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दिल्ली हाईकोर्ट ने पूछा, 'क्या पीएम के खिलाफ जुमला शब्द का इस्तेमाल उचित है'

क्या पीएम के खिलाफ जुमला शब्द का इस्तेमाल सही है ? यह सवाल दिल्ली हाईकोर्ट के जज ने सुनवाई के दौरान किया. दिल्ली हिंसा मामले में आरोपी उमर खालिद की जमानत याचिका पर कोर्ट में सुनवाई चल रही थी.

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दिल्ली हाईकोर्ट
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Published : Apr 27, 2022, 11:11 PM IST

नई दिल्ली : दिल्ली हिंसा की साजिश रचने के मामले में आरोपी उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने पूछा कि क्या पीएम के खिलाफ जुमला शब्द का इस्तेमाल सही है ? वहीं दूसरी ओर उमर खालिद की ओर से कहा गया कि सरकार की आलोचना करना अपराध नहीं है.

सुनवाई के दौरान जज रजनीश भटनागर ने उमर खालिद के वकील त्रिदीप पायस से पूछा कि क्या देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ जुमला शब्द का इस्तेमाल उचित है. तब पायस ने कहा कि सरकार या सरकार की नीतियों की आलोचना करना गैरकानूनी नहीं है. सरकार की आलोचना करना अपराध नहीं है. जस्टिस भटनागर ने उमर खालिद के भाषण में चंगा शब्द के इस्तेमाल पर भी सवाल उठाया. तब पेस ने कहा कि यह व्यंग्य है. सब चंगा सी का इस्तेमाल शायद प्रधानमंत्री के दिए गए भाषण के लिए किया गया था. उन्होंने कहा कि सरकार की आलोचना करना अपराध नहीं हो सकता है.

UAPA के आरोपों के साथ 583 दिनों की जेल की कल्पना सरकार के खिलाफ बोलने वाले व्यक्ति के लिए नहीं की गई थी. हम इतने असहिष्णु नहीं हो सकते हैं. तब जस्टिस भटनागर ने कहा कि आलोचना की भी एक सीमा और एक लक्ष्मण रेखा भी होनी चाहिए. पेस ने कहा कि उमर खालिद का भाषण अपने आप में हिंसा का आह्वान नहीं करता है. दिल्ली हिंसा के किसी भी गवाह ने यह नहीं कहा है कि उन्हें हिंसा के लिए उकसाया गया था. केवल दो गवाहों ने इस भाषण के सुनने का हवाला दिया. वे कहते हैं कि वे भाषण से उत्तेजित नहीं थे. उन्होंने कहा कि दंगों से कुछ हफ्ते पहले अमरावती में भाषण दिया गया था और खालिद दंगों के दौरान दिल्ली में मौजूद नहीं थे.

22 अप्रैल को हाईकोर्ट ने उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया था. जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा था कि प्रथम दृष्टया उमर खालिद के भाषण सही नहीं प्रतीत होते हैं. कोर्ट ने कहा था कि उमर खालिद ने अमरावती में जो भाषण दिया उसे जायज नहीं ठहराया जा सकता है. सुनवाई के दौरान त्रिदीप पायस से कोर्ट ने पूछा था कि उमर खालिद के खिलाफ आरोप क्या हैं तो उन्होंने कहा था कि साजिश रचने का. पायस ने कहा कि उमर खालिद हिंसा के समय दिल्ली में मौजूद भी नहीं था. उमर खालिद के पास से कुछ बरामद भी नहीं किया गया है. पायस ने कहा था कि जिस भाषण को आधार बनाया गया है वो चुनावी लोकतंत्र और कानून के शासन पर था.

24 मार्च को कड़कड़डूमा कोर्ट ने उमर खालिद की जमानत याचिका खारिज कर दी थी. कड़कड़डूमा कोर्ट में सुनवाई के दौरान पायस ने कहा था कि चार्जशीट में कहा गया है उमर खालिद ने 10 दिसंबर 2019 को प्रदर्शन में हिस्सा लिया, लेकिन क्या प्रदर्शन में शामिल होना अपराध है. उन्होंने कहा था कि उमर खालिद के खिलाफ हिंसा करने के कोई सबूत नहीं हैं. जांच जारी रहना हर प्रश्न का उत्तर नहीं है. उन्होंने कहा था कि चुप्पी की साजिश का आरोप गलत है. अभियोजन के लिए ये काफी आसान है कि जब दो, तीन और 10 लोग वाट्सऐप पर एक ही भाषा बोलें तो आप कुछ के खिलाफ आरोप लगाएंगे और कुछ के खिलाफ नहीं क्योंकि वो आपकी दलील के मुताबिक है.

दिल्ली पुलिस ने दिल्ली हिंसा के आरोपी उमर खालिद समेत दूसरे आरोपियों की जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि इस मामले में टेरर फंडिंग हुई थी. स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्यूटर अमित प्रसाद ने कहा कि इस मामले के आरोपी ताहिर हुसैन ने काला धन को सफेद करने का काम दिया. अमित प्रसाद ने कहा था कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली की हिंसा के दौरान 53 लोगों की मौत हुई. इस मामले में 755 FIR दर्ज किए गए हैं. उमर खालिद को 13 सितंबर 2020 को पूछताछ के बाद स्पेशल सेल ने गिरफ्तार कर लिया था. 17 सितंबर 2020 को कोर्ट ने दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की ओर से दायर चार्जशीट पर संज्ञान लिया था. 16 सितंबर 2020 को स्पेशल सेल ने चार्जशीट दाखिल की थी.

