नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी की उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें उन्होंने बैंक क्षेत्र में तेजी से बढ़ते एनपीए (गैर निष्पादित संपत्ति) यानी फंसे कर्ज को काबू करने के लिए दिशानिर्देश जारी करने का आग्रह किया था.
न्यायालय ने कहा कि यह नीतिगत मामला है और कार्यपालिका तथा भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के क्षेत्राधिकार में आता है. हालांकि, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, विक्रम नाथ और बी वी नागरत्न की पीठ ने स्वामी को आरबीआई के समक्ष अपनी बात रखने की अनुमति दी, जो उचित दिशानिर्देशों में बदलाव करने पर विचार कर सकता है.
न्यायालय ने कहा, 'हम लगातार बढ़ते एनपीए के लिए दिशानिर्देश कैसे तैयार कर सकते हैं. आरबीआई ने समय-समय पर दिशानिर्देश जारी किए हैं. न्यायालय के लिए कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में प्रवेश करना संभव नहीं है.'
न्यायालय में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित स्वामी ने इससे पहले कहा कि उनकी याचिका बैंकों में लगातार बढ़ते एनपीए के मुद्दे से संबंधित है और इस अदालत को एक समिति का गठन करना चाहिए, जो एनपीए में वृद्धि की जांच के लिए आवश्यक दिशानिर्देश सुझाएगी.
पीठ ने कहा कि समय-समय पर सरकार और आरबीआई दोनों ने इस मुद्दे पर दिशानिर्देश जारी किए हैं. स्वामी ने कहा कि अदालत के लिए समिति गठित करने से रोक नहीं है और आरबीआई एनपीए के संबंध में असाधारण गोपनीयता बनाए हुए है.
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उन्होंने कहा कि बैंक बंद होने पर लोगों को दर-दर भटकना पड़ता है. पीठ ने याचिका का निपटारा करते हुए स्वामी को मौजूदा दिशानिर्देशों में संशोधन की मांग करते हुए आरबीआई के समक्ष अपनी बात रखने की आजादी दी.
(पीटीआई-भाषा)