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अरुणाचल प्रदेश के सीएम चकमाओं व हाजोंगों के पुनर्वास का प्रस्ताव देकर उनके खिलाफ पूर्वाग्रह को कायम न रखें - सीडीएफआई - मुख्यमंत्री पेमा खांडू

चकमा डेवलपमेंट फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू से आग्रह किया है राज्य के चकमाओं और हाजोंगों को राज्य में स्थायी रूप से बसने की अनुमति प्रदान करें. साथ ही अन्य राज्यों में स्थानांतरण का आग्रह करें और उनके खिलाफ पूर्वाग्रहों को कायम न रखें.

Arunachal Pradesh Chief Minister Pema Khandu
अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू
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Published : Apr 25, 2023, 3:23 PM IST

नयी दिल्ली: चकमा डेवलपमेंट फाउंडेशन ऑफ इंडिया (सीडीएफआई) ने मंगलवार को अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू से आग्रह किया कि राज्य के चकमाओं और हाजोंगों को राज्य में स्थायी रूप से बसने के योग्य नहीं बताकर उनके खिलाफ पूर्वाग्रहों को कायम न रखें और इसलिए, भारत के विभिन्न राज्यों में उनके स्थानांतरण का प्रस्ताव भी दें. मुख्यमंत्री पेमा खांडू सोमवार को ईटानगर में राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के उपलक्ष्य में प्रशिक्षकों के लिए तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे.

इस दौरान उन्होंने घोषणा की कि असम-अरुणाचल प्रदेश सीमा विवाद को हल करने के बाद, वह चकमा हाजोंग समस्या को भारत के विभिन्न राज्यों में वितरित करके हल करेंगे, क्योंकि चकमा और हाजोंग शरणार्थी राज्य में स्थायी रूप से बस नहीं सकते हैं, जो संविधान के तहत एक आदिवासी राज्य के रूप में संरक्षित है. चकमाओं और हाजोंगों को 1964 के बाद से उत्तर पूर्वी सीमांत एजेंसी (एनईएफए) के सक्षम प्राधिकारी, भारत संघ द्वारा बसाया गया था और एनईएफए/अरुणाचल प्रदेश में पैदा हुए लोग जन्म से भारत के नागरिक हैं.

सीडीएफआई के संस्थापक सुहास चकमा ने कहा कि भारत के संविधान में किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश को अनिवासी घोषित करने और इसलिए जबरन अपने क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र से हटाने का अधिकार देने का कोई प्रावधान नहीं है. 1964-1969 के दौरान प्रवास करने वालों में से अधिकांश लोग लगभग मर चुके हैं और जो जीवित हैं, उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के 1996 के एनएचआरसी बनाम अरुणाचल प्रदेश राज्य के फैसले में दिए गए निर्देशों के अनुसार राज्य से हटाया नहीं जा सकता है.

सुहास चकमा ने कहा कि भारत के संविधान में अरुणाचल प्रदेश या किसी अन्य राज्य को आदिवासी राज्य के रूप में परिभाषित करने का कोई प्रावधान नहीं है और वास्तव में, संविधान का अनुच्छेद 371 (एच) केवल अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल को विशेष जिम्मेदारी और शक्तियां देता है. इसलिए, चकमा और हाजोंग शरणार्थी हैं, अरुणाचल प्रदेश संविधान द्वारा संरक्षित एक आदिवासी राज्य है आदि जैसे बयान गलत हैं और केवल भारतीय नागरिकों के एक वर्ग के खिलाफ पूर्वाग्रहों को कायम रखते हैं.

