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कोरोना वैक्सीन को पेटेंट मुक्त करने की मांग, स्वदेशी जागरण मंच का प्रदर्शन

देश में कोरोना महामारी के दूसरे दौर के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए टीकाकरण अभियान को तेजी से बढ़ाने की मांग देश के अलावा विदेशों से भी उठ रही है. शुक्रवार को आरएसएस की आर्थिक इकाई स्वदेशी जागरण मंच ने एक सांकेतिक प्रदर्शन कर इस बात की मांग उठाई है कि आपदा के इस समय में कोरोना टीका के अलावा इस बीमारी में उपयोग होने वाली सभी अन्य दवाइयों को पेटेंट मुक्त कर देना चाहिए.

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Published : May 7, 2021, 2:57 PM IST

नई दिल्ली : कोरोना वैक्सीन सहित दवाईयों को पेटेंट मुक्त करने की मांग को लेकर स्वदेशी जागरण मंच ने प्रदर्शन किया है. इनका मानना है कि ऐसा करने से अन्य कम्पनियां इन दवाइयों और टीके के उत्पादन में लग जाएंगी और करोड़ों लोगों की जान बचाई जा सकेगी.

इतना ही नहीं तकनीक साझा कर पेटेंट से मुक्ति देने से न केवल दवाइयों की कीमत कम हो जाएगी बल्कि इसकी उपलब्धता भी बढ़ेगी. आज जिस तरह की परिस्थिति देशों के सामने है उससे समय रहते निजात मिल सकेगी. स्वदेशी जागरण मंच ने बिल गेट्स के उस बयान का भी विरोध किया जिसमें उन्होंने फार्मा कंपनियों का पक्ष लेते हुए टीके को पेटेंट मुक्त करने को मुनासिब नहीं बताया था.

स्वदेशी जागरण मंच की मांग है कि कोरोना के टीके के अलावा इस बीमारी से संबंधित सभी दवाइयों को सरकार अनिवार्य लाइसेंसिंग के जरिए अन्य कंपनियों को बनाने की अनुमति दे. वर्तमान में जिन कंपनियों ने टीके का ईजाद किया है वह इसको बनाने में दिन-रात लगी हैं लेकिन मांग की तुलना में उनका उत्पादन कई गुना कम है और इस गति से सभी देशों तक सम्पूर्ण टीकाकरण पहुंचने में तीन वर्ष से अधिक का समय लग सकता है.

ऐसे में वैक्सीन बनाने के अधिकार को पेटेंट से मुक्त कर फॉर्मूला अन्य कंपनियों से साझा कर उत्पादन क्षमता को बढ़ाने की मांग भारत और दक्षिण अफ्रीका ने WTO के मंच पर रखी है. जिसका समर्थन बाद में अमेरिका और रूस जैसे देशों ने भी किया है. हालांकि अभी भी कनाडा, यूरोपीय संघ, जर्मनी समेत अन्य देशों का एक गुट वैक्सीन को पेटेंट मुक्त कर उसकी तकनीक साझा करने के पक्ष में नहीं हैं.

इन देशों का मानना है कि ऐसा करने पर रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर इसका असर पड़ेगा. लिहाजा फार्मा कम्पनियां जो इन टीकों को विकसित करने के क्रम में अरबों डॉलर खर्च कर चुकी हैं उन्हें इसका लाभ लेने का अवसर मिलना चाहिए.

स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सहसंयोजक अश्विनी महाजन ने कहा कि विश्व की तीन बड़ी कंपनियां फाइजर, मॉडर्ना और एस्ट्रेजनेका ने वैक्सीन का निर्माण किया है लेकिन वह इसमें भारी मुनाफा कमाना चाहती हैं. इसके लिए सारी दुनिया को लगभग 2 साल तक इंतजार कराना चाहती हैं.

स्वदेशी जागरण मंच का मानना है कि यदि इसकी तकनीक खुली कर दी जाए तो दुनिया भर में 1,000 से अधिक कंपनियां इसे बनाने में लग जाएंगी और सारी दुनिया को अगले 6 महीने में ही वैक्सीन का टीका लगाना संभव हो सकता है. वह भी बहुत सस्ती कीमत में टीका मिल पाएगा. किंतु इसके लिए वैक्सीन को पेटेंट कानूनों से मुक्त कराना होगा और इसके लिए एक विश्वव्यापी जन जागरूकता अभियान की तुरंत आवश्यकता है.

