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आबादी का संतुलन सुनिश्चित करने के लिए हो जनसंख्या नीति : डॉ. अव्वाल

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Published : Jul 14, 2021, 4:38 PM IST

Updated : Jul 17, 2021, 12:38 PM IST

असम अल्पसंख्यक विकास बोर्ड के अध्यक्ष सैयद मोमिनुल अव्वाल ने आरोप लगाया है कि राज्य में बांग्लादेशी मूल के मुस्लिम मतदाताओं द्वारा पलायन करके कुछ विधानसभा क्षेत्रों में बहुमत हासिल करने के लिए एक ठोस प्रयास किया जा सकता है, जहां उनकी संख्या पहले से ही अधिक है और वे चुनावी संतुलन को झुका सकते हैं. पढ़ें वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट..

जनसंख्या नीति
जनसंख्या नीति

नई दिल्ली : असम सरकार ने हाल ही में आदिवासी और अन्य स्वदेशी समुदायों के लोगों की संस्कृति और प्रथाओं की रक्षा के लिए एक नए विभाग की स्थापना को मंजूरी दी है, क्योंकि मुख्य रूप से पश्चिमी और मध्य असम में राज्य के मूल निवासियों को ऐसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.

असम अल्पसंख्यक विकास बोर्ड (एएमडीबी) के अध्यक्ष डॉ. सैयद मोमिनुल अव्वाल (Dr Syed Muminul Aowal) ने आरोप लगाया है कि जनसंख्या नीति आबादी को कम करने और परिवार के आकार को सीमित करने के लिए नहीं, बल्कि जनसंख्या संतुलन सुनिश्चित करने के लिए होनी चाहिए.

डॉ. अव्वाल ने ईटीवी भारत को बताया कि असम में वर्तमान में जनसंख्या में असमानता है.

उन्होंने कहा, असम में कई स्वदेशी समुदाय हैं, जिन्हें अपनी जनसंख्या को नियंत्रित करने के बजाय बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. उदाहरण के लिए, हाजोंग (Hajong community) या देवरी आदिवासी समुदायों (Dewri tribal communities) को लें. हाजोंग समुदाय ने पिछले 150 वर्षों में कोई जनसंख्या वृद्धि नहीं देखी है. असम में इनकी संख्या एक लाख से भी कम है. वहीं, असम के 12 जिलों में फैले देवरी आदिवासी समुदाय की संख्या दो लाख से अधिक नहीं है. उनका आकार लगभग स्थिर है.

असम अल्पसंख्यक विकास बोर्ड की स्थापना 1985 में राज्य सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण और विकास विभाग के अंतर्गत की गई थी. इसका उद्देश्य आय सृजन, कौशल विकास और स्वरोजगार के लिए विभिन्न योजनाओं के तहत असम के अल्पसंख्यक वर्गों को सशक्त बनाकर उनका उत्थान करना था.

एएमडीबी प्रमुख ने कहा कि बांग्लादेशी मूल के मुस्लिम मतदाताओं के प्रवास का एक पैटर्न देखा गया है, वे अतिरिक्त आबादी वाले निर्वाचन क्षेत्रों से आस-पास के क्षेत्रों में चले जाते हैं, जहां एक अतिरिक्त संख्या उनके पक्ष में चुनावी संतुलन को झुकाने में मदद करती है.

डॉ अव्वाल ने बारपेटा लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली दो विधानसभा सीटों- जानिया और बाघबोर का उदाहरण दिया.

उन्होंने कहा, भले ही इन दो सीटों से 1.5 लाख मतदाता बाहर कर दिए जाएं, फिर भी बांग्लादेशी मूल के मुस्लिम उम्मीदवार इन दो सीटों से जीतेंगे. अतिरिक्त मतदाता अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में चले जाते हैं. इसी तरह का मामला- गोवालपारा पूर्व और रूपोही सीट का है, भले ही बड़ी संख्या में बांग्लादेशी मूल के मुस्लिम मतदाता इन सीटों से पलायन करते हों, फिर भी विजेता उनके समुदायों से होगा.

उन्होंने आगे कहा कि अगर हमें असम के मूल निवासियों की रक्षा करनी है, तो हमें इस अंतर-निर्वाचन क्षेत्र के प्रवास को रोकना होगा, ताकि बांग्लादेशी मूल के मुस्लिम मतदाता केवल 28-30 सीटों तक ही सीमित रहें.

