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नए नियमों के सहारे डिजिटल मीडिया पर निगरानी सवालों के घेरे में - एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया

नए नियमों के नाम पर डिजिटल मीडिया की निगरानी को लेकर सवाल उठना लाजिमी है. सरकार के पास पहले से ही कई कानून हैं जो असामाजिक तत्वों को इंटरनेट पर अराजक तरीकों का सहारा लेने से रोक सकते हैं. ऐसे नए सरकार को नए नियम वापस लेकर मीडिया की स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए.

निगरानी सवालों के घेरे में
निगरानी सवालों के घेरे में
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Published : Mar 9, 2021, 9:51 AM IST

हैदराबाद : सर्वोच्च न्यायालय ने लगभग छह साल पहले सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम की धारा 66 ए पर रोक लगा दी थी. शीर्ष कोर्ट ने कहा था कि यह अत्यधिक और अनुचित रूप से मुक्त भाषण और अभिव्यक्ति के अधिकार पर आक्रमण करता है.

आदालत ने अपने आदेश में भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के महत्व की पुष्टि की थी. हालांकि कुछ प्रतिबंधों के साथ आईटी अधिनियम की धारा 69 ए और 79 की निरंतरता की अनुमति दी थी.

एक विवादास्पद टीवी बहस के दौरान पिछले सितंबर में कहा गया था कि डिजिटल मीडिया पूरी तरह से नियंत्रण से बाहर हो गया है. मीडिया को नियंत्रित किया जाना चाहिए. दो हफ्ते पहले इसी इरादे से काम शुरू कर दिया गया.

सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के 69A के तहत और ज्यादा कठोर नियम बनाए हैं. 'निरंकुश मीडिया' को नियंत्रित करने के नाम पर सरकार ने मीडिया पर निगरानी शुरू कर दी.

सरकारी कार्रवाई पर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने चिंता जताई. प्रतिक्रिया देते हुए एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने कहा है कि धारा 69 ए के तहत नए नियम को लेकर वह चिंतित हैं क्योंकि यह डिजिटल मीडिया पर अनुचित प्रतिबंध लगाएगा. साथ ही सरकार से नियमों को वापस लेने की मांग की.

केंद्र कहता है कि नियमों को लागू करने की शक्तियां इसमें निहित होंगी. हालांकि वे कुछ भी कहें बावजूद इसके लगातार सरकारों ने अपने मीडिया प्लेटफॉर्म को हमेशा अपने पक्ष में रखने की कोशिश की है. लगभग 12 साल पहले तत्कालीन यूपीए सरकार को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए सामग्री कोड पेश करने की कोशिश करते समय झटका लगा था.

डिजिटल मीडिया के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट को दिए अपने हलफनामे में केंद्र की अड़ियल सरकार ने कहा है कि 'डिजिटल मीडिया पर पूरी तरह से कोई जांच पड़ताल नहीं है इससे न केवल हिंसा बल्कि जहरीली घृणा फैलती है. यहां तक कि आतंकवाद भी. यह व्यक्तियों और संस्थानों की छवि को धूमिल करने में सक्षम है.'

सरकार ने किसी भी स्तर पर किसी से परामर्श के बिना डिजिटल मीडिया नैतिकता संहिता तैयार की है. सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और आचार संहिता) नियम 2021, डिजिटल मीडिया के लिए तीन स्तरीय शिकायत निवारण प्रणाली लागू होगी.

शीर्ष स्तर पर विभिन्न मंत्रालयों के प्रतिनिधियों की एक सरकारी समिति होगी. चूंकि यह समिति अपनी अधिनायकवादी शक्तियों का प्रयोग करेगी ऐसे में यह उसी तरह है जैसे किसी 'सांप की छाया में मेंढक' का होना.

डिजिटल मीडिया देश के युवाओं के विचारों का प्रतिनिधित्व करने वाला भविष्य का मंच है. ऐसे में सरकारी नियंत्रण के हाथों में पड़ने वाले ऐसे मीडिया से भला क्या हो सकता है? पिछले कई दशकों से देश का समाचार मीडिया संविधान द्वारा निर्धारित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमा के भीतर कार्य कर रहा है.

