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पश्चिमी अफ्रीका में मिला घातक मारबर्ग वायरस, WHO ने की पुष्टि

मारबर्ग वायरस के मामले की पुष्टि ऐसे समय पर हुई है, जब दो महीने पहले ही WHO ने ऐलान किया कि गिनी में इबोला का दूसरा प्रकोप खत्म हो चुका है. अफ्रीका के लिए WHO की क्षेत्रीय निदेशक डॉ मत्शिदिसो मोएती (Matshidiso Moeti) ने कहा, मारबर्ग वायरस के दूर-दूर तक फैलने की आशंका का मतलब है कि हमें इसे फैलने से रोकने की जरूरत है.

मारबर्ग वायरस
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Published : Aug 10, 2021, 2:17 PM IST

नई दिल्ली: कोरोना महामारी का संकट अभी खत्म भी नहीं हुआ कि एक नए वायरस से खतरे की बात सामने आ रही हैं. जानकारी के मुताबिक पश्चिम अफ्रीकी देश गिनी में मारबर्ग वायरस का मामला सामने आया है, जिसके बाद यहां अफरातफरी मच गई है. वहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन(डब्ल्यूएचओ) ने भी इस वायरस की पुष्टि की है.

जानकारों ने इस मारबर्ग वायरस को अधिक खतरनाक माना है. बता दें, यह जानवरों से मनुष्यों में भी फैल सकता है.

WHO ने जानकारी दी है कि मारबर्ग वायरस (Marburg Virus) की वजह से एक व्यक्ति की मौत भी हुई है. 1967 से अब तक 12 प्रमुख मारबर्ग प्रकोप देखने को मिले हैं, लेकिन ज्यादातर प्रकोप दक्षिणी और पूर्वी अफ्रीका में सामने आए थे.

मारबर्ग वायरस के मामले की पुष्टि ऐसे समय पर हुई है, जब दो महीने पहले ही WHO ने ऐलान किया कि गिनी में इबोला का दूसरा प्रकोप खत्म हो चुका है. अफ्रीका के लिए WHO की क्षेत्रीय निदेशक डॉ मत्शिदिसो मोएती (Matshidiso Moeti) ने कहा, मारबर्ग वायरस के दूर-दूर तक फैलने की आशंका का मतलब है कि हमें इसे फैलने से रोकने की जरूरत है. हम इबोला को लेकर गिनी के साथ पिछले अनुभवों पर आधारित तेज कार्रवाई करने के लिए स्वास्थ्य अधिकारियों संग काम कर रहे हैं. ये बीमारी भी इबोला की तरह ही फैलती है. गिनी में ये मामला पिछले हफ्ते सामने आया था.

एक नजर मे मारबर्ग वायरस के बारे में महत्वपूर्ण बातें

(1.) WHO के मुताबिक, मारबर्ग भी उस वायरस की वजह से होता है, जिसकी वजह से इबोला रोग होता है. ऐसे में दोनों ही वायरस ‘फिलोविरिडे या फाइलोवायरस’ परिवार से आते हैं. इसकी वजह से रक्तस्रावी बुखार होता है और इस वायरस से संक्रमित होने पर मृत्यु दर 88 फीसदी है.

(2.) मारबर्ग वायरस का नाम जर्मनी के शहर मारबर्ग के नाम पर रखा गया है, जहां ये 1967 में सबसे पहले सामने आया था. इसी साल जर्मनी के फ्रैंकफर्ट, वर्तमान सर्बिया के बेलग्रेड में भी मारबर्ग का प्रकोप देखने को मिला था.

(3.) रोसैटम चमगादड़ों द्वारा बसाई गई खानों और गुफाओं में लंबा वक्त गुजारने की वजह से इंसान इस वायरस के चपेट में आता है. एक बार संक्रमित होने पर मरीज इस वायरस को खून और शरीर से निकलने वाले तरल के जरिए अन्य लोगों तक पहुंचा सकता है. इसके अलावा, सतह और चीजों के संक्रमित मरीज के शरीर से निकले तरल से गंदा होने के जरिए भी अन्य व्यक्तियों तक ये वायरस पहुंच सकता है.

(4.) मारबर्ग रोग के लक्षणों में तेज बुखार, तेज सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, दर्द, दस्त, पेट में दर्द, ऐंठन, मतली और उल्टी शामिल हैं. दस्त एक सप्ताह तक हो सकता है.

(5.) WHO और US सीडीसी (सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन) दोनों के अनुसार, मौजूदा समय में इस बीमारी के लिए कोई भी वैक्सीन या एंटीवायरल दवा नहीं है. हालांकि, तरल पदार्थ दिया जाना सहायक हो सकता है.

