हैदराबाद : कोविड-19 की तीसरी लहर की विशेषज्ञों द्वारा दी गई चेतावनी के बाद बच्चों के टीकाकरण करने पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है. क्योंकि तीसरी लहर में बच्चों के ज्यादा प्रभावित होने की संभावना जताई गई है. इस बारे में गृह मंत्रालय द्वारा गठित एक विशेषज्ञ पैनल ने पीएमओ को सौंपी एक रिपोर्ट में ऐसे बच्चों का टीकाकरण करने की आवश्यकता पर जोर दिया है, जो पहले से किसी न किसी बीमारी से जूझ रहे हैं. पैनल ने आशंका जताई है कि कोविड-19 महामारी की तीसरी लहर सितंबर- अक्टूबर में आ सकती है.
बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता
- प्रमुख विशेषज्ञों ने बार-बार भारत में कोविड -19 की तीसरी लहर की चेतावनी दी है. इसमें कहा गया है कि जब तक हम संक्रमण या टीकाकरण के माध्यम से हर्ड इम्युनिटी प्राप्त नहीं कर लेते तब तक इस बीमारी होने का खतरा बना रहता है.
- इससे पहले कहा गया था कि यदि 67 फीसदी आबादी का टीकाकरण हो जाने पर एक साथ एकत्र होने पर भी इसके संक्रमण की दर काफी कम रहेगी. लेकिन अब सार्स कोव-2 के नए वैरिएंट के मिलने से यह काफी जटिल हो गया है, क्योंकि कुछ मामलों में यह टीके लगवाने के बाद लोग इसकी चपेट में आ गए.
- प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने से लोगों में वैक्सीनेशन के प्रति रुझान बढ़ा है. फलस्वरूप 80 से 90 फीसदी आबादी ने कोविड से बचाव के लिए टीकाकरण करा लिया है. वहीं दूसरी तरफ दुनिया भर में कोविड को लेकर हर दिन नित नई बातें सामने आ रही हैं.
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान यानी एनआईडीएम ने एक रिपोर्ट केंद्रीय गृह मंत्रालय को सौंपी है जिसमें कोविड की तीसरी लहर को लेकर तैयार रहने की चेतावनी दी गई है. इसको लेकर एनआईडीएम ने संभावित कोरोना की लहर के मद्देनजर इसके लिए यथोचित उपाय करने पर बल दिया है जिससे इसकी तेजी को रोका जा सके.
- महामारी की संभावित तीसरी लहर में बच्चों के अधिक गंभीर रूप से प्रभावित होने की व्यापक आशंकाओं का समर्थन करने के लिए पर्याप्त डेटा नहीं हैं. हालांकि जैसे-जैसे वायरस विकसित हो रहा है वैसै-वैसे यह बच्चों के लिए एक बड़ी चुनौती होने जा रहा है क्योंकि भारत में अभी तक बच्चों के लिए कोई स्वीकृत टीका नहीं है.
- कोविड-19 संक्रमण वाले बच्चों को बड़े पैमाने पर हल्के लक्षण विकसित होते देखे गए हैं, लेकिन यह तब चिंताजनक हो जाता है जब बच्चों को कोई बीमारी हो.
- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, कोविड के कारण अस्पताल में भर्ती सभी बच्चों में से 60-70 फीसदी में दूसरी बीमारी या कम प्रतिरोधक क्षमता देखने को मिली.
- बच्चों में एमआईएस-सी (मल्टीसिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम) विकसित होते देखा गया है, जो कि कोविड के ठीक होने के बाद की अत्यंत गंभीर स्थिति है.
- बाल चिकित्सा सुविधाएं जिनमें डॉक्टर, कर्मचारी के अलावा उपकरणों में वेंटिलेटर और एम्बुलेंस आदि को भी बच्चों के संक्रमित होने की स्थिति में पूरी तरह से तैयार नहीं पाया गया है.
- 2015 की एक संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में बाल रोग विशेषज्ञों की 82 फीसदी कमी है जबकि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में बाल रोग विशेषज्ञों के 62.8 फीसदी पद खाली थे.
- कार्य समूह समिति के विशेषज्ञों ने एक समग्र घरेलू देखभाल मॉडल के अलावा बाल चिकित्सा चिकित्सा क्षमताओं में तत्काल वृद्धि और बच्चों के बीच मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को प्राथमिकता देने का सुझाव दिया है. इसके अलावा कोविड वार्डों को इस तरह से तैयार किया जाना चाहिए जिससे बच्चों के परिचारक / माता-पिता उनके ठीक होने के दौरान उनके साथ सुरक्षित रूप से रह सकें.
- महामारी के मुद्दे को देखते हुए कहा गया है कि महिलाओं और बच्चों को अलग नहीं किया जा सकता है, बल्कि इसे पूरक के रूप में देखा जाना चाहिए.
- महिलाओं के अतिरिक्त जोखिम को रेखांकित करते हुए कहा गया है कि उन्होंने चाहे महामारी के कारण हो या संबंधित लॉकडाउन या प्रतिबंधों की वजह असमानताओं का सामना करना पड़ा.
- इन असमानताओं की वजह से बालिकाओं, किशोरियों के साथ-साथ वयस्क महिलाओं पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह का प्रभाव पड़ता है, फलस्वरूप शोषण और हाशिए पर जाने का दुष्चक्र होता है. विशेषज्ञों के अनुसार, महिलाओं और बच्चों दोनों के खिलाफ किसी भी तरह की हिंसा नहीं होनी चाहिए.
- इसके अलावा सार्वजनिक और निजी स्थान, अतिरिक्त आजीविका सहायता, आश्रय और टीकाकरण, स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच के साथ नर्सों, आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए विशेष प्रावधानों को तुरंत प्राथमिकता दी जानी चाहिए.
- महिलाओं और बच्चों की शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए वर्तमान महामारी को एक विशेष हस्तक्षेप सुनिश्चित करने की आवश्यकता है.
- इसलिए, इन मुद्दों को ध्यान में रखते हुए सिफारिशें और संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाने की जरुरत है, जिससे इन समूहों के लिए सभी संसाधनों की उपलब्धता के अलावा उनकी पहुंच और सामर्थ्य पैदा हो सके. यह मौजूदा संकट में सरकार के दृष्टिकोण संपूर्ण सरकार और संपूर्ण समाज के साथ साथ फिट बैठता है.