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हॉस्पिटल और सेकेंडरी इंफेक्शन से हो रही कोरोना मरीजों की मौत : आईसीएमआर अध्ययन - आईसीएमआर अध्ययन

देश में कोरोना संक्रमण के बीच इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने एक अध्ययन किया है. इसमें उसने पाया है कि हॉस्पिटल इंफेक्शन और सेकेंडरी इंफेक्शन के कारण कोरोना के मरीजों की मौत हो रही है.

आईसीएमआर अध्ययन
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Published : May 28, 2021, 7:34 PM IST

नई दिल्ली : देश में कोरोना संक्रमण का दौर चल रहा है. इस बीच इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने एक अध्ययन किया है. इसमें उसने पाया है कि हॉस्पिटल इंफेक्शन और सेकेंडरी इंफेक्शन के कारण कोरोना के मरीजों की मौत हो रही है. सेकेंडरी इंफेक्शन वाले 56 फीसद कोविड-19 मरीजों की मौत बैक्टिरीयल इंफेक्शन या फंगल इंफेक्शन के कारण हुई.

आईसीएमआर के अध्ययन में कहा गया कि सेकेंडरी इंफेक्शन होने वाले आधे कोरोना मरीजों की मौत हो गई. ये सभी मरीज आईसीयू में भर्ती थे. अध्ययन में बताया गया है कि कई कोविड मरीजों में इलाज के दौरान या बाद में सेकेंडरी बैक्टिरीयल या फंगल इंफेक्शन हुआ और उनमें से आधे से अधिक मरीजों की मौत हो गई. इसके अलावा कोरोना मरीजों में ब्लैक फंगस और व्हाइट फंगस के कई मामले सामने आए. अध्ययन में अस्पताल से प्राप्त इंफेक्शन और ब्लैक फंगज या म्यूकोरमाइकोसिस के मामले भी दर्ज किए गए.

पढ़ें - दिसंबर तक 216 करोड़ नए टीकों के उत्पादन की रूपरेखा तैयार : जावड़ेकर

आईसीएमआर ने अपने अध्ययन में 17,534 मरीजों को शामिल किया था. इनमें से 3.6 फीसदी मरीजों में सेकेंडरी बैक्टिरीयल या फंगल इंफेक्शन के लक्षण मिले और इन मरीजों में मृत्यु दर 56.7 फीसद था. इसका मतलब है कि सेकेंडरी इंफेक्शन होने वाले कोरोना मरीजों में से आधे से ज्यादा ने दम तोड़ दिया है. वहीं अस्पतालों में भर्ती कुल कोरोना मरीजों की मृत्यु दर के मुकाबले सेकेंडरी इंफेक्शन के मामले में मृत्यु दर कई गुना ज्यादा थी.

दवा प्रतिरोध ने बढ़ाई चिंता

आईसीएमआर के अध्ययन ने यह भी संकेत दिया है कि दवा प्रतिरोध (Drug Resistance) बढ़ रहा है, जिसकी सेकेंडरी इंफेक्शन वाले मरीजों में एक प्रमुख भूमिका रही है. अध्ययन में कहा गया , 'चूंकि हमारे अध्ययन में अधिकांश सेकेंडरी इंफेक्शन मूल रूप से नोसोकोमियल थे और वह भी अत्यधिक ड्रग रजिस्टेंस पैथजन के साथ. यह खराब इंफेक्शन कंट्रोल प्रैक्टिस के अलावा तर्कहीन एंटीबायोटिक प्रस्क्रिप्शन प्रैक्टिस को सामने लाया है.’ आईसीएमआर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. कामिनी वालिया ने कहा कि दवा प्रतिरोधी संक्रमण अस्पताल में रहने से बढ़ता है. साथ ही साथ इलाज में भी अधिक पैसा खर्च होता है. इसके अलावा जब इन मरीजों में उच्च दवा प्रतिरोधी संक्रमण होता है तो इसके परिणाम खराब होते हैं.

