रायपुर : छत्तीसगढ़ में सामाजिक बहिष्कार के कई मामले देखने को मिलते हैं. सामाजिक बहिष्कार के कारण ना सिर्फ परिवार बल्कि आने वाली पीढ़ियां भी परेशान होती हैं. छत्तीसगढ़ के दूर दराज के गांवों की बात तो छोड़िए राजधानी में ही सामाजिक बहिष्कार के उदाहरण सामाजिक बुराई की तस्वीर को दिखा रहे हैं. रायपुर पुरानी बस्ती का रहने वाला एक परिवार सामाजिक बहिष्कार की समस्या को झेल रहा है. सत्येंद्र सोनकर के परिवार को समाज ने पिछले 40 साल से समाज से बहिष्कृत कर रखा है. समाज के पदाधिकारियों ने 40 साल पहले परिवार पर पाबंदी लगा दी थी.जिसके कारण सामाजिक कार्यक्रमों में परिवार शामिल नहीं हो पाता. घर में किसी की मृत्यु या फिर शुभ कार्यों में परिवार को सारा काम अकेले ही करना पड़ता है.
सामाजिक कुरीति को रोकना जरुरी : इस तरह के प्रदेश में हजारों मामले हैं जो आज समाज में दंश की तरह हैं. सामाजिक बहिष्कार जैसी कुरीति को रोकने के लिए अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र लगातार प्रयास कर रहे हैं. इसे रोकने के लिए शासन-प्रशासन से लेकर केंद्र सरकार तक डॉक्टर दिनेश मिश्र ने गुहार लगाई है. डॉक्टर दिनेश मिश्र का कहना है कि ''यह विडंबना है कि आज भी सामाजिक बहिष्कार के मामले सामने आ रहे हैं. सामाजिक बहिष्कार कई कारणों से किया जाता है. जिसमें सबसे महत्वपूर्ण और बड़ा कारण अंतरजातीय विवाह है. कोई भी समाज दूसरी जाति में विवाह करने पर उस व्यक्ति को समाज से बहिष्कृत कर देता है. इसके अलावा समाज की ओर से जारी किए गए निर्णय को यदि कोई नहीं मानता है तो उसका भी बहिष्कार कर दिया जाता है .गांव के लोगों की शिकायत पर भी कई लोगों को समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है. कई बार समाज के व्यक्ति को चुनावों में वोट ना देने के कारण भी ऐसे लोगों को बहिष्कृत कर दिया जाता है, ऐसे अलग-अलग छोटे-छोटे बहुत सारे मामले हैं.''
छत्तीसगढ़ में सामाजिक बहिष्कार के कितने मामले : दिनेश मिश्र का कहना है कि '' 30 हजार से ज्यादा मामले प्रदेश में सामाजिक बहिष्कार के हैं.इस मामले को लेकर हमने राज्य और केंद्र सरकार के पास एक आरटीआई भी लगाया था. क्योंकि केंद्र और राज्य सरकारों ने इस मामले को लेकर कोई कानून नहीं बनाया है. इस वजह से ऐसे मामलों की कोई ठोस जानकारी नहीं मिली. इसके बाद हमने खुद इस मामले को लेकर समीक्षा कराना शुरू किया, कितने लोग प्रताड़ित और पीड़ित है तो पता चला कि सभी समाजों में इस तरह के मामले हैं.''
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कानून बनाने की मांग : डॉ दिनेश मिश्र के मुताबिक ''महाराष्ट्र में 2017 से यह कानून लागू है . हम लोग इसके पहले से इस कानून को लागू करने की मांग छत्तीसगढ़ में करते आ रहे हैं. लेकिन अब तक छत्तीसगढ़ में इसे लेकर कोई कानून नहीं बन पाया है. हमारी मांग है कि समाज के बहिष्कृत किए जाने वाले लोगों को लेकर एक सक्षम कानून प्रदेश में बनना चाहिए.'' हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट दिवाकर सिन्हा का कहना है कि ''छत्तीसगढ़ में ही ऐसे मामले सामने नहीं आते देश के अन्य राज्यों में भी सामाजिक बहिष्कार संबंधित मामले देखने को मिलते रहे. प्रदेश में भी लगातार इस तरह के मामले देखने को मिल रहे हैं. दुर्भाग्य यह है कि छत्तीसगढ़ में आज तक ऐसा कोई कानून नहीं बनाया गया, जो सामाजिक बहिष्कार के पीड़ित लोगों को मदद कर सके. यदि किसी सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया तो उसे कानूनी मदद मिले ऐसा कानून बनना चाहिए. जिसे समाज से बहिष्कृत करने वाले लोगों के खिलाफ कठोर कार्रवाई हो सके.''
कानून बनने से फायदे : छत्तीसगढ़ में हजारों परिवार छोटी-छोटी वजहों से समाज से बहिष्कृत कर दिए गए. पीढ़ियां बदल गई लेकिन परिवार पर लगा प्रतिबंध नहीं हटा.यदि प्रदेश में सामाजिक बहिष्कार को लेकर कानून बन जाए तो आने वाले समय में ऐसे मामलों में कमी आएगी.साथ ही ऐसे लोग जो सामाजिक कुरीति का दंश झेल रहे हैं उन्हें कानूनी मदद मिलने में आसानी होगी.