बता दें कि असम में लगभग 37 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है, जो देश का सबसे अधिक प्रतिशत है.

असम में लगभग 1.6 करोड़ मुसलमान
ऐसा माना जाता है कि असम में लगभग 1.6 करोड़ मुसलमान हैं, जिनमें से लगभग 1.2 करोड़ बांग्लादेशी मूल के मुसलमान होंगे, जो अलग-अलग समय में असम में बसे थे. स्वदेशी मुस्लिम समुदाय की आबादी 45 लाख से अधिक नहीं है, जिससे डॉ. अव्वाल आते हैं.

डॉ अव्वाल कहते हैं कि असम के मूल निवासी परिवारों में बच्चों की संख्या आमतौर पर एक या दो होती है, शायद ही कभी तीन बच्चे होते हैं. यदि यह प्रवृत्ति जारी रहती है और मूल निवासियों के लिए सुरक्षा उपाय नहीं किए जाते हैं, तो 2041 के चुनाव में असम का मुख्यमंत्री बांग्लादेशी-मुस्लिम मूल का व्यक्ति होगा.

एएमडीबी अध्यक्ष ने असम समझौते (Assam Accord) के क्लॉज 6 प्रावधान का उपयोग कर मूल निवासियों के लिए सीटों के आरक्षण का समर्थन किया, जो संवैधानिक सुरक्षा उपायों का प्रावधान करता है.

यह भी पढ़ें- योगी के जनसंख्या नियंत्रण के खिलाफ नीतीश

हालांकि, डॉ. अव्वाल इस बात को स्वीकार करते हैं कि मूल निवासियों की पहचान करना काफी मुश्किल कार्य है. उन्होंने कहा, अब तक इस बात की कोई स्पष्टता या उचित परिभाषा नहीं है कि मूल असमिया कौन हैं. स्वदेशी मुसलमान की पहचान करने का काम और भी कठिन है, क्योंकि असम के मुसलमानों में एकरूपता नहीं है.

उन्होंने आगे कहा, 'यहां तक ​​कि असम में बांग्लादेशी मूल के मुसलमानों के लिए भी कई श्रेणियां हैं. कुछ अविभाजित भारत में 1947 से पहले आए थे- जैसे पश्चिमी असम के कई स्थानों में और कुछ बाद में आए. उनका मामला कुछ कोच-राजबोंगशी (Koch-Rajbongshi), हाजोंग और बोडो समुदाय के समान है, जो बांग्लादेश में भी हैं. इस श्रेणी को अप्रवासी नहीं कहा जा सकता है, लेकिन बांग्लादेशी मूल के हैं.'

नई दिल्ली : असम सरकार ने हाल ही में आदिवासी और अन्य स्वदेशी समुदायों के लोगों की संस्कृति और प्रथाओं की रक्षा के लिए एक नए विभाग की स्थापना को मंजूरी दी है, क्योंकि मुख्य रूप से पश्चिमी और मध्य असम में राज्य के मूल निवासियों को ऐसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.

असम अल्पसंख्यक विकास बोर्ड (एएमडीबी) के अध्यक्ष डॉ. सैयद मोमिनुल अव्वाल (Dr Syed Muminul Aowal) ने आरोप लगाया है कि जनसंख्या नीति आबादी को कम करने और परिवार के आकार को सीमित करने के लिए नहीं, बल्कि जनसंख्या संतुलन सुनिश्चित करने के लिए होनी चाहिए.

डॉ. अव्वाल ने ईटीवी भारत को बताया कि असम में वर्तमान में जनसंख्या में असमानता है.

उन्होंने कहा, असम में कई स्वदेशी समुदाय हैं, जिन्हें अपनी जनसंख्या को नियंत्रित करने के बजाय बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. उदाहरण के लिए, हाजोंग (Hajong community) या देवरी आदिवासी समुदायों (Dewri tribal communities) को लें. हाजोंग समुदाय ने पिछले 150 वर्षों में कोई जनसंख्या वृद्धि नहीं देखी है. असम में इनकी संख्या एक लाख से भी कम है. वहीं, असम के 12 जिलों में फैले देवरी आदिवासी समुदाय की संख्या दो लाख से अधिक नहीं है. उनका आकार लगभग स्थिर है.