यह भी पढ़ें-बोर्ड परीक्षा के विद्यार्थियों के टीकाकरण के लिए याचिका दायर, केंद्र एवं दिल्ली सरकार से जवाब तलब

यदि टीकाकरण की बात करें तो भारत में 70% आबादी को टीका देने के लिये 195 करोड़ खुराक की आवश्यकता है. यह केवल दो कंपनियां पूरा नहीं कर पाएंगी.

नई दिल्ली : कोरोना वैक्सीन सहित दवाईयों को पेटेंट मुक्त करने की मांग को लेकर स्वदेशी जागरण मंच ने प्रदर्शन किया है. इनका मानना है कि ऐसा करने से अन्य कम्पनियां इन दवाइयों और टीके के उत्पादन में लग जाएंगी और करोड़ों लोगों की जान बचाई जा सकेगी.

इतना ही नहीं तकनीक साझा कर पेटेंट से मुक्ति देने से न केवल दवाइयों की कीमत कम हो जाएगी बल्कि इसकी उपलब्धता भी बढ़ेगी. आज जिस तरह की परिस्थिति देशों के सामने है उससे समय रहते निजात मिल सकेगी. स्वदेशी जागरण मंच ने बिल गेट्स के उस बयान का भी विरोध किया जिसमें उन्होंने फार्मा कंपनियों का पक्ष लेते हुए टीके को पेटेंट मुक्त करने को मुनासिब नहीं बताया था.

स्वदेशी जागरण मंच की मांग है कि कोरोना के टीके के अलावा इस बीमारी से संबंधित सभी दवाइयों को सरकार अनिवार्य लाइसेंसिंग के जरिए अन्य कंपनियों को बनाने की अनुमति दे. वर्तमान में जिन कंपनियों ने टीके का ईजाद किया है वह इसको बनाने में दिन-रात लगी हैं लेकिन मांग की तुलना में उनका उत्पादन कई गुना कम है और इस गति से सभी देशों तक सम्पूर्ण टीकाकरण पहुंचने में तीन वर्ष से अधिक का समय लग सकता है.

ऐसे में वैक्सीन बनाने के अधिकार को पेटेंट से मुक्त कर फॉर्मूला अन्य कंपनियों से साझा कर उत्पादन क्षमता को बढ़ाने की मांग भारत और दक्षिण अफ्रीका ने WTO के मंच पर रखी है. जिसका समर्थन बाद में अमेरिका और रूस जैसे देशों ने भी किया है. हालांकि अभी भी कनाडा, यूरोपीय संघ, जर्मनी समेत अन्य देशों का एक गुट वैक्सीन को पेटेंट मुक्त कर उसकी तकनीक साझा करने के पक्ष में नहीं हैं.

इन देशों का मानना है कि ऐसा करने पर रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर इसका असर पड़ेगा. लिहाजा फार्मा कम्पनियां जो इन टीकों को विकसित करने के क्रम में अरबों डॉलर खर्च कर चुकी हैं उन्हें इसका लाभ लेने का अवसर मिलना चाहिए.

स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सहसंयोजक अश्विनी महाजन ने कहा कि विश्व की तीन बड़ी कंपनियां फाइजर, मॉडर्ना और एस्ट्रेजनेका ने वैक्सीन का निर्माण किया है लेकिन वह इसमें भारी मुनाफा कमाना चाहती हैं. इसके लिए सारी दुनिया को लगभग 2 साल तक इंतजार कराना चाहती हैं.

स्वदेशी जागरण मंच का मानना है कि यदि इसकी तकनीक खुली कर दी जाए तो दुनिया भर में 1,000 से अधिक कंपनियां इसे बनाने में लग जाएंगी और सारी दुनिया को अगले 6 महीने में ही वैक्सीन का टीका लगाना संभव हो सकता है. वह भी बहुत सस्ती कीमत में टीका मिल पाएगा. किंतु इसके लिए वैक्सीन को पेटेंट कानूनों से मुक्त कराना होगा और इसके लिए एक विश्वव्यापी जन जागरूकता अभियान की तुरंत आवश्यकता है.

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यदि टीकाकरण की बात करें तो भारत में 70% आबादी को टीका देने के लिये 195 करोड़ खुराक की आवश्यकता है. यह केवल दो कंपनियां पूरा नहीं कर पाएंगी.

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