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एआई टूल्स से रखी जाएगी हिमालयी क्षेत्रों की हलचलों पर नजर, समय से मिलेगी जानकारी

Dehradun Wadia Institute of Himalayan Geology AI Tools अब हिमालयी क्षेत्रों में होने वाली हलचल का आसानी से पता चल पाएगा.वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी ने हिमालयी क्षेत्र के हलचलों की निगरानी के लिए एआई टूल्स को विकसित किया है. जिससे ग्लेशियरों के इंपेक्ट का आसानी से पता चल सकेगा.

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Dec 27, 2023, 4:27 PM IST

Updated : Dec 27, 2023, 4:49 PM IST

एआई टूल्स से हिमालयी क्षेत्रों की हलचलों पर रहेगी नजर

देहरादून (उत्तराखंड): आज डिजिटल दौर में हर चीज आसान हो गई है. इसी क्रम में एआई टूल वर्तमान समय में काफी तेजी से प्रचलित हो रहा है. जिसका इस्तेमाल मौजूदा समय में हर सेक्टर में किया जा रहा है. इसी क्रम में अब वैज्ञानिक हिमालयी क्षेत्र के हलचलों की निगरानी के लिए एआई टूल्स को विकसित किया है. जिसके जरिए न सिर्फ हलचलों पर निगरानी रखी जा सकेगी, बल्कि नतीजे भी एआई टूल्स के जरिए प्राप्त किया जा सकेंगे.

आसानी से मिलेगा स्टडी का रिजल्ट: उत्तराखंड समेत अन्य हिमालयी राज्यों के पर्वतीय क्षेत्रों में तमाम राज छिपे हुए हैं. जिसके चलते हिमालयी राज्यों में हर सीजन आपदा का दंश झेलना पड़ता है. ऐसे में हिमालयी राज्यों में आपदा से निपटने के लिए तमाम अध्ययन की जरूरत पड़ती है, ताकि स्टडी कर, विकास कार्यों को अंजाम तक पहुंचाया जाए. जिससे भविष्य में कोई दिक्कत ना हो. इन्हीं तमाम स्टडी को आसान करने को लेकर वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने कई एआई टूल्स विकसित किए हैं. जिसके जरिए तमाम बड़ी स्टडी का रिजल्ट आसानी से प्राप्त कर सकते हैं.
पढ़ें-हिमस्खलन की पूर्व में मिल सकेगी स्टीक जानकारी, वाडिया इंस्टीट्यूट के पूर्व वैज्ञानिक और उनकी टीम ने तैयार किया मॉडल

समय से पहले मिल सकेगी जानकारी: जानकारी देते हुए वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक डॉ. कालाचंद साईं ने बताया कि एआईएमएल का तमाम टूल डेवलप किए हैं. जिसके तहत हर एआई टूल का अलग-अलग काम है. मुख्य रूप से ग्लेशियोलॉजी (Glaciology) के लिए दो तरह के डाटा (मेट्रोलॉजिकल डाटा और हाइड्रोलॉजिकल डाटा) का इस्तेमाल किया जाता है. दरअसल, मेट्रोलॉजिकल (Meteorological) डाटा, ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन से मिलता है. जिसके तहत तापमान, हवा की गति, हवा की दिशा और ह्यूमिडिटी की जानकारी मिलती है. जिससे ये पता चलता है कि ग्लेशियर पर क्या इंपेक्ट हो सकता है?

आपदा से जुड़ी सूचना मिल पाएगी: इसी क्रम में हाइड्रोलॉजिकल (hydrological) डाटा, ऑटोमेटिक वाटर लेवल इंडिकेटर से मिलता है. जिससे पता चलता है कि वाटर डिस्चार्ज किस रेट से हो रहा है, मास बैलेंस क्या है? साथ ही ग्लेशियर के पिघलने की दर क्या है? हालांकि, अभी तक वाडिया इंस्टीट्यूट मेट्रोलॉजिकल डाटा और हाइड्रोलॉजिकल डाटा से ग्लेशियोलॉजी स्टडी कर रहा था. लेकिन चमोली रैणी में आई भीषण आपदा के बाद वाडिया इंस्टीट्यूट की ओर से तपोवन में आपदा से पहले लगाए गए सिस्मोलॉजिकल इक्विपमेंट में रैणी आपदा से जुड़ी तमाम जानकारियां मिली. जिसके चलते वाडिया इंस्टीट्यूट में निर्णय लिया की किसी भी घटना के पहले जानकारी के लिए तीनों डाटा को एक साथ मॉनिटरिंग करना पड़ेगा.

