हैदराबाद : पहली बार एक आम भारतीय को जन्म के 300 साल बाद संत की उपाधि मिलने जा रही है. 18वीं सदी में ईसाई धर्म अपनाने वाले हिंदू देवसहायम पिल्लई (Devasahayam Pillai) को अगले साल 15 मई, 2022 को वेटिकन में पोप फ्रांसिस द्वारा संत की उपाधि दी जाएगी. संत की उपाधि पाने वाले वो पहले भारतीय आम आदमी होंगे.
कौन हैं देवसहायम पिल्लई ?
देवसहायम पिल्लई का जन्म 23 अप्रैल 1712 में मौजूदा तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले में एक हिंदू नायर परिवार में हुआ था. जो उस वक्त त्रावणकोर साम्राज्य का हिस्सा था. उनके पिता वासुदेवन नंबूदिरी, वर्तमान केरल में कायमकुलम के रहने वाले थे और मौजूदा तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले के तिरुवत्तर के हिंदू मंदिर में पुजारी थे. उनकी माता देवकी अम्मा तिरुवत्तर की रहने वाली थीं. देवसहायम का पालन पोषण नायर परंपराओं के मुताबिक मामा के घर हिंदू मान्यताओं और परंपराओं के साथ हुआ.
देवसहायम के परिवार का त्रावणकोर के राजा मार्तंड वर्मा के महल में बहुत प्रभाव था. देवसहायम को संस्कृत, तमिल और मलयालम भाषा आती थी, वो भी शाही महल में अपनी सेवाएं देने के लिए पहुंच गए. उनकी क्षमताओं को देखते हुए त्रावणकोर के दीवान के अधीन राज्य से जुड़े मामलों की जिम्मेदारी दी गई.
हिंदू से ईसाई बने देवसहायम
1741 में एक डच नेवी कमांडर कैप्टन यूस्टाचियस डी लैनॉय को डच ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा त्रावणकोर के नियंत्रण वाले एक बंदरगाह पर कब्जा करने के लिए बेजा गया. त्रावणकार की सेना से युद्ध में डच कमांडर की अगुवाई वाली टुकड़ी हार गई. कमांडर और उनके सैनिकों को कैद में डाल दिया गया. कुछ वक्त बाद राजा की माफी मिलने पर डच कमांडर त्रावणकोर की सेना का सेनापति बन गया, जिसने कई युद्ध जीते और कई क्षेत्र जीतकर त्रावणकोर में मिला दिए. इसी दौरान डच कमांडर और देवसहायम की मुलाकात और बातचीत होने लगी. डच कमांडर ने ही उन्हें ईसाई धर्म के बारे में बताया और 1745 में उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया.
बदल गया नाम और धर्म
देवसहायम का नाम नीलकंठ पिल्लई था. बैप्टिज्म (Baptism) यानि वो रस्म जिसमें ईसाई बनने की शपथ ली जाती है. इस शपथ के बाद उनका नाम बदलकर लेज़ारूस (Lazarus) हो गया. Lazarus का अर्थ है प्रभु की मदद (God's help), तमिल और मलयालम भाषाों में इसका अनुवाद देवसहायम होता है और इसी नाम से उन्हें अधिक पहचान मिली. बताया जाता है कि उनकी पत्नी और परिवार ने भी ईसाई धर्म को अपना लिया.
देवसहायम की गोली मारकर हत्या
त्रावणकोर राज्य इस धर्मांतरण के खिलाफ था और देवसहायम को इसका प्रकोप झेलना पड़ा. फरवरी 2020 में वेटिकन के एक नोट में कहा गया कि 'उनका धर्म बदलना उनके मूल धर्म से जुड़े प्रमुखों को रास नहीं आया, उनके खिलाफ रोजद्रोह, जासूसी के झूठे आरोप लगाए गए और उन्हे शाही प्रशासन के पद से हटाया गया और फिर जेल में डालकर उनका उत्पीड़न हुआ'
वेटिकन के नोट के मुताबिक 'धर्म के प्रचार के दौरान देवसहायम ने जातिगत मतभेदों के बावजूद सभी लोगों की समानता पर जोर दिया. इससे उच्च वर्गों के खिलाफ आक्रोश पैदा हुआ और उन्हें 1749 में गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें 14 जनवरी 1752 को गोली मार दी गई. जिसके बाद उन्हें शहीद का दर्जा मिला.