पढ़ें: अब भारत में विदेशी नागरिक भी करा सकेंगे कोविड रोधी टीकाकरण

(6.) इससे पहले, अफ्रीका में मारबर्ग वायरस के मामले अंगोला, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, केन्या, दक्षिण अफ्रीका और युगांडा से सामने आए थे.

नई दिल्ली: कोरोना महामारी का संकट अभी खत्म भी नहीं हुआ कि एक नए वायरस से खतरे की बात सामने आ रही हैं. जानकारी के मुताबिक पश्चिम अफ्रीकी देश गिनी में मारबर्ग वायरस का मामला सामने आया है, जिसके बाद यहां अफरातफरी मच गई है. वहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन(डब्ल्यूएचओ) ने भी इस वायरस की पुष्टि की है.

जानकारों ने इस मारबर्ग वायरस को अधिक खतरनाक माना है. बता दें, यह जानवरों से मनुष्यों में भी फैल सकता है.

WHO ने जानकारी दी है कि मारबर्ग वायरस (Marburg Virus) की वजह से एक व्यक्ति की मौत भी हुई है. 1967 से अब तक 12 प्रमुख मारबर्ग प्रकोप देखने को मिले हैं, लेकिन ज्यादातर प्रकोप दक्षिणी और पूर्वी अफ्रीका में सामने आए थे.

मारबर्ग वायरस के मामले की पुष्टि ऐसे समय पर हुई है, जब दो महीने पहले ही WHO ने ऐलान किया कि गिनी में इबोला का दूसरा प्रकोप खत्म हो चुका है. अफ्रीका के लिए WHO की क्षेत्रीय निदेशक डॉ मत्शिदिसो मोएती (Matshidiso Moeti) ने कहा, मारबर्ग वायरस के दूर-दूर तक फैलने की आशंका का मतलब है कि हमें इसे फैलने से रोकने की जरूरत है. हम इबोला को लेकर गिनी के साथ पिछले अनुभवों पर आधारित तेज कार्रवाई करने के लिए स्वास्थ्य अधिकारियों संग काम कर रहे हैं. ये बीमारी भी इबोला की तरह ही फैलती है. गिनी में ये मामला पिछले हफ्ते सामने आया था.

एक नजर मे मारबर्ग वायरस के बारे में महत्वपूर्ण बातें

(1.) WHO के मुताबिक, मारबर्ग भी उस वायरस की वजह से होता है, जिसकी वजह से इबोला रोग होता है. ऐसे में दोनों ही वायरस ‘फिलोविरिडे या फाइलोवायरस’ परिवार से आते हैं. इसकी वजह से रक्तस्रावी बुखार होता है और इस वायरस से संक्रमित होने पर मृत्यु दर 88 फीसदी है.

(2.) मारबर्ग वायरस का नाम जर्मनी के शहर मारबर्ग के नाम पर रखा गया है, जहां ये 1967 में सबसे पहले सामने आया था. इसी साल जर्मनी के फ्रैंकफर्ट, वर्तमान सर्बिया के बेलग्रेड में भी मारबर्ग का प्रकोप देखने को मिला था.

(3.) रोसैटम चमगादड़ों द्वारा बसाई गई खानों और गुफाओं में लंबा वक्त गुजारने की वजह से इंसान इस वायरस के चपेट में आता है. एक बार संक्रमित होने पर मरीज इस वायरस को खून और शरीर से निकलने वाले तरल के जरिए अन्य लोगों तक पहुंचा सकता है. इसके अलावा, सतह और चीजों के संक्रमित मरीज के शरीर से निकले तरल से गंदा होने के जरिए भी अन्य व्यक्तियों तक ये वायरस पहुंच सकता है.

(4.) मारबर्ग रोग के लक्षणों में तेज बुखार, तेज सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, दर्द, दस्त, पेट में दर्द, ऐंठन, मतली और उल्टी शामिल हैं. दस्त एक सप्ताह तक हो सकता है.

(5.) WHO और US सीडीसी (सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन) दोनों के अनुसार, मौजूदा समय में इस बीमारी के लिए कोई भी वैक्सीन या एंटीवायरल दवा नहीं है. हालांकि, तरल पदार्थ दिया जाना सहायक हो सकता है.

पढ़ें: अब भारत में विदेशी नागरिक भी करा सकेंगे कोविड रोधी टीकाकरण

(6.) इससे पहले, अफ्रीका में मारबर्ग वायरस के मामले अंगोला, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, केन्या, दक्षिण अफ्रीका और युगांडा से सामने आए थे.

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