ETV Bharat / bharat

बुंदेलखंड में विराजे हैं विट्ठल भगवान, हुबहू महाराष्ट्र के पंढरपुर जैसा है मंदिर, देवउठनी एकादशी पर विशेष आयोजन

Dev uthani Ekadashi 2023: 23 नवंबर को देवउठनी एकादशी है. इस खास मौके पर हम आपको महाराष्ट्र के पंढरपुर में स्थापित विठ्ठल मंदिर की तरह एमपी के सागर में मौजूद भगवान विठ्ठल के मंदिर के बारे में बताएंगे. कई मायनों में सागर यह मंदिर महाराष्ट्र के पंढरपुर की तरह ही है. पढ़िए सागर से कपिल तिवारी की यह रिपोर्ट

Dev uthani Ekadashi 2023
देवउठनी एकादशी विशेष
author img

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 22, 2023, 7:13 PM IST

बुंदेलखंड में विराजे हैं विट्ठल भगवान

सागर। आपको ये जानकर अचरज होगा कि महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के पंढरपुर में स्थित विट्ठल भगवान के पंढरीनाथ मंदिर की तरह बुंदेलखंड में भगवान विट्ठल का मंदिर स्थित है. बुंदेलखंड के संभागीय मुख्यालय सागर जिले के रहली नगर में ये मंदिर स्थित है. इसकी खासियत ये है कि यहां मराठा रानी ने 250 साल पहले पंढरपुर की तरह हुबहू मंदिर बनवाया था. भगवान विट्ठल की मूर्ति पुष्य नक्षत्र में सोने की ईंट पर लायी गयी थी. मंदिर की खास बात ये है कि मंदिर को बिल्कुल पंढरपुर मंदिर के जैसे बनाया गया है और हर बारीकी का ध्यान रखा गया है. अब जब मंदिर के 250 साल पूरे हो गए हैं, तो मंदिर पर कलश रोहण किया जा रहा है. इस कार्यक्रम में देश और मध्यप्रदेश के लोग हिस्सा लेंगे.

धर्मप्रेमी दानवीर मराठारानी ने बनवाया मंदिर: बुंदेलखंड में कई ऐसे मंदिर हैं, जिन मंदिरों का निर्माण मराठारानी लक्ष्मीबाई खेर ने कराया था. दरअसल जब महाराजा छत्रसाल का मुगलों से संघर्ष हुआ, तो उन्होंने बाजीराव पेशवा से मदद मांगी थी. बाजीराव पेशवा प्रथम ने 1728 में मोहम्मद बंगश के खिलाफ महाराजा छत्रसाल को सेना भेजकर मदद की थी. महाराजा छत्रसाल की बेटी मस्तानी बाजीराव पेशवा प्रथम की दूसरी पत्नी बनी. अपनी मौत के पहले महाराजा छत्रसाल ने बाजीराव पेशवा प्रथम की मदद के बदले में बुंदेलखंड का बहुत बड़ा हिस्सा बाजीराव प्रथम को सौंप दिया था.

भगवान विट्ठल का मंदिर
भगवान विट्ठल का मंदिर

इसमें सागर जिले का ज्यादातर हिस्सा बाजीराव पेशवा के हिस्से में आया था और यहां पर उन्होंने अपने प्रतिनिधि को शासन करने भेजा था. यहां के स्थानीय राजा की महारानी लक्ष्मीबाई अंबादेवी खेर काफी दानवीर और धर्मप्रिय थीं. उन्होंने सागर शहर और सागर रहली मार्ग पर कई मंदिरों का निर्माण कराया. जिसमें 250 साल पहले रहली के पंढरपुर में स्थित विट्ठलभगवान का मंदिर बुंदेलखंड के लिए अपने आप में एक अद्भुत सौगात है. मंदिर की वास्तुकला के साथ-साथ मंदिर की भव्यता और महाराष्ट्र के पंढरीनाथ मंदिर से समानता लोगों को आकर्षित करती है. खास बात ये है कि मंदिर के दर्शन के लिए मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के अलावा देश विदेश में बसे मराठी लोग यहां जरूर आते हैं.

