नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र सरकार को आठ सप्ताह के भीतर दवाओं की ऑनलाइन बिक्री के संबंध में नीति बनाने का निर्देश दिया. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की खंडपीठ ने कहा कि यह देखते हुए कि मामला पांच साल से अदालत में लंबित है. केंद्र सरकार को एक नीति लाने का आखिरी मौका दिया जा रहा है.
केंद्र सरकार के स्थायी वकील कीर्तिमान सिंह का कहना है कि 28 अगस्त, 2018 की अधिसूचना पर परामर्श और विचार-विमर्श अभी भी चल रहा है, जो दवाओं की ऑनलाइन बिक्री से संबंधित है. इस न्यायालय का मानना है चूकि पांच वर्ष से अधिक समय बीत चुका है, भारत संघ के पास उक्त नीति तैयार करने के लिए पर्याप्त समय है.
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हालाँकि, आठ सप्ताह में नीति तैयार करने का एक आखिरी अवसर दिया गया है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यदि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री के संबंध में नीति नहीं बनाई गई है तो इस विषय से निपटने वाले संबंधित संयुक्त सचिव को सुनवाई की अगली तारीख पर व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होना होगा. हाई कोर्ट ऑनलाइन दवाओं की अवैध बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने वाली याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई कर रहा था. याचिकाओं में औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियमों में और संशोधन करने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा प्रकाशित मसौदा नियमों को भी चुनौती दी गई है.
दिसंबर 2018 में, उच्च न्यायालय ने दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर रोक लगाने का आदेश पारित किया था क्योंकि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स अधिनियम, 1940 और फार्मेसी अधिनियम, 1948 के तहत इसकी अनुमति नहीं थी. इसी तरह का एक मुद्दा मद्रास हाई कोर्ट के समक्ष भी सामने आया था. साथ ही 2018 में दिल्ली हाई कोर्ट में भी ऑनलाइन दवाओं की बिक्री जारी रखने के लिए ई-फार्मेसी के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने वाली एक अवमानना याचिका दायर की गई है. कोर्ट के आदेशों के बावजूद दोषी ई-फार्मेसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने के लिए केंद्र सरकार के खिलाफ भी कार्रवाई की मांग की गई है.
ई-फार्मेसी ने कोर्ट को बताया है कि उन्हें दवाओं और प्रिस्क्रिप्शन दवाओं की ऑनलाइन बिक्री के लिए लाइसेंस की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वे केवल दवाओं की डिलीवरी कर रहे हैं, जैसे कि स्विगी जैसे खाद्य वितरण ऐप के माध्यम से भोजन की डिलीवरी करता है.