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मकसद का पूर्ण अभाव होना आरोपी के पक्ष में जाता है: उच्चतम न्यायालय - Weighs In Favour Of The Accused

उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) में जस्टिस एसआर भट और पीएस नरसिम्हा की बेंच ने छत्तीसगढ़ के उच्च न्यायालय (High Court of Chhattisgarh) द्वारा मई 2014 में दिए गए फैसले को खारिज कर दिया. जिसने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ आरोपी द्वारा दायर एक अपील को खारिज कर दिया था और मामले में उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.

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Published : Feb 27, 2022, 4:44 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने वर्ष 1997 के एक हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा पाने वाले एक व्यक्ति को बरी करते हुए कहा है कि मकसद का 'पूर्ण अभाव' (Complete Absence Of Motive) होना निश्चित रूप से आरोपी के पक्ष में जाता (Weighs In Favour Of The Accused) है. न्यायमूर्ति यू यू ललित, न्यायमूर्ति एस आर भट और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पीठ ने साथ ही यह टिप्पणी भी की कि इसका अर्थ यह नहीं है कि मकसद के अभाव में अभियोजन के मामले को खारिज कर दिया जाना चाहिए.

पीठ ने 2014 में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय (High Court of Chhattisgarh) द्वारा सुनाए गए आदेश को खारिज कर दिया. मामले में दोषी ठहराने और उम्रकैद की सजा सुनाने के निचली अदालत के आदेश को आरोपी ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी, लेकिन उसकी याचिका को खारिज कर दिया गया था. उच्च न्यायालय के आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई थी. पीठ ने 25 फरवरी के अपने आदेश में कहा कि ऐसा नहीं है कि केवल (आरोपी का) मकसद एक अहम कड़ी होता है, जिसे अभियोजन को साबित करना होता है.

पढ़ें: न्यायालय में PIL दायर कर यूक्रेन से भारतीयों को फौरन लाने के लिए केंद्र को निर्देश देने का आग्रह

उसके अभाव में अभियोजन का मामला खारिज नहीं किया जा सकता है, लेकिन इसके साथ ही मकसद का पूर्ण अभाव मामले को नया रूप (Different Complexion) देता है और इसकी अनुपस्थिति निश्चित ही आरोपी के पक्ष में जाती है. अभियोजन के अनुसार, एक व्यक्ति ने शिकायत दर्ज कराई थी कि उसका बेटा 13 जनवरी, 1997 के बाद से लापता है, जिसके आधार पर मामला दर्ज किया गया था.

इसके बाद, 17 जनवरी, 1997 को एक तालाब से व्यक्ति के बेटे का शव मिला था. मामले को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302(हत्या) के रूप में बदल दिया गया था. शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता नंदू सिंह को मामले में गिरफ्तार किया गया था. ऐसा बताया गया है कि उसके बयान के आधार पर कई साक्ष्य सामने आए. याचिकाकर्ता के वकील ने शीर्ष अदालत से कहा था कि यह मामला परिस्थितिजन्य सबूतों पर आधारित है. अभियोजन ने हत्या के पीछे नंदू सिंह का कोई मकसद नहीं बताया है.

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने वर्ष 1997 के एक हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा पाने वाले एक व्यक्ति को बरी करते हुए कहा है कि मकसद का 'पूर्ण अभाव' (Complete Absence Of Motive) होना निश्चित रूप से आरोपी के पक्ष में जाता (Weighs In Favour Of The Accused) है. न्यायमूर्ति यू यू ललित, न्यायमूर्ति एस आर भट और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पीठ ने साथ ही यह टिप्पणी भी की कि इसका अर्थ यह नहीं है कि मकसद के अभाव में अभियोजन के मामले को खारिज कर दिया जाना चाहिए.

पीठ ने 2014 में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय (High Court of Chhattisgarh) द्वारा सुनाए गए आदेश को खारिज कर दिया. मामले में दोषी ठहराने और उम्रकैद की सजा सुनाने के निचली अदालत के आदेश को आरोपी ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी, लेकिन उसकी याचिका को खारिज कर दिया गया था. उच्च न्यायालय के आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई थी. पीठ ने 25 फरवरी के अपने आदेश में कहा कि ऐसा नहीं है कि केवल (आरोपी का) मकसद एक अहम कड़ी होता है, जिसे अभियोजन को साबित करना होता है.

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उसके अभाव में अभियोजन का मामला खारिज नहीं किया जा सकता है, लेकिन इसके साथ ही मकसद का पूर्ण अभाव मामले को नया रूप (Different Complexion) देता है और इसकी अनुपस्थिति निश्चित ही आरोपी के पक्ष में जाती है. अभियोजन के अनुसार, एक व्यक्ति ने शिकायत दर्ज कराई थी कि उसका बेटा 13 जनवरी, 1997 के बाद से लापता है, जिसके आधार पर मामला दर्ज किया गया था.

इसके बाद, 17 जनवरी, 1997 को एक तालाब से व्यक्ति के बेटे का शव मिला था. मामले को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302(हत्या) के रूप में बदल दिया गया था. शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता नंदू सिंह को मामले में गिरफ्तार किया गया था. ऐसा बताया गया है कि उसके बयान के आधार पर कई साक्ष्य सामने आए. याचिकाकर्ता के वकील ने शीर्ष अदालत से कहा था कि यह मामला परिस्थितिजन्य सबूतों पर आधारित है. अभियोजन ने हत्या के पीछे नंदू सिंह का कोई मकसद नहीं बताया है.

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