नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं. और इस बार चुनावी रण में दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपनी पार्टी की मुफ्त योजनाओं के समर्थन में एक दिलचस्प बयान दिया है. रविवार को दिल्ली में एक जनसभा को संबोधित करते हुए केजरीवाल ने कहा कि बहुत से लोग मुझसे पूछते हैं कि इन योजनाओं के लिए पैसा कहां से आएगा? मैं बनिया का बेटा हूं, जादूगर हूं, चिंता मत करो. केजरीवाल ने कहा आम खाओ गुठली मत गिनो. इस बयान का उद्देश्य उनकी पार्टी द्वारा दी जा रही मुफ्त सुविधाओं के लिए उठ रहे सवालों का जवाब देना था.
'योजनाओं के लिए पैसा कहां से आएगा'? अरविंद केजरीवाल का यह बयान दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले एक महत्वपूर्ण राजनीतिक बयान बन गया है, क्योंकि दिल्ली के लोग और विपक्षी दल यह सवाल उठा रहे हैं कि मुफ्त योजनाओं के लिए पैसे की व्यवस्था कैसे की जाएगी. केजरीवाल ने अपनी राजनीति को 'बनिया का बेटा' के रूप में प्रस्तुत करते हुए यह संदेश दिया कि वे आर्थिक मामलों में दक्ष हैं और इन योजनाओं के लिए धन का प्रबंध करने में सक्षम हैं.
मैं बनिया का बेटा हूं-केजरीवाल: केजरीवाल ने अपनी पार्टी की उपलब्धियों का जिक्र करते हुए कहा कि मैं बनिया का बेटा हूं, मुझे हर हिसाब-किताब का पता है. मैं किसी भी तरीके से पैसा जुटा सकता हूं. उन्होंने यह भी दावा किया कि दिल्ली में उनकी सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़कें, मोहल्ला क्लीनिक और अन्य बुनियादी सुविधाओं के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण काम किए हैं. इसके विपरीत उन्होंने बीजेपी पर तंज कसते हुए कहा कि बीजेपी की आधी सरकार ने पिछले 10 सालों में दिल्ली के लोगों के लिए क्या काम किया है? एक भी काम गिनाकर बताइए.
केजरीवाल के बयान से माहौल गरम: अरविंद केजरीवाल के इस बयान ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के माहौल को और गरमा दिया है. जहां एक ओर आम आदमी पार्टी मुफ्त योजनाओं को चुनावी मुद्दा बना रही है, वहीं दूसरी ओर विपक्षी दल इस पर सवाल उठा रहे हैं. केजरीवाल ने खुद को 'जादूगर' कहकर इस मुद्दे का समाधान पेश करने का दावा किया है और यह देखना होगा कि चुनावी परिणाम इस दावे को कितना सही साबित करते हैं.
दिल्ली विधानसभा चुनाव में अब कुछ ही दिन बाकी हैं, और राजनीतिक दल अपने-अपने प्रचार में जोर-शोर से जुटे हुए हैं. केजरीवाल का यह बयान न केवल उनके समर्थकों को उत्साहित कर रहा है, बल्कि विपक्ष को भी चुनौती दे रहा है. दिल्ली की जनता को अब यह तय करना है कि वे किसकी योजनाओं और दावों को सही मानते हैं.