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श्रद्धालु देवप्रयाग के संगम में पितरों का कर रहे तर्पण, श्रीराम ने पिता का यहीं किया था पिंडदान - श्रीराम ने पिता का यहीं किया था पिंडदान

20 सितंबर से शुरू पितृपक्ष के दौरान संगम नगरी देवप्रयाग में प्रदेश के साथ-साथ अन्य प्रदेशों से आए श्रद्धालु भी अपने पूर्वजों का तर्पण देवप्रयाग संगम स्थली पर कर रहे हैं. मान्यता है कि भगवान राम ने देवप्रयाग में अपने पिता महाराज दशरथ का पिंडदान किया था.

पितृपक्ष
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Published : Sep 23, 2021, 7:36 AM IST

देवप्रयागः पितृपक्ष सोमवार यानि 20 सितंबर से शुरू हो गया है. इस बार पितृपक्ष अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से शुरू होकर अश्विनी मास की अमावस्या तिथि यानि 6 अक्टूबर तक रहेगा. हिंदू मान्यता के मुताबिक पूरी श्रद्धा भाव के साथ पितरों की पूजा अर्चना और तर्पण (श्राद्ध) करने से मृत्यु के देवता यमराज श्राद्ध पक्ष में जीवात्मा को मुक्ति प्रदान कर देते हैं.

आज पितृ पक्ष का चौथा दिन है. साथ ही चारधाम यात्रा भी शुरू हो गई है. संगम नगरी देवप्रयाग में प्रदेश के साथ-साथ अन्य प्रदेशों से आए श्रद्धालु भी अपने पूर्वजों का तर्पण देवप्रयाग संगम स्थली पर दे रहे हैं. मान्यता है कि भगवान राम ने देवप्रयाग में अपने पिता महाराज दशरथ का पिंडदान किया था. साथ ही विशेश्वर शिव लिंग की भी स्थापना की थी. 6 अक्टूबर तक चलने वाले पितृ पक्ष को लेकर प्रशासन ने भी अपनी पूरी तैयारी की हुई है.

पितृ पक्ष के दौरान माना जाता है कि देवताओं से पहले पितरों की पूजा-अर्चना करना परम फलदाई होता है. पितृपक्ष में पूर्वजों की आत्मशांति के 16 दिनों तक नियम पूर्वक विधि विधान से पूजा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं. पितृ पूजा के इस विधि विधान के बारे में वायु पुराण, मत्स्य पुराण, गरुण पुराण और विष्णु पुराण सहित अन्य शास्त्रों में भी श्राद्ध के महत्व को बताया गया है.

ये भी पढ़ें - Pitru Paksha 2021 : जानिए पितरों के पूजन की खास विधि और तिथियां

हत्या दोषमुक्त के लिए भगवान राम ने किया तपः आचार्य आनंद नौटियाल बताते हैं कि पितृ पक्ष ऋण चुकाने की प्रक्रिया है, इन विधियों को करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. आचार्य आनंद नौटियाल बताते हैं कि देवप्रयाग में पितृ तर्पण का बहुत महत्व है. उन्होंने कहा कि स्कंद पुराण के मुताबिक त्रेता युग में ब्रह्महत्या (रावण की हत्या) करने पर दोष मुक्ति के लिए भगवान श्री राम ने तप किया था. साथ में विशेश्वर शिव लिंग की भी स्थापना की. इस कारण देवप्रयाग में श्रीराम के रघुनाथ मंदिर की भी स्थापना की गई. रघुनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी आज भी अलकनंदा-भागीरथी नदी के इस संगम स्थान पर राजा दशरथ का पिंडदान करते हैं.

तर्पण के दौरान करें क्षमा याचनाः पितरों के तर्पण के दौरान क्षमा याचना अवश्य करें. किसी भी कारण हुई गलती या पश्चाताप के लिए आप पितरों से क्षमा मांग सकते हैं. पितरों की तस्वीर पर तिलक कर रोजाना नियमित रूप से संध्या के समय तिल के तेल का दीपक अवश्य प्रज्वलित करें, साथ ही अपने परिवार सहित उनके श्राद्ध तिथि के दिन क्षमा याचना कर गलतियों का प्रायश्चित कर अपने पितरों को प्रसन्न कर सकते हैं.

ये भी पढ़ें - Pitru Paksh 2021: पितृ पक्ष आज से शुरू, सुख-समृद्धि और संतान के लिए पितरों को ऐसे करें खुश, पढ़ें पौराणिक कथा

इन बातों का रखें ख्यालः पितृपक्ष में अपने पितरों के श्राद्ध के दौरान विशेष तौर पर ख्याल रखने की जरूरत है. जब आप श्राद्ध कर्म कर रहे हों तो कोई उत्साहवर्धक कार्य नहीं करें. घर में कोई शुभ कार्य नहीं करें. इसके अलावा मांस, मदिरा के साथ-साथ तामसी भोजन का भी सेवन परहेज करें. श्राद्ध में पितरों को नियमित भावभीनी श्रद्धांजलि का समय होता है, परिवार के प्रत्येक सदस्य द्वारा दिवंगत आत्मा हेतु दान अवश्य करें. जरूरतमंद व्यक्तियों को भोजन और वस्त्र का दान करें.

