नई दिल्ली: एआईसीसी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने सोमवार को कहा कि कांग्रेस राजस्थान में कोई जोखिम नहीं ले रही है. जरूरत पड़ने पर अतिरिक्त संख्या हासिल करने के लिए संभावित स्वतंत्र उम्मीदवारों और छोटे दलों तक पहुंचना शुरू कर दिया है.
एआईसीसी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, 'हमें साधारण बहुमत की उम्मीद है, लेकिन राजनीति में विभिन्न दलों और नेताओं के बीच संचार के रास्ते हमेशा खुले रहते हैं और जब दांव बड़ा हो तो यह महत्वपूर्ण हो जाता है.' राजस्थान में 200 सदस्यीय विधानसभा के लिए 25 नवंबर को मतदान हुआ था. नतीजे 3 दिसंबर को आएंगे.
हालांकि पार्टी के नेता सार्वजनिक रूप से स्पष्ट बहुमत यानी 101 या अधिक सीटों का दावा कर रहे हैं, लेकिन आंतरिक आकलन से पता चला है कि चुनाव परिणाम 2018 के समान ही हो सकते हैं.
2018 में निर्दलीयों के अलावा कांग्रेस ने 99, बीजेपी ने 73 और बीएसपी ने 6 सीटें जीती थीं. कांग्रेस ने अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाया जिन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके 6 बसपा विधायकों और कुछ निर्दलीय विधायकों से समर्थन हासिल किया. पार्टी के रणनीतिकारों ने कहा कि इसे ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने राजनीतिक शिष्टाचार के तहत प्रतिद्वंद्वियों तक चुपचाप पहुंचकर एक प्रारंभिक कदम उठाया है.
एआईसीसी पदाधिकारी ने कहा, '2018 में हमने 99 सीटें जीतीं और 100 सीटें हारीं. इस बार हम अपनी 99 विजयी सीटों में से 30 खो सकते हैं, लेकिन हम पिछले विधानसभा चुनाव में हारी हुई 100 सीटों में से 30 सीटें भी हासिल करेंगे. इसका मतलब है कि नुकसान और लाभ को समायोजित करने के बाद हम 2018 जैसी ही स्थिति में होंगे. हर हाल में हम सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेंगे. हम दोबारा सरकार बनाएंगे, भले ही इसके लिए कुछ अतिरिक्त सीटों की जरूरत पड़े.'
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार इस बार का विश्वास विभिन्न जनमत सर्वेक्षणों से उभर कर सामने आया है, जिसमें नियमित रूप से मुख्यमंत्री गहलोत की लोकप्रियता और मतदाताओं द्वारा उनकी सरकार की विभिन्न सामाजिक कल्याण योजनाओं की सराहना दिखाई गई है.
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि इसके साथ ही सबसे पुरानी पार्टी ने भाजपा के खिलाफ पार्टी के चुनावी वादों के इर्द-गिर्द एक आक्रामक अभियान चलाया, जिसमें दिखाने के लिए बहुत कम था और इसलिए सत्तारूढ़ पार्टी के कई आश्वासनों की नकल की.
रंधावा बोले- जीत का पूरा भरोसा : एआईसीसी के राजस्थान प्रभारी महासचिव एसएस रंधावा ने ईटीवी भारत से कहा कि 'मैं आंकड़ों के खेल में नहीं पड़ना चाहता लेकिन मुझे जीत का पूरा भरोसा है.' हालांकि, पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने स्वीकार किया कि राज्य के कई नेताओं ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि क्या कांग्रेस हर पांच साल में राजस्थान में बदलने वाली सरकारों की परंपरा को उलटने में सक्षम होगी.
राज्य के एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा, 'राजस्थान में कांटे की टक्कर थी. लेकिन भले ही हम आधे आंकड़े 101 के करीब पहुंचें, लेकिन लगातार संख्याएं हासिल करने का श्रेय पार्टी में हर किसी को जाना चाहिए. हम फैसले को विनम्रता से स्वीकार करेंगे.'
कांग्रेस ने भरतपुर सीट सहयोगी रालोद के लिए छोड़ दी है और वह उनके समर्थन को लेकर आश्वस्त है. इसके अलावा पार्टी को श्रीगंगानगर, गंगापुर सिटी, अनूपगढ़, भादरा, बीकानेर पूर्व, पीलीबंगा, सांगानेर, मालवीय नगर, कपासन, विद्याधर नगर, जालोर, डग, झालरापाटन, खानपुर, मनोहर थाना, उदयपुरवाटी, रामगंज मंडी, मारवाड़ जंक्शन, मालपुरा, रेवदर, नागौर, रतनगढ़, खंडेला, अजमेर उत्तर, अजमेर दक्षिण, अलवर शहर, बहरोड़, भीलवाड़ा, बूंदी, कोटा, सिरोही, भोपालगढ़ सहित कई सीटों पर अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद है जो 2018 में हार गई थी.