नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) ने दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court ) को निर्देश दिया है कि वो तीन महीनों के अंदर ये फैसला करे कि नफरत फैलाने वाले भाषण (Hate Speech) के लिए नेताओं के खिलाफ FIR दर्ज होनी चाहिए या नहीं.
पिछले साल दिल्ली में दंगों के दौरान कई नेताओं पर हेट स्पीच देने का आरोप लगा था. दंगों से पीड़ित परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई कि उन नेताओं के खिलाफ FIR दर्ज की जाए जिन्होंने नफरत फैलाने वाले भाषण दिए थे. लेकिन कोर्ट ने इस पर कोई भी फैसला देने से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये मामला पहले से ही हाई कोर्ट में लंबित है.
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ दिल्ली दंगों के पीड़ितों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने विशेष जांच दल द्वारा जांच, सीसीटीवी फुटेज के संरक्षण और दंगों के सबूत और पीड़ितों के लिए मुआवजे की मांग की थी.
याचिकाकर्ताओं के अनुसार, मामला मार्च 2020 में हाईकोर्ट को भेजा गया था, लेकिन हाईकोर्ट ने कहा कि वह जामिया हिंसा मामले के बाद इस पर फैसला करेगा. लेकिन जामिया का मामला आगे नहीं बढ़ा और इसलिए उनकी याचिका पर भी सुनवाई नहीं हो रही है.
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इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह इस मामले को जल्द से जल्द निपटाने के लिए हाईकोर्ट से अनुरोध करने के अलावा कुछ नहीं कर सकती. याचिकाकर्ताओं की तरफ से एडवोकेट गोंजाल्विस ने मामले को फिर दूसरी बेंच में स्थानांतरित करने का अनुरोध किया. गोंजाल्विस ने तर्क दिया, जामिया के छात्रों के लिए क्या न्याय है, दिल्ली दंगों से संबंधित लोगों के लिए क्या न्याय है. छात्रों को बेरहमी से पीटा गया, सिर फोड़ दिया गया. मैं आपको स्पष्ट रूप से बता रहा हूं कि हमें विश्वास नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं है और हाईकोर्ट को इस मुद्दे पर सुनवाई करने का निर्देश दिया. अदालत ने आदेश दिया, हम उच्च न्यायालय से अनुरोध करते हैं कि रिट याचिका पर तेजी से फैसला किया जाए, अधिमानतः तीन महीने की अवधि के भीतर.