नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के एक मामले में पति को 10 लाख रुपये की एकमुश्त राशि और 8 हजार रुपये के गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया है. साथ ही कोर्ट ने दंपति की 20 वर्षीय बेटी की शादी और शिक्षा पर होने वाले खर्च को लेकर भी स्थिति स्पष्ट की है. सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि एक बेटी का अधिकार है कि वह अपने पिता से रिश्ता रखना चाहती है या नहीं. लेकिन यदि वह अपने पिता से कोई रिश्ता नहीं रखती है, तो वह उनसे शिक्षा के लिए खर्च मांगने की हकदार भी नहीं (daughter cannot demand money for edu) होगी. अगर पिता स्वेच्छा से अपनी बेटी को गुजारा राशि देना चाहता है तो वह दे सकता है.
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एम. एम. सुंदरेश की पीठ तलाक के संबंध में एक मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें अदालत ने बगैर किसी समझौते के अपने फैसले में जोड़े को तलाक का फरमान सुनाया (court grants divorce to couple without any settlement) है. शीर्ष अदालत ने पति को पत्नी के लिए आठ हजार रुपये प्रतिमाह और दावों के पूर्ण और अंतिम निपटान के रूप में दस लाख रुपये की लागत जमा करने का निर्देश दिया है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि जहां तक बेटी की शिक्षा और शादी के खर्च का सवाल है, उसके दृष्टिकोण से ऐसा प्रतीत होता है कि वह आवेदक (पिता) से कोई भी रिश्ता नहीं रखना चाहती है और उसकी उम्र 20 साल है. ऐसे में वह अपना रास्ता चुनने की हकदार है, लेकिन वह पिता से शिक्षा की राशि की मांग नहीं कर सकती है. इस प्रकार, हम मानते हैं कि बेटी पिता से किसी भी तरह की राशि की हकदार नहीं होगी. लेकिन प्रतिवादी को स्थायी गुजारा भत्ता के रूप में भुगतान की जाने वाली राशि का निर्धारण जरूरी है. हम अभी भी इसका ध्यान रख रहे हैं कि यदि प्रतिवादी बेटी का समर्थन करना चाहता है, तो उसे गुजारा राशि दे सकता है.
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बता दें कि दंपती का विवाह 1998 में हुआ था और 2002 से दोनों अलग-अलग रहने लगे थे. पत्नी ने पति के साथ रहने से इनकार कर दिया था और पति पर मारपीट, प्रताड़ना और परेशान कर घर से बाहर निकालने का आरोप लगा था. उनकी बेटी जो 2001 में पैदा हुई थी, अपने जन्म से ही मां के साथ रह रही है और उसके मामा मां-बेटी का खर्च उठा रहे हैं.