नई दिल्ली: कांग्रेस ने बसपा प्रमुख मायावती की आलोचना की है (Congress slams Mayawati). कांग्रेस का आरोप है कि मायावती ने भाजपा विधायक रमेश बिधूड़ी की ओर से उनकी पार्टी के लोकसभा सांसद दानिश अली के सार्वजनिक अपमान पर सॉफ्ट प्रतिक्रिया दी है.
इस घटना ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया क्योंकि बिधूड़ी ने अली के धर्म को लेकर निशाना बनाने और उनके नाम पुकारने के लिए व्यापक आलोचना का सामना करना पड़ा. एक टीवी साक्षात्कार के दौरान बसपा विधायक के रोने के बाद राहुल गांधी ने बाद में अली से मुलाकात की.
कांग्रेस वर्किंग कमेटी की सदस्य अलका लांबा ने ईटीवी भारत से कहा कि 'आदरणीय मायावती जी ने अभी अपनी पार्टी के सांसद के अपमान पर पांच लाइन का ट्वीट किया. चार लाइनों में उन्होंने बीजेपी के विचार रखे और सिर्फ एक लाइन में अपनी आपत्ति दर्ज कराने की हिम्मत दिखाई. मैं उन्हें सलाम करती हूं. नफरत हारेगी और प्यार जीतेगा.'
उत्तर प्रदेश कांग्रेस के पूर्व प्रमुख और बसपा के पूर्व नेता बृजलाल खाबरी इसे लेकर मुखर थे. खाबरी ने कहा कि 'मायावतीजी चुपचाप भाजपा का समर्थन करती हैं. इसलिए उन्होंने बिधूड़ी या उनकी पार्टी की कड़े शब्दों में आलोचना नहीं की है. उनमें बीजेपी पर निशाना साधने का साहस नहीं है. यदि आप किसी अन्य पार्टी के सामने आत्मसमर्पण करते हैं, तो यही होता है.'
कांग्रेस नेता ने भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी की टिप्पणी की आलोचना की, जिन्होंने बसपा सांसद के कांग्रेस में शामिल होने से पहले राहुल की अली यात्रा को नाटक बताया था. बृजलाल खाबरी ने कहा कि 'राहुल जी का दौरा राजनीतिक नहीं बल्कि मानवीय आधार पर था. लेकिन मुस्लिम और दलित समुदाय के लोगों की नजर नेताओं पर है. उन्हें एहसास हो गया है कि क्षेत्रीय दल अब उनके संरक्षक नहीं हैं और वे सबसे पुरानी पार्टी में लौट आएंगे.'
पूर्व कांग्रेस प्रमुख ने कहा कि यूपी में मतदाता निश्चित रूप से इस प्रकरण पर ध्यान देंगे और मतपत्र के माध्यम से अपनी बात रखेंगे. दानिश अली घटना पर कांग्रेस नेताओं के विचार बसपा के वोट बैंक को जीतकर राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण यूपी में फिर से जमीन हासिल करने की सबसे पुरानी पार्टी की योजनाओं से निकटता से जुड़े हुए हैं.
यूपी कांग्रेस नेता अखिलेश सिंह के मुताबिक, 'राज्य में मायावती एक ख़त्म हो चुकी ताकत हैं और दलित किसी सहारे की तलाश में हैं.' हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि सबसे पुरानी पार्टी के लिए दलितों को एक बार में अपनी ओर आकर्षित करना आसान नहीं हो सकता है और उस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए अधिक निरंतर योजना की आवश्यकता होगी.
बृजलाल खाबरी ने कहा कि 'पिछले वर्षों में कांग्रेस ने नसीमुद्दीन सिद्दीकी और नकुल दुबे जैसे पूर्व बसपा नेताओं को शामिल किया और बसपा के समर्थकों को साधने के लिए जमीन पर काम कर रही है. लेकिन यह तो केवल समय बताएगा.'
राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया गठबंधन का नेतृत्व कर रही कांग्रेस ने विपक्षी गठबंधन में शामिल होने के लिए बसपा प्रमुख को प्रस्ताव दिया है, लेकिन यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री कड़ी चुनौती पेश कर रही हैं. फिलहाल, मायावती ने कहा है कि वह न तो इंडिया और न ही एनडीए के साथ हैं और अपना रास्ता अपनाएंगी. दलित मतदाताओं को लुभाने के लिए 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे को यूपी से मैदान में उतारने की भी योजना है.
2019 के राष्ट्रीय चुनावों में सपा और बसपा ने भाजपा के खिलाफ मिलकर चुनाव लड़ा था. बसपा ने 10 सीटें जीतीं जबकि सपा को 5 सीटें मिलीं. कांग्रेस के पास सिर्फ एक सीट थी. हालांकि, 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में बसपा सिर्फ 1 सीट और कांग्रेस दो सीट जीत सकी, जबकि सपा ने 111 सीटें जीतीं.