एआई टूल्स की मदद से मॉनिटर किया जाएगा: ऐसे में वाडिया इंस्टीट्यूट में मेट्रोलॉजिकल, हाइड्रोलॉजिकल और सिस्मोलॉजिकल डाटा को एक साथ मॉनिटर करने के लिए एआई टूल्स तैयार किया है. जिसके जरिए एक साथ तीनों डाटा की न सिर्फ मॉनिटरिंग हो सकेगी. बल्कि फाइनल डाटा भी मिल सकेगा. साथ ही बताया कि ह्यूमन 24 घंटे, रियल टाइम डाटा का मॉनिटरिंग नहीं कर सकता है. ऐसे में एआई टूल्स के जरिए ऐसा किया जाएगा. हालांकि, तमाम क्षेत्रों में अभी इक्विपमेंट लगाए जा रहे हैं. उसका काम पूरा होने के बाद तीनों तरह के डाटा का एक साथ एआई टूल्स की मदद से मॉनिटर किया जायेगा.
पढ़ें-द्रौपदी का डांडा एवलॉन्च की बरसी, पहाड़ ने खोई दो जाबांज माउंटेनियर बेटियां, बर्फ में दफन हुए थे 29 पर्वतारोही

हिमालयी हलचलों पर रहेगी नजर: साथ ही निदेशक कालाचंद साईं ने बताया कि उत्तराखंड राज्य में तमाम क्षेत्र भूस्खलन के लिहाज से काफी संवेदनशील हैं. ऐसे में वाडिया इंस्टीट्यूट ने एआई टूल्स की मदद से नैनीताल, मसूरी समेत अन्य कुछ वैलियों में मौजूद भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों को चिन्हित किया है. जिससे मैप के आधार पर जानना आसान होगा कि कौन सा क्षेत्र कितना संवेदनशील है. ताकि भविष्य में होने वाले विकास कार्यों या फिर क्षेत्र के डेवलपमेंट में बड़ी भूमिका निभा सके. कुल मिलाकर इस मैप को सरकार लैंड यूज मैप की तरह इस्तेमाल कर सकेगी. लिहाजा, वाडिया के वैज्ञानिक एआई टूल्स के जरिए इस तरह की स्टडी कर रहे हैं.
अर्थक्वीक स्टडी में होगी आसानी: साथ ही बताया कि एआई के जरिए सतह के नीचे क्या स्थिति है. उसकी जानकारी बहुत कम समय में लगाया जा सकता है. जिसके चलते वाडिया इंस्टीट्यूट ने भूमि के सतह और सतह के नीचे की पूरी और सटीक जानकारी के लिए एआई टूल्स डेवलप किया है. ताकि आसानी से जानकारी मिल सके, जिस पर वाडिया स्टडी कर रहा है. इसके अलावा, वाडिया इंस्टीट्यूट, हिमालय में होने वाले हेजर्ड्स की स्टडी के साथ ही अर्थक्वीक स्टडी, लैंडस्लाइड स्टडी, ग्लेशियर हैजर्ड की स्टडी कर रहा है.

एआई टूल्स से हिमालयी क्षेत्रों की हलचलों पर रहेगी नजर

देहरादून (उत्तराखंड): आज डिजिटल दौर में हर चीज आसान हो गई है. इसी क्रम में एआई टूल वर्तमान समय में काफी तेजी से प्रचलित हो रहा है. जिसका इस्तेमाल मौजूदा समय में हर सेक्टर में किया जा रहा है. इसी क्रम में अब वैज्ञानिक हिमालयी क्षेत्र के हलचलों की निगरानी के लिए एआई टूल्स को विकसित किया है. जिसके जरिए न सिर्फ हलचलों पर निगरानी रखी जा सकेगी, बल्कि नतीजे भी एआई टूल्स के जरिए प्राप्त किया जा सकेंगे.

आसानी से मिलेगा स्टडी का रिजल्ट: उत्तराखंड समेत अन्य हिमालयी राज्यों के पर्वतीय क्षेत्रों में तमाम राज छिपे हुए हैं. जिसके चलते हिमालयी राज्यों में हर सीजन आपदा का दंश झेलना पड़ता है. ऐसे में हिमालयी राज्यों में आपदा से निपटने के लिए तमाम अध्ययन की जरूरत पड़ती है, ताकि स्टडी कर, विकास कार्यों को अंजाम तक पहुंचाया जाए. जिससे भविष्य में कोई दिक्कत ना हो. इन्हीं तमाम स्टडी को आसान करने को लेकर वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने कई एआई टूल्स विकसित किए हैं. जिसके जरिए तमाम बड़ी स्टडी का रिजल्ट आसानी से प्राप्त कर सकते हैं.
पढ़ें-हिमस्खलन की पूर्व में मिल सकेगी स्टीक जानकारी, वाडिया इंस्टीट्यूट के पूर्व वैज्ञानिक और उनकी टीम ने तैयार किया मॉडल

समय से पहले मिल सकेगी जानकारी: जानकारी देते हुए वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक डॉ. कालाचंद साईं ने बताया कि एआईएमएल का तमाम टूल डेवलप किए हैं. जिसके तहत हर एआई टूल का अलग-अलग काम है. मुख्य रूप से ग्लेशियोलॉजी (Glaciology) के लिए दो तरह के डाटा (मेट्रोलॉजिकल डाटा और हाइड्रोलॉजिकल डाटा) का इस्तेमाल किया जाता है. दरअसल, मेट्रोलॉजिकल (Meteorological) डाटा, ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन से मिलता है. जिसके तहत तापमान, हवा की गति, हवा की दिशा और ह्यूमिडिटी की जानकारी मिलती है. जिससे ये पता चलता है कि ग्लेशियर पर क्या इंपेक्ट हो सकता है?

