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Delhi High Court ने बुजुर्ग स्वतंत्रता सेनानी को पेंशन का भुगतान करने में विफल रहने पर केंद्र सरकार पर लगाया जुर्माना

96 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी को पेंशन का भुगतान करने में विफल रहने पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार पर 20 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है. Delhi High Court fines central government, Delhi High Court

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 4, 2023, 3:01 PM IST

Updated : Nov 4, 2023, 4:02 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारत की आजादी से जुड़े आंदोलनों में भाग लेने वाले एक 96 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी को 'स्वतंत्रता सैनिक सम्मान पेंशन' के तहत भुगतान करने में ढुलमुल रवैया अपनाने और उसमें विफल होने के लिए केंद्र सरकार पर 20 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है. न्यायालय ने कहा कि यह मामला उस दुखद स्थिति को दर्शाता है जिसमें बुजुर्ग स्वतंत्रता सेनानी उत्तीम लाल सिंह को अपनी उचित पेंशन पाने के लिए 40 वर्षों से अधिक समय तक इंतजार करना पड़ा और दर-दर भटकना पड़ा.

कोर्ट ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानी उत्तीम लाल सिंह के प्रति केंद्र सरकार की निष्क्रियता उनका अपमान है. उस समय उत्तीम लाल सिंह को ब्रिटिश सरकार द्वारा अपराधी घोषित कर उनके खिलाफ कार्यवाही में उनकी पूरी जमीन कुर्क कर ली गई थी. न्यायाधीश सुब्रमण्यम प्रसाद ने स्वतंत्रता सेनानी की पेंशन एक अगस्त 1980 से पेंशन राशि की तारीख तक छह प्रतिशत/वर्ष की ब्याज दर से केंद्र सरकार को 12 हफ्ते के भीतर जारी करने को कहा. साथ ही यह भी कहा कि न्यायालय भारत संघ के उदासीन दृष्टिकोण के लिए, भारत संघ पर 20 हजार रुपये का जुर्माना लगाना उचित है.

गौरतलब है कि उत्तीम लाल सिंह के मामले में बिहार सरकार ने मामले की सिफारिश की थी, लेकिन उनके द्वारा भेजे गएदस्तावेज केंद्र सरकार द्वारा खो दिए गए थे, जिसके बाद बिहार सरकार ने पिछले साल उत्तीम लाल सिंह के दस्तावेजों का एक बार फिर सत्यापन किया था.

उत्तीम लाल सिंह ने यह कहते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया कि उनका जन्म वर्ष 1927 में हुआ था और उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन व स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े अन्य आंदोलनों में भाग लिया था. सितंबर 1943 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें अभियुक्त बनाया और घोषित अपराधी घोषित कर दिया. उन्होंने मार्च 1982 में स्वतंत्रता सैनिक सम्मान पेंशन के लिए आवेदन किया था. उनका नाम बिहार सरकार ने फरवरी 1983 में केंद्र सरकार को भेजा था और सितंबर 2009 में सिफारिश दोहराई गई थी.

नवंबर 2017 में, केंद्र सरकार ने कहा कि सिंह के रिकॉर्ड गृह मंत्रालय के पास उपलब्ध नहीं थे और बिहार सरकार से संबंधित दस्तावेजों की सत्यापित प्रतियां साझा करने का अनुरोध किया गया था. उसके बाद भी, विभिन्न अधिकारियों के बीच कई संचार का आदान-प्रदान किया गया लेकिन याचिकाकर्ता को उसकी पेंशन नहीं मिली. इसलिए, उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया. याचिकाकर्ता उत्तीम लाल सिंह की ओर से अधिवक्ता आईसी मिश्रा और अनवर अली खान उपस्थित हुए.

यह भी पढ़ें-अयोध्या राम मंदिर में सोने और हीरों का मुकुट दान करना चाहता है सुकेश चंद्रशेखर, लिखा पत्र

अदालत ने याचिका को स्वीकार करते हुए कि जब बिहार राज्य ने उत्तीम लाल सिंह के नाम की पहले ही सिफारिश की थी और संबंधित जिला मजिस्ट्रेट ने उनके नाम का सत्यापन किया था तो वह इसे समझ पाने में असमर्थ हैं कि उत्तीम लाल सिंहको पेंशन क्यों नहीं दी जा रही है. न्यायाधीश ने कहा कि पेंशन योजना की मूल भावना केंद्र सरकार के अड़ियल रवैये से पराजित हो रही है, जिसकी सराहना नहीं की जा सकती. उन्होंने यह भी कहा कि भारत संघ द्वारा दिखाई गई इस तरह की असंवेदनशीलता दर्दनाक है.

