लखनऊ : 2024 लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में एक बार फिर से पूर्वांचल की सभी सीट राजनीतिक पार्टियों के लिए सबसे ज्यादा चुनावी लड़ाई का केंद्र बनने वाली हैं. मौजूदा राजनीतिक समीकरण व जातीय समीकरण और चेहरों के सहारे विपक्षी दल भाजपा को पूर्वांचल में कड़ी चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं. बीते सप्ताह कांग्रेस ने पूर्वांचल के कद्दावर नेता अजय राय को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर उसमें भी पूर्वांचल की गढ़ में सेंधमारी करने की कोशिश की है. पार्टी ने नए प्रदेश अध्यक्ष पूर्वांचल की वाराणसी सीट से आने वाले कद्दावर नेता अजय राय को अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी है. वह भूमिहार बिरादरी से आते हैं, ऐसे में I.N.D.I.A गठबंधन के साथी समाजवादी पार्टी, अपना दल कमेरावादी, 'महान दल' के साथ कांग्रेस I.N.D.I.A गठबंधन के तहत चुनाव लड़कर यहां के जाति समीकरण को मजबूत करना चाहती है, जिसके सहारे भाजपा को लोकसभा चुनाव में चुनौती देने में पीछे न रहे.
2024 की लड़ाई का केंद्र पूर्वांचल बनता जा रहा है. सभी दलों ने अभी से पूर्वांचल पर फोकस करना शुरू कर दिया है. जहां भाजपा ने पूर्वांचल में अपनी पकड़ को मजबूत बनाने के लिए एक बार फिर से ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा से गठबंधन किया है. कांग्रेस ने प्रधानमंत्री मोदी को चुनौती देने वाले अपने भूमिहार नेता को यहां से पार्टी की कमान देकर जातीय समीकरण को साधने के साथ ही भाजपा को भी चुनौती पेश करने की कोशिश की है. कांग्रेस पार्टी पूर्वांचल में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए विपक्षी दल के जाति समीकरण साधने के साथ-साथ बड़े नेताओं को जिम्मेदारी देने में जुट गई है, जहां भारतीय जनता पार्टी ने पूर्वांचल की लड़ाई के लिए अभी से तैयारी शुरू कर रखी है, तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस भी इस लड़ाई को और रोचक बनाने की तैयारी कर रही है. भाजपा जहां पूर्वांचल में अपना दबदबा बढ़ाकर रखने के लिए छोटे-छोटे दलों से हाथ मिलाकर जाति समीकरण को मजबूत करने में लगी है, विशेष तौर पर सुहेलदेव समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर को अपने पाले में लाकर पार्टी ने करीब आधा दर्जन सीटों पर राजभर बिरादरी को निर्णायक भूमिका को अपने तरफ खींचने की कोशिश की. उसी तर्ज पर कांग्रेस ने भूमिहार बिरादरी से आने वाले अजय राय को प्रदेश की कमान देकर भाजपा के इस जातीय समीकरण में सेंध लगाने की कोशिश की है.
प्रोफेसर संजय गुप्ता का कहना है कि 'भाजपा चाहती है कि पूर्वांचल में त्रिकोणीय मुकाबला हो. आमने सामने की लड़ाई में सत्तापक्ष को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है. इसी को देखते हुए कांग्रेस ने अजय राय के रूप में बड़ा दांव खेला है. उन्होंने बताया कि 2014 में देश की सभी लोकसभा सीटों को छोड़कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्वांचल के केंद्र वाराणसी को चुना और इसका लाभ भाजपा को 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में हुआ था. भाजपा एक बार फिर से इसी फार्मूले पर चल रही है. 2019 में भाजपा सिर्फ आजमगढ़ की सीट को छोड़कर वहां की सभी 26 सीटों पर कब्जा जमाने में कामयाब रही थी, जबकि 2014 में पूर्वांचल की अधिकता सीटों पर मुकाबला भाजपा, सपा और बसपा के त्रिकोणीय रहा था, जिसका फायदा भाजपा को मिला था. चुनाव में सपा की शिव कन्या कुशवाहा को 2 लाख 74 हजार वोट मिले थे, जबकि भाजपा के कैलाश नाथ यादव को 2 लाख 31 हज़ार वोट मिले थे. अब मनोज सिन्हा को 3 लाख 17 हज़ार के करीब मत मिले थे, लेकिन 2019 के मुकाबले में भाजपा के सांसद की संख्या घटकर 25 से 19 हो गई. इसकी एक वजह तो सत्ता विरोध था, जबकि बड़ी वजह थी कि सपा और बसपा के गठबंधन की वजह से अधिकतर सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय होने की वजह आमने-सामने का हो गया. सपा-बसपा के साथ होने की वजह से जातीय समीकरण गठबंधन के पक्ष में हो गया. गाजीपुर की यही सीट पर मनोज सिन्हा को करीब एक लाख 20 हजार वोटों से चुनाव हार का सामना करना पड़ा था.'