नई दिल्ली : बीजेपी के दिग्गज राजनीतिक रणनीतिकार हिमंत बिस्व सरमा ने असम में सत्ता हासिल करने के लिए अपना निर्बाध अभियान जारी रखा. भाजपा ने 60 सीटों पर अपने सहयोगियों असोम गण परिषद और 9 पीपुल्स पार्टी, 6 लिबरल्स (यूपीपीएल) ने अपने सहयोगी दलों (विजयी) को छोड़कर सभी सीटों पर जीत दर्ज की और 126सदस्यीय वाली राज्य विधानसभा में एक आरामदायक बहुमत हासिल करने के बाद सत्ता पर अपना दावा ठोका.
हालांकि 27 मार्च को शुरू होने वाले पहले चरण के मतदान से कुछ दिन पहले एक विरोधी भावना की तीव्र अफवाहें थीं, लेकिन परिणामों ने इन सभी को गलत साबित कर दिया.
हालांकि अफवाहों ने भाजपा नेतृत्व को बड़ा झटका दिया और इसके परिणामस्वरूप, उसने असम में अपना सब कुछ झोंक दिया. असम जिसे पूर्वोत्तर क्षेत्र के प्रवेश द्वार के रूप में देखा जाता है, इस क्षेत्र पर पकड़ बनाए रखना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. इस क्षेत्र के छह राज्यों में भाजपा या भाजपा समर्थित राज्य सरकारें हैं.
असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और त्रिपुरा में भाजपा की अगुवाई वाली सरकारें हैं जबकि भाजपा मेघालय और नागालैंड में सत्ताधारी है.
असम पूर्वोत्तर के लिए प्रवेश द्वार होने के साथ यह भी महत्वपूर्ण है कि भाजपा राज्य में सत्ता बनाए रखे, ताकि पूरे क्षेत्र पर पार्टी की पकड़ स्थिर रहे.
इमानदारी से पांच राज्यों में हुए चुनावों में भाजपा के पास केवल असम में जीत का सबसे यथार्थवादी मौका था.
पुनरावलोकन में विपक्ष की कमजोरियां भाजपा की ताकत से अधिक चमकती दिखाई देती हैं, इस बार भाजपा ने क्या क्लिक किया?
इस बार भाजपा का एक विकास-केंद्रित एजेंडा था, जहां मुफ्त चावल वितरण, लोक ऋण माफी योजना और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण. इस तरह के लोकलुभावन उपायों ने प्रभाव डाला. इससे अलावा लोगों में एक धारणा बनीकि विकास प्राथमिकता बुनियादी ढांचा बनकर उभरा.
दूसरी ओर, बदरुद्दीन अजमल की अगुवाई वाली AIUDF के साथ कांग्रेस का गठबंधन पूर्वधारणा साबित हुआ और ग्रैंड ओल्ड पार्टी ने मुसीबत को अपने गले में डाल लिया.
भाजपा ने अजमल कार्ड को आसन्न खतरे के रूप में पेश किया और मतदाताओं को एहसास करया कि उनका संस्कृति खतरे में है और भाजपा ही उसको बचा सकती है.
ऐसा लगता है कि मुख्य विपक्ष में कोई सामंजस्य नहीं था, और न ही तरुण गोगोई के कोई करिश्माई नेता ने दोनों सहयोगियों के पास था.
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विपक्षी मतों का विभाजन हो गया और विपक्ष द्वारा खराब बूथ स्तर के प्रबंधन को पुनः प्राप्त करने वाले मतदाताओं के बीच कोई उचित समन्वय नहीं था और इसी बीच भाजपा के 'ध्रुवीकरण' के प्रयास ने एक बड़ी भूमिका निभाई.
मूल्य वृद्धि या चाय बागान मजदूरी में अपर्याप्त मुआवजे जैसे ज्वलंत मुद्दों को ठीक से व्यक्त करने में विपक्ष विफल रहा.
नागरिकता संशोधन विधेयक (CAB) के खिलाफ मजबूत भावना, जिसने हाल के दिनों में लगभग पूरे राज्य को हिलाकर रख दिया था, उसे चैनलाइज नहीं किया जा सका और वोटों में तब्दील नहीं किया जा सका, न ही छठी अनुसूची के मुद्दे को चुनावी अभियान को बहुत अधिक नहीं भुनाया जा सका.
संक्षेप में, 2021 असम राज्य चुनाव भगवा दल द्वारा शुद्ध रणनीतिक सफलता की तुलना में राजनीतिक इकाई को एकजुट करने के लिए भाजपा विरोधी विपक्ष की सामूहिक विफलता के रूप में याद रखा जाएगा.