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सीजेआई बोबडे के कार्यालय का एक वर्ष: जानें क्या थी बड़ी चुनौती

भारत के प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे के कार्यकाल का एक वर्ष 18 नवंबर को पूरा हो गया है. जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द करना, नागरिकता संशोधन अधिनियम की संवैधानिकता और इलेक्टोरल बॉन्ड की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं व राष्ट्रीय महत्व के कई अहम मामलों पर अभी सुनवाई होनी बाकी है. उम्मीद की जा रही है कि इन पर जल्द सुनवाई पूरी होगी. क्या इनके कार्यकाल में यह संभव हो सकेगा, इसके बारे में कुछ भी नहीं कहा ज सकता है.

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Published : Nov 19, 2020, 5:59 PM IST

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सीजेआई एसए बोबडे

हैदराबाद : सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे के कार्यकाल का एक वर्ष पूरा हो गया है. उन्होंने 18 नवंबर, 2019 को जस्टिस रंजन गोगोई की जगह ली थी और भारत के 47वें प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बने थे.

भारत के प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे ने 18 नवंबर को अपने कार्यकाल का एक वर्ष पूरा कर लिया. इसलिए मूल संवैधानिक प्रश्नों से संबंधित प्रमुख मामलों पर नजर डालना सार्थक है, जो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निपटारा किए जाने का इंतजार कर रहे हैं.

दिसंबर 2019 में संसद द्वारा पारित नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) पहला प्रमुख मुद्दा था. पदभार संभालने के बाद सीजेआई को इसे जल्द निपटाना था.

जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द करना, नागरिकता संशोधन अधिनियम की संवैधानिकता और इलेक्टोरल बॉन्ड की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं व राष्ट्रीय महत्व के कई अहम मामलों को तय करने में तत्परता नहीं दिखाने के लिए सुप्रीम कोर्ट आलोचनाओं के घेरे में आ गया था.

देशभर की विभिन्न पार्टियों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में सीएए-एनपीआर-एनआरसी को चुनौती देने वाली 140 से अधिक रिट याचिकाएं दायर की गई थीं.

जब लोग नागरिकता से संबंधित मुद्दों पर त्वरित और आधिकारिक घोषणा के लिए सुप्रीम कोर्ट की ओर देख रहे थे, तब सीजेआई बोबडे ने सबरीमाला मामले में समीक्षा याचिका में उठाए गए धार्मिक प्रथाओं के सवालों को प्राथमिकता देने के लिए चुना.

सीजेआई ने सबरीमाला समीक्षा आदेश के संदर्भ में धार्मिक स्वतंत्रता के दायरे और उन पर न्यायिक समीक्षा की सीमा से संबंधित कई प्रश्नों को फ्रेम करने और तय करने के लिए नौ-न्यायाधीशों की पीठ का गठन किया था.

जब सीएए याचिकाओं पर तत्काल सुनवाई की मांग की गई, तो सीजेआई ने सबरीमाला के बाद सुनवाई के लिए कहा.

जस्टिस बोबडे के कुछ पिछले निर्णय:

2019: अपील पर एक व्यक्ति की सजा को आजीवन कारावास में बदला. मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक महिला की हत्या के मामले में दोषी को मौत की सजा सुनाई थी.

2017: सुप्रीम कोर्ट के नौ न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मति से निजता के मौलिक अधिकार की पुष्टि की. न्यायमूर्ति बोबडे ने निजता को मूल अधिकार के रूप में कई मौलिक अधिकारों में रहने वाले एक प्राकृतिक अधिकार के रूप में मान्यता देते हुए सहमति व्यक्त की. जस्टिस बोबडे ने स्पष्ट किया कि आधार निजता का उचित, न्यायसंगत और उचित प्रतिबंध है.

2017: सुप्रीम कोर्ट की सात न्यायाधीशों की पीठ ने आदेश दिया कि चुनावी वोटों के लिए सांप्रदायिक भावनाओं को अपील करने के खिलाफ प्रतिबंध मतदाता और उम्मीदवारों दोनों के लिए हैं. जस्टिस बोबडे ने एक अलग सहमति व्यक्त की, जिसमें जोर देकर कहा गया कि दंडात्मक विधियों की उद्देश्यपूर्ण व्याख्या के खिलाफ कोई रोक नहीं है.

2016: सुप्रीम कोर्ट की एक नौ-न्यायाधीशों की पीठ ने अन्य राज्यों से प्रवेश करने वाले सामानों पर राज्य प्रवेश कर की वैधता को बरकरार रखा. जस्टिस बोबडे सात जजों के बहुमत का हिस्सा थे.

11 नवंबर, 2016 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर और जस्टिस बोबडे और जस्टिस एके सीकरी ने पटाखों की बिक्री और स्टॉकिंग पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया. यह फैसला दीपावली के लगभग दो हफ्ते बाद आया.

