नई दिल्ली : प्रवर्तन निदेशालय (ED) के पूर्व निदेशक करनाल सिंह ने कहा कि हाल ही में धन शोधन रोधी अधिनियम (PMLA) के विभिन्न प्रावधानों को स्पष्ट करते हुए उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गए फैसले से ED और मजबूत हुआ है, क्योंकि एजेंसी प्रेडिकेट आफेंस दर्ज होने से पहले भी अब संपत्ति कुर्क करने समेत छापेमारी कर सकती है. प्रेडिकेट आफेंस ऐसा अपराध होता है जो किसी बड़े अपराध का हिस्सा होता है और अक्सर इसका संबध धन शोधन से होता है.
शीर्ष अदालत ने 27 जुलाई को PMLA के कई प्रावधानों की वैधता एवं व्याख्या और इस सख्त आपराधिक कानून के तहत मामलों की जांच के दौरान ED द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई के बाद 545 पन्नों के आदेश में ये निर्देश जारी किए. 1984 बैच के भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी सिंह, तीन साल से अधिक समय तक संघीय एजेंसी का नेतृत्व करने के बाद 2018 में ED के प्रमुख के पद से सेवानिवृत्त हुए थे.
ED के पूर्व प्रमुख ने आदेश के बारे में समझाते हुए कहा कि उच्चतम न्यायालय के फैसले से एजेंसी के हाथ मजबूत हुए हैं. उन्होंने कहा कि कुछ मामलों में यह जांचकर्ताओं की इसको लेकर जवाबदेही भी लाता है कि वे किसी मामले में आगे बढ़ने से पहले सूचनाओं का विश्लेषण कर लें. सिंह ने एक साक्षात्कार में कहा, "उच्चतम न्यायालय का आदेश, कुछ जगहों पर (ED) के हाथों को मजबूत करता है. जैसे कि यह कहता है कि संपत्ति की कुर्की प्रेडिकेट आफेंस वहां होने के बिना भी की जा सकती है, यदि ED के अधिकारी इससे संतुष्ट हैं कि एक प्रेडिकेट आफेंस है, अपराध से अर्जित आय है जो तुरंत कुर्की नहीं किये जाने पर विलुप्त हो सकती है या समाप्त हो सकती है और PMLA के तहत कार्यवाही को विफल कर सकती है."
उन्होंने कहा, "हालांकि, कुर्की के समय, ED अधिकारी को प्रेडिकेट एजेंसी को सभी सबूत देते हुए एक पत्र भी लिखना चाहिए ताकि प्रेडिकेट एजेंसी (जैसे सीबीआई, पुलिस आदि) इसका संज्ञान ले सके, एक मामला दर्ज कर सके और प्राथमिकी की प्रति दे सके या अगर वह ऐसी एजेंसी है जहां प्राथमिकी दर्ज नहीं होती तो ED को इस अवधारणा के बारे में सूचित करें कि वे इसकी जांच करने जा रहे हैं."
उन्होंने कहा कि दूसरे, अदालत का आदेश स्पष्ट करता है कि प्रेडिकेट आफेंस दर्ज हुए बिना भी ED द्वारा छापेमारी की जा सकती है. उन्होंने कहा, "हालांकि, अधिकारियों को सावधान रहना होगा कि यदि अन्य एजेंसियां मामला दर्ज नहीं करती हैं तो क्या होगा? क्या होगा है यदि सबूत मजबूत नहीं हैं जिससे प्रेडिकेट आफेंस सफल नहीं हो? यदि आप फैसला देखते हैं, तो यह कहता है कि यदि प्रेडिकेट आफेंस विफल हो जाता है तो कोई PMLA अपराध नहीं है. इसलिए अंततः अंतिम निर्णय में दोनों एजेंसियों (ED और प्रेडिकेट आफेंस दर्ज करने वाली एजेंसी) के पैर बंध गए हैं."
उन्होंने कहा, "मतलब यह है कि ED तभी सफल होगा जब प्रेडिकेट एजेंसी सफल होगी. अगर आप संपत्ति कुर्क भी करते हैं, भले ही आप मुकदमा चलाते हैं, अगर प्रेडिकेट आफेंस विफल होता है तो क्या होता है?" ED के पूर्व निदेशक का कहना है कि उच्चतम न्यायालय के आदेश को एक ऐसे निर्देश के रूप में देखा जा सकता है जो ED अधिकारियों, अदालतों और अधिवक्ताओं को धनशोधन रोधी कानून की विभिन्न धाराओं के अर्थ के बारे में "स्पष्टता" देता है और इसलिए इसका कार्यान्वयन पहले के मुकाबले सुचारू तरीके से होगा. ED अधिकारियों को 'सावधान' रहना होगा क्योंकि अगर दूसरी एजेंसी मामला दर्ज नहीं करती है तो उनकी जांच का क्या होगा, कुर्की का क्या होगा, छापेमारी का क्या होगा? उन्होंने कहा, "वे सभी शून्य हो जाएंगे. इसलिए उन्हें (ED जांचकर्ताओं) को आत्म नियंत्रण रखना होगा, विभाग के भीतर कुछ रोक और संतुलन होना चाहिए ताकि ऐसे मामलों में जहां पहले से ही कोई अपराध दर्ज न हो, (ED के) वरिष्ठ अधिकारी को ऐसे मामलों में जांच शुरू करने से पहले इस पर गौर करना चाहिए."
सिंह ने राजनीतिक दलों और अन्य द्वारा लगाए गए इन आरोपों को भी खारिज कर दिया कि ED की दोषसिद्धि की दर बहुत खराब है. संसद के ताजा आंकड़ों में कहा गया है कि ED ने (2005 से) अपनी 17 साल की यात्रा के दौरान पीएमएलए के तहत 23 दोषसिद्धियां हासिल की. उन्होंने कहा, "हमें यह समझना होगा कि दोषसिद्धि की दर क्या होती है. यह निर्णय किए गए मामलों की संख्या बनाम सफल मामलों की संख्या पर आधारित है. यह अदालत में भेजे गए मामलों की संख्या और उन मामलों की संख्या नहीं है जिनके परिणामस्वरूप दोषसिद्धि हुई. यह अंतर है समझना होगा." उन्होंने कहा कि अन्य जांच एजेंसियों की दोषसिद्धि दर लगभग 40 प्रतिशत है और इसलिए "इस तरह, मैं कहूंगा कि ये ED के खिलाफ गलत आरोप हैं."
(पीटीआई-भाषा)