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वर्क फ्रॉम होम ने तोड़ी लॉन्ड्री वालों की कमर, मुश्किल से हो रहा गुजारा - lockdown

लॉकडाउन में वर्क फ्रॉम होम (Work from home) करने वाले लोगों के लिए घर पर रहकर काम करना सहूलियत लेकर आया है. तो वहीं इसके चलते कई लोगों की रोजी-रोटी पर संकट खड़ा हो गया है. इसी को लेकर ईटीवी भारत की टीम ने प्रभावित लोंगो से बात की.

लॉकडाउन में वर्क फ्रॉम होम तोड़ी लॉन्ड्री वालों की कमर
लॉकडाउन में वर्क फ्रॉम होम तोड़ी लॉन्ड्री वालों की कमर
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Published : Jul 11, 2021, 11:59 AM IST

नई दिल्ली : कोरोना काल में काम का एक नया वर्क कल्चर देखने को मिला है जिससे हम वर्क फ्रॉम होम (Work from home) कहते हैं. यानी कि घर पर रहकर ही ऑफिस का काम करना, लेकिन यह वर्क फ्रॉम होम कई लोगों के लिए मुसीबत बनकर आया है. खास तौर पर लॉन्ड्री वालों के लिए, क्योंकि घर पर रह रहे लोग अब अपने कपड़े लॉन्ड्री में नहीं दे रहे हैं.

वहीं स्कूल कॉलेज बंद होने के चलते भी लॉन्ड्री वालों के पास कपड़े नहीं आ रहे हैं, जिसके चलते उनका कारोबार बंद होने की कगार पर है. ईटीवी भारत ने दिल्ली में ऐसे ही लॉन्ड्री वालों से बात की, जिनका वर्क फ्रॉम होम के चलते काम प्रभावित हो रहा है. पिछले 20 सालों से गोविंदपुरी इलाके में लॉन्ड्री का काम कर रही, रीना देवी ने बताया कि अब हफ्ते में केवल एक या दो दिन का काम ही रह गया है.

'वर्क फ्रॉम होम' ने तोड़ी लॉन्ड्री वालों की कमर...

कॉलेज/इंस्टीट्यूट न खुलने से काम पर असर
पहले रोजाना इतने कपड़े आते थे कि सांस लेने तक का समय नहीं होता था, लेकिन अब 5 से 10 घरों के ही कपड़े आ रहे हैं. वहीं गोविंदपुरी में सबसे ज्यादा पीजी हुआ करते थे, जिसमें कि युवा रहते थे जिसमें से कई लोग ऑफिस जाते थे, तो कई लोग कॉलेज या इंस्टीट्यूट जाते थे, ऐसे में उन बच्चों के भी कपड़े भी लॉन्ड्री में आते थे, लेकिन अब नहीं आ रहे हैं.

रोजाना 200-250 कपड़े प्रेस होने आते थे
इसके साथ ही गोविंदपुरी की गली नंबर 4 में पिछले 18 सालों से लॉन्ड्री का काम कर रहे वीरू कनौजिया ने कहा एक कपड़े के 4 से 5 रुपये मिलते हैं और पहले रोजाना 200 से ढ़ाई सौ कपड़े प्रेस होने के लिए आते थे, लेकिन अब तो कपड़े भी काफी मुश्किल से आ रहे हैं. ऐसे में कमाई बहुत कम हो गई है. गुजारा करने के लिए कोई दूसरा रोजगार भी नहीं है.

वीरू कनौजिया ने कहा कि लॉन्ड्री के काम पर ही निर्भर हैं, जैसे तैसे गुजारा कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि ऑफिस वाले ऑफिस नहीं जा रहे हैं और ना ही स्कूल वाले स्कूल जा रहे हैं. ऐसे में ना यूनिफॉर्म आ रही है औ ना ही ऑफिस वालों के कपड़े आ रहे हैं. इसके साथ ही शादी-विवाह के कपड़े भी लॉन्ड्री में आते थे, उससे भी अच्छा काम मिल जाता था, लेकिन अब वह भी नहीं हो रहा है.

फॉर्मल पहनने की नहीं होती जरूरत
वहीं पिछले 2 सालों से वर्क फ्रॉम होम कर रहे संतोष ने कहा कि घर पर रहकर ही काम करना होता है. ऐसे में फॉर्मल पहनने की जरूरत नहीं होती. टी-शर्ट और ट्राउजर में ही काम करते हैं. कभी अगर ऑनलाइन मीटिंग होती है, तो उसके लिए शर्ट पहन लेते हैं. लेकिन वह भी आधे या 1 घंटे के लिए ही पहननी होती है. ऐसे में लॉन्ड्री में कपड़े देने की जरूरत नहीं होती.