आपदा से जुड़ी सूचना मिल पाएगी: इसी क्रम में हाइड्रोलॉजिकल (hydrological) डाटा, ऑटोमेटिक वाटर लेवल इंडिकेटर से मिलता है. जिससे पता चलता है कि वाटर डिस्चार्ज किस रेट से हो रहा है, मास बैलेंस क्या है? साथ ही ग्लेशियर के पिघलने की दर क्या है? हालांकि, अभी तक वाडिया इंस्टीट्यूट मेट्रोलॉजिकल डाटा और हाइड्रोलॉजिकल डाटा से ग्लेशियोलॉजी स्टडी कर रहा था. लेकिन चमोली रैणी में आई भीषण आपदा के बाद वाडिया इंस्टीट्यूट की ओर से तपोवन में आपदा से पहले लगाए गए सिस्मोलॉजिकल इक्विपमेंट में रैणी आपदा से जुड़ी तमाम जानकारियां मिली. जिसके चलते वाडिया इंस्टीट्यूट में निर्णय लिया की किसी भी घटना के पहले जानकारी के लिए तीनों डाटा को एक साथ मॉनिटरिंग करना पड़ेगा.

एआई टूल्स की मदद से मॉनिटर किया जाएगा: ऐसे में वाडिया इंस्टीट्यूट में मेट्रोलॉजिकल, हाइड्रोलॉजिकल और सिस्मोलॉजिकल डाटा को एक साथ मॉनिटर करने के लिए एआई टूल्स तैयार किया है. जिसके जरिए एक साथ तीनों डाटा की न सिर्फ मॉनिटरिंग हो सकेगी. बल्कि फाइनल डाटा भी मिल सकेगा. साथ ही बताया कि ह्यूमन 24 घंटे, रियल टाइम डाटा का मॉनिटरिंग नहीं कर सकता है. ऐसे में एआई टूल्स के जरिए ऐसा किया जाएगा. हालांकि, तमाम क्षेत्रों में अभी इक्विपमेंट लगाए जा रहे हैं. उसका काम पूरा होने के बाद तीनों तरह के डाटा का एक साथ एआई टूल्स की मदद से मॉनिटर किया जायेगा.
पढ़ें-द्रौपदी का डांडा एवलॉन्च की बरसी, पहाड़ ने खोई दो जाबांज माउंटेनियर बेटियां, बर्फ में दफन हुए थे 29 पर्वतारोही

हिमालयी हलचलों पर रहेगी नजर: साथ ही निदेशक कालाचंद साईं ने बताया कि उत्तराखंड राज्य में तमाम क्षेत्र भूस्खलन के लिहाज से काफी संवेदनशील हैं. ऐसे में वाडिया इंस्टीट्यूट ने एआई टूल्स की मदद से नैनीताल, मसूरी समेत अन्य कुछ वैलियों में मौजूद भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों को चिन्हित किया है. जिससे मैप के आधार पर जानना आसान होगा कि कौन सा क्षेत्र कितना संवेदनशील है. ताकि भविष्य में होने वाले विकास कार्यों या फिर क्षेत्र के डेवलपमेंट में बड़ी भूमिका निभा सके. कुल मिलाकर इस मैप को सरकार लैंड यूज मैप की तरह इस्तेमाल कर सकेगी. लिहाजा, वाडिया के वैज्ञानिक एआई टूल्स के जरिए इस तरह की स्टडी कर रहे हैं.
अर्थक्वीक स्टडी में होगी आसानी: साथ ही बताया कि एआई के जरिए सतह के नीचे क्या स्थिति है. उसकी जानकारी बहुत कम समय में लगाया जा सकता है. जिसके चलते वाडिया इंस्टीट्यूट ने भूमि के सतह और सतह के नीचे की पूरी और सटीक जानकारी के लिए एआई टूल्स डेवलप किया है. ताकि आसानी से जानकारी मिल सके, जिस पर वाडिया स्टडी कर रहा है. इसके अलावा, वाडिया इंस्टीट्यूट, हिमालय में होने वाले हेजर्ड्स की स्टडी के साथ ही अर्थक्वीक स्टडी, लैंडस्लाइड स्टडी, ग्लेशियर हैजर्ड की स्टडी कर रहा है.

Last Updated : Dec 27, 2023, 4:49 PM IST
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