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दिल्ली हाईकोर्ट ने आत्महत्या की थ्योरी मानने से किया इनकार, UP के पुलिस अधिकारियों की सजा बरकरार

UP के 5 पुलिस अधिकारियों को दिल्ली हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है. कोर्ट ने पुलिस हिरासत में युवक की मौत के मामले में ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है. सभी पुलिस अफसरों को 10 साल की सजा सुनाई गई है.

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Published : Jun 26, 2023, 7:31 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को एक ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें सबूतों के अभाव में सोनू नामक 26 वर्षीय युवक की हिरासत में मौत के मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस के पांच अधिकारियों को 10 साल की सजा सुनाई गई थी. मामले और रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों पर विचार करने के बाद हाईकोर्ट ने अब ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है.

हाईकोर्ट ने सोनू के पीड़ित पिता की उस याचिका को भी खारिज कर दिया, जिसमें आईपीसी की धारा 304 (लापरवाही से मौत) के तहत दोषसिद्धि को धारा 302 (हत्या) के तहत बदलने की मांग की गई थी. घटनाओं के उक्त अनुक्रम और रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों से पता चलता है कि मृतक को हिरासत में यातना दी गई थी, यह जानते हुए कि इससे युवक की मृत्यु होने की संभावना थी. लेकिन मृत्यु का कारण बनने का कोई इरादा नहीं था.

यह भी पढ़ेंः Adipurush Controversy: 'आदिपुरुष' के खिलाफ दायर याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट 30 जून को करेगा सुनवाई

कोर्ट ने कहा कि आरोपी को धारा 304 आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध का दोषी बनाया जाएगा और आरोपित 10 साल की सजा के लिए उत्तरदायी होगा. दोषी पुलिसकर्मियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ अग्रवाल और अधिवक्ता डॉ. एलएस चौधरी, डॉ. अजय चौधरी, डीएस चौधरी, विशेष कुमार, दिनेश कुमार, जीएस चतुर्वेदी, दलीप कुमार संतोषी, राकेश कुमार और कंवर उदय भान सिंह सहरावत पेश हुए. सोनू के पिता का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता दिव्येश प्रताप सिंह, प्रतीक्षा त्रिपाठी, अजय और विक्रम प्रताप सिंह ने किया. उत्तर प्रदेश राज्य का प्रतिनिधित्व अतिरिक्त लोक अभियोजक पृथु गर्ग के माध्यम से किया गया.

यह भी पढ़ेंः दिल्ली में नहीं चलेगी OLA-UBER की बाइक टैक्सी, SC ने दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश पर लगाई रोक

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को एक ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें सबूतों के अभाव में सोनू नामक 26 वर्षीय युवक की हिरासत में मौत के मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस के पांच अधिकारियों को 10 साल की सजा सुनाई गई थी. मामले और रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों पर विचार करने के बाद हाईकोर्ट ने अब ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है.

हाईकोर्ट ने सोनू के पीड़ित पिता की उस याचिका को भी खारिज कर दिया, जिसमें आईपीसी की धारा 304 (लापरवाही से मौत) के तहत दोषसिद्धि को धारा 302 (हत्या) के तहत बदलने की मांग की गई थी. घटनाओं के उक्त अनुक्रम और रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों से पता चलता है कि मृतक को हिरासत में यातना दी गई थी, यह जानते हुए कि इससे युवक की मृत्यु होने की संभावना थी. लेकिन मृत्यु का कारण बनने का कोई इरादा नहीं था.

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कोर्ट ने कहा कि आरोपी को धारा 304 आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध का दोषी बनाया जाएगा और आरोपित 10 साल की सजा के लिए उत्तरदायी होगा. दोषी पुलिसकर्मियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ अग्रवाल और अधिवक्ता डॉ. एलएस चौधरी, डॉ. अजय चौधरी, डीएस चौधरी, विशेष कुमार, दिनेश कुमार, जीएस चतुर्वेदी, दलीप कुमार संतोषी, राकेश कुमार और कंवर उदय भान सिंह सहरावत पेश हुए. सोनू के पिता का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता दिव्येश प्रताप सिंह, प्रतीक्षा त्रिपाठी, अजय और विक्रम प्रताप सिंह ने किया. उत्तर प्रदेश राज्य का प्रतिनिधित्व अतिरिक्त लोक अभियोजक पृथु गर्ग के माध्यम से किया गया.

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