नई दिल्ली : दिल्ली हिंसा की साजिश रचने के मामले में आरोपी उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने पूछा कि क्या पीएम के खिलाफ जुमला शब्द का इस्तेमाल सही है ? वहीं दूसरी ओर उमर खालिद की ओर से कहा गया कि सरकार की आलोचना करना अपराध नहीं है.

सुनवाई के दौरान जज रजनीश भटनागर ने उमर खालिद के वकील त्रिदीप पायस से पूछा कि क्या देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ जुमला शब्द का इस्तेमाल उचित है. तब पायस ने कहा कि सरकार या सरकार की नीतियों की आलोचना करना गैरकानूनी नहीं है. सरकार की आलोचना करना अपराध नहीं है. जस्टिस भटनागर ने उमर खालिद के भाषण में चंगा शब्द के इस्तेमाल पर भी सवाल उठाया. तब पेस ने कहा कि यह व्यंग्य है. सब चंगा सी का इस्तेमाल शायद प्रधानमंत्री के दिए गए भाषण के लिए किया गया था. उन्होंने कहा कि सरकार की आलोचना करना अपराध नहीं हो सकता है.

UAPA के आरोपों के साथ 583 दिनों की जेल की कल्पना सरकार के खिलाफ बोलने वाले व्यक्ति के लिए नहीं की गई थी. हम इतने असहिष्णु नहीं हो सकते हैं. तब जस्टिस भटनागर ने कहा कि आलोचना की भी एक सीमा और एक लक्ष्मण रेखा भी होनी चाहिए. पेस ने कहा कि उमर खालिद का भाषण अपने आप में हिंसा का आह्वान नहीं करता है. दिल्ली हिंसा के किसी भी गवाह ने यह नहीं कहा है कि उन्हें हिंसा के लिए उकसाया गया था. केवल दो गवाहों ने इस भाषण के सुनने का हवाला दिया. वे कहते हैं कि वे भाषण से उत्तेजित नहीं थे. उन्होंने कहा कि दंगों से कुछ हफ्ते पहले अमरावती में भाषण दिया गया था और खालिद दंगों के दौरान दिल्ली में मौजूद नहीं थे.

22 अप्रैल को हाईकोर्ट ने उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया था. जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा था कि प्रथम दृष्टया उमर खालिद के भाषण सही नहीं प्रतीत होते हैं. कोर्ट ने कहा था कि उमर खालिद ने अमरावती में जो भाषण दिया उसे जायज नहीं ठहराया जा सकता है. सुनवाई के दौरान त्रिदीप पायस से कोर्ट ने पूछा था कि उमर खालिद के खिलाफ आरोप क्या हैं तो उन्होंने कहा था कि साजिश रचने का. पायस ने कहा कि उमर खालिद हिंसा के समय दिल्ली में मौजूद भी नहीं था. उमर खालिद के पास से कुछ बरामद भी नहीं किया गया है. पायस ने कहा था कि जिस भाषण को आधार बनाया गया है वो चुनावी लोकतंत्र और कानून के शासन पर था.

24 मार्च को कड़कड़डूमा कोर्ट ने उमर खालिद की जमानत याचिका खारिज कर दी थी. कड़कड़डूमा कोर्ट में सुनवाई के दौरान पायस ने कहा था कि चार्जशीट में कहा गया है उमर खालिद ने 10 दिसंबर 2019 को प्रदर्शन में हिस्सा लिया, लेकिन क्या प्रदर्शन में शामिल होना अपराध है. उन्होंने कहा था कि उमर खालिद के खिलाफ हिंसा करने के कोई सबूत नहीं हैं. जांच जारी रहना हर प्रश्न का उत्तर नहीं है. उन्होंने कहा था कि चुप्पी की साजिश का आरोप गलत है. अभियोजन के लिए ये काफी आसान है कि जब दो, तीन और 10 लोग वाट्सऐप पर एक ही भाषा बोलें तो आप कुछ के खिलाफ आरोप लगाएंगे और कुछ के खिलाफ नहीं क्योंकि वो आपकी दलील के मुताबिक है.

दिल्ली पुलिस ने दिल्ली हिंसा के आरोपी उमर खालिद समेत दूसरे आरोपियों की जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि इस मामले में टेरर फंडिंग हुई थी. स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्यूटर अमित प्रसाद ने कहा कि इस मामले के आरोपी ताहिर हुसैन ने काला धन को सफेद करने का काम दिया. अमित प्रसाद ने कहा था कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली की हिंसा के दौरान 53 लोगों की मौत हुई. इस मामले में 755 FIR दर्ज किए गए हैं. उमर खालिद को 13 सितंबर 2020 को पूछताछ के बाद स्पेशल सेल ने गिरफ्तार कर लिया था. 17 सितंबर 2020 को कोर्ट ने दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की ओर से दायर चार्जशीट पर संज्ञान लिया था. 16 सितंबर 2020 को स्पेशल सेल ने चार्जशीट दाखिल की थी.

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