता है. अर्थात दूर्वा वह है, जो गणेश के दूरस्थ पवित्रकों को पास लाती है.

दूर्वा की उत्पत्ति (Origin Of Durva)

ऐसा मान्यता है कि अमृत की प्राप्ति के लिए देवताओं और देत्यों ने जब क्षीरसागर को मथने के लिए मन्दराचल पर्वत की मथानी बनायी तो भगवान विष्णु ने अपनी जंघा पर हाथ से पकड़कर मन्दराचल को धारण किया. मन्दराचल पर्वत के तेजी से घूमने से रगड़ के कारण भगवान विष्णु के जो रोम उखड़ कर समुद्र में गिरे, वे लहरों द्वारा उछाले जाने से हरे रंग के होकर दूर्वा के रूप में उत्पन्न हुए.

वहीं शास्त्रों के अनुसार नरसिंह अवतार के समय जब भगवान के कुछ बाल पृथ्वी पर गिरे थे, उनसे ही दूर्वा और कुश उत्पन्न हुई थी. कहा जाता है कि दुर्वासा ऋषि की शक्ति भी इसी दूर्वा के कारण ही थी.

दूर्वा को अलग अलग नामों से जाना जाता है. इसे दूब, अमृता, अनंता, महौषधि आदि नामों से पुकारा व पहचना जाता है. हमारे देश में होने वाले सारे मांगलिक कार्यों में इसका उपयोग होता है. हल्दी और दूब के जरिए शादी-ब्याह जैसे शुभ कार्यों में भी कई रस्में निभायी जाती हैं. दूर्वा से हल्दी छिड़कने को सौभाग्य छिड़का जाना कहा जाता है. इसके साथ साथ सातफेरों के पहले जो गठबंधन किया जाता है उस समय वधू के पल्लू और वर के दुपट्टे या धोती में सिक्का (पैसा), पुष्प, हल्दी, दूर्वा और अक्षत, पांच चीजें बांधी जाती हैं. यह संबंधों में अजरता और अमरता के लिए किया जाता है.

Durva Importance In Lord Ganesh Chaturthi Puja
श्रीगणेश की गणेश चतुर्थी पूजा में दूर्वा

दूर्वा है अजर अमर (Durva is Immortal)

कहा जाता है कि जब दूर्वा की उत्पत्ति हुयी तो देवताओं ने समुद्र-मंथन से उत्पन्न अमृत का कलश को उसी के उपर रखा था. उस कलश से जो अमृत की बूंदें छलकीं, उनके स्पर्श से वह दूर्वा अजर-अमर हो गयी. दूर्वा को चाहे कितना भी काटें और उसको हटाने की कोशिश करें, उसकी जड़ें अपने-आप चारों ओर फैलती जाती हैं.

सभी देवताओं ने इस मन्त्र से दूर्वा की पूजा की और तभी से यह देव पूजा में अत्यन्त पवित्र और पूज्य मानी जाने लगी ।

त्वं दूर्वेऽमृतजन्मासि वन्दिता च सुरासुरै:

सौभाग्यं संततिं कृत्वा सर्वकार्यकरी भव.

यथा शाखाप्रशाखाभिर्विस्तृतासि महीतले

तथा ममापि संतानं देहि त्वमजरामरे.

अर्थात्—हे दूर्वे ! तुम्हारा जन्म अमृत से हुआ है और देव और दानव दोनों की ही तुम पूज्य हो. तुम सौभाग्य व संतान देने वाली व सब कार्य सिद्ध करने वाली हो. जिस प्रकार तुम्हारी शाखा प्रशाखाएं पृथ्वी पर फैली हुई हैं. उसी तरह हमें भी ऐसी संतान दो जो अजर-अमर हों.

Durva Importance In Lord Ganesh Chaturthi Puja
गणेश चतुर्थी पूजन 2022

इसलिए विघ्न विनाशक गणपति को पसंद है दूर्वा

▪️गणेश जी का सिर हाथी के स्वरुप का है और हाथी को दूर्वा प्रिय होने के कारण भगवान गणेश को भी प्रिय है. हाथी इसे बड़े चाव से खाती है.

▪️दूर्वा में अत्यन्त नम्रता और सरलता का गुण पाया जाता है. यही कारण है कि तूफान में बड़े-बड़े पेड़ अपनी अकड़ के कारण कारण गिर जाते हैं, लेकिन दूर्वा सिर झुका लेती है, इस कारण जस-की-तस खड़ी रहती है. इसीलिए भगवान श्रीगणेश को भी विनम्रता और सरलता बहुत पसन्द है.

