उत्तरकाशी: उत्तराखंड को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता. यहां कण-कण में देवता विराजमान हैं. विश्व के प्रसिद्ध लाखों, करोड़ों लोगों की आस्था के केंद्र चारधाम भी यही हैं. गंगोत्री इन्हीं धामों में से एक है. गंगोत्री धाम 3,410 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. पुराणों में उल्लेख मिलता है कि भगवान राम के पूर्वज राजा भागीरथ के कठोर तप के बाद मां गंगा गंगोत्री पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं. उसके बाद उनके पूर्वजों का गंगा की धारा से उद्धार हुआ था.
वहीं, गंगोत्री धाम मन्दिर निर्माण भी अलग-अलग समय पर होता रहा. धाम के पुरोहितों की मानें तो 20वीं शताब्दी में धाम मन्दिर निर्माण में एक अंग्रेज ने मदद की थी. उसकी मदद से ही जयपुर नरेश तक गंगोत्री धाम के पुरोहित मन्दिर निर्माण का प्रस्ताव लेकर पहुंचे थे.
राजा भगीरथ के तप से गंगा धरती पर पहुंचीं
गंगोत्री धाम के तीर्थ पुरोहित रविन्द्र सेमवाल बताते हैं कि सतयुग में राजा भगीरथ के पूर्वज कपिल मुनि के श्राप से मृत्यु को प्राप्त हो गए थे. मगर उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिल रही थी. तब राजा को ऋषि ने कहा कि अगर स्वर्ग लोक से गंगा धरती पर आएं और उनका जल मृत शरीरों को स्पर्श करेगा, तो उन्हें मोक्ष मिलेगा.
उसके बाद राजा भागीरथ ने गंगोत्री में 5 हजार 500 वर्ष तक कठोर तपस्या की. आज भी गंगोत्री में राजा की तपस्या स्थली भगीरथ शिला मौजूद है. उसके बाद गंगोत्री में भगवान शिव ने अपनी जटाओं को बिछाकर गंगा को धरती पर अवतरित किया. उसके बाद राजा भगीरथ आगे और मां गंगा की जलधारा उनके पीछे चल पड़ी. जिसके बाद ही राजा के पूर्वजों का उद्धार हो सका.
विग्रह रूप में देवदार के जंगलों के बीच विराजमान हैं गंगा
कहा जाता है कि आज भी मां गंगा का विग्रह रूप गंगोत्री धाम में देवदार के जंगलों के बीच विराजमान है. पाडंव काल में पांडवों ने भी अपने परिजनों की मृत्यु के बाद गंगोत्री में उनका पिंडदान किया था. आज भी जो गंगोत्री धाम में अपने पित्रों का पिंडदान करता है उनके पित्रों को मोक्ष मिलता है.
18वीं सदी से पूर्व गंगोत्री में मात्र जलधारा की होती थी पूजा
गंगोत्री मन्दिर समिति के सचिव दीपक सेमवाल बताते हैं कि 18वीं सदी से पूर्व गंगोत्री में मात्र जलधारा की पूजा होती थी. 18वीं सदी में गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने गंगोत्री मन्दिर का निर्माण करवाया. उसके बाद 20वीं सदी के प्रारम्भ में मन्दिर जीर्णशीर्ण हो गया. उसके बाद गंगोत्री धाम के भारद्वाज गोत्र के सेमवाल जाति के पुरोहित मन्दिर निर्माण का चंदा एकत्रित करने हरिद्वार कुंभ गए. जहां पर उनकी मुलाकात अंग्रेज डी फ्रेजर से हुई, जो कि पूर्व में गंगोत्री आ चुका था. वह यहां के तीर्थ पुरोहितों से परिचित था.
अंग्रेज डी फ्रेजर के सुझाव के बाद जयपुर पहुंचे थे पुरोहित
पुरोहितों ने फ्रेजर को मन्दिर निर्माण की समस्या बताई. फ्रेजर ने तीर्थ पुरोहितों को सुझाव दिया कि जयपुर नरेश सवाई मान माधो सिंह से मुलाकात करो, वह जरूर मदद करेंगे. उसके बाद गंगोत्री धाम के पुरोहित राजा के पास गए. उन्होंने राजा को गंगा जल भेंट किया साथ ही मन्दिर निर्माण की मांग रखी. उसके बाद जयपुर नरेश ने गंगोत्री धाम के वर्तमान मन्दिर का निर्माण करवाया. हालांकि उसके बाद भी मन्दिर में पुनर्निर्माण होते रहे, लेकिन आज मन्दिर के स्वरूप के निर्माण का श्रेय जयपुर नरेश को जाता है.
कई सालों तक गंगोत्री में रहे डी फ्रेजर
सेमवाल बताते हैं कि डी फ्रेजर उससे पूर्व बहुत सालों तक गंगोत्री में रहे. इसलिए उसके पुरोहितों के साथ बहुत अच्छे सम्बन्ध थे.