ETV Bharat / bharat

Same Sex Marriage : न्यायालय समलैंगिक विवाह से जुड़ी याचिकाओं में उठाये गये प्रश्न संसद के लिए छोड़ने पर विचार करे:केंद्र

केंद्र ने समलैंगिक विवाहों को कानूनी मंजूरी देने की मांग करने वाली याचिकाओं में उठाए गए प्रश्नों को संसद के लिए छोड़ने पर विचार करने का सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से अनुरोध किया है. मामले में पांच जस्टिस वाली संविधान पीठ के समक्ष सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र की ओर से पक्ष रखा.

Supreme Court
उच्चतम न्यायालय
author img

By

Published : Apr 26, 2023, 8:48 PM IST

नई दिल्ली : केंद्र ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से अनुरोध किया कि वह समलैंगिक विवाहों को कानूनी मंजूरी देने की मांग करने वाली याचिकाओं में उठाए गए प्रश्नों को संसद के लिए छोड़ने पर विचार करे. केंद्र की ओर से न्यायालय में पेश हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ से कहा कि शीर्ष न्यायालय एक बहुत ही जटिल मुद्दे से निपट रहा है, जो एक गहरा सामाजिक प्रभाव रखता है.

मेहता ने कहा, 'मूल प्रश्न यह है कि इस बारे में फैसला कौन करेगा कि विवाह किनके बीच है.' उन्होंने न्यायमूर्ति एसके कौल, न्यायमूर्ति एसआर भट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ से कहा कि कई अन्य विधानों पर भी इसका अनपेक्षित प्रभाव पड़ेगा, जिस पर समाज में और विभिन्न राज्य विधानमंडलों में चर्चा करने की जरूरत पड़ेगी. शीर्ष न्यायालय में विषय की सुनवाई जारी है.

विषय की सुनवाई के प्रथम दिन, 18 अप्रैल को केंद्र ने शीर्ष न्यायालय से कहा था कि उसकी प्राथमिक आपत्ति यह है कि क्या न्यायालय इस प्रश्न पर विचार कर सकता है या इस पर पहले संसद को विचार करना जरूरी है. मेहता ने कहा था कि शीर्ष न्यायालय जिस विषय से निपट रहा है वह वस्तुत: विवाह के सामाजिक-विधिक संबंध से संबंधित है, जो सक्षम विधायिका के दायरे में होगा. उन्होंने कहा था, 'यह विषय समवर्ती सूची में है, ऐसे में हम इस पर एक राज्य के सहमत होने, एक अन्य राज्य द्वारा इसके पक्ष में कानून बनाने, एक अन्य राज्य द्वारा इसके खिलाफ कानून बनाने की संभावना से इनकार नहीं कर सकते. इसलिए राज्यों की अनुपस्थिति में याचिकाएं विचारणीय नहीं होंगी, यह मेरी प्राथमिक आपत्तियों में से एक है.'

पीठ ने 18 अप्रैल को स्पष्ट कर दिया था कि वह इन याचिकाओं पर फैसला करते समय विवाह से जुड़े पर्सनल लॉ पर विचार नहीं करेगा. केंद्र ने शीर्ष न्यायालय में दाखिल अपने हलफनामों में एक में याचिकाओं को सामाजिक स्वीकार्यता के उद्देश्य के लिए एक शहरी संभ्रांतवादी विचार का प्रतिबिंब बताया था. साथ ही, कहा था कि विवाह को मान्यता देना एक विधायी कार्य है जिसपर निर्णय देने से अदालतों को दूर रहना चाहिए.

केंद्र ने 19 अप्रैल को शीर्ष न्यायालय से अनुरोध किया था कि सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को इन याचिकाओं पर कार्यवाहियों में पक्षकार बनाया जाए. न्यायालय में दाखिल एक नये हलफनामे में केंद्र ने कहा था कि उसने 18 अप्रैल को सभी राज्यों को एक पत्र भेज कर इन याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर टिप्पणियां आमंत्रित की हैं और विचार मांगे हैं. पीठ ने 25 अप्रैल को विषय पर सुनवाई करते हुए कहा था कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी देने की मांग करने वाली याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर संसद के पास अविवादित रूप से विधायी शक्ति है.