वायु पुराण के अनुसारः नारायणी शिला मंदिर के बारे में कहा जाता है कि गयासुर नाम का राक्षस देवलोक से भगवान विष्णु यानी नारायण का श्री विग्रह लेकर भागा था. भागते हुए नारायण के विग्रह का धड़ यानी मस्तक वाला हिस्सा बदरीनाथ धाम के बह्मकपाली नाम के स्थान पर गिरा. उनके कंठ से नाभि तक का हिस्सा हरिद्वार के नारायणी मंदिर में गिरा, जबकि चरण गया में गिरा. जहां नारायण के चरणों में गिरकर ही गयासुर की मौत हो गई. यानी वहीं, उसको मोक्ष प्राप्त हुआ था.

देवप्रयागः पितृपक्ष सोमवार यानि 20 सितंबर से शुरू हो गया है. इस बार पितृपक्ष अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से शुरू होकर अश्विनी मास की अमावस्या तिथि यानि 6 अक्टूबर तक रहेगा. हिंदू मान्यता के मुताबिक पूरी श्रद्धा भाव के साथ पितरों की पूजा अर्चना और तर्पण (श्राद्ध) करने से मृत्यु के देवता यमराज श्राद्ध पक्ष में जीवात्मा को मुक्ति प्रदान कर देते हैं.

आज पितृ पक्ष का चौथा दिन है. साथ ही चारधाम यात्रा भी शुरू हो गई है. संगम नगरी देवप्रयाग में प्रदेश के साथ-साथ अन्य प्रदेशों से आए श्रद्धालु भी अपने पूर्वजों का तर्पण देवप्रयाग संगम स्थली पर दे रहे हैं. मान्यता है कि भगवान राम ने देवप्रयाग में अपने पिता महाराज दशरथ का पिंडदान किया था. साथ ही विशेश्वर शिव लिंग की भी स्थापना की थी. 6 अक्टूबर तक चलने वाले पितृ पक्ष को लेकर प्रशासन ने भी अपनी पूरी तैयारी की हुई है.

पितृ पक्ष के दौरान माना जाता है कि देवताओं से पहले पितरों की पूजा-अर्चना करना परम फलदाई होता है. पितृपक्ष में पूर्वजों की आत्मशांति के 16 दिनों तक नियम पूर्वक विधि विधान से पूजा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं. पितृ पूजा के इस विधि विधान के बारे में वायु पुराण, मत्स्य पुराण, गरुण पुराण और विष्णु पुराण सहित अन्य शास्त्रों में भी श्राद्ध के महत्व को बताया गया है.

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हत्या दोषमुक्त के लिए भगवान राम ने किया तपः आचार्य आनंद नौटियाल बताते हैं कि पितृ पक्ष ऋण चुकाने की प्रक्रिया है, इन विधियों को करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. आचार्य आनंद नौटियाल बताते हैं कि देवप्रयाग में पितृ तर्पण का बहुत महत्व है. उन्होंने कहा कि स्कंद पुराण के मुताबिक त्रेता युग में ब्रह्महत्या (रावण की हत्या) करने पर दोष मुक्ति के लिए भगवान श्री राम ने तप किया था. साथ में विशेश्वर शिव लिंग की भी स्थापना की. इस कारण देवप्रयाग में श्रीराम के रघुनाथ मंदिर की भी स्थापना की गई. रघुनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी आज भी अलकनंदा-भागीरथी नदी के इस संगम स्थान पर राजा दशरथ का पिंडदान करते हैं.

तर्पण के दौरान करें क्षमा याचनाः पितरों के तर्पण के दौरान क्षमा याचना अवश्य करें. किसी भी कारण हुई गलती या पश्चाताप के लिए आप पितरों से क्षमा मांग सकते हैं. पितरों की तस्वीर पर तिलक कर रोजाना नियमित रूप से संध्या के समय तिल के तेल का दीपक अवश्य प्रज्वलित करें, साथ ही अपने परिवार सहित उनके श्राद्ध तिथि के दिन क्षमा याचना कर गलतियों का प्रायश्चित कर अपने पितरों को प्रसन्न कर सकते हैं.

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इन बातों का रखें ख्यालः पितृपक्ष में अपने पितरों के श्राद्ध के दौरान विशेष तौर पर ख्याल रखने की जरूरत है. जब आप श्राद्ध कर्म कर रहे हों तो कोई उत्साहवर्धक कार्य नहीं करें. घर में कोई शुभ कार्य नहीं करें. इसके अलावा मांस, मदिरा के साथ-साथ तामसी भोजन का भी सेवन परहेज करें. श्राद्ध में पितरों को नियमित भावभीनी श्रद्धांजलि का समय होता है, परिवार के प्रत्येक सदस्य द्वारा दिवंगत आत्मा हेतु दान अवश्य करें. जरूरतमंद व्यक्तियों को भोजन और वस्त्र का दान करें.

वायु पुराण के अनुसारः नारायणी शिला मंदिर के बारे में कहा जाता है कि गयासुर नाम का राक्षस देवलोक से भगवान विष्णु यानी नारायण का श्री विग्रह लेकर भागा था. भागते हुए नारायण के विग्रह का धड़ यानी मस्तक वाला हिस्सा बदरीनाथ धाम के बह्मकपाली नाम के स्थान पर गिरा. उनके कंठ से नाभि तक का हिस्सा हरिद्वार के नारायणी मंदिर में गिरा, जबकि चरण गया में गिरा. जहां नारायण के चरणों में गिरकर ही गयासुर की मौत हो गई. यानी वहीं, उसको मोक्ष प्राप्त हुआ था.

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