नई दिल्ली: सिंधु जल संधि के तहत भारत के अधिकारों के प्रयोग को सुनिश्चित करने के लिए उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार विक्रम मिश्री (Deputy National Security Advisor Vikram Misri) की अध्यक्षता में टास्क फोर्स की दूसरी बैठक शुक्रवार 26 मई को श्रीनगर में हुई.
सूत्रों ने कहा कि बैठक के दौरान मिश्री ने जम्मू-कश्मीर में विभिन्न जल विद्युत परियोजनाओं की प्रगति का जायजा लिया. सूत्रों के अनुसार, यह पाया गया कि कई मोर्चों पर प्रगति हुई है और सिंधु जल संधि के तहत भारत के अधिकारों का बेहतर उपयोग करने के लिए सभी सिंधु बेसिन परियोजनाओं के कार्यों को समय पर पूरा करने पर जोर दिया गया है.
बैठक में विदेश मंत्रालय और आयुक्त (सिंधु) जल शक्ति मंत्रालय सहित संबंधित मंत्रालयों और एजेंसियों के अधिकारियों ने भाग लिया. दो दिवसीय यात्रा के दौरान उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से भी मुलाकात की. विक्रम मिश्री ने उपराज्यपाल को प्रधानमंत्री कार्यालय के निर्देशन में सिंधु घाटी में जलविद्युत परियोजनाओं के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए चल रहे प्रयासों से अवगत कराया. सिन्हा ने इस राष्ट्रीय प्रयास में जम्मू-कश्मीर प्रशासन के पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया.
उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार विक्रम मिश्री ने भी जम्मू-कश्मीर में शीर्ष सैन्य और सुरक्षा अधिकारियों से मुलाकात की और उन्हें कश्मीर की मौजूदा स्थिति के बारे में जानकारी दी गई. सूत्रों ने कहा कि उन्होंने 22-24 मई को श्रीनगर में पर्यटन पर जी-20 कार्य समूह की बैठक के संचालन में संबंधित हितधारकों की भूमिका की विशेष रूप से सराहना की.
इस साल जनवरी में भारत ने सितंबर 1960 की सिंधु जल संधि (IWT) में संशोधन के लिए पाकिस्तान को नोटिस जारी किया था. सिंधु जल के संबंधित आयुक्तों के माध्यम से 25 जनवरी को नोटिस दिया गया था. सूत्रों ने आज कहा कि यह IWT के अनुच्छेद XII (3) के अनुसार है.
सूत्रों के अनुसार, भारत हमेशा आईडब्ल्यूटी को अक्षरश: लागू करने में एक दृढ़ समर्थक और एक जिम्मेदार भागीदार रहा है. हालांकि, पाकिस्तान की कार्रवाइयों ने IWT के प्रावधानों और उनके कार्यान्वयन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है और भारत को IWT के संशोधन के लिए एक उचित नोटिस जारी करने के लिए मजबूर किया है.
2015 में, पाकिस्तान ने भारत की किशनगंगा और रतले जलविद्युत परियोजनाओं (एचईपी) पर अपनी तकनीकी आपत्तियों की जांच के लिए एक तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति का अनुरोध किया था. 2016 में पाकिस्तान ने एकतरफा रूप से इस अनुरोध को वापस ले लिया और प्रस्तावित किया कि एक मध्यस्थता अदालत उसकी आपत्तियों का फैसला करे.
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