बठिंडा : पंजाब में कानून व्यवस्था बिगड़ती जा रही है. कई जगह खालिस्तान समर्थक युवा उग्र आंदोलन कर रहे हैं. हाल ही में इंटेलिजेंस दफ्तर मोहाली में ग्रेनेड अटैक हुआ और पटियाला में सिखों और शिवसेना नेताओं के बीच हुई खूनी झड़प भी हुई. इसके बाद केंद्रीय खुफिया एजेंसियों ने प्रदेश में अपनी सतर्कता बढ़ा दी है. पिछले दिनों पंजाब के चार जिलों के खालिस्तान समर्थक आंदोलन के समर्थक माने जाने वाले 36 युवाओं से पुलिस और खुफिया एजेंसी के अधिकारियों ने बठिंडा पुलिस लाइन बात की. अब इस बात पर विवाद हो गया है. इन युवाओं का आरोप है कि उन्हें बार-बार पूछताछ के लिए बुलाकर जांच एजेंसियां परेशान कर रही हैं. यह उनके स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है. हालांकि बठिंडा रेंज के आईजी शिव कुमार वर्मा ने कहा कि राज्य में बिगड़ती कानून व्यवस्था की स्थिति को देखते हुए यह केवल सूचना प्राप्त करने के लिए एक नियमित प्रक्रिया थी.
आईजी शिव कुमार वर्मा ने कहा कि राज्य पुलिस का इससे कोई लेना-देना नहीं है. यह बातचीत सीआईडी की ओर से डिजाइन किया गया एक मॉड्यूल है, जहां वे स्थिति को समझने के लिए समूहों के साथ बातचीत करते हैं. इसके जरिये वे आज की हालात के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं. आज के दौर में खुफिया एजेंसियों को अधिक जानकारी की आवश्यकता है ताकि वे किसी भी तरह की अप्रिय स्थिति के लिए कानून लागू करने वाली एजेंसियों को तैयार रख सकें. यह एक रूटीन प्रक्रिया है. उन्होंने बताया कि यह बातचीत निगेटिव नहीं है. उन्हें टारगेट नहीं गया था. उन्हें बठिंडा आने के लिए कहा गया, जहां बातचीत के बाद उन्हें जाने दिया गया. इसमें पूछताछ जैसी कोई बात नहीं थी.
खालिस्तान समर्थक आंदोलन का समर्थक मानसा जिला निवासी लवप्रीत सिंह ने बताया कि 22 मई को सुबह 7 बजे जिले के 17 युवकों को बठिंडा पुलिस लाइन का एक स्कूल ले जाया गया. इसके अलावा श्री मुक्तसर साहिब और फरीदकोट से भी युवकों को पूछताछ के लिए बुलाया गया है. लवप्रीत सिंह ने आरोप लगाया कि पुलिस ने चुन-चुनकर खालिस्तान समर्थक लोगों को बुलाया था. उन्होंने हमसे खालिस्तान आंदोलन से जुड़े सवाल पूछे. उनका कहना है कि खालिस्तान समर्थक और सिमरनजीत सिंह मान की पार्टी शिरोमणि अकाली दल अमृतसर के सदस्य हैं इसलिए हमें बुलाया गया. उन्होंने दावा किया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक खालिस्तान की मांग उठाने में कुछ भी गलत नहीं है. सिखों के लिए अलग राष्ट्र की मांग करने में कुछ भी गलत नहीं है. यह न तो असंवैधानिक है और न ही यह अपराध है.
उनका कहना है कि 1995 में सुप्रीम कोर्ट ने खालिस्तान पर नारे लगाने के पक्ष में एक अहम फैसला सुनाया. बलवंत सिंह और पंजाब सरकार के बीच एक मामले में जहां बलवंत और उनके दोस्त बलविंदर सिंह ने कथित तौर पर 'राज करेगा खालसा' जैसे नारे लगाए थे, शीर्ष अदालत ने कहा था कि स्थापित कानून के अनुसार, भारत सरकार को एक भी नारे से खतरा नहीं है. ऐसे नारे कई मौकों पर लोगों ने लगाए हैं, ऐसा करने से विभिन्न समुदायों या धर्मों के बीच आपसी दुश्मनी या नफरत की भावना पैदा नहीं होती है.
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