पढ़ें: असम-अरुणाचल में सीमा विवाद पर समझौता हस्ताक्षर, शाह ने कहा-होगी विकास की शुरुआत

चकमा ने आगे अरुणाचल प्रदेश को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि अरुणाचल प्रदेश अन्य राज्यों से कुछ हजार चकमा और हाजोंग लेने की अपेक्षा करता है, तो असम और त्रिपुरा जैसे अन्य राज्यों में एनआरसी से बाहर किए गए 1.9 मिलियन लोगों के बोझ को साझा करने के लिए अरुणाचल प्रदेश को बुलाया जाएगा, यह देखते हुए कि 2022 में जनसंख्या का घनत्व भारत में 431 लोगों प्रति वर्ग किलोमीटर की तुलना में अरुणाचल प्रदेश में 17 व्यक्ति था.

नयी दिल्ली: चकमा डेवलपमेंट फाउंडेशन ऑफ इंडिया (सीडीएफआई) ने मंगलवार को अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू से आग्रह किया कि राज्य के चकमाओं और हाजोंगों को राज्य में स्थायी रूप से बसने के योग्य नहीं बताकर उनके खिलाफ पूर्वाग्रहों को कायम न रखें और इसलिए, भारत के विभिन्न राज्यों में उनके स्थानांतरण का प्रस्ताव भी दें. मुख्यमंत्री पेमा खांडू सोमवार को ईटानगर में राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के उपलक्ष्य में प्रशिक्षकों के लिए तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे.

इस दौरान उन्होंने घोषणा की कि असम-अरुणाचल प्रदेश सीमा विवाद को हल करने के बाद, वह चकमा हाजोंग समस्या को भारत के विभिन्न राज्यों में वितरित करके हल करेंगे, क्योंकि चकमा और हाजोंग शरणार्थी राज्य में स्थायी रूप से बस नहीं सकते हैं, जो संविधान के तहत एक आदिवासी राज्य के रूप में संरक्षित है. चकमाओं और हाजोंगों को 1964 के बाद से उत्तर पूर्वी सीमांत एजेंसी (एनईएफए) के सक्षम प्राधिकारी, भारत संघ द्वारा बसाया गया था और एनईएफए/अरुणाचल प्रदेश में पैदा हुए लोग जन्म से भारत के नागरिक हैं.

सीडीएफआई के संस्थापक सुहास चकमा ने कहा कि भारत के संविधान में किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश को अनिवासी घोषित करने और इसलिए जबरन अपने क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र से हटाने का अधिकार देने का कोई प्रावधान नहीं है. 1964-1969 के दौरान प्रवास करने वालों में से अधिकांश लोग लगभग मर चुके हैं और जो जीवित हैं, उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के 1996 के एनएचआरसी बनाम अरुणाचल प्रदेश राज्य के फैसले में दिए गए निर्देशों के अनुसार राज्य से हटाया नहीं जा सकता है.

सुहास चकमा ने कहा कि भारत के संविधान में अरुणाचल प्रदेश या किसी अन्य राज्य को आदिवासी राज्य के रूप में परिभाषित करने का कोई प्रावधान नहीं है और वास्तव में, संविधान का अनुच्छेद 371 (एच) केवल अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल को विशेष जिम्मेदारी और शक्तियां देता है. इसलिए, चकमा और हाजोंग शरणार्थी हैं, अरुणाचल प्रदेश संविधान द्वारा संरक्षित एक आदिवासी राज्य है आदि जैसे बयान गलत हैं और केवल भारतीय नागरिकों के एक वर्ग के खिलाफ पूर्वाग्रहों को कायम रखते हैं.

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चकमा ने आगे अरुणाचल प्रदेश को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि अरुणाचल प्रदेश अन्य राज्यों से कुछ हजार चकमा और हाजोंग लेने की अपेक्षा करता है, तो असम और त्रिपुरा जैसे अन्य राज्यों में एनआरसी से बाहर किए गए 1.9 मिलियन लोगों के बोझ को साझा करने के लिए अरुणाचल प्रदेश को बुलाया जाएगा, यह देखते हुए कि 2022 में जनसंख्या का घनत्व भारत में 431 लोगों प्रति वर्ग किलोमीटर की तुलना में अरुणाचल प्रदेश में 17 व्यक्ति था.

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