यह भी पढ़ें-People Fined 20 Thousand: दिल्ली में बीएस-3 व बीएस-4 वाहन चलाने वाले 122 लोगों पर 20 हजार का जुर्माना

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारत की आजादी से जुड़े आंदोलनों में भाग लेने वाले एक 96 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी को 'स्वतंत्रता सैनिक सम्मान पेंशन' के तहत भुगतान करने में ढुलमुल रवैया अपनाने और उसमें विफल होने के लिए केंद्र सरकार पर 20 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है. न्यायालय ने कहा कि यह मामला उस दुखद स्थिति को दर्शाता है जिसमें बुजुर्ग स्वतंत्रता सेनानी उत्तीम लाल सिंह को अपनी उचित पेंशन पाने के लिए 40 वर्षों से अधिक समय तक इंतजार करना पड़ा और दर-दर भटकना पड़ा.

कोर्ट ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानी उत्तीम लाल सिंह के प्रति केंद्र सरकार की निष्क्रियता उनका अपमान है. उस समय उत्तीम लाल सिंह को ब्रिटिश सरकार द्वारा अपराधी घोषित कर उनके खिलाफ कार्यवाही में उनकी पूरी जमीन कुर्क कर ली गई थी. न्यायाधीश सुब्रमण्यम प्रसाद ने स्वतंत्रता सेनानी की पेंशन एक अगस्त 1980 से पेंशन राशि की तारीख तक छह प्रतिशत/वर्ष की ब्याज दर से केंद्र सरकार को 12 हफ्ते के भीतर जारी करने को कहा. साथ ही यह भी कहा कि न्यायालय भारत संघ के उदासीन दृष्टिकोण के लिए, भारत संघ पर 20 हजार रुपये का जुर्माना लगाना उचित है.

गौरतलब है कि उत्तीम लाल सिंह के मामले में बिहार सरकार ने मामले की सिफारिश की थी, लेकिन उनके द्वारा भेजे गएदस्तावेज केंद्र सरकार द्वारा खो दिए गए थे, जिसके बाद बिहार सरकार ने पिछले साल उत्तीम लाल सिंह के दस्तावेजों का एक बार फिर सत्यापन किया था.

उत्तीम लाल सिंह ने यह कहते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया कि उनका जन्म वर्ष 1927 में हुआ था और उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन व स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े अन्य आंदोलनों में भाग लिया था. सितंबर 1943 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें अभियुक्त बनाया और घोषित अपराधी घोषित कर दिया. उन्होंने मार्च 1982 में स्वतंत्रता सैनिक सम्मान पेंशन के लिए आवेदन किया था. उनका नाम बिहार सरकार ने फरवरी 1983 में केंद्र सरकार को भेजा था और सितंबर 2009 में सिफारिश दोहराई गई थी.

नवंबर 2017 में, केंद्र सरकार ने कहा कि सिंह के रिकॉर्ड गृह मंत्रालय के पास उपलब्ध नहीं थे और बिहार सरकार से संबंधित दस्तावेजों की सत्यापित प्रतियां साझा करने का अनुरोध किया गया था. उसके बाद भी, विभिन्न अधिकारियों के बीच कई संचार का आदान-प्रदान किया गया लेकिन याचिकाकर्ता को उसकी पेंशन नहीं मिली. इसलिए, उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया. याचिकाकर्ता उत्तीम लाल सिंह की ओर से अधिवक्ता आईसी मिश्रा और अनवर अली खान उपस्थित हुए.

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अदालत ने याचिका को स्वीकार करते हुए कि जब बिहार राज्य ने उत्तीम लाल सिंह के नाम की पहले ही सिफारिश की थी और संबंधित जिला मजिस्ट्रेट ने उनके नाम का सत्यापन किया था तो वह इसे समझ पाने में असमर्थ हैं कि उत्तीम लाल सिंहको पेंशन क्यों नहीं दी जा रही है. न्यायाधीश ने कहा कि पेंशन योजना की मूल भावना केंद्र सरकार के अड़ियल रवैये से पराजित हो रही है, जिसकी सराहना नहीं की जा सकती. उन्होंने यह भी कहा कि भारत संघ द्वारा दिखाई गई इस तरह की असंवेदनशीलता दर्दनाक है.

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Last Updated : Nov 4, 2023, 4:02 PM IST
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