2013: जस्टिस एसए बोबडे और जस्टिस बीएस चौहान ने एक अंतरिम आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया कि किसी भी भारतीय नागरिक को आधार कार्ड न होने पर बुनियादी सेवाओं और सरकारी सब्सिडी से वंचित नहीं किया जा सकता है.

हैदराबाद : सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे के कार्यकाल का एक वर्ष पूरा हो गया है. उन्होंने 18 नवंबर, 2019 को जस्टिस रंजन गोगोई की जगह ली थी और भारत के 47वें प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बने थे.

भारत के प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे ने 18 नवंबर को अपने कार्यकाल का एक वर्ष पूरा कर लिया. इसलिए मूल संवैधानिक प्रश्नों से संबंधित प्रमुख मामलों पर नजर डालना सार्थक है, जो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निपटारा किए जाने का इंतजार कर रहे हैं.

दिसंबर 2019 में संसद द्वारा पारित नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) पहला प्रमुख मुद्दा था. पदभार संभालने के बाद सीजेआई को इसे जल्द निपटाना था.

जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द करना, नागरिकता संशोधन अधिनियम की संवैधानिकता और इलेक्टोरल बॉन्ड की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं व राष्ट्रीय महत्व के कई अहम मामलों को तय करने में तत्परता नहीं दिखाने के लिए सुप्रीम कोर्ट आलोचनाओं के घेरे में आ गया था.

देशभर की विभिन्न पार्टियों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में सीएए-एनपीआर-एनआरसी को चुनौती देने वाली 140 से अधिक रिट याचिकाएं दायर की गई थीं.

जब लोग नागरिकता से संबंधित मुद्दों पर त्वरित और आधिकारिक घोषणा के लिए सुप्रीम कोर्ट की ओर देख रहे थे, तब सीजेआई बोबडे ने सबरीमाला मामले में समीक्षा याचिका में उठाए गए धार्मिक प्रथाओं के सवालों को प्राथमिकता देने के लिए चुना.

सीजेआई ने सबरीमाला समीक्षा आदेश के संदर्भ में धार्मिक स्वतंत्रता के दायरे और उन पर न्यायिक समीक्षा की सीमा से संबंधित कई प्रश्नों को फ्रेम करने और तय करने के लिए नौ-न्यायाधीशों की पीठ का गठन किया था.

जब सीएए याचिकाओं पर तत्काल सुनवाई की मांग की गई, तो सीजेआई ने सबरीमाला के बाद सुनवाई के लिए कहा.

जस्टिस बोबडे के कुछ पिछले निर्णय:

2019: अपील पर एक व्यक्ति की सजा को आजीवन कारावास में बदला. मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक महिला की हत्या के मामले में दोषी को मौत की सजा सुनाई थी.

2017: सुप्रीम कोर्ट के नौ न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मति से निजता के मौलिक अधिकार की पुष्टि की. न्यायमूर्ति बोबडे ने निजता को मूल अधिकार के रूप में कई मौलिक अधिकारों में रहने वाले एक प्राकृतिक अधिकार के रूप में मान्यता देते हुए सहमति व्यक्त की. जस्टिस बोबडे ने स्पष्ट किया कि आधार निजता का उचित, न्यायसंगत और उचित प्रतिबंध है.

2017: सुप्रीम कोर्ट की सात न्यायाधीशों की पीठ ने आदेश दिया कि चुनावी वोटों के लिए सांप्रदायिक भावनाओं को अपील करने के खिलाफ प्रतिबंध मतदाता और उम्मीदवारों दोनों के लिए हैं. जस्टिस बोबडे ने एक अलग सहमति व्यक्त की, जिसमें जोर देकर कहा गया कि दंडात्मक विधियों की उद्देश्यपूर्ण व्याख्या के खिलाफ कोई रोक नहीं है.

2016: सुप्रीम कोर्ट की एक नौ-न्यायाधीशों की पीठ ने अन्य राज्यों से प्रवेश करने वाले सामानों पर राज्य प्रवेश कर की वैधता को बरकरार रखा. जस्टिस बोबडे सात जजों के बहुमत का हिस्सा थे.

11 नवंबर, 2016 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर और जस्टिस बोबडे और जस्टिस एके सीकरी ने पटाखों की बिक्री और स्टॉकिंग पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया. यह फैसला दीपावली के लगभग दो हफ्ते बाद आया.

2013: जस्टिस एसए बोबडे और जस्टिस बीएस चौहान ने एक अंतरिम आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया कि किसी भी भारतीय नागरिक को आधार कार्ड न होने पर बुनियादी सेवाओं और सरकारी सब्सिडी से वंचित नहीं किया जा सकता है.

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