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दूषित भू-जल मानव और पौधों के लिए हानिकारक, पांच करोड़ लोग प्रभावित - arsenic chemicals in groundwater

दूषित भू-जल के कारण दुनियाभर के 50 करोड़ लोग स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रसित हैं. देश में पांच करोड़ से अधिक लोग आर्सेनिक प्रदूषण से प्रभावित हैं. अध्ययन बताते हैं कि फसल लगी खेतों में ऐसे प्रदूषित भू-जल का उपयोग पौधों की पत्तियों और फसलों के लिए हानिकारक होता है. पढ़ें विस्तार से...

दूषित भूजल
दूषित भूजल
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Published : Apr 16, 2021, 9:19 PM IST

हैदराबाद : पानी मानव जीवन के बहुत जरूरी है. इसके बिना जीवन संभव नहीं है, लेकिन कल-कारखानों की वजह से पानी लगातार दूषित हो रहा है. दुनियाभर के भू-जल में हानिकारक (आर्सेनिक) रसायनों की वृद्धि हो रही है, जिसपर चिंतन करने की जरूरत है. दूषित जल के कारण अत्यधिक समस्या पैदा हो सकती है. दूषित भू-जल के लंबे समय तक उपयोग से तकरीबन 108 देशों में लोगों को गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो रही हैं.

50 करोड़ लोग स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित
दूषित जल से सबसे ज्यादा प्रभावित देश बांग्लादेश, भारत, चीन, नेपाल, कंबोडिया, वियतनाम, म्यांमार, लाओस, इंडोनेशिया और अमेरिका हैं. अर्जेंटीना, चिली, हंगरी, कनाडा, पाकिस्तान, मैक्सिको और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश अगले स्तर पर हैं. एक अनुमान के मुताबिक दुनियाभर में 50 करोड़ लोग स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हैं, जिसमें एशिया के लगभग 18 करोड़ लोग शामिल हैं.

ऐसे प्रदूषित हो रहा है भू-जल
फैक्ट्रियों से निकलने वाला केमिकल रिस कर भू-जल में प्रवेश कर रहा है, जो मानव जीवन के लिए हानिकारक होता है. इसके अलावा हानिकारक तत्व रसायन ज्वालामुखी चट्टानों, मिट्टी, कोयला, आदि के अपघटन के माध्यम से भी भू-जल में प्रवेश करते हैं, जो रसायनों से भी अधिक हानिकारक होते हैं.

निचले डेल्टा तक पहुंच रहा आर्सेनिक युक्त गाद
आर्सेनिक युक्त गाद (sediments) हिमालय की नदियों के माध्यम से निचले डेल्टा तक पहुंचते हैं. देश के 90 प्रतिशत भू-जल, जिसमें उच्च स्तर के रसायन होते हैं, उत्तरी और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में पाए जाते हैं.

शेष 10 फीसदी आर्सेनिक युक्त गाद, उन क्षेत्रों में पाई जाती है जहां सल्फाइड अयस्क (जैसे- कर्नाटक में सोने के खनन क्षेत्र) और अम्लीय ज्वालामुखी (जैसे- दोहराव वाले रिओलाइट-बसाल्ट डोंगरगढ़-कोटड़ी बेल्ट, छत्तीसगढ़ में अम्लीय ज्वालामुखी) पाए जाते हैं.

पानी में हानिकारक रसायन
नेशनल ग्राउंडवॉटर बोर्ड (2018) की रिपोर्ट में कहा गया है कि 100 लीटर से अधिक गहराई वाले कुओं में प्रति लीटर पानी में 0.01 मिलीग्राम से भी कम हानिकारक रसायन पाया गया, जबकि 100 मीटर से कम गहराई वाले कुओं में प्रति लीटर पानी में 0.01 मिलीग्राम से अधिक हानिकारक रसायन पाया गया.

भू-जल का अत्यधिक दोहन
रिपोर्ट के मुताबिक इन स्थानों पर पानी कम होता है, जहां रेत की परतों की तुलना में मिट्टी की परतें होती हैं. नतीजतन, आर्सेनिक के स्रोत ठीक तरीके से घुलते नहीं हैं. इससे प्रदूषण में वृद्धि होती है. भू-जल का अत्यधिक दोहन भी प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है.

