देहरादून: उत्तराखंड में धामी सरकार ने पहली ही कैबिनेट बैठक में यूनिफॉर्म सिविल कोड के विषय पर मुहर लगा दी है. आने वाले दिनों में इस मामले पर गहन अध्ययन के लिए कमेटी का गठन किया जाएगा. धामी सरकार के इस कदम से एक बार फिर यूनिफॉर्म सिविल कोड पर गंभीर बहस छिड़ गई है. हालांकि पूर्व में भी इस पर चर्चा हुई थी और इस मामले को लॉ कमीशन को भी भेजा गया था, लेकिन लॉ कमीशन की कोई रिपोर्ट अभी तक नहीं आयी है. इसपर जानकारों की भी मिली जुली राय है.
समान नागरिक संहिता देश में कोई नया विषय नहीं है. भाजपा इसे कई बार अपने घोषणापत्र में भी शामिल कर चुकी है. इसके बावजूद भी अब तक देश में समान नागरिक संहिता लागू नहीं हो पाई है. एक बार फिर यह मामला बहस का मुद्दा बन गया है. राज्य सरकार की इस कदम के बाद फिर इस मामले में कानूनी पेचीदगियों से लेकर धार्मिक अधिकारों तक पर चर्चा शुरू हो गई है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विधानसभा चुनाव-2022 से ठीक पहले प्रदेश में समान नागरिक संहिता लागू करने का वादा किया था. इसी के तहत पहली ही कैबिनेट में इस मामले में समिति गठित करने का निर्णय लिया है. कैबिनेट के सदस्यों ने रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाने की संस्तुति दी है.
क्या राज्य सरकार को यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने का है अधिकार: समान नागरिक संहिता पर जब भी बहस हुई है तो इस मामले में कानूनी पेचीदगियों का हमेशा जिक्र हुआ है. कानून के जानकारों की इस पर मिली जुली प्रतिक्रिया है. कुछ जानकार कहते हैं कि राज्य सरकारों के पास इसको लागू करने का अधिकार नहीं है. परंतु अधिकतर जानकार राज्य सरकारों के पास अधिकार होने की बात करते हैंं. दरअसल, संविधान के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता का जिक्र है. इसपर वरिष्ठ अधिवक्ता चंद्रशेखर तिवारी कहते हैं कि शादी, तलाक और उत्तराधिकार और संपत्ति अधिकारों जैसे मामले संविधान की संयुक्त सूची में आते हैं, इसलिए केंद्र के साथ साथ राज्य सरकार भी इससे जुड़े कानून बनाने का अधिकार रखती हैं.
चंद्रशेखर तिवारी कहते हैं कि क्योंकि अब तक भारत सरकार ने अब तक इस पर कोई कानून नहीं बनाया है इसीलिए राज्य सरकार अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए इस कानून को बना सकती है. लेकिन जैसि ही भारत सरकार इस पर कानून बनाती है तो राज्य सरकार द्वारा बनाए गए कानून उसमें मर्ज कर दिया जाएगा. इससे धर्म विशेष के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हनन हो सकता है. इसीलिए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध करता रहता है. उनका कहना है कि समुदाय विशेष पर कानून ठोकने की बात कही जा रही है. इससे अनुच्छेद 25 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हनन होगा. एक धर्म विशेष के कानूनों को बाकी धर्मों पर थोप दिया जाएगा. हालांकि वरिष्ठ अधिवक्ता संजीव कहते हैं कि समान नागरिक संहिता किसी भी धर्म के अधिकारों पर कोई भी हनन नहीं कर सकती. क्योंकि इसका निर्धारण करने से पहले इस पर पूरा विचार और राय ली जाएगी. लिहाजा, किसी को भी इस पर किसी तरह का कोई संशय नहीं होना चाहिए.
गोवा में पहले से ही यूनिफॉर्म सिविल कोड: उधर, गोवा में पहले से ही यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है. इसको लेकर भी अलग-अलग बात कही जाती है. बताया जाता है कि 1961 से ही गोवा में इसे लागू कर दिया गया था, जबकि इसके बाद गोवा भारत का हिस्सा बना था. लिहाजा, यह कानून यहां पहले से ही लागू है. समान नागरिक संहिता के मामले में जानकार भी कहते हैं कि इससे सभी तरह के कानूनों को एक समान करने में मदद मिलेगी. सभी धर्मों के लोगों पर वही कानून लागू होगा. इससे खासतौर पर शादी, तलाक, प्रॉपर्टी और गोद लेने जैसे मामले पर एक तरह का कानून बन सकेगा.
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राजनीति हुई तेज: इस मामले में पुष्कर सिंह धामी ने जो कदम उठाया है उससे उन्होंने अपने उस वादे को पूरा करने की कोशिश की है, जो उन्होंने चुनाव से ठीक पहले किया था. उन्होंने इस फैसले के जरिए एक खास राजनीतिक संदेश देने की भी कोशिश की है. हालांकि, इस मामले पर राजनीति भी तेज हो गई है. कांग्रेस की तरफ से प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने कहा प्रदेश सरकार को आज बेरोजगारों की चिंता करनी चाहिए लेकिन हमारी सरकार जिन्हें लोगों ने चुना है. उन्होंने बेरोजगारी को मुद्दा चुनने के बजाए समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दे को प्राथमिकता देने का फैसला किया है.