नई दिल्ली : भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने अगस्त के महीने में केंद्र सरकार की नीतियों और मुद्रास्फीति, मूल्य वृद्धि, जीएसटी वृद्धि बेरोजगारी और आदि जैसे मुद्दों के खिलाफ देशव्यापी अभियान और विरोध कार्यों की घोषणा की है. सीपीआई (M) की 23वीं पार्टी के समापन के बाद महासचिव सीताराम येचुरी (general secretary Sitaram Yechury) ने रविवार को मीडिया को संबोधित करते हुए मोदी सरकार पर निशाना साधा और कहा कि जहां आम आदमी भारी महंगाई और बढ़ती बेरोजगारी से जूझ रहा है, वहीं सरकार उनके लिए राहत लाने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं कर रही है. येचुरी ने माकपा की केंद्रीय समिति ने 1 अगस्त से 15 अगस्त तक स्वतंत्रता संग्राम में कम्युनिस्टों के योगदान को उजागर करने के लिए 15 दिवसीय अभियान का आह्वान किया है. वहीं 14 सितंबर से, सीपीआईएम द्वारा प्रमुख मुद्दों को उजागर करने वाली केंद्र सरकार की नीतियों का मुकाबला करने के लिए दस दिवसीय राष्ट्रव्यापी अभियान की भी घोषणा की गई है.
येचुरी ने कहा कि अभूतपूर्व मूल्य वृद्धि, थोक मूल्य सूचकांक (WPI) और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) दोनों रिकॉर्ड उच्च पर है जो लोगों की आजीविका को नष्ट कर रही है, उनकी क्रय क्षमता को कम कर रही है. उन्होंने कहा कि इसकी वजह से अर्थव्यवस्था में मांग के स्तर को कम किया जा रहा है. येचुरी ने कहा कि घरेलू मांग के कम होने से विनिर्माण गतिविधि में कमी आ रही है जिससे अर्थव्यवस्था में और मंदी आ रही है और लोगों की नौकरी छूट रही है.
माकपा नेता ने कहा कि सभी आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि के साथ खाद्य और ईंधन की कीमतें इस मुद्रास्फीति का नेतृत्व कर रही हैं. वहीं जीएसटी बढ़ोतरी से दैनिक उपयोग की सभी आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में और वृद्धि हुई है. उन्होंने कहा कि सीपीआई (एम) की केंद्रीय समिति जीएसटी बढ़ोतरी और पेट्रोलियम उत्पादों पर उपकर / अधिभार को वापस लेने की मांग करती है. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार को लोगों पर बोझ डालने के बजाय राजस्व बढ़ाने के लिए अति-धनवानों पर कर लगाना चाहिए.
बढ़ती बेरोजगारी के मुद्दे पर प्रकाश डालते हुए येचुरी ने कहा कि 20-24 वर्ष के आयु वर्ग में बेरोजगारी दर चौंका देने वाला 42 प्रतिशत है. इसके अलावा हमारी 90 करोड़ कामकाजी उम्र की आबादी (2020) में से 61.2 प्रतिशत ने नौकरी की तलाश करना बंद कर दिया है. वहीं 38.8 प्रतिशत के साथ श्रम भागीदारी दर रिकॉर्ड सबसे निचले स्तर पर है. उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा मार महिलाओं पर पड़ रही है. मोदी सरकार ने हाल ही में संसद में 0.33 प्रतिशत आवेदकों को सरकारी नौकरी प्रदान करने की बात स्वीकार की थी. सरकारी क्षेत्र में दस लाख से अधिक रिक्तियां हैं. माकपा ने इन रिक्तियों को तत्काल भरने और मनरेगा के तहत आवंटन बढ़ाने की भी मांग की है. माकपा महासचिव ने आरोप लगाया कि ईडी और सीबीआई जैसी केंद्रीय एजेंसियां विपक्षी नेताओं को निशाना बनाकर लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई राज्य सरकारों को अस्थिर करने में मोदी सरकार की राजनीतिक शाखा के रूप में काम कर रही हैं.
माकपा महासचिव ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की एक जज की अध्यक्षता वाली बेंच के हालिया फैसले ने ने ईडी को घातक रूप से आगे बढ़ाने के लिए पीएमएलए में 2019 के सभी संशोधनों को बरकरार रखा, यह लोकतंत्र पर गंभीर हमला है. हालांकि, उन्होंने टीएमसी नेता और ममता बनर्जी सरकार में मंत्री पर ईडी की कार्रवाई को सही ठहराते हुए कहा कि यह अदालत के आदेश के बाद शुरू की गई कार्रवाई थी और पश्चिम बंगाल के घटनाक्रम ने टीएमसी सरकार के तहत राज्य में गहरे भ्रष्टाचार के उनके आरोपों को साबित कर दिया है.
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