जानलेवा कैंसर को देता है जन्म
राष्ट्रीय पेयजल मानक संस्थान के अनुसार, एक लीटर पीने के पानी में 0.01 मिलीग्राम से अधिक हानिकारक रसायन नहीं होने चाहिए. 0.01 मिलिग्राम से अधिक हानिकारक रसायनों से युक्त पानी पीने से होने वाली आर्सेनिकोसिस नामक बीमारी होता है, जो जानलेवा कैंसर को जन्म दे सकता है, विशेषकर त्वचा, फेफड़े, गुर्दे और हृदय के कैंसर को.

तेलुगु राज्यों की स्थिति
केंद्रीय जल बोर्ड द्वारा 2019 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, तेलुगु राज्यों सहित लगभग 20 राज्यों में 0.01 से 0.05 मिलिग्राम प्रति लीटर भू-जल मौजूद है.

यह भी पढ़ें : भारत में ग्लोबल वार्मिंग से मॉनसून प्रभावित, कृषि पर खतरा : अध्ययन

प्रति लीटर पानी में हानिकारक रसायन
10 राज्यों (असम, बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल) में एक लीटर पानी में 0.05 मिलीग्राम से अधिक हानिकारक रसायन पाए गए.

भारत में पांच करोड़ लोग प्रभावित
देश में पांच करोड़ से अधिक लोग आर्सेनिक प्रदूषण से प्रभावित हैं. अध्ययन बताते हैं कि फसल के खेतों में ऐसे प्रदूषित भू-जल का उपयोग पौधों की पत्तियों और फसलों के लिए हानिकारक होता है.

केंद्रीय जल आयोग ने केंद्र और राज्य सरकारों को आर्सेनिक स्रोतों के संपर्क में आने वाले क्षेत्रों में पीने और फसल की खेती के लिए भू-जल का उपयोग नहीं करने की सलाह दी है.

आर्सेनिक प्रदूषण के प्रभाव को कम करने और भू-गर्भ जलस्तर बढ़ाने के लिए वर्षा जल के उपयोग के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग का प्रयोग किया जाना चाहिए. भू-जल का उपयोग वैज्ञानिक तरीके से किया जाना चाहिए. इसके अलावा अन्य कई वैज्ञानिक उपाय भी किए जा सकते हैं.

आचार्य नंदीपति सुब्बाराव (जियोलॉजी के सेवानिवृत्त प्रोफेसर)

(आंध्र यूनिवर्सिटी)

हैदराबाद : पानी मानव जीवन के बहुत जरूरी है. इसके बिना जीवन संभव नहीं है, लेकिन कल-कारखानों की वजह से पानी लगातार दूषित हो रहा है. दुनियाभर के भू-जल में हानिकारक (आर्सेनिक) रसायनों की वृद्धि हो रही है, जिसपर चिंतन करने की जरूरत है. दूषित जल के कारण अत्यधिक समस्या पैदा हो सकती है. दूषित भू-जल के लंबे समय तक उपयोग से तकरीबन 108 देशों में लोगों को गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो रही हैं.

50 करोड़ लोग स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित
दूषित जल से सबसे ज्यादा प्रभावित देश बांग्लादेश, भारत, चीन, नेपाल, कंबोडिया, वियतनाम, म्यांमार, लाओस, इंडोनेशिया और अमेरिका हैं. अर्जेंटीना, चिली, हंगरी, कनाडा, पाकिस्तान, मैक्सिको और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश अगले स्तर पर हैं. एक अनुमान के मुताबिक दुनियाभर में 50 करोड़ लोग स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हैं, जिसमें एशिया के लगभग 18 करोड़ लोग शामिल हैं.

ऐसे प्रदूषित हो रहा है भू-जल
फैक्ट्रियों से निकलने वाला केमिकल रिस कर भू-जल में प्रवेश कर रहा है, जो मानव जीवन के लिए हानिकारक होता है. इसके अलावा हानिकारक तत्व रसायन ज्वालामुखी चट्टानों, मिट्टी, कोयला, आदि के अपघटन के माध्यम से भी भू-जल में प्रवेश करते हैं, जो रसायनों से भी अधिक हानिकारक होते हैं.

