नई दिल्ली: संविधान विशेषज्ञ तथा दिल्ली विधानसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा (SK Sharma former secretary of Delhi Assembly) ने नगर निगमों के एकीकरण और विधानसभा की समाप्ति सहित कई पहलुओं पर खुलकर अपने विचार रखें. आइए जानते हैं, उन्होंने क्या कहा?
सवाल: राजधानी दिल्ली के तीनों नगर निगमों के एकीकरण (Consolidation of the three municipal corporations) के लिए एक विधेयक संसद में पेश किया गया है. केंद्र सरकार का यह कदम दिल्ली की जनता के कितने हित में है?
जवाब: इसमें कुछ भी नया नहीं है. वर्ष 1952 में दिल्ली विधानसभा का गठन हुआ था और चौधरी ब्रह्म प्रकाश मुख्यमंत्री हुआ करते थे. उस समय से लेकर आज तक नगर निगम हमेशा से ही केंद्र सरकार के अंतर्गत ही रहा है. वर्ष 2011 में शीला दीक्षित ने इसके तीन टुकड़े कर दिए. कारण राजनीतिक रहे होंगे कि तीनों नगर निगम उनके अधीन हो जाएंगे और उनके तीन महापौर बन जाएंगे क्योंकि उस समय दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) पर भाजपा का कब्जा था. इसलिए उन्होंने ऐसा किया था. हालांकि उस समय कि केंद्र की तत्कालीन सरकार से इसकी अनुमति ली गयी थी और तत्कालीन सरकार ने अनुमति दे भी दी थी. बाद में विधानसभा से इसे पारित किया गया और केंद्र ने अनुमति दी.
सवाल: विपक्षी दल इसे असंवैधानिक और संघीय ढांचे पर प्रहार बता रहे हैं. संवैधानिक दृष्टि से आपकी क्या राय है?
जवाब: विपक्षी दलों का यही काम है और उसमें कुछ गलत भी नहीं है. दिल्ली की विधानसभा उन्नाव बलात्कार मामले पर चर्चा करे और प्रस्ताव पारित करे तो क्या यह संघीय ढांचे पर प्रहार नहीं है? जब दिल्ली की विधानसभा जम्मू कश्मीर के कठुआ की किसी घटना पर चर्चा करेगी और प्रस्ताव पारित करेगी तो क्या यह संघीय ढांचे पर प्रहार नहीं है? दिल्ली की विधानसभा संसद द्वारा पारित किए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रस्ताव पारित करे और राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित कानून की निंदा करे तो क्या यह संघीय व्यवस्था के खिलाफ नहीं है. ऐसा करना संसद और भारत के लोकतंत्र की निंदा करना.
अब दिल्ली नगर निगम एक होने जा रहा है और एक संविधान के जानकार के नाते मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि दिल्ली की विधानसभा को अब समाप्त कर देना चाहिए. क्योंकि दिल्ली नगर निगम एक चुनी हुई निकाय बन जाएगा. इसके बाद विधानसभा का कोई औचित्य नहीं है. अब इस संस्था की कोई उपयोगिता नहीं रह जाएगी. इसका कोई काम नहीं है. कानून आप बना नहीं सकते, विधायी शक्तियां हैं नहीं आपके पास, केंद्र सरकार से पूछे बिना आप कुछ नहीं कर सकते तो क्या जरूरत है विधानसभा की.
सवाल: तो क्या इस विधेयक को लाए जाने के पीछे केंद्र सरकार की यही मंशा है? मतलब विधानसभा को समाप्त करने की मंशा है?
जवाब: अब संविधान के जानकार से आप राजनीतिक सवाल पूछेंगे तो मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा. मैं तो संवैधानिक ढांचा बता सकता हूं. चीजें संविधान के अनुरूप हैं या नहीं यह बता सकता हूं. सरकारों के अपने विचार हैं. वह क्या करना चाहते हैं और क्या नहीं करना चाहते हैं. यह राजनीतिक बयानबाजी हैं. इस पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करूंगा.
सवाल: मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इसे अदालत में चुनौती देने की बात कर रहे हैं. आपकी राय?
जवाब: दिल्ली के बारे में कानून बनाने का अधिकार दिल्ली विधानसभा को है ही नहीं. इनकी विधायी शक्तियां शून्य हैं. दिल्ली के जितने कानून बने हैं, वह सारे के सारे कानून संसद ने बनाए हैं क्योंकि संविधान निर्माता बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने संविधान में व्यवस्था दी है कि भारत की राजधानी में कोई भी कानून भारत की संसद ही बनाएगी. अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी राजधानी के बारे में कानून बनाने का अधिकार केवल और केवल वहां की संसद को है. किसी अन्य निकाय को नहीं है. इसलिए दिल्ली के बारे में सारे कानून बनाने का अधिकार संसद के पास है.
सवाल: एकीकरण की प्रक्रिया लंबी होगी, ऐसे में नगर निगम के चुनाव कब तक हो सकते हैं?
जवाब: इसमें कम से कम पांच-छह महीने तो लगेंगे ही. इससे पहले संभव नहीं है. वार्ड नए बनेंगे और इसके लिए परिसीमन की आवश्यकता (need for delimitation) होगी. फिर आपत्तियां भी आएंगी और राजनीतिक दलों में खींचतान भी होगी और फिर उनका निपटारा किया जाएगा. कुल मिलाकर एक लंबी कवायद है. इसमें एक साल भी लग जाएं तो कोई बड़ी बात नहीं है.
(पीटीआई-भाषा)