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घरेलू हिंसा गर्भपात की मंजूरी देने का आधार हो सकती है : हाईकोर्ट - Justice Ujjwal Bhuyan

बंबई उच्च न्यायालय ने 23 सप्ताह की एक गर्भवती महिला को गर्भपात कराने की अनुमति देते हुए कहा कि घरेलू हिंसा का महिला के मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ा है. यह चिकित्सीय रूप से गर्भपात कराने के लिए एक वैध आधार हो सकता है.

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Published : Aug 18, 2021, 8:30 PM IST

मुंबई : न्यायमूर्ति उज्ज्वल भूयां और न्यायमूर्ति माधव जामदार की पीठ ने तीन अगस्त को यह आदेश दिया और इसकी प्रति मंगलवार को उपलब्ध हुई. उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा दिए महिलाओं को प्रजनन के अधिकारों का भी हवाला दिया.

घरेलू हिंसा की पीड़ित 22 वर्षीय महिला की मुंबई के सरकारी जेजे अस्पताल में विशेषज्ञों की एक समिति ने जांच की. समिति ने कहा कि महिला का भ्रूण स्वस्थ है और उसमें कोई असामान्यता नहीं है लेकिन महिला को काफी मानसिक आघात पहुंचा है और गर्भावस्था को जारी रखने से मानसिक परेशानी बढ़ेगी.

महिला ने अपनी याचिका में उच्च न्यायालय को बताया कि वह तलाक ले रही है और वह इस गर्भावस्था को जारी रखना नहीं चाहती. मौजूदा कानून के अनुसार 20 हफ्तों के बाद गर्भपात की अनुमति नहीं दी जाती जब तक कि उससे भ्रूण और मां के स्वास्थ्य को कोई खतरा न हो.

हालांकि कई अपीलीय अदालतों और बंबई उच्च न्यायालय ने भी महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य के आधार पर पहले भी 20 हफ्तों के बाद गर्भपात की अनुमति दी है. मौजूदा मामले में उच्च न्यायालय ने कहा कि अगर गर्भ निरोध के विफल होने से गर्भावस्था को महिला के मानसिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा माना जा सकता है तो क्या यह कहा जा सकता है कि अगर घरेलू हिंसा के बावजूद गर्भावस्था को जारी रखने दिया जाए तो उसके मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान नहीं पहुंचेगा?

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने कहा है कि अगर बच्चे का जन्म होता है तो उसे अपने पति से आवश्यक वित्तीय और भावनात्मक सहयोग नहीं मिलेगा. पीठ ने याचिकाकर्ता महिला को मुंबई के कूपर अस्पताल में गर्भपात कराने की अनुमति दे दी.

गर्भ के बारे में फैसला लेने के लिए महिला आजाद

केरल उच्च न्यायालय ने कहा कि महिला को अपने गर्भ के बारे में फैसला लेने की आजादी है और यह उससे छीनी नहीं जा सकती. अदालत ने इसके साथ ही मानसिक रूप से आंशिक कमजोर महिला को 22 हफ्ते के गर्भ को भ्रूण में विकृति की वजह से उसक समापन की अनुमति दे दी.

अदालत ने कहा कि अगर होने वाले बच्चे में विकृति आने का खतरा हो या उसके दिव्यांग होने की आशंका हो तो उस स्थिति में मां के गर्भपात कराने के अधिकार को अदालत भी मान्यता देती है.

यह भी पढ़ें-न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया पर मीडिया में अटकलें, खबरें बेहद दुर्भाग्यपूर्ण : प्रधान न्यायाधीश

इस मामले में महिला मामूली रूप से मानसिक कमजोर है और उसकी जांच करने वाली मेडिकल टीम ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि भ्रूण क्लिनफेल्टर सिंड्रोम-आनुवंशिकी स्थिति जिसमें होने वाले लड़के में अतिरिक्त एक्स क्रोमोसोम होता है- से ग्रस्त है जिसकी वजह से पैदा होने के बाद उमें कई जटिलताएं उत्पन्न होगी.

(पीटीआई-भाषा)

मुंबई : न्यायमूर्ति उज्ज्वल भूयां और न्यायमूर्ति माधव जामदार की पीठ ने तीन अगस्त को यह आदेश दिया और इसकी प्रति मंगलवार को उपलब्ध हुई. उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा दिए महिलाओं को प्रजनन के अधिकारों का भी हवाला दिया.

घरेलू हिंसा की पीड़ित 22 वर्षीय महिला की मुंबई के सरकारी जेजे अस्पताल में विशेषज्ञों की एक समिति ने जांच की. समिति ने कहा कि महिला का भ्रूण स्वस्थ है और उसमें कोई असामान्यता नहीं है लेकिन महिला को काफी मानसिक आघात पहुंचा है और गर्भावस्था को जारी रखने से मानसिक परेशानी बढ़ेगी.

महिला ने अपनी याचिका में उच्च न्यायालय को बताया कि वह तलाक ले रही है और वह इस गर्भावस्था को जारी रखना नहीं चाहती. मौजूदा कानून के अनुसार 20 हफ्तों के बाद गर्भपात की अनुमति नहीं दी जाती जब तक कि उससे भ्रूण और मां के स्वास्थ्य को कोई खतरा न हो.

हालांकि कई अपीलीय अदालतों और बंबई उच्च न्यायालय ने भी महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य के आधार पर पहले भी 20 हफ्तों के बाद गर्भपात की अनुमति दी है. मौजूदा मामले में उच्च न्यायालय ने कहा कि अगर गर्भ निरोध के विफल होने से गर्भावस्था को महिला के मानसिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा माना जा सकता है तो क्या यह कहा जा सकता है कि अगर घरेलू हिंसा के बावजूद गर्भावस्था को जारी रखने दिया जाए तो उसके मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान नहीं पहुंचेगा?

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने कहा है कि अगर बच्चे का जन्म होता है तो उसे अपने पति से आवश्यक वित्तीय और भावनात्मक सहयोग नहीं मिलेगा. पीठ ने याचिकाकर्ता महिला को मुंबई के कूपर अस्पताल में गर्भपात कराने की अनुमति दे दी.

गर्भ के बारे में फैसला लेने के लिए महिला आजाद

केरल उच्च न्यायालय ने कहा कि महिला को अपने गर्भ के बारे में फैसला लेने की आजादी है और यह उससे छीनी नहीं जा सकती. अदालत ने इसके साथ ही मानसिक रूप से आंशिक कमजोर महिला को 22 हफ्ते के गर्भ को भ्रूण में विकृति की वजह से उसक समापन की अनुमति दे दी.

अदालत ने कहा कि अगर होने वाले बच्चे में विकृति आने का खतरा हो या उसके दिव्यांग होने की आशंका हो तो उस स्थिति में मां के गर्भपात कराने के अधिकार को अदालत भी मान्यता देती है.

यह भी पढ़ें-न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया पर मीडिया में अटकलें, खबरें बेहद दुर्भाग्यपूर्ण : प्रधान न्यायाधीश

इस मामले में महिला मामूली रूप से मानसिक कमजोर है और उसकी जांच करने वाली मेडिकल टीम ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि भ्रूण क्लिनफेल्टर सिंड्रोम-आनुवंशिकी स्थिति जिसमें होने वाले लड़के में अतिरिक्त एक्स क्रोमोसोम होता है- से ग्रस्त है जिसकी वजह से पैदा होने के बाद उमें कई जटिलताएं उत्पन्न होगी.

(पीटीआई-भाषा)

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