निचले डेल्टा तक पहुंच रहा आर्सेनिक युक्त गाद
आर्सेनिक युक्त गाद (sediments) हिमालय की नदियों के माध्यम से निचले डेल्टा तक पहुंचते हैं. देश के 90 प्रतिशत भू-जल, जिसमें उच्च स्तर के रसायन होते हैं, उत्तरी और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में पाए जाते हैं.

शेष 10 फीसदी आर्सेनिक युक्त गाद, उन क्षेत्रों में पाई जाती है जहां सल्फाइड अयस्क (जैसे- कर्नाटक में सोने के खनन क्षेत्र) और अम्लीय ज्वालामुखी (जैसे- दोहराव वाले रिओलाइट-बसाल्ट डोंगरगढ़-कोटड़ी बेल्ट, छत्तीसगढ़ में अम्लीय ज्वालामुखी) पाए जाते हैं.

पानी में हानिकारक रसायन
नेशनल ग्राउंडवॉटर बोर्ड (2018) की रिपोर्ट में कहा गया है कि 100 लीटर से अधिक गहराई वाले कुओं में प्रति लीटर पानी में 0.01 मिलीग्राम से भी कम हानिकारक रसायन पाया गया, जबकि 100 मीटर से कम गहराई वाले कुओं में प्रति लीटर पानी में 0.01 मिलीग्राम से अधिक हानिकारक रसायन पाया गया.

भू-जल का अत्यधिक दोहन
रिपोर्ट के मुताबिक इन स्थानों पर पानी कम होता है, जहां रेत की परतों की तुलना में मिट्टी की परतें होती हैं. नतीजतन, आर्सेनिक के स्रोत ठीक तरीके से घुलते नहीं हैं. इससे प्रदूषण में वृद्धि होती है. भू-जल का अत्यधिक दोहन भी प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है.

जानलेवा कैंसर को देता है जन्म
राष्ट्रीय पेयजल मानक संस्थान के अनुसार, एक लीटर पीने के पानी में 0.01 मिलीग्राम से अधिक हानिकारक रसायन नहीं होने चाहिए. 0.01 मिलिग्राम से अधिक हानिकारक रसायनों से युक्त पानी पीने से होने वाली आर्सेनिकोसिस नामक बीमारी होता है, जो जानलेवा कैंसर को जन्म दे सकता है, विशेषकर त्वचा, फेफड़े, गुर्दे और हृदय के कैंसर को.

तेलुगु राज्यों की स्थिति
केंद्रीय जल बोर्ड द्वारा 2019 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, तेलुगु राज्यों सहित लगभग 20 राज्यों में 0.01 से 0.05 मिलिग्राम प्रति लीटर भू-जल मौजूद है.

यह भी पढ़ें : भारत में ग्लोबल वार्मिंग से मॉनसून प्रभावित, कृषि पर खतरा : अध्ययन

प्रति लीटर पानी में हानिकारक रसायन
10 राज्यों (असम, बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल) में एक लीटर पानी में 0.05 मिलीग्राम से अधिक हानिकारक रसायन पाए गए.

भारत में पांच करोड़ लोग प्रभावित
देश में पांच करोड़ से अधिक लोग आर्सेनिक प्रदूषण से प्रभावित हैं. अध्ययन बताते हैं कि फसल के खेतों में ऐसे प्रदूषित भू-जल का उपयोग पौधों की पत्तियों और फसलों के लिए हानिकारक होता है.

केंद्रीय जल आयोग ने केंद्र और राज्य सरकारों को आर्सेनिक स्रोतों के संपर्क में आने वाले क्षेत्रों में पीने और फसल की खेती के लिए भू-जल का उपयोग नहीं करने की सलाह दी है.

आर्सेनिक प्रदूषण के प्रभाव को कम करने और भू-गर्भ जलस्तर बढ़ाने के लिए वर्षा जल के उपयोग के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग का प्रयोग किया जाना चाहिए. भू-जल का उपयोग वैज्ञानिक तरीके से किया जाना चाहिए. इसके अलावा अन्य कई वैज्ञानिक उपाय भी किए जा सकते हैं.

आचार्य नंदीपति सुब्बाराव (जियोलॉजी के सेवानिवृत्त प्रोफेसर)

(आंध्र यूनिवर्सिटी)

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