▪️ हमारे हिन्दू धर्म में एक पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में अनलासुर नाम का एक दैत्य था, उसके कोप से स्वर्ग और धरती पर त्राहि-त्राहि मची हुई थी. वह मुनि-ऋषियों और मनुष्यों को जिंदा निगल जाता था. धरती और सुर लोक के लोग इस दैत्य के अत्याचारों से दु:खी होकर सभी देवता व ऋषि-मुनि भगवान शंकर के पास कैलाश जा पहुंचे और उनसे अनलासुर का वध करने की प्रार्थना की. भगवान शंकर के निर्देश पर उस समय गणेशजी ने अनलासुर को निगल लिया था. जिससे गणेशजी के पेट में बहुत जलन होने लगी थी. कई प्रकार के उपाय करने के बाद भी जब श्रीगणेश के पेट की जलन शांत नहीं हुई, तब कश्यप ऋषि ने दूर्वा की 21 गांठें बनाकर श्रीगणेश को खाने को दीं. श्रीगणेश के दूर्वा ग्रहण करने पर उनके पेट की जलन शांत होने लगी. ऐसा माना जाता है कि श्रीगणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा तभी से आरंभ हुई है.

इसे भी जरुर पढ़ें : यह है गणेश प्रतिमा स्थापित करने का शुभ मुहूर्त व तरीका, जानिए कैसे हुयी थी गणेश चतुर्थी की शुरुआत

Ganesh Chaturthi Puja 2022
श्रीगणेश की गणेश चतुर्थी पूजा

दो दूर्वा से ही पूजा क्यों

हमारे धार्मिक मान्यताओं के अनुसार श्रीगणेश को पूजा में दो दूर्वा चढ़ाने का विधान है. दो दूर्वा को दूर्वादल भी कहा जाता है. इसके पीछे भी धार्मिक व आध्यात्मिक कारण हैं. कहा जाता है कि मनुष्य सुख-दु:ख भोगने के लिए बार-बार जन्म लेता है. उसी प्रकार दूर्वा अपनी अनेक जड़ों से जन्म लेती है. इस सुख-दु:ख रूपी द्वन्द्व को दो दूर्वा से श्रीगणेश को समर्पित किया जाता है और जीवन में खुशहाली मांगी जाती है.

दूर्वा का एक खास गुण है उसे कितना भी काटो उसके बाद भी उसकी जड़ें अपने आप चारों ओर फैलतीं हैं. इसके लिए नानकदास ने भी लिखा है...

नानक नन्हें बनि रहो, जैसी नन्ही दूब.

सबै घास जरि जायगी, दूब खूब-की-खूब.

श्रीगणपति अथर्वशीर्ष में कहा गया है कि... ‘यो दुर्वांकुरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति ’

अर्थात्... जो दूर्वा से भगवान गणपति का पूजन करता है वह कुबेर के समान हो जाता है.

Durva Importance In Lord Ganesh Chaturthi Puja
गणेश चतुर्थी पूजा पर भोग

इसे भी जरुर पढ़ें : गणेश चतुर्थी 2022 पर जानिए भगवान गणेश से जुड़े ये 11 फैक्ट्स

इस बात का रखें ध्यान

वैसे तो गणेश चतुर्थी पर सभी विघ्नों के नाशक व मनोकामना पूर्ति कर्ता भगवान गणेश की पूजा 21 दूर्वादल व मोदक आदि से की जाती है. पर दूर्वा के चयन को भी खास तौर पर ध्यान देकर करना चाहिए. दुर्वा तीन या पांच फुनगी वाली लेनी चाहिए. इसके लिए 21 दूर्वा को मौली से बांधकर व जल में डुबोकर श्रीगणेश के मस्तक पर इस तरह चढ़ाना चाहिए, जिससे श्रीगणेश को दूर्वा की भीनी सुगंध मिलती रहे.

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नई दिल्ली : सनातन हिन्दू धर्म में देव पूजा में दूर्वा अर्थात् दूब को कुछ जगहों पर सामान्य घास के तौर पर जानते हैं, लेकिन हमारे हिन्दू धर्म में इसको अत्यन्त पवित्र और धर्मोपयोगी वनस्पति माना गया है. देवी दुर्गा को छोड़कर पूजा में प्राय: सभी देवताओं को दूर्वा चढ़ाई जाती है. आपको ज्ञात होगा कि जिस प्रकार शिव पूजन में बेल पत्र अति आवश्यक माना जाता है, उसी प्रकार श्री गणेश की पूजा में दूर्वा (Durva Importance In Lord Ganesh Chaturthi ) अत्यंत आवश्यक पूजन सामग्री है. भगवान गणेश की कोई भी पूजा (Ganesh Chaturthi Puja 2022) बगैर दूर्वा के पूरी ही नहीं मानी जाती है.