वहीं बच्चे की भी ऑनलाइन क्लास है. साथ ही बीवी का भी ऑनलाइन काम होता है, तो लॉन्ड्री में कपड़े देने की जरूरत ही नहीं पड़ रही. इसके साथ ही आईटी कंपनी में जॉब कर रहे दीपक ने कहा लॉकडाउन भले ही खत्म हो गया है, लेकिन अभी भी वह वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं. ऐसे में कपड़े ज्यादा बदलने की आवश्यकता नहीं होती है और अगर कपड़े इस्तेमाल भी होते हैं, तो खुद ही धो लेते हैं.

नई दिल्ली : कोरोना काल में काम का एक नया वर्क कल्चर देखने को मिला है जिससे हम वर्क फ्रॉम होम (Work from home) कहते हैं. यानी कि घर पर रहकर ही ऑफिस का काम करना, लेकिन यह वर्क फ्रॉम होम कई लोगों के लिए मुसीबत बनकर आया है. खास तौर पर लॉन्ड्री वालों के लिए, क्योंकि घर पर रह रहे लोग अब अपने कपड़े लॉन्ड्री में नहीं दे रहे हैं.

वहीं स्कूल कॉलेज बंद होने के चलते भी लॉन्ड्री वालों के पास कपड़े नहीं आ रहे हैं, जिसके चलते उनका कारोबार बंद होने की कगार पर है. ईटीवी भारत ने दिल्ली में ऐसे ही लॉन्ड्री वालों से बात की, जिनका वर्क फ्रॉम होम के चलते काम प्रभावित हो रहा है. पिछले 20 सालों से गोविंदपुरी इलाके में लॉन्ड्री का काम कर रही, रीना देवी ने बताया कि अब हफ्ते में केवल एक या दो दिन का काम ही रह गया है.

'वर्क फ्रॉम होम' ने तोड़ी लॉन्ड्री वालों की कमर...

कॉलेज/इंस्टीट्यूट न खुलने से काम पर असर
पहले रोजाना इतने कपड़े आते थे कि सांस लेने तक का समय नहीं होता था, लेकिन अब 5 से 10 घरों के ही कपड़े आ रहे हैं. वहीं गोविंदपुरी में सबसे ज्यादा पीजी हुआ करते थे, जिसमें कि युवा रहते थे जिसमें से कई लोग ऑफिस जाते थे, तो कई लोग कॉलेज या इंस्टीट्यूट जाते थे, ऐसे में उन बच्चों के भी कपड़े भी लॉन्ड्री में आते थे, लेकिन अब नहीं आ रहे हैं.

रोजाना 200-250 कपड़े प्रेस होने आते थे
इसके साथ ही गोविंदपुरी की गली नंबर 4 में पिछले 18 सालों से लॉन्ड्री का काम कर रहे वीरू कनौजिया ने कहा एक कपड़े के 4 से 5 रुपये मिलते हैं और पहले रोजाना 200 से ढ़ाई सौ कपड़े प्रेस होने के लिए आते थे, लेकिन अब तो कपड़े भी काफी मुश्किल से आ रहे हैं. ऐसे में कमाई बहुत कम हो गई है. गुजारा करने के लिए कोई दूसरा रोजगार भी नहीं है.

वीरू कनौजिया ने कहा कि लॉन्ड्री के काम पर ही निर्भर हैं, जैसे तैसे गुजारा कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि ऑफिस वाले ऑफिस नहीं जा रहे हैं और ना ही स्कूल वाले स्कूल जा रहे हैं. ऐसे में ना यूनिफॉर्म आ रही है औ ना ही ऑफिस वालों के कपड़े आ रहे हैं. इसके साथ ही शादी-विवाह के कपड़े भी लॉन्ड्री में आते थे, उससे भी अच्छा काम मिल जाता था, लेकिन अब वह भी नहीं हो रहा है.

फॉर्मल पहनने की नहीं होती जरूरत
वहीं पिछले 2 सालों से वर्क फ्रॉम होम कर रहे संतोष ने कहा कि घर पर रहकर ही काम करना होता है. ऐसे में फॉर्मल पहनने की जरूरत नहीं होती. टी-शर्ट और ट्राउजर में ही काम करते हैं. कभी अगर ऑनलाइन मीटिंग होती है, तो उसके लिए शर्ट पहन लेते हैं. लेकिन वह भी आधे या 1 घंटे के लिए ही पहननी होती है. ऐसे में लॉन्ड्री में कपड़े देने की जरूरत नहीं होती.

वहीं बच्चे की भी ऑनलाइन क्लास है. साथ ही बीवी का भी ऑनलाइन काम होता है, तो लॉन्ड्री में कपड़े देने की जरूरत ही नहीं पड़ रही. इसके साथ ही आईटी कंपनी में जॉब कर रहे दीपक ने कहा लॉकडाउन भले ही खत्म हो गया है, लेकिन अभी भी वह वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं. ऐसे में कपड़े ज्यादा बदलने की आवश्यकता नहीं होती है और अगर कपड़े इस्तेमाल भी होते हैं, तो खुद ही धो लेते हैं.

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