ये भी पढ़ें - Same Sex Marriage : समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट में बहस- 'विवाह अधिकारों का गुलदस्ता है, यह ग्रेच्युटी, पेंशन पर नहीं रुकता'

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : केंद्र ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से अनुरोध किया कि वह समलैंगिक विवाहों को कानूनी मंजूरी देने की मांग करने वाली याचिकाओं में उठाए गए प्रश्नों को संसद के लिए छोड़ने पर विचार करे. केंद्र की ओर से न्यायालय में पेश हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ से कहा कि शीर्ष न्यायालय एक बहुत ही जटिल मुद्दे से निपट रहा है, जो एक गहरा सामाजिक प्रभाव रखता है.

मेहता ने कहा, 'मूल प्रश्न यह है कि इस बारे में फैसला कौन करेगा कि विवाह किनके बीच है.' उन्होंने न्यायमूर्ति एसके कौल, न्यायमूर्ति एसआर भट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ से कहा कि कई अन्य विधानों पर भी इसका अनपेक्षित प्रभाव पड़ेगा, जिस पर समाज में और विभिन्न राज्य विधानमंडलों में चर्चा करने की जरूरत पड़ेगी. शीर्ष न्यायालय में विषय की सुनवाई जारी है.

विषय की सुनवाई के प्रथम दिन, 18 अप्रैल को केंद्र ने शीर्ष न्यायालय से कहा था कि उसकी प्राथमिक आपत्ति यह है कि क्या न्यायालय इस प्रश्न पर विचार कर सकता है या इस पर पहले संसद को विचार करना जरूरी है. मेहता ने कहा था कि शीर्ष न्यायालय जिस विषय से निपट रहा है वह वस्तुत: विवाह के सामाजिक-विधिक संबंध से संबंधित है, जो सक्षम विधायिका के दायरे में होगा. उन्होंने कहा था, 'यह विषय समवर्ती सूची में है, ऐसे में हम इस पर एक राज्य के सहमत होने, एक अन्य राज्य द्वारा इसके पक्ष में कानून बनाने, एक अन्य राज्य द्वारा इसके खिलाफ कानून बनाने की संभावना से इनकार नहीं कर सकते. इसलिए राज्यों की अनुपस्थिति में याचिकाएं विचारणीय नहीं होंगी, यह मेरी प्राथमिक आपत्तियों में से एक है.'

पीठ ने 18 अप्रैल को स्पष्ट कर दिया था कि वह इन याचिकाओं पर फैसला करते समय विवाह से जुड़े पर्सनल लॉ पर विचार नहीं करेगा. केंद्र ने शीर्ष न्यायालय में दाखिल अपने हलफनामों में एक में याचिकाओं को सामाजिक स्वीकार्यता के उद्देश्य के लिए एक शहरी संभ्रांतवादी विचार का प्रतिबिंब बताया था. साथ ही, कहा था कि विवाह को मान्यता देना एक विधायी कार्य है जिसपर निर्णय देने से अदालतों को दूर रहना चाहिए.

केंद्र ने 19 अप्रैल को शीर्ष न्यायालय से अनुरोध किया था कि सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को इन याचिकाओं पर कार्यवाहियों में पक्षकार बनाया जाए. न्यायालय में दाखिल एक नये हलफनामे में केंद्र ने कहा था कि उसने 18 अप्रैल को सभी राज्यों को एक पत्र भेज कर इन याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर टिप्पणियां आमंत्रित की हैं और विचार मांगे हैं. पीठ ने 25 अप्रैल को विषय पर सुनवाई करते हुए कहा था कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी देने की मांग करने वाली याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर संसद के पास अविवादित रूप से विधायी शक्ति है.

ये भी पढ़ें - Same Sex Marriage : समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट में बहस- 'विवाह अधिकारों का गुलदस्ता है, यह ग्रेच्युटी, पेंशन पर नहीं रुकता'

(पीटीआई-भाषा)

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.