ईसाई धर्म में कैसे मिलती है संत की उपाधि
ईसाई धर्म में किसी भी व्यक्ति को संत घोषित करने की प्रक्रिया तीन चरणों में पूरी होती है. पहले चरण में संबंधित व्यक्ति के अनुयायी स्थानीय बिशप के सामने उस शख्स की महानताओं और चमत्कारों को साबित करते हैं. फिर चर्च की ओर से चुने गए पॉस्चुलेटर के जरिये उस व्यक्ति के चमत्कारों के सबूतों और जानकारियों के आधार पर एक पत्र तैयार किया जाता है जिसके आधार पर पोप उस व्यक्ति को पहले पूज्य की उपाधि देते हैं. दूसरे चरण में पोप उसे धन्य घोषित करते हैं. धन्य का मतलब है कि संत की उपाधि की ओर एक और कदम बढ़ गया. आखिरी चरण में रोमन कैथोलिक चर्च के प्रमुख पोप द्वारा महान व्यक्ति को संत की उपाधि दी जाती है. संत घोषित करने की प्रक्रिया को कैनोनाइजेशन कहते हैं.
संत की उपाधि के लिए क्यों चुना गया ?
साल 2004 में, कन्याकुमारी में कोट्टार क्षेत्र, तमिलनाडु बिशप्स काउंसिल (TNBC) और भारत के कैथोलिक बिशप्स के सम्मेलन (CCBI) के साथ वेटिकन को धन्य घोषित करने के लिए देवसहाय की सिफारिश की. पिछले साल फरवरी में, वेटिकन की तरफ से घोषणा की गई कि वह संत की उपाधि के योग्य हैं.
उनके जन्म के 300 साल बाद 2012 में उन्हें कोट्टार सूबे द्वारा धन्य घोषित किया गया था. वेटिकन के नोट के मुताबिक "वेटिकन में दोपहर की 'एंजेलस' प्रार्थना के दौरान उस दिन की टिप्पणी में, पोप ने देवसहाय को 'वफादार आम आदमी' के रूप में याद किया. उन्होंने ईसाइयों से आग्रह किया कि वे "भारत में चर्च की खुशी में शामिल हों और प्रार्थना करें कि नया धन्य उस बड़े और महान देश के ईसाइयों के विश्वास को बनाए रखे"
संत की उपाधि के लिए चमत्कार भी जरूरी
किसी को संत घोषित करने की प्रक्रिया में देखा जाता है कि जिस शख्स को संत की उपाधि दी जा रही है, मौत के बाद उसके नाम पर कोई चमत्कार हुआ हो. कम से कम दो चमत्कार होने जरूरी हैं. जैसे किसी बीमार का अचानक ठीक हो जाना या किसी मृत का जी उठना जैसी अकल्पनीय चमत्कार होना. वैसे तो दो चमत्कार होने जरूरी है लेकिन अगर कोई धर्म के लिए शहीद होता है तो एक ही चमत्कार काफी है. देवसहायम को शहीद का दर्जा मिला है इसलिये उन्हें संत की उपाधि के लिए एक ही चमत्कार काफी था.
देवसहायम के नाम पर चमत्कार हुआ था ?
CatholicSaints.Info के मुताबिक, 2013 में एक चमत्कार हुआ. 24 सप्ताह के भ्रूण ने मां के पेट में हिलना बंद कर दिया और उसका दिल धड़कना बंद हो गया. बच्चे की मां कैथोलिक क्रिश्चियन थीं. वो लाजरूस (देवसहायम) में विश्वास करती थीं. उन्होंने बच्चे के लिए धन्य घोषित किए गए लाजरूस से प्रार्थना की. एक घंटे के भीतर उन्होंने महसूस किया कि पेट के अंदर बच्चा लात मार रहा है. टेस्ट के बाद पता चला कि बच्चे की दिल की धड़कन फिर से शुरू हो गई थी. बच्चा बाद में बिना किसी जटिलता के पैदा हुआ.
हालांकि देवसहायम को संत पद देने की इस यात्रा के दौरान साल 2017 में एक रिटायर्ड आईएएस अधिकारी ने वेटिकन को चिट्ठी लिखकर देवसहायम के अंतिम नाम पिल्लई को हटाने का आग्रह किया था. उनका कहना था कि यह एक जाति का शीर्षक है. लोकगीतकार एके पेरुमल ने देवसहायम की बायोग्राफी लिखी थी, उनके मुताबिक देवसहायम के हिंदू से ईसाई बनने को लेकर कई लोककथाएं प्रचलित हैं. उनके जीवन और शहादत से जुड़े स्थल तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले के कोट्टार में स्थित हैं.
मदर टेरेसा को भी मिली थी संत की उपाधि
मदर टेरेसा का निधन 5 सितंबर 1997 में हुआ और 4 सितंबर 2016 को उन्हें भी संत की उपाधि दी गई थी. मदर टेरेसा को संत की उपाधि देने की प्रक्रिया के दौरान दावा किया गया कि पश्चिम बंगाल की एक महिला का कैंसर मदर टेरेसा की तस्वीर की पूजा करने से टीक हो गया. इस चमत्कार को वेटिकन ने मान्यता दी थी, हालांकि डॉक्टरों ने इसे सिरे से नकार दिया था. मदर टेरेसा ने अपना जीवन दीन-दुखियों की सेवा में कुर्बान कर दिया था, उन्हें साल 1979 में शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया. साल 1980 में उन्हें भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न भी मिला.