रहली और महाराष्ट्र के पंढरपुर मंदिर में समानता: पिछली 6 पीढी से मंदिर की पूजा कर रहे पंडित लक्ष्मीनारायण पुराणी के पूर्वजों को मंदिर की पूजा के लिए रानी लक्ष्मीबाई खैर ने यूपी से रहली लाकर बसाया था. मंदिर की तमाम व्यवस्था और पूजापाठ की जिम्मेदारी पुराणी परिवार की थी, लेकिन बाद में ट्रस्ट के गठन के बाद अब पुराणी परिवार सिर्फ पूजा अर्चना करता है. पंडित लक्ष्मीनारायण पुराणी बताते हैं कि महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के पंढरपुर में स्थित विट्ठल भगवान के मंदिर और सागर जिले के रहली नगर के पंढरपुर में स्थित विट्ठल भगवान का मंदिर कई मामलों में एक जैसा है.

महाराष्ट्र के पंढरपुर में विट्ठल भगवान ईंट पर बैठे हुए है, तो यहां भी विट्ठल भगवान ईंट पर बैठे हुए हैं. महाराष्ट्र के पंढरपुर में स्थित मंदिर भीमा (चंद्रभागा) नदी के किनारे बना हुआ है. मंदिर के पास नदी का बहाव घुमावदार होने के कारण यहां नदी को चंद्रभागा कहा जाता है. रहली के पंढरपुर में स्थित मंदिर भी सुनार नदी के अर्धचंद्राकार बहाव के पास बनाया गया है. महाराष्ट्र पंढरपुर के मंदिर की आकृति रथ के समान है, तो रहली के मंदिर की आकृति रथ के समान है. मंदिर में विट्ठल भगवान के अलावा हनुमान,राधाकृष्ण, महादेव की मूर्ति है.

Devuthani Ekadashi special
रहली में भगवान विट्ठल का मंदिर

रथाकार मंदिर में भगवान विष्णु के 12 अवतार उकेरे गए हैं. मंदिर प्रांगण में दीपमालिका स्थित है. मंदिर में तुलसी विवाह के लिए तुलसी चबूतरा और भगवान गरूड़ की मूर्ति है. जहां तक मंदिर की स्थापत्य कला की बात करें, तो कहा जाता है कि मंदिर को इस तरह तैयार किया गया है कि सूर्योदय की पहली किरण भगवान विट्ठल के चरणों में पड़ती है.

250 साल बाद कलशरोहण क्यों: मंदिर के व्यवस्थापक अजित सप्रे बताते हैं कि श्रीदेव पंढरीनाथ मंदिर भले ही ढाई सौ साल पहले बनाया गया हो, लेकिन तब मंदिर के शिखर पर कलश की आकृति बनायी गयी थी, लेकिन कलश रोहण नहीं हुआ था. अब जब मंदिर के 250 सौ साल पूरे हो रहे हैं, तो यादगार बनाने के लिए मंदिर के शिखर और मंदिर परिसर में स्थित सभी मंदिरों के शिखर पर कलश चढाए जाएंगे.
इसके लिए 25 पीतल के कलश जनसहयोग से तैयार करवाए गए हैं. इन 25 कलशों में से 12 कलश भगवान विट्ठल के मंदिर और बचे हुए कलश परिसर में बने दूसरे भगवान के मंदिर पर स्थापित किए जाएंगे. अजित सप्रे बताते हैं कि मंदिर के शिखर के कलश की उंचाई सवा सात फीट और वजन 50 किलोग्राम है. मंदिर का जीर्णोद्धार 1999 में किया गया था.

भगवान विट्ठल का मंदिर
भगवान विट्ठल मंदिर के अंदर की तस्वीर

यहां पढ़ें...

मंदिर में आज से कार्तिक उत्सव की शुभारंभ: श्रीदेव पंढरीनाथ मंदिर में कार्तिक उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है. कार्तिक उत्सव में भगवान विट्टल की पालकी नगर भ्रमण के लिए निकलती है. इसके अलावा कई तरह के धार्मिक आयोजन हर साल होते हैं. इस साल कार्तिकोत्सव में कलशरोहण विशेष आकर्षण होगा. कार्तिक उत्सव की शुरूआत आज 21 नवम्बर को कलश यात्रा के साथ हो गयी है. देवउठनी एकादशी 23 नवंबर को विट्ठल भगवान का अभिषेक, कलश पूजन और पालकी यात्रा निकाली जाएगी. देवउठनी एकादशी के पर्व पर मंदिर में कलश रोहण किया जाएगा. कार्तिक पूर्णिमा पर 27 नवंबर को मंदिर में मेले का आयोजन किया जाएगा.

