नई दिल्ली: छह साल के अंतराल के बाद 30 अप्रैल को मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों (Chief Ministers And Chief Justices of High Courts) के सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा. इसके एजेंडे में तेजी से न्याय करना, लंबित मुकदमों की संख्या में कमी लाना और न्यायपालिका में बढ़ती रिक्तियों से निपटना सहित अन्य मुद्दे शीर्ष पर हो सकते हैं. सम्मेलन न्यायपालिका के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करने का एक मंच है. यह आखिरी बार 24 अप्रैल 2016 को आयोजित हुआ था. आमतौर पर प्रधानमंत्री इस तरह के सम्मेलनों का उद्घाटन भारत के मुख्य न्यायाधीश और केंद्रीय कानून मंत्री की उपस्थिति में करते हैं.
इस बार भी प्रधानमंत्री दिनभर चलने वाले सम्मेलन का उद्घाटन कर सकते हैं. हालांकि, सम्मेलन के एजेंडे को अंतिम रूप दिया जाना बाकी है. लेकिन सरकारी सूत्रों ने बताया कि इसमें तेजी से न्याय करने, निचली अदालतों और 25 उच्च न्यायालयों में रिक्तियों को भरने, न्यायिक बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने और लंबित मामलों की संख्या में कमी लाने जैसे मुद्दों पर विचार-विमर्श किए जाने की संभावना है. कुछ महीने पहले, मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण ने अदालतों में पर्याप्त बुनियादी ढांचा सुनिश्चित करने के लिए भारतीय राष्ट्रीय न्यायिक अवसंरचना प्राधिकरण (एनजेआईएआई) की स्थापना के वास्ते सरकार को एक प्रस्ताव भेजा था. प्रस्तावित संगठन भारतीय अदालतों के कार्यात्मक बुनियादी ढांचे के नियोजन, निर्माण, विकास, रखरखाव और प्रबंधन के लिए रूपरेखा तैयार करने में केंद्रीय निकाय के रूप में काम करेगा.
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सूत्रों ने बताया कि हालांकि, अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि एनजेआईएआई का मुद्दा एजेंडे में होगा या नहीं, लेकिन अदालतों के लिए बुनियादी ढांचा सुविधाएं बढ़ाने के वास्ते इस पर व्यापक एजेंडे के रूप में चर्चा की जा सकती है. आमतौर पर इस तरह के सम्मेलन हर दो साल में होते हैं, लेकिन कुछ अपवाद भी हैं. पिछला सम्मेलन अप्रैल 2016 में आयोजित किया गया था. जबकि, उसके पहले के सम्मेलन 2015 और 2013 में हुए थे.