नई दिल्ली: दिल्ली में सड़कों, हाइवे और सुरंगों को अलग-अलग तरीकों से सजाने का काम किया जाता है. हालांकि इन हाईवे और सुरंगों पर कलाकारों की कलाकृति सबसे ज्यादा दिखती है. वहीं 1.6 किलोमीटर लंबी प्रगति मैदान के सुरंग में भी ऐसी अनोखी कलाकृति बनाई जा रही है. हालांकि यह सुरंग मार्च के शुरुआत में आम लोगों के लिए ही खुल जाएगा. लेकिन इस बार इस यह पेंटिंग काफी खास है क्योंकि इस बार प्रगति मैदान के सुरंग में सबसे अलग सबसे अनोखी म्यूरल आर्ट को बनाया जा रहा है.
म्यूरल मतलब रंगों की मदद से दीवारों पर उकेरे गए ऐसे चित्र, जो बिल्कुल जीवंत लगते हैं. यह कला भारतीयों के लिए नई नहीं है, लेकिन मॉडर्न आर्ट ने इसे लोकप्रिय बनाने में खूब मदद की है. म्यूरल्स हमारे लिए इसलिए भी खास हैं, क्योंकि अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति दिलाने में भी ये मददगार साबित हुए थे. भित्ति चित्रों के माध्यम से अपनी बात लोगों तक पहुंचाना भारतीय संस्कृति की पुरानी पहचान रही है.
98 हजार वर्ग मीटर में होगा आर्ट वर्क : प्रगति मैदान सुरंग का काम पूरा होने को है और हमने 98 हजार वर्ग मीटर का आर्ट वर्क बनाया है.
स्टील की चादर के ऊपर पावडर कलर कोटिंग : सुरंग में बना म्यूरल आर्ट भी बहुत अनोखा है. मुख्य सुरंग की दीवारों पर सबसे पहले तीन मिलीमीटर मोटी माइल्ड स्टील की चादर लगाई गई है. उसके ऊपर पावडर कलर कोटिंग के जरिए पेंटिंग की गई है.
भारत के छह मौसमों की कहानी : सुरंग को छह हिस्सों में बांटा गया है. हर हिस्सा सीजन के हिसाब से सूरज और चांद के महत्व को बताता है.
पढ़ेंःदिल्ली क्राइम ब्रांच ने सेक्सटोर्शन गैंग के दो सरगनाओं को किया गिरफ्तार
क्या है म्यूरल आर्ट
म्यूरल दीवारों पर उकेरे गए ऐसे चित्र, जो बिल्कुल जीवंत लगते हैं. यह कला भारतीयों के लिए नई नहीं है. भित्ति चित्रों के माध्यम से बात कहना हमारी संस्कृति रही है. राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश में खंडहरनुमा महलों में आज भी ऐतिहासिक म्यूरल्स देखे जा सकते हैं. पहले इस काम को कुछ खास जातियां या परिवार किया करते थे, लेकिन अब ये प्रोफेशनल काम बन चुका है. अब टाइल्स, टेराकोटा, सीमेंट, बालू, ग्लास, प्लास्टिक, लोहे और स्टील आदि माध्यमों से परमानेंट म्यूरल बनाए जाते हैं.