बुंदेलखंड में विराजे हैं विट्ठल भगवान

सागर। आपको ये जानकर अचरज होगा कि महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के पंढरपुर में स्थित विट्ठल भगवान के पंढरीनाथ मंदिर की तरह बुंदेलखंड में भगवान विट्ठल का मंदिर स्थित है. बुंदेलखंड के संभागीय मुख्यालय सागर जिले के रहली नगर में ये मंदिर स्थित है. इसकी खासियत ये है कि यहां मराठा रानी ने 250 साल पहले पंढरपुर की तरह हुबहू मंदिर बनवाया था. भगवान विट्ठल की मूर्ति पुष्य नक्षत्र में सोने की ईंट पर लायी गयी थी. मंदिर की खास बात ये है कि मंदिर को बिल्कुल पंढरपुर मंदिर के जैसे बनाया गया है और हर बारीकी का ध्यान रखा गया है. अब जब मंदिर के 250 साल पूरे हो गए हैं, तो मंदिर पर कलश रोहण किया जा रहा है. इस कार्यक्रम में देश और मध्यप्रदेश के लोग हिस्सा लेंगे.

धर्मप्रेमी दानवीर मराठारानी ने बनवाया मंदिर: बुंदेलखंड में कई ऐसे मंदिर हैं, जिन मंदिरों का निर्माण मराठारानी लक्ष्मीबाई खेर ने कराया था. दरअसल जब महाराजा छत्रसाल का मुगलों से संघर्ष हुआ, तो उन्होंने बाजीराव पेशवा से मदद मांगी थी. बाजीराव पेशवा प्रथम ने 1728 में मोहम्मद बंगश के खिलाफ महाराजा छत्रसाल को सेना भेजकर मदद की थी. महाराजा छत्रसाल की बेटी मस्तानी बाजीराव पेशवा प्रथम की दूसरी पत्नी बनी. अपनी मौत के पहले महाराजा छत्रसाल ने बाजीराव पेशवा प्रथम की मदद के बदले में बुंदेलखंड का बहुत बड़ा हिस्सा बाजीराव प्रथम को सौंप दिया था.

भगवान विट्ठल का मंदिर
भगवान विट्ठल का मंदिर

इसमें सागर जिले का ज्यादातर हिस्सा बाजीराव पेशवा के हिस्से में आया था और यहां पर उन्होंने अपने प्रतिनिधि को शासन करने भेजा था. यहां के स्थानीय राजा की महारानी लक्ष्मीबाई अंबादेवी खेर काफी दानवीर और धर्मप्रिय थीं. उन्होंने सागर शहर और सागर रहली मार्ग पर कई मंदिरों का निर्माण कराया. जिसमें 250 साल पहले रहली के पंढरपुर में स्थित विट्ठलभगवान का मंदिर बुंदेलखंड के लिए अपने आप में एक अद्भुत सौगात है. मंदिर की वास्तुकला के साथ-साथ मंदिर की भव्यता और महाराष्ट्र के पंढरीनाथ मंदिर से समानता लोगों को आकर्षित करती है. खास बात ये है कि मंदिर के दर्शन के लिए मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के अलावा देश विदेश में बसे मराठी लोग यहां जरूर आते हैं.

रहली और महाराष्ट्र के पंढरपुर मंदिर में समानता: पिछली 6 पीढी से मंदिर की पूजा कर रहे पंडित लक्ष्मीनारायण पुराणी के पूर्वजों को मंदिर की पूजा के लिए रानी लक्ष्मीबाई खैर ने यूपी से रहली लाकर बसाया था. मंदिर की तमाम व्यवस्था और पूजापाठ की जिम्मेदारी पुराणी परिवार की थी, लेकिन बाद में ट्रस्ट के गठन के बाद अब पुराणी परिवार सिर्फ पूजा अर्चना करता है. पंडित लक्ष्मीनारायण पुराणी बताते हैं कि महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के पंढरपुर में स्थित विट्ठल भगवान के मंदिर और सागर जिले के रहली नगर के पंढरपुर में स्थित विट्ठल भगवान का मंदिर कई मामलों में एक जैसा है.