इंटरनेट आधारित समाचार मीडिया पर लगाए गए नए प्रतिबंध देश के व्यापक हितों को नुकसान पहुंचाएंगे. पहले से ही कई कानून हैं जो असामाजिक तत्वों को इंटरनेट पर अराजक तरीकों का सहारा लेने से रोक सकते हैं. ऐसे में नए नियम असंवैधानिक हैं. केंद्र को उन्हें वापस लेकर मीडिया की स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए.

हैदराबाद : सर्वोच्च न्यायालय ने लगभग छह साल पहले सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम की धारा 66 ए पर रोक लगा दी थी. शीर्ष कोर्ट ने कहा था कि यह अत्यधिक और अनुचित रूप से मुक्त भाषण और अभिव्यक्ति के अधिकार पर आक्रमण करता है.

आदालत ने अपने आदेश में भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के महत्व की पुष्टि की थी. हालांकि कुछ प्रतिबंधों के साथ आईटी अधिनियम की धारा 69 ए और 79 की निरंतरता की अनुमति दी थी.

एक विवादास्पद टीवी बहस के दौरान पिछले सितंबर में कहा गया था कि डिजिटल मीडिया पूरी तरह से नियंत्रण से बाहर हो गया है. मीडिया को नियंत्रित किया जाना चाहिए. दो हफ्ते पहले इसी इरादे से काम शुरू कर दिया गया.

सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के 69A के तहत और ज्यादा कठोर नियम बनाए हैं. 'निरंकुश मीडिया' को नियंत्रित करने के नाम पर सरकार ने मीडिया पर निगरानी शुरू कर दी.

सरकारी कार्रवाई पर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने चिंता जताई. प्रतिक्रिया देते हुए एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने कहा है कि धारा 69 ए के तहत नए नियम को लेकर वह चिंतित हैं क्योंकि यह डिजिटल मीडिया पर अनुचित प्रतिबंध लगाएगा. साथ ही सरकार से नियमों को वापस लेने की मांग की.

केंद्र कहता है कि नियमों को लागू करने की शक्तियां इसमें निहित होंगी. हालांकि वे कुछ भी कहें बावजूद इसके लगातार सरकारों ने अपने मीडिया प्लेटफॉर्म को हमेशा अपने पक्ष में रखने की कोशिश की है. लगभग 12 साल पहले तत्कालीन यूपीए सरकार को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए सामग्री कोड पेश करने की कोशिश करते समय झटका लगा था.

डिजिटल मीडिया के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट को दिए अपने हलफनामे में केंद्र की अड़ियल सरकार ने कहा है कि 'डिजिटल मीडिया पर पूरी तरह से कोई जांच पड़ताल नहीं है इससे न केवल हिंसा बल्कि जहरीली घृणा फैलती है. यहां तक कि आतंकवाद भी. यह व्यक्तियों और संस्थानों की छवि को धूमिल करने में सक्षम है.'

सरकार ने किसी भी स्तर पर किसी से परामर्श के बिना डिजिटल मीडिया नैतिकता संहिता तैयार की है. सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और आचार संहिता) नियम 2021, डिजिटल मीडिया के लिए तीन स्तरीय शिकायत निवारण प्रणाली लागू होगी.

शीर्ष स्तर पर विभिन्न मंत्रालयों के प्रतिनिधियों की एक सरकारी समिति होगी. चूंकि यह समिति अपनी अधिनायकवादी शक्तियों का प्रयोग करेगी ऐसे में यह उसी तरह है जैसे किसी 'सांप की छाया में मेंढक' का होना.

डिजिटल मीडिया देश के युवाओं के विचारों का प्रतिनिधित्व करने वाला भविष्य का मंच है. ऐसे में सरकारी नियंत्रण के हाथों में पड़ने वाले ऐसे मीडिया से भला क्या हो सकता है? पिछले कई दशकों से देश का समाचार मीडिया संविधान द्वारा निर्धारित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमा के भीतर कार्य कर रहा है.

इंटरनेट आधारित समाचार मीडिया पर लगाए गए नए प्रतिबंध देश के व्यापक हितों को नुकसान पहुंचाएंगे. पहले से ही कई कानून हैं जो असामाजिक तत्वों को इंटरनेट पर अराजक तरीकों का सहारा लेने से रोक सकते हैं. ऐसे में नए नियम असंवैधानिक हैं. केंद्र को उन्हें वापस लेकर मीडिया की स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए.

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