नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि सार्वजनिक धन और बैंक धोखाधड़ी के विभिन्न पहलुओं को संतुलित करने की आवश्यकता है क्योंकि ऋण प्रदान करने और गैर निष्पादित आस्तियों (एनपीए) की घोषणा करने की प्रक्रिया को जटिल बनाने का असर अंतत: नीतिगत पंगुता के रूप में होगा. शीर्ष न्यायालय ने कहा कि बैंकिंग प्रक्रियाओं को बोझिल बनाने से ऐसी स्थिति पैदा हो जाएगी जिसमें अधिकारी कर्ज को मंजूरी देने और एनपीए को लेकर कोई भी निर्णय लेने से घबराएंगे.
न्यायालय गैर-सरकारी संगठन सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) द्वारा 2003 में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था. इस याचिका में अदालत से अनुरोध किया गया है कि वह बैंक धोखाधड़ी, गैर निष्पादित आस्तियों और जानबूझकर चूक करने वालों के खिलाफ अभियोजन संबंधी दिशा-निर्देश जारी करे.
सीपीआईएल ने याचिका में आरोप लगाया है कि बैंकों में कथित तौर पर 14,500 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी हुई है और इसमें कुछ बड़ी कॉरपोरेट कंपनियां भी शामिल हैं जिन्होंने आवास एवं शहरी विकास निगम (हुडको) द्वारा दिए गए कर्ज के पुनर्भुतान में चूक की है. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अदालत को बताया कि बैंक धोखाधड़ी से निपटने और जानबूझकर चूक करने वालों के खिलाफ कार्रवाई जैसे उसके प्रयासों से एनपीए में कमी आई है और वह एनपीए के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ एहतियाती कदम उठा रहा है.
पीठ ने कहा, 'सब प्रकार की बैंक धोखाधड़ी का भार हम सीबीआई पर नहीं डाल सकते. हमें सार्वजनिक धन और बैंक धोखाधड़ी जैसे विभिन्न मुद्दों को संतुलित करना होगा क्योंकि कर्ज देने और एनपीए की घोषणा करने की प्रक्रिया को बोझिल बनाने का असर अंतत: नीतिगत पंगुता के रूप में होगा.' न्यायालय ने आरबीआई की ओर से पेश अधिवक्ता से केंद्रीय बैंक द्वारा उठाए गए कदमों तथा और क्या कदम उठाने की जरूरत है इस बारे में जानकारी चार हफ्ते के भीतर देने को कहा.
(पीटीआई-भाषा)