कहा जाता है कि दूर्वा दूः+अवम्‌, इन दो शब्दों से बना है. 'दूः' यानी दूरस्थ व 'अवम्‌' यानी वह जो पास लाता है. अर्थात दूर्वा वह है, जो गणेश के दूरस्थ पवित्रकों को पास लाती है.

दूर्वा की उत्पत्ति (Origin Of Durva)

ऐसा मान्यता है कि अमृत की प्राप्ति के लिए देवताओं और देत्यों ने जब क्षीरसागर को मथने के लिए मन्दराचल पर्वत की मथानी बनायी तो भगवान विष्णु ने अपनी जंघा पर हाथ से पकड़कर मन्दराचल को धारण किया. मन्दराचल पर्वत के तेजी से घूमने से रगड़ के कारण भगवान विष्णु के जो रोम उखड़ कर समुद्र में गिरे, वे लहरों द्वारा उछाले जाने से हरे रंग के होकर दूर्वा के रूप में उत्पन्न हुए.

वहीं शास्त्रों के अनुसार नरसिंह अवतार के समय जब भगवान के कुछ बाल पृथ्वी पर गिरे थे, उनसे ही दूर्वा और कुश उत्पन्न हुई थी. कहा जाता है कि दुर्वासा ऋषि की शक्ति भी इसी दूर्वा के कारण ही थी.

दूर्वा को अलग अलग नामों से जाना जाता है. इसे दूब, अमृता, अनंता, महौषधि आदि नामों से पुकारा व पहचना जाता है. हमारे देश में होने वाले सारे मांगलिक कार्यों में इसका उपयोग होता है. हल्दी और दूब के जरिए शादी-ब्याह जैसे शुभ कार्यों में भी कई रस्में निभायी जाती हैं. दूर्वा से हल्दी छिड़कने को सौभाग्य छिड़का जाना कहा जाता है. इसके साथ साथ सातफेरों के पहले जो गठबंधन किया जाता है उस समय वधू के पल्लू और वर के दुपट्टे या धोती में सिक्का (पैसा), पुष्प, हल्दी, दूर्वा और अक्षत, पांच चीजें बांधी जाती हैं. यह संबंधों में अजरता और अमरता के लिए किया जाता है.

Durva Importance In Lord Ganesh Chaturthi Puja
श्रीगणेश की गणेश चतुर्थी पूजा में दूर्वा

दूर्वा है अजर अमर (Durva is Immortal)

कहा जाता है कि जब दूर्वा की उत्पत्ति हुयी तो देवताओं ने समुद्र-मंथन से उत्पन्न अमृत का कलश को उसी के उपर रखा था. उस कलश से जो अमृत की बूंदें छलकीं, उनके स्पर्श से वह दूर्वा अजर-अमर हो गयी. दूर्वा को चाहे कितना भी काटें और उसको हटाने की कोशिश करें, उसकी जड़ें अपने-आप चारों ओर फैलती जाती हैं.

सभी देवताओं ने इस मन्त्र से दूर्वा की पूजा की और तभी से यह देव पूजा में अत्यन्त पवित्र और पूज्य मानी जाने लगी ।

त्वं दूर्वेऽमृतजन्मासि वन्दिता च सुरासुरै:

सौभाग्यं संततिं कृत्वा सर्वकार्यकरी भव.

यथा शाखाप्रशाखाभिर्विस्तृतासि महीतले

तथा ममापि संतानं देहि त्वमजरामरे.

अर्थात्—हे दूर्वे ! तुम्हारा जन्म अमृत से हुआ है और देव और दानव दोनों की ही तुम पूज्य हो. तुम सौभाग्य व संतान देने वाली व सब कार्य सिद्ध करने वाली हो. जिस प्रकार तुम्हारी शाखा प्रशाखाएं पृथ्वी पर फैली हुई हैं. उसी तरह हमें भी ऐसी संतान दो जो अजर-अमर हों.

Durva Importance In Lord Ganesh Chaturthi Puja
गणेश चतुर्थी पूजन 2022

इसलिए विघ्न विनाशक गणपति को पसंद है दूर्वा

▪️गणेश जी का सिर हाथी के स्वरुप का है और हाथी को दूर्वा प्रिय होने के कारण भगवान गणेश को भी प्रिय है. हाथी इसे बड़े चाव से खाती है.