महाराष्ट्र के पंढरपुर में विट्ठल भगवान ईंट पर बैठे हुए है, तो यहां भी विट्ठल भगवान ईंट पर बैठे हुए हैं. महाराष्ट्र के पंढरपुर में स्थित मंदिर भीमा (चंद्रभागा) नदी के किनारे बना हुआ है. मंदिर के पास नदी का बहाव घुमावदार होने के कारण यहां नदी को चंद्रभागा कहा जाता है. रहली के पंढरपुर में स्थित मंदिर भी सुनार नदी के अर्धचंद्राकार बहाव के पास बनाया गया है. महाराष्ट्र पंढरपुर के मंदिर की आकृति रथ के समान है, तो रहली के मंदिर की आकृति रथ के समान है. मंदिर में विट्ठल भगवान के अलावा हनुमान,राधाकृष्ण, महादेव की मूर्ति है.

Devuthani Ekadashi special
रहली में भगवान विट्ठल का मंदिर

रथाकार मंदिर में भगवान विष्णु के 12 अवतार उकेरे गए हैं. मंदिर प्रांगण में दीपमालिका स्थित है. मंदिर में तुलसी विवाह के लिए तुलसी चबूतरा और भगवान गरूड़ की मूर्ति है. जहां तक मंदिर की स्थापत्य कला की बात करें, तो कहा जाता है कि मंदिर को इस तरह तैयार किया गया है कि सूर्योदय की पहली किरण भगवान विट्ठल के चरणों में पड़ती है.

250 साल बाद कलशरोहण क्यों: मंदिर के व्यवस्थापक अजित सप्रे बताते हैं कि श्रीदेव पंढरीनाथ मंदिर भले ही ढाई सौ साल पहले बनाया गया हो, लेकिन तब मंदिर के शिखर पर कलश की आकृति बनायी गयी थी, लेकिन कलश रोहण नहीं हुआ था. अब जब मंदिर के 250 सौ साल पूरे हो रहे हैं, तो यादगार बनाने के लिए मंदिर के शिखर और मंदिर परिसर में स्थित सभी मंदिरों के शिखर पर कलश चढाए जाएंगे.
इसके लिए 25 पीतल के कलश जनसहयोग से तैयार करवाए गए हैं. इन 25 कलशों में से 12 कलश भगवान विट्ठल के मंदिर और बचे हुए कलश परिसर में बने दूसरे भगवान के मंदिर पर स्थापित किए जाएंगे. अजित सप्रे बताते हैं कि मंदिर के शिखर के कलश की उंचाई सवा सात फीट और वजन 50 किलोग्राम है. मंदिर का जीर्णोद्धार 1999 में किया गया था.

भगवान विट्ठल का मंदिर
भगवान विट्ठल मंदिर के अंदर की तस्वीर

यहां पढ़ें...

मंदिर में आज से कार्तिक उत्सव की शुभारंभ: श्रीदेव पंढरीनाथ मंदिर में कार्तिक उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है. कार्तिक उत्सव में भगवान विट्टल की पालकी नगर भ्रमण के लिए निकलती है. इसके अलावा कई तरह के धार्मिक आयोजन हर साल होते हैं. इस साल कार्तिकोत्सव में कलशरोहण विशेष आकर्षण होगा. कार्तिक उत्सव की शुरूआत आज 21 नवम्बर को कलश यात्रा के साथ हो गयी है. देवउठनी एकादशी 23 नवंबर को विट्ठल भगवान का अभिषेक, कलश पूजन और पालकी यात्रा निकाली जाएगी. देवउठनी एकादशी के पर्व पर मंदिर में कलश रोहण किया जाएगा. कार्तिक पूर्णिमा पर 27 नवंबर को मंदिर में मेले का आयोजन किया जाएगा.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.