पढ़ें - 'लॉकडाउन में बैक्टीरियल इंफेक्शन से हाेने वाली बीमारी में आयी कमी

अध्ययन में न केवल मरीजों को बचाने के लिए बल्कि दवा प्रतिरोधी संक्रमणों को फैलने से रोकने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं के तर्कहीन उपयोग के खिलाफ भी चेतावनी दी गई है. डॉ. वालिया का कहना है किआईसीयू में स्टैंडर्ड प्रक्टिस का पालन करने की आवश्यकता है. कोविड मरीजों के मामले में डॉक्टर पीपीई किट्स, डबल ग्लब्स आदि पहनते हैं. इस तरह की चीजें संक्रमण नियंत्रण करने के लिए शारीरिक चुनौतियां बन जाती हैं.

नई दिल्ली : देश में कोरोना संक्रमण का दौर चल रहा है. इस बीच इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने एक अध्ययन किया है. इसमें उसने पाया है कि हॉस्पिटल इंफेक्शन और सेकेंडरी इंफेक्शन के कारण कोरोना के मरीजों की मौत हो रही है. सेकेंडरी इंफेक्शन वाले 56 फीसद कोविड-19 मरीजों की मौत बैक्टिरीयल इंफेक्शन या फंगल इंफेक्शन के कारण हुई.

आईसीएमआर के अध्ययन में कहा गया कि सेकेंडरी इंफेक्शन होने वाले आधे कोरोना मरीजों की मौत हो गई. ये सभी मरीज आईसीयू में भर्ती थे. अध्ययन में बताया गया है कि कई कोविड मरीजों में इलाज के दौरान या बाद में सेकेंडरी बैक्टिरीयल या फंगल इंफेक्शन हुआ और उनमें से आधे से अधिक मरीजों की मौत हो गई. इसके अलावा कोरोना मरीजों में ब्लैक फंगस और व्हाइट फंगस के कई मामले सामने आए. अध्ययन में अस्पताल से प्राप्त इंफेक्शन और ब्लैक फंगज या म्यूकोरमाइकोसिस के मामले भी दर्ज किए गए.

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आईसीएमआर ने अपने अध्ययन में 17,534 मरीजों को शामिल किया था. इनमें से 3.6 फीसदी मरीजों में सेकेंडरी बैक्टिरीयल या फंगल इंफेक्शन के लक्षण मिले और इन मरीजों में मृत्यु दर 56.7 फीसद था. इसका मतलब है कि सेकेंडरी इंफेक्शन होने वाले कोरोना मरीजों में से आधे से ज्यादा ने दम तोड़ दिया है. वहीं अस्पतालों में भर्ती कुल कोरोना मरीजों की मृत्यु दर के मुकाबले सेकेंडरी इंफेक्शन के मामले में मृत्यु दर कई गुना ज्यादा थी.

दवा प्रतिरोध ने बढ़ाई चिंता

आईसीएमआर के अध्ययन ने यह भी संकेत दिया है कि दवा प्रतिरोध (Drug Resistance) बढ़ रहा है, जिसकी सेकेंडरी इंफेक्शन वाले मरीजों में एक प्रमुख भूमिका रही है. अध्ययन में कहा गया , 'चूंकि हमारे अध्ययन में अधिकांश सेकेंडरी इंफेक्शन मूल रूप से नोसोकोमियल थे और वह भी अत्यधिक ड्रग रजिस्टेंस पैथजन के साथ. यह खराब इंफेक्शन कंट्रोल प्रैक्टिस के अलावा तर्कहीन एंटीबायोटिक प्रस्क्रिप्शन प्रैक्टिस को सामने लाया है.’ आईसीएमआर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. कामिनी वालिया ने कहा कि दवा प्रतिरोधी संक्रमण अस्पताल में रहने से बढ़ता है. साथ ही साथ इलाज में भी अधिक पैसा खर्च होता है. इसके अलावा जब इन मरीजों में उच्च दवा प्रतिरोधी संक्रमण होता है तो इसके परिणाम खराब होते हैं.

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अध्ययन में न केवल मरीजों को बचाने के लिए बल्कि दवा प्रतिरोधी संक्रमणों को फैलने से रोकने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं के तर्कहीन उपयोग के खिलाफ भी चेतावनी दी गई है. डॉ. वालिया का कहना है किआईसीयू में स्टैंडर्ड प्रक्टिस का पालन करने की आवश्यकता है. कोविड मरीजों के मामले में डॉक्टर पीपीई किट्स, डबल ग्लब्स आदि पहनते हैं. इस तरह की चीजें संक्रमण नियंत्रण करने के लिए शारीरिक चुनौतियां बन जाती हैं.

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