▪️दूर्वा में अत्यन्त नम्रता और सरलता का गुण पाया जाता है. यही कारण है कि तूफान में बड़े-बड़े पेड़ अपनी अकड़ के कारण कारण गिर जाते हैं, लेकिन दूर्वा सिर झुका लेती है, इस कारण जस-की-तस खड़ी रहती है. इसीलिए भगवान श्रीगणेश को भी विनम्रता और सरलता बहुत पसन्द है.

▪️ हमारे हिन्दू धर्म में एक पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में अनलासुर नाम का एक दैत्य था, उसके कोप से स्वर्ग और धरती पर त्राहि-त्राहि मची हुई थी. वह मुनि-ऋषियों और मनुष्यों को जिंदा निगल जाता था. धरती और सुर लोक के लोग इस दैत्य के अत्याचारों से दु:खी होकर सभी देवता व ऋषि-मुनि भगवान शंकर के पास कैलाश जा पहुंचे और उनसे अनलासुर का वध करने की प्रार्थना की. भगवान शंकर के निर्देश पर उस समय गणेशजी ने अनलासुर को निगल लिया था. जिससे गणेशजी के पेट में बहुत जलन होने लगी थी. कई प्रकार के उपाय करने के बाद भी जब श्रीगणेश के पेट की जलन शांत नहीं हुई, तब कश्यप ऋषि ने दूर्वा की 21 गांठें बनाकर श्रीगणेश को खाने को दीं. श्रीगणेश के दूर्वा ग्रहण करने पर उनके पेट की जलन शांत होने लगी. ऐसा माना जाता है कि श्रीगणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा तभी से आरंभ हुई है.

इसे भी जरुर पढ़ें : यह है गणेश प्रतिमा स्थापित करने का शुभ मुहूर्त व तरीका, जानिए कैसे हुयी थी गणेश चतुर्थी की शुरुआत

Ganesh Chaturthi Puja 2022
श्रीगणेश की गणेश चतुर्थी पूजा

दो दूर्वा से ही पूजा क्यों

हमारे धार्मिक मान्यताओं के अनुसार श्रीगणेश को पूजा में दो दूर्वा चढ़ाने का विधान है. दो दूर्वा को दूर्वादल भी कहा जाता है. इसके पीछे भी धार्मिक व आध्यात्मिक कारण हैं. कहा जाता है कि मनुष्य सुख-दु:ख भोगने के लिए बार-बार जन्म लेता है. उसी प्रकार दूर्वा अपनी अनेक जड़ों से जन्म लेती है. इस सुख-दु:ख रूपी द्वन्द्व को दो दूर्वा से श्रीगणेश को समर्पित किया जाता है और जीवन में खुशहाली मांगी जाती है.

दूर्वा का एक खास गुण है उसे कितना भी काटो उसके बाद भी उसकी जड़ें अपने आप चारों ओर फैलतीं हैं. इसके लिए नानकदास ने भी लिखा है...

नानक नन्हें बनि रहो, जैसी नन्ही दूब.

सबै घास जरि जायगी, दूब खूब-की-खूब.

श्रीगणपति अथर्वशीर्ष में कहा गया है कि... ‘यो दुर्वांकुरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति ’

अर्थात्... जो दूर्वा से भगवान गणपति का पूजन करता है वह कुबेर के समान हो जाता है.

Durva Importance In Lord Ganesh Chaturthi Puja
गणेश चतुर्थी पूजा पर भोग

इसे भी जरुर पढ़ें : गणेश चतुर्थी 2022 पर जानिए भगवान गणेश से जुड़े ये 11 फैक्ट्स

इस बात का रखें ध्यान

वैसे तो गणेश चतुर्थी पर सभी विघ्नों के नाशक व मनोकामना पूर्ति कर्ता भगवान गणेश की पूजा 21 दूर्वादल व मोदक आदि से की जाती है. पर दूर्वा के चयन को भी खास तौर पर ध्यान देकर करना चाहिए. दुर्वा तीन या पांच फुनगी वाली लेनी चाहिए. इसके लिए 21 दूर्वा को मौली से बांधकर व जल में डुबोकर श्रीगणेश के मस्तक पर इस तरह चढ़ाना चाहिए, जिससे श्रीगणेश को दूर्वा की भीनी सुगंध मिलती रहे.

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