नई दिल्ली : पहले रामचरित मानस और अब वाल्मीकि रामायण पर की गई टिप्पणियों को लेकर विवाद जारी है. बिहार के मंत्री के बयान के बाद अब कर्नाटक के एक लेखक ने वाल्मीकि रामायण पर अनुचित टिप्पणी की है. कर्नाटक के मांड्या के लेखक केएस भगवान ने कहा कि राम राज्य बनाने की बात चल रही है, लेकिन वाल्मीकि रामायण के उत्तर कांड को पढ़ने से पता चलता है कि (भगवान) राम आदर्श नहीं थे. उन्होंने 11,000 वर्षों तक शासन नहीं किया, बल्कि केवल 11 वर्षों तक शासन किया.
केएस भगवान सेवानिवृत्त प्रोफेसर और लेखक हैं. उन्होंने यह बयान दो दिन पहले दिया था. उन्होंने अपने बयान में कहा कि भगवान राम हर दोपहर को 'शराब' पीते थे. उन्होंने यह भी कहा कि उस समय सीता भी उनके साथ रहती थीं. लेखक ने कहा कि ये तथ्य मेरे नहीं हैं, बल्कि दस्तावेज में लिखे हुए हैं.
भगवान ने पहले भी इस तरह के बयान दिए हैं. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 2019 में भी उन्होंने वाल्मीकि रामायण को लेकर विवादास्पद बातें कही थीं. तब भगवान ने कहा था कि वाल्मीकि रामायण में भी लिखा है कि राम 'नशा' करते थे. केएस भगवान ने अपनी किताब 'राम मंदिर येके बड़ा' में इन टिप्पणियों का जिक्र किया है.
आज ही उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री और समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी रामचरितमानस पर अपनी राय रखी है. मौर्य ने कहा कि उन्हें रामचरितमानस के उस अंश पर आपत्ति है, जिसमें शूद्र का जिक्र किया गया है.
जानकारों का मानना है कि वाल्मीकि रामायण में उत्तर कांड नहीं है. यहां तक कि रामचरित मानस में भी उत्तरकांड के कुछ छंदों पर विवाद है. कई जानकारों ने इसके विवादास्पद छंदों को क्षेपक माना है. यानी बाद में किसी ने इस अंश को जोड़ दिया है. कुछ जानकारों ने इसका विश्लेषण दूसरे संदर्भों में किया है.
बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने रामचरितमानस पर बोलते हुए कहा था कि, 'रामचरितमानस ग्रंथ समाज में नफरत फैलाने वाला ग्रंथ है. यह समाज में दलितों, पिछड़ों और महिलाओं को पढ़ाई से रोकता है. उन्हें उनका हक दिलाने से रोकता है. मनुस्मृति ने समाज में नफरत का बीज बोया. मनुस्मृति को बाबा साहब अंबेडकर ने इसलिये जलाया क्योंकि वह दलितों और वंचितों के हक छीनने की बातें करती है.'
धार्मिक मामलों के जानकार और रिटायर पुलिस अधिकारी किशोर कुणाल ने कहा कि सबको अपनी बात कहने का अधिकार है. लेकिन हमारी नजर में रामचरितमानस पारिवारिक प्रेम और सामाजिक सदभाव का सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ है. क्या सही है और क्या गलत है, इस पर सामने आकर बहस कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि रामचरितमानस की पहली किताब साल 1810 में कोलकाता से छपी थी. उसमें पाठ ढोल गंवार क्षुद्र पशु मारी सकल ताड़ना के अधिकारी लिखा हुआ है. अब कोई उसका मतलब कोई बदल दे तो क्या कर सकते हैं. क्षुद्र को शुद्र कर दे और पशुमारी को पशु नारी कर दे तो क्या करें. किसी का आकलन करने से पहले देखना पड़ेगा कि वो मूल रूप में है या नहीं.
ये भी पढ़ें : Bihar Politics: गिरिराज का आरोप- 'बिहार सरकार के संरक्षण में हिन्दू ग्रंथों को किया जा रहा अपमानित'