असम अल्पसंख्यक विकास बोर्ड की स्थापना 1985 में राज्य सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण और विकास विभाग के अंतर्गत की गई थी. इसका उद्देश्य आय सृजन, कौशल विकास और स्वरोजगार के लिए विभिन्न योजनाओं के तहत असम के अल्पसंख्यक वर्गों को सशक्त बनाकर उनका उत्थान करना था.

एएमडीबी प्रमुख ने कहा कि बांग्लादेशी मूल के मुस्लिम मतदाताओं के प्रवास का एक पैटर्न देखा गया है, वे अतिरिक्त आबादी वाले निर्वाचन क्षेत्रों से आस-पास के क्षेत्रों में चले जाते हैं, जहां एक अतिरिक्त संख्या उनके पक्ष में चुनावी संतुलन को झुकाने में मदद करती है.

डॉ अव्वाल ने बारपेटा लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली दो विधानसभा सीटों- जानिया और बाघबोर का उदाहरण दिया.

उन्होंने कहा, भले ही इन दो सीटों से 1.5 लाख मतदाता बाहर कर दिए जाएं, फिर भी बांग्लादेशी मूल के मुस्लिम उम्मीदवार इन दो सीटों से जीतेंगे. अतिरिक्त मतदाता अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में चले जाते हैं. इसी तरह का मामला- गोवालपारा पूर्व और रूपोही सीट का है, भले ही बड़ी संख्या में बांग्लादेशी मूल के मुस्लिम मतदाता इन सीटों से पलायन करते हों, फिर भी विजेता उनके समुदायों से होगा.

उन्होंने आगे कहा कि अगर हमें असम के मूल निवासियों की रक्षा करनी है, तो हमें इस अंतर-निर्वाचन क्षेत्र के प्रवास को रोकना होगा, ताकि बांग्लादेशी मूल के मुस्लिम मतदाता केवल 28-30 सीटों तक ही सीमित रहें.

बता दें कि असम में लगभग 37 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है, जो देश का सबसे अधिक प्रतिशत है.

असम में लगभग 1.6 करोड़ मुसलमान
ऐसा माना जाता है कि असम में लगभग 1.6 करोड़ मुसलमान हैं, जिनमें से लगभग 1.2 करोड़ बांग्लादेशी मूल के मुसलमान होंगे, जो अलग-अलग समय में असम में बसे थे. स्वदेशी मुस्लिम समुदाय की आबादी 45 लाख से अधिक नहीं है, जिससे डॉ. अव्वाल आते हैं.

डॉ अव्वाल कहते हैं कि असम के मूल निवासी परिवारों में बच्चों की संख्या आमतौर पर एक या दो होती है, शायद ही कभी तीन बच्चे होते हैं. यदि यह प्रवृत्ति जारी रहती है और मूल निवासियों के लिए सुरक्षा उपाय नहीं किए जाते हैं, तो 2041 के चुनाव में असम का मुख्यमंत्री बांग्लादेशी-मुस्लिम मूल का व्यक्ति होगा.

एएमडीबी अध्यक्ष ने असम समझौते (Assam Accord) के क्लॉज 6 प्रावधान का उपयोग कर मूल निवासियों के लिए सीटों के आरक्षण का समर्थन किया, जो संवैधानिक सुरक्षा उपायों का प्रावधान करता है.

यह भी पढ़ें- योगी के जनसंख्या नियंत्रण के खिलाफ नीतीश

हालांकि, डॉ. अव्वाल इस बात को स्वीकार करते हैं कि मूल निवासियों की पहचान करना काफी मुश्किल कार्य है. उन्होंने कहा, अब तक इस बात की कोई स्पष्टता या उचित परिभाषा नहीं है कि मूल असमिया कौन हैं. स्वदेशी मुसलमान की पहचान करने का काम और भी कठिन है, क्योंकि असम के मुसलमानों में एकरूपता नहीं है.

उन्होंने आगे कहा, 'यहां तक ​​कि असम में बांग्लादेशी मूल के मुसलमानों के लिए भी कई श्रेणियां हैं. कुछ अविभाजित भारत में 1947 से पहले आए थे- जैसे पश्चिमी असम के कई स्थानों में और कुछ बाद में आए. उनका मामला कुछ कोच-राजबोंगशी (Koch-Rajbongshi), हाजोंग और बोडो समुदाय के समान है, जो बांग्लादेश में भी हैं. इस श्रेणी को अप्रवासी नहीं कहा जा सकता है, लेकिन बांग्लादेशी मूल के हैं.'

Last Updated : Jul 